https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: ।। त्याग का रहस्य: / परम अर्थ ।।🌷🌷🌷

।। त्याग का रहस्य: / परम अर्थ ।।🌷🌷🌷

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। त्याग का रहस्य: / परम  अर्थ  ।।🌷🌷🌷

🌹🌹 *त्याग का रहस्य:-*🌹🌹


*एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन बन में जा पहुँचे।* 

*वहाँ उन्होंने एक बहुत बड़ा घनी छाया वाला सेमर का वृक्ष देखा और उसकी छाया में विश्राम करने के लिए ठहर गये।*



नारदजी को उसकी शीतल छाया में आराम करके बड़ा आनन्द हुआ, वे उसके वैभव की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। 

उन्होंने उससे पूछा कि.. 

*“वृक्ष राज तुम्हारा इतना बड़ा वैभव किस प्रकार सुस्थिर रहता है? पवन तुम्हें गिराती क्यों नहीं?”*

सेमर के वृक्ष ने हंसते हुए ऋषि के प्रश्न का उत्तर दिया कि-

 *“भगवान्! बेचारे पवन की कोई सामर्थ्य नहीं कि वह मेरा बाल भी बाँका कर सके।*-

*वह मुझे किसी प्रकार गिरा नहीं सकता।”* 

नारदजी को लगा कि 

*सेमर का वृक्ष अभिमान के नशे में ऐसे वचन बोल रहा है।* 

उन्हें यह उचित प्रतीत न हुआ और झुँझलाते हुए सुरलोक को चले गये।

सुरपुर में जाकर 

*नारदजी ने पवन से कहा.. ‘अमुक वृक्ष अभिमान पूर्वक दर्प वचन बोलता हुआ आपकी निन्दा करता है,* 

सो उसका अभिमान दूर करना चाहिए।‘ 

पवन को अपनी निन्दा करने वाले पर बहुत क्रोध आया और वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ आँधी तूफान की तरह चल दिया।

*सेमर का वृक्ष बड़ा तपस्वी परोपकारी और ज्ञानी था, उसे भावी संकट की पूर्व सूचना मिल गई।* 

वृक्ष ने अपने बचने का उपाय तुरन्त ही कर लिया। 

उसने अपने सारे पत्ते झाड़ा डाले और ठूंठ की तरह खड़ा हो गया।

 पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढूँठ का कुछ भी बिगाड़ न सका। 

अन्ततः उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा।

कुछ दिन पश्चात् नारदजी उस वृक्ष का परिणाम देखने के लिए उसी बन में फिर पहुँचे, पर वहाँ उन्होंने देखा कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा भरा खड़ा है। 

नारदजी को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। 

*उन्होंने सेमर से पूछा- “पवन ने सारी शक्ति के साथ तुम्हें उखाड़ने की चेष्टा की थी पर तुम तो अभी तक ज्यों के त्यों खड़े हुए हो, इसका क्या रहस्य है?”*

वृक्ष ने नारदजी को प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक निवेदन किया-

 *“ऋषिराज! मेरे पास इतना वैभव है पर मैं इसके मोह में बँधा हुआ नहीं हूँ।* 

*संसार की सेवा के लिए इतने पत्तों को धारण किये हुए हूँ, परन्तु जब जरूरत समझता हूँ इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ।* 

मुझे वैभव का गर्व नहीं था वरन् अपने ठूँठ होने का अभिमान था इसीलिए मैंने पवन की अपेक्षा अपनी सामर्थ्य को अधिक बताया था। 

*आप देख रहे हैं कि उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन की प्रचंड टक्कर सहता हुआ भी यथा पूर्व खड़ा हुआ हूँ।*

नारदजी समझ गये कि 

*संसार में वैभव रखना, धनवान होना कोई बुरी बात नहीं है।* 

*इससे तो बहुत से शुभ कार्य हो सकते हैं।* 

बुराई तो धन के अभिमान में डूब जाने और उससे मोह करने में है। 

यदि कोई व्यक्ति धनी होते हुए भी मन से पवित्र रहे तो वह एक प्रकार का साधु ही है। 

*ऐसे जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहने वाले कर्मयोगी साधु के लिए घर ही तपोभूमि है।*

‘अखण्ड ज्योति, फरवरी-1943’

🌹🌹🌹*जय द्वारकाधीश*🌹*जय मुरलीधर*🌹🌹🌹     

।। परम  अर्थ  ।।🌷🌷🌷


हमारे    देश   मे  ईश्वर   के   विषय   मे  कम बेशी    श्रद्धा   तो   सर्वत्र    दिखाई   देती   है  ! 

लेकिन   ईश्वर   विषयक    कल्पना   गलत   होती   है  ! 

इस लिये   उस   श्रद्धा   का   अपेक्षित   असर   होता  हुवा   दिखाई   नही   देता  !  

वह  एक   मूढ़   श्रद्धा  है  , उसकी   भी   थोड़ी  बहुत   उपयोगिता  तो   है  ही ! 

ईश्वर   के   बारे   मे   ठीक   कल्पना   नही   होने   से  वह   श्रद्धा   कम   बेशी   होने   पर  भी   ,  न   होने   जैसी   ही   है  !   

ईश्वर  एक  शक्ति   है  ! 

जैसे   तार   मे   बिजली   भरी   हुई    हो  और  बटन   दबाते   ही   वह   प्रगट   होती   है   ! 

वैसे  ही  समूचे   विश्व   मे  यह   महान   शक्ति    भरी    हुई  है  और   आस्तिकता   के   माध्यम   से  प्रकट   हो  सकती  है  ! 


लेकिन   वैसा    होते   हुए   दिखाई   नही   देता  ! 

क्योकि   तीर्थयात्रा  , भजन   आदि   कार्यक्रम    हम   करते   रहते   है  !   

परन्तु    हममे  भक्त   लक्षण   प्रकट  होते   हुए   दिखाई   नही  देते  !  

ईश्वर   का   ध्यान   गुण   विकास   के   लिये  करना    होता   है   !  

वह  मंगल   गुण   निधान    है  !  

ईश्वर    का   आविर्भाव    हममे  अगर  होना    हो   तो   ,  जैसे   ईश्वर   परम   प्रेमरूप  है   ,   अत्यंत  निर्मल   है   , वैसे   ही   हमे  होना   होगा  !   

और  उसके   लिये  चाहिये    निष्काम    भक्ति  ! 

श्री राम   हरी  
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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