सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। सुंदर कहानी ।।
।। स्वयं प्रभु मूर्तिमान होकर जनाबाई का हाथ बंटाते / श्री रामचरित्रमानस प्रवचन / एक सुंदर पंक्ति ।।
*"स्वयं प्रभु मूर्तिमान होकर जनाबाई का हाथ बंटाते"*
इस प्रसंग के बाद भगवान के प्रति जनाबाई का प्रेम बहुत बढ़ गया।
भगवान समय - समय पर उसे दर्शन देने लगे।
जनाबाई चक्की पीसते समय भगवान के ‘अभंग’ गाया करती थी ।
गाते - गाते जब वह अपनी सुध - बुध भूल जाती ।
तब उसके बदले में भगवान स्वयं चक्की पीसते और जनाबाई के अभंग सुनकर प्रसन्न होते।
जनाबाई की काव्य-भाषा सर्वसामान्य लोगों के हृदय को छू लेती है।
महाराष्ट्र के गांव-गांव में स्त्रियां चक्की पीसते हुए ।
ओखली में धान कूटते हुए उन्हीं की रचनाएं गाती हैं।
भगवान विट्ठलनाथ के दरबार में जनाबाई का क्या स्थान है ।
यह इससे सिद्ध होता है कि नदी से पानी लाते समय ।
चक्की से आटा पीसते समय ।
घर की झाड़ू लगाते समय ।
और कपड़े धोते समय भगवान स्वयं जनाबाई का हाथ बंटाते थे।
अपने भक्त और अनन्यचिन्तक के योगक्षेम का वहन वह दयामय स्वयं करता है।
किसी दूसरे पर वह इसे छोड़ कैसे सकता है।
जिसे एक बार भी वह अपना लेते हैं ।
जिसकी बांह पकड़ लेते हैं ।
उसे एक क्षण के लिए भी छोड़ते नहीं।
भगवान ऊंच - नीच नहीं देखते ।
जहां भक्ति देखते हैं ।
वहीं ठहर जाते हैं–
जहां कहीं भी कृष्ण नाम का उच्चारण होता है ।
वहां वहां स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं।
नाम के साथ स्वयं श्रीहरि सदा रहते हैं।
रैदास के साथ वे चमड़ा रंगा करते थे ।
कबीर से छिपकर उनके वस्त्र बुन दिया करते थे ।
धर्मा के घर पानी भरते थे ।
एकनाथजी के यहां श्रीखंडमा बन - कर चौका - बर्तन करते थे,
ज्ञानदेव की दीवार खींचते थे ।
नरहरि सुनार के साथ सुनारी करते थे और जनाबाई के साथ गोबर बटोरते थे।
जप-कीर्तन के माध्यम से मनुष्य क्या कुछ बन सकता है,
एक दिन भगवान के गले का रत्न - पदक ( आभूषण ) चोरी हो गया।
मन्दिर के पुजारियों को जनाबाई पर संदेह हुआ क्योंकि मन्दिर में सबसे अधिक आना - जाना जनाबाई का लगा रहता था।
जनाबाई ने भगवान की शपथ लेकर पुजारियों को विश्वास दिलाया कि आभूषण मैंने नहीं लिया है ।
पर किसी ने इन पर विश्वास नहीं किया।
लोग उसे सूली पर चढ़ाने के लिए चन्द्रभागा नदी के तट पर ले गए।
जनाबाई विकल होकर ‘विट्ठल-विट्ठल’ पुकारने लगी।
देखते - ही-देखते सूली पिघल कर पानी हो गयी।
तब लोगों ने जाना कि भगवान के दरबार में जनाबाई का कितना उच्च स्थान है।
यह है भगवान का प्रेमानुबन्ध
जिस क्षण मनुष्य भगवान का पूर्ण आश्रय ले लेता है ।
उसी क्षण परमेश्वर उसकी रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते है।
भगवान का कथन है–
‘अपने भक्तों का एकमात्र आश्रय मैं ही हूँ।
इसलिए अपने साधुस्वभाव भक्तों को छोड़कर मैं न तो अपने - आपको चाहता हूँ और न अपनी अर्धांगिनी विनाशरहित लक्ष्मी को।’
‘हौं भक्तन को भक्त हमारे’ भगवान की यह प्रतिज्ञा है।
पूर्ण शरणागति और अखण्ड प्रेम से सब कुछ सम्भव है।
संसारी मनुष्यों के लिए यह असम्भव लगता है ।
परन्तु भक्तों के लिए बहुत साधारण सी बात है।
एक बार कबीरदासजी जनाबाई का दर्शन करने पंढरपुर गए।
उन्होंने वहां देखा कि दो स्त्रियां गोबर के उपलों के लिए लड़ रहीं थीं।
कबीरदासजी वहीं खड़े हो गए और वह दृश्य देखने लगे।
फिर उन्होंने एक महिला से पूछा–
’आप कौन हैं?’
