सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
*सुगम यज्ञोपवीत धारण विधि*
बन्धुओं जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि *श्रावणी पर्व ( रक्षा बंधन ) श्रावण शुक्ल पूर्णिमा दि.०३/०८/२०२० सोमवार* को मनाया जायगा ।
हर वर्ष हम सभी एक साथ या अपने -२ समूह मे उपाकर्म करते थे।
किन्तु इस साल हम कोरोना वैश्विक महामारी के चलते एकत्रित नही हो सकते और हमें कर्म का लोप भी नहीं करना है अत: आप सभी नीचे दी हुई सरल विधि से घर पर यज्ञोपवीत धारण कर सकते है ।
हमने आँनलाइन भी विधि की व्यवस्था की है ।
उस दीन भद्रा भी है जो प्रात: ०९:३० को समाप्त होगी ।
भद्रोपरान्त ही यज्ञोपवीत बदले ।
विधि-
१.स्नान करके श्वेत वस्त्र धोती व भस्म इत्यादि धारण करके पूर्वाभिमुख आसन पर बैठ जावे ।
२.सामने नवीन यज्ञोपवीत पात्र मे रखकर उस पर जल छिड़के ।
३.जनेऊ को बायें हाथ मे रखकर सीधे हाथ से ढक ले व दस बार गायत्री मंत्र का पाठ करे।
0. तत्पश्चात जनेऊ को पात्र मे रखकर , बायें हाथ मे अक्षत लेकर सीधे हाथ से अक्षत के २-४ दाने तंतु देवता का नाम लेते हुये छोड़ते रहे ।
१. *ॐकाराय नम: आवाहयामि स्थापयामि*
२. *अग्नये नम: आवाहयामि स्थापयामि*
३. *नागेभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*
४. *सोमाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*
५. *पितृभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*
६. *प्रजापतये नम:आवाहयामि स्थापयामि*
७. *अनिलाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*
८. *यमाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*
९. *विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*
१०. *ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*
0. पश्चात जनेऊ की गंध अक्षत पुष्प से पूजा करे ।
0. जनेऊ खोलकर दोनों हाथो को ऊँचा करके सूर्य का दर्शन करावे ।
0. *यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्* *।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज़:* ।।
इस मंत्र का पाठ करके जनेऊ धारण करे ।
0. धारण करके एक बार आचमन करे ।
0. जीर्ण जनेऊ को सिरमार्ग से निकालकर स्वच्छ स्थान पर रखे ।
0. यथाशक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करे , आसन के सामने जल छोड़कर नेत्रों से लगा लेवे।
।।।।।। हर हर हर महादेव हर ।।।।
।। श्रीमद्भागवत गीता प्रवचन ।।
*समर्पण*
निष्क्रिय पड़ी हुई इच्छाएं धीरे-धीरे सपने बनकर खो जाती हैं।
जिसके पीछे हम अपनी शक्ति लगा देते हैं ।
अपने को लगा देते हैं ।
वह इच्छा संकल्प बन जाती है।
संकल्प का अर्थ है, जिस इच्छा को पूरा करने के लिए हमने अपने को दांव पर लगा दिया।
तब वह डिजायर न रही, विल हो गई।
और जब कोई संकल्प से भरता है, तब और भी गहन खतरे में उतर जाता है।
क्योंकि अब इच्छा, मात्र इच्छा न रही कि मन में उसने सोचा हो कि महल बन जाए।
अब वह महल बनाने के लिए जिद्द पर भी अड़ गया।
जिद्द पर अड़ने का अर्थ है कि अब इस इच्छा के साथ उसने अपने अहंकार को जोड़ा।
अब वह कहता है कि अगर इच्छा पूरी होगी, तो ही मैं हूं।
अगर इच्छा पूरी न हुई, तो मैं बेकार हूं।
अब उसका अहंकार इच्छा को पूरा करके अपने को सिद्ध करने की कोशिश करेगा।
जब इच्छा के साथ अहंकार संयुक्त होता है, तो संकल्प निर्मित होता है।
अहंकार, मैं, जिस इच्छा को पकड़ लेता है, फिर हम उसके पीछे पागल हो जाते हैं।
फिर हम सब कुछ गंवा दें, लेकिन इस इच्छा को पूरा करना बंद नहीं कर सकते।
हम मिट जाएं।
अक्सर ऐसा होता है कि अगर आदमी का संकल्प पूरा न हो पाए, तो आदमी आत्महत्या कर ले।
कहे कि इस जीने से तो न जीना बेहतर है।
पागल हो जाए।
कहे कि इस मस्तिष्क का क्या उपयोग है!
संकल्प।
लेकिन साधारणतः हम सभी को सिखाते हैं संकल्प को मजबूत करने की बात।
अगर स्कूल में बच्चा परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पा रहा है, तो शिक्षक कहता है, संकल्पवान बनो।
मजबूत करो संकल्प को।
कहो कि मैं पूरा करके रहूंगा।
दांव पर लगाओ अपने को।
अगर बेटा सफल नहीं हो पा रहा है, तो बाप कहता है कि संकल्प की कमी है।
चारों तरफ हम संकल्प की शिक्षा देते हैं।
हमारा पूरा तथाकथित संसार संकल्प के ही ऊपर खड़ा हुआ चलता है।
कृष्ण बिलकुल उलटी बात कहते हैं।
वे कहते हैं, संकल्पों को जो छोड़ दे बिलकुल।
संकल्प को जो छोड़ दे, वही प्रभु को उपलब्ध होता है।
संकल्प को छोड़ने का मतलब हुआ, समर्पण हो जाए।
कह दे कि जो तेरी मर्जी।
मैं नहीं हूं।
समर्पण का अर्थ है कि जो हारने को, असफल होने को राजी हो जाए।
ध्यान रखें ।
फलाकांक्षा छोड़ना और असफल होने के लिए राजी होना, एक ही बात है।
असफल होने के लिए राजी होना और फलाकांक्षा छोड़ना, एक ही बात है।
जो जो भी हो, उसके लिए राजी हो जाए।
जो कहे कि मैं हूं ही नहीं सिवाय राजी होने के, एक्सेप्टिबिलिटी के अतिरिक्त मैं कुछ भी नहीं हूं।
जो भी होगा, उसके लिए मैं राजी हूं।
ऐसा ही व्यक्ति संन्यासी है।
गीता दर्शन
जय श्री कृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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