https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: अगस्त 2020

सबसे बडा रोग , विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता , श्री राधा - माधव - प्रर्वचन

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

सबसे बडा रोग , विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता ,  श्री राधा - माधव - प्रर्वचन


श्री राधा - माधव - प्रर्वचन

*वृषभानुनन्दी*

( श्रीराधाजी का भाव ) 
           

श्रीकृष्णको आह्वादित करती है...!

और उसी शक्तिके द्वारा उस सुखका आस्वाद स्वयं करते है....!

श्रीकृष्णको आह्वादित करके स्वयं आह्वादित होती है । 

'' *त्तसुखे सुखित्वम* " 

यह प्रेमका स्वरूप है, बड़ी सुन्दर चीज है । 

जहाँ अपने सुखकी बांछा है...!

किसीके द्वारा, भगवानके द्वारा भी; मोक्षकी भी प्रेम नहीं है, काम है ।

 "*निजेन्द्रिय प्रीती इच्छा, तार नाम काम* । " 

कामना और प्रेममें यही अन्तर है, कामना चाहती ही अपना सुख और प्रेम चाहता है प्रेमास्पदका सुख । 

यही भेद है । 

इसी लिये गोपियोंका ' काम ' शब्द प्रेमका ही वाचक है...!

      *प्रेमव गोपरामाणां काम इत्यगमतपरतथाम*

         गोपियों को काम - काम नहीं था । 

उसका नाम है, पर वहाँ काम - गन्ध-लेश भी नहीं है, यही दिव्य प्रेम है ।

           जो आह्वादीनि शक्ति है । 

वह श्रीकृष्ण को आह्वादित करती है और '*आह्वादनीर सार अंश प्रेम तार नाम*' जो उसका सार अंश है, उसका नाम प्रेम है । 

वह प्रेम आनन्द - चिन्मय रस है और  इस प्रेमका जो परम् सार है वह  महाभाव है । 



इसी महाभाव की मूर्तिमती प्रतिमा महाभावरूपा ये राधारानीजी है, एक मूर्तिमती प्रेम-देवी है । 


कहते है कि यह प्रेमका जो सार है वही राधा बन गया है । 

ये श्रीकृष्णकी परमोत्कृष्ट प्रेयसी है, श्रीकृष्णवांछा पूर्ण करना ही इनके जीवनका कार्य है । 

इनमें काम-क्रोध, बन्ध - मोक्ष, भक्ति  - मुक्ति कुछ भी नही है । 

श्रीकृष्णकी इच्छा को पूर्ण करना यहीं इनका सबरूप -स्वभाव है । 

यह बडी भारी अनोखी चीज है भगवान इच्छारहित है, वे इच्छावाले बन जाते है ।

छोटे लोग....

      ऑफिस जाने के लिए मैं घर से निकला, तो देखा, कार पंचर थी. मुझे बेहद झुंझलाहट हुई. ठंड की वजह से आज मैं पहले ही लेट हो गया था. 11 बजे ऑफिस में एक आवश्यक मीटिंग थी, उस पर यह कार में पंचर… मैं सोसायटी के गेट पर आ खड़ा हुआ, सोचा टैक्सी बुला लूं. तभी सामने से ऑटो आता दिखाई दिया. उसे हाथ से रुकने का संकेत देते हुए मन में हिचकिचाहट-सी महसूस हुई. 

     इतनी बड़ी कंपनी का जनरल मैनेजर और ऑटो से ऑफिस जाए, किंतु इस समय विवशता थी. मीटिंग में डायरेक्टर भी सम्मलित होनेवाले थे. देर से पहुंचा, तो इम्प्रैशन ख़राब होने का डर था. ऑटो रुका. कंपनी का नाम बताकर मैं फुरती से उसमें बैठ गया. थोड़ी दूर पहुंचकर यकायक ऑटोवाले ने ब्रेक लगा दिए.

‘‘अरे क्या हुआ? 
रुक क्यों गए?" 
मैंने पूछा.
‘‘एक मिनट साहब, वह सोसायटी के गेट पर जो सज्जन खड़े हैं, उन्हें थोड़ी दूर पर छोड़ना है.’’ ऑटो चालक ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ मैं क्रोध में चिल्लाया.

‘‘एक तो मुझे देर हो रही है, दूसरे मैं पूरे ऑटो के पैसे दे रहा हूं, फिर क्यों किसी के साथ सीट शेयर करुंगा?"

‘‘साहब, मुझे इन्हें सिटी लाइब्रेरी पर उतारना है, जो आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ेगी. अगर आपको फिर भी ऐतराज़ है, तो आप दूसरा ऑटो पकड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं आपसे यहां तक के पैसे नहीं लूंगा.’’ ऑटो चालक के स्वर की दृढ़ता महसूस कर मैं ख़ामोश हो गया. यूं भी ऐसे छोटे लोगों के मुंह लगना मैं पसंद नहीं करता था.

     उसने सड़क के किनारे खड़े सज्जन को बहुत आदर के साथ अपने बगलवाली सीट पर बैठाया और आगे बढ़ गया. उन सम्भ्रांत से दिखनेवाले सज्जन के लिए मेरे मन में एक पल को विचार कौंधा कि मैं उन्हें अपने पास बैठा लूं फिर यह सोचकर कि पता नहीं कौन हैं… मैंने तुरंत यह विचार मन से झटक दिया. कुछ किलोमीटर दूर जाकर सिटी लाइब्रेरी आ गई. ऑटोवाले ने उन्हें वहां उतारा और आगे बढ़ गया.

‘‘कौन हैं यह सज्जन?" 
उसका आदरभाव देख मेरे मन में जिज्ञासा जागी.

उसने बताया, ‘‘साहब, ये यहां के डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉक्टर खन्ना हैं. सर के मेरे ऊपर बहुत उपकार हैं. मैं कॉमर्स में बहुत कमज़ोर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण ट्यूशन फीस देने में असमर्थ था. दो साल तक सर ने मुझे बिना फीस लिए कॉमर्स पढ़ाया, जिसकी बदौलत मैंने बी काॅम 80 प्रतिशत मार्क्स से पास किया. अब सर की ही प्रेरणा से मैं बैंक की परीक्षाएं दे रहा हूं.’’ ‘‘वैरी गुड,’’ मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?" 
मैंने पूछा.

‘‘संदीप नाम है मेरा. तीन साल पूर्व सर रिटायर हो गए थे. पिछले साल इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. 

हालांकि बेटे बहू साथ रहते हैं, फिर भी अकेलापन तो लगता ही होगा इसीलिए रोज सुबह दस बजे लाइब्रेरी चले जाते हैं. साहब, मैं शहर में कहीं भी होऊं, सुबह दस बजे सर को लाइब्रेरी छोड़ना और दोपहर दो बजे वापिस घर पहुंचाना नहीं भूलता. सर तो कहते भी हैं कि वह स्वयं चले जाएंगे, किंतु मेरा मन नहीं मानता. जब भी वह साथ जाने से इंकार करते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरी उनके प्रति गुरुदक्षिणा है और सर की आंखें भीग जाती हैं. न जाने कितने बहानों से वह मेरी मदद करते ही रहते हैं. साहब, मेरा मानना है, हम अपने मां-बाप और गुरु के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते.’

मैं निःशब्द मौन संदीप के कहे शब्दों का प्रहार अपनी आत्मा पर झेलता रहा. ज़ेहन में कौंध गए वे दिन जब मैं भी इसी डिग्री कॉलेज का छात्र था. साथ ही डॉ. खन्ना का फेवरेट स्टूडेंट भी. एम एस सी मैथ्स में एडमीशन लेना चाहता था. उन्हीं दिनों पापा को सीवियर हार्टअटैक पड़ा. मैं और मम्मी बदहवास से हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे.

डॉक्टरों के अथक प्रयास के पश्चात् पापा की जान बची. इस परेशानी में कई दिन बीत गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि निकल गई. उस समय मैंने डा. खन्ना को अपनी परेशानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह मेरी मदद करें. डॉ. खन्ना ने मैनेजमैन्ट से बात करके स्पेशल केस के अन्तर्गत मेरा एडमीशन करवाया और मेरा साल ख़राब होने से बच गया था. कॉलेज छोड़ने के पश्चात् मैं इस बात को बिल्कुल ही भूला दिया. 

यहां तक कि आज जब डॉ. खन्ना मेरे सम्मुख आए, तो अपने पद के अभिमान में चूर मैंने उनकी तरफ़ ध्यान भी नहीं दिया.

आज मेरी अंतरात्मा मुझसे प्रश्न कर रही थी कि हम दोनों में से छोटा कौन था, वह इंसान जो अपनी आमदनी की परवाह न करके गुरुदक्षिणा चुका रहा था या फिर एक कंपनी का जनरल मैनेजर, जो अपने गुरु को पहचान तक न सका था.....!!

                   । श्री राधे राधे जी ।
                  । श्रीकृष्णम शरणम ।
                   । जय द्वारकाधीश ।।

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विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता🔥*



*भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।* 

*द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।* 

*तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।*

       *चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।* 

*उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा।* 

*गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।*

 *गरूड़ को दया आ गई।* 

*इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे।* 

*उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया।* 

*आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।* 

*यम देव बोले....*

*" गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी।* 

*मैं सोच रहा था कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।* 

*"गरुड़ समझ गये " मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"*

  *इस लिए प्रभु कहते है।* 

*करता तू वह है जो तू चाहता है परन्तु होता वह है जो में चाहता हूँ कर तू वह जो में चाहता हूँ फिर होगा वो जो तू चाहेगा ।*

*जीवन के 6 सत्य:-*

*1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं ?* 

*क्योंकि..* 

*लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..*

*2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है ।*

*क्योंकि...*

*श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....*

*3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों , मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....*

*4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है ।*

*क्योंकि...* 

*अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...*

*5 . कोई फर्क नहीं पड़ता कि " आप " नहीं हँसेंगे तो सभ्य कहलायेंगे ?* 

*क्यूंकि ...* 

*" आप " पर हंसने के लिए दुनिया खड़ी है ?*

*6. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आप कितने अमीर हैं ?*

*और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास हैं ?*

*क्योंकि...*

*घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा इस लिए संभल के चलिए ज़िन्दगी का सफर छोटा है , हँसते हँसते काटिये , आनंद आएगा ।।*
जय जय श्री कृष्ण...!!!!

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*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳*

*💐💐सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग*💐💐

बौद्ध भिक्षुक किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा, आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है। पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली, साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया। तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें?

तब तीसरी पनिहारिन बोली, बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे? लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी, साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तूने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बना हुआ है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तू जैसा भी है, हरिनाम लेता रह।

सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे…अभिमानी हो गए।नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे…बस किसी के सामने देखते ही नहीं। आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि… ध्यान का नाटक कर रहा है। चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि… निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि… किया हुआ भोगना ही पड़ता है। ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है। दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो भजन नहीं कर पाओगे। यह नियम है।

*🚩🚩जय श्री राम🚩🚩*
*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*
🙏🙏🙏🙏🙏🌳जय द्वारकाधीश🌳🙏🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

संतो की महिमा , सर्मपण और अहंकार , ईश्वरीय अवतार , सूर्य नारायण की कहानी

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

संतो की महिमा , सर्मपण और अहंकार , ईश्वरीय अवतार  ,  सूर्य नारायण की कहानी:


संतो की महिमा

एक दिन एक संत अपने प्रवचन में कह रहे थे अतीत
में तुमसे जो पाप हो गए हैं उनका प्रायश्चित करो और
भविष्य में पाप न करने का संकल्प लो ।


प्रवचन समाप्त होने के बाद जब सभी लोग चले गए,
एक व्यक्ति थोड़ा सकुचाते हुए संत के पास पहुंचा ।

उसने संत से पूछा- 

महाराज, मन में एक जिज्ञासा है।
प्रायश्चित करने से पापों से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है ?

संत ने उसे दूसरे दिन आने को कहा । 

दूसरे दिन वह उसे एक नदी के किनारे ले गए । 

नदी तट पर
एक गड्ढे में भरा
पानी सड़ रहा था, 

जिसके कारण उससे बदबू आ रही ती

और उसमें कीड़े भी चल रहे थे। 

संत उस व्यक्ति को सड़ा पानी दिखाकर बोले-

भइया, यह पानी देख रहे हो ?

बताओ यह क्यों सड़ा ?

व्यक्ति ने पानी को ध्यान से देखा और कहा -

स्वामी जी,

प्रवाह रुकने के कारण पानी एक जगह ठहर गया
है और इस कारण सड़ रहा है । 

इस पर संत ने कहा- 

ऐसे ही सड़े हुए पानी की तरह पाप भी इकट्ठे हो जाते हैं और वे कष्ट पहुंचाते रहते हैं। 

जिस तरह वर्षा का पानी इस सड़े....!
पानी....!
को बहाकर हटा देता है और नदी को पवित्र बना देता है...!
उसी प्रकार प्रायश्चित रूप अमृत वर्षा इन पापों को नष्ट कर मन को पवित्र बना देती है।

इससे मन शुभ और सद्कार्यों के लिए तैयार हो जाता है ।

जब एक बार मन में परिवर्तन होता है तो व्यक्ति आगे कभी गलतियां नहीं दोहराता । 

इस लिए प्रायश