उसने कहा–
’मेरा नाम जनाबाई है।’
कबीरदासजी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
हम तो परम भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उनका दर्शन करने आए हैं और ये गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही हैं।
उन्होंने जनाबाई से पूछा–
’आपको अपने उपलों की कोई पहचान है।’
जनाबाई ने उत्तर दिया–
’जिन उपलों से.....
‘विट्ठल-विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो ।
वे हमारे हैं।’
कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास ले जाकर देखा तो उन्हें वह ध्वनि सुनाई पड़ी।
यह देखकर कबीरदासजी आश्चर्यचकित रह गए और जनाबाई की भक्ति के कायल हो गए।
नामदेवजी के साथ जनाबाई का कुछ पारलौकिक सम्बन्ध था।
संवत १४०७ में नामदेवजी ने समाधि ली ।
उसी दिन उनके पीछे-पीछे कीर्तन करती हुई जनाबाई भी विठ्ठल भगवान में विलीन हो गईं
🌹🙏🏻🚩 *जय राम राम राम सियाराम* 🚩🙏🏻🌹
🚩🙏🏻 *जय विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठला हरि ॐ विठ्ठला* 🙏🏻🚩
🌹🙏🏻 *जय द्वारकाधीश* 🙏🏻🌹
।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।
राम राम राम।।🍁
🍁 *सुगम साधन* 🍁
जो मेरी दृष्टि में महापुरुष हैं, उनसे भी मैंने पूछा है ।
उन्होंने कहा है कि
*जो मनुष्य परमात्मा को अपना मान लेता है ।*
*उसे जनाने की जिम्मेदारी परमात्मा पर आ जाती है*,
क्योंकि परमात्मा ही जना सकते हैं, हम नहीं जान सकते।
जहां हम असमर्थ होते हैं ।
वहां भगवान् की सामर्थ्य काम करती है।
कितनी बढ़िया बात है कि 'मैं भगवान् का हूँ और भगवान् मेरे हैं।
मैं संसार का नहीं और संसार मेरा नहीं,--
यह मानने की योग्यता आप में है!
आपमें जितनी योग्यता है उतनी आप लगा दें।
जो नहीं है ।
उसकी पूर्ति भगवान् करेंगे--
*_सुने री मैंने निरबल के बल राम।_*
जितने अंश में आप निर्बल हैं, उतने अंश में भगवान् का बल काम करता है।
परंतु जितने अंश में आप सबल हैं उतना बल आप नहीं लगाते तो इसमें दोष आपका है ।
इसकी जिम्मेदारी भगवान् पर नहीं है।
( *साधन-सुधा-सिंधु* पृष्ठ २६८)
।। एक सुंदर पंक्ति ।।
☝🏼जब भी बैठो मालिक के आगे , अरदास करो , कहो कि हे परमात्मा
मेरा भजन-सिमरन में मन लगे
अन्दर का रस आये
मेरे में इतनी ताकत नहीं कि मैं भजन-सिमरन में बैठ सकूँ ।
तू ही मुझे नींद से उठाकर भजन-सिमरन पर बैठा सकता है
मेरे में इतनी हिम्मत नहीं कि मैं खुद उठ सकूँ
दया करो मालिक , कृपा करो , मेहर करो ...
मुझे वो नहीं देना जो मुझे अच्छा लगता हो
बल्कि वो देना जो मेरे लिये सही हो ...
🙏🙏राम राम -राम राम राम🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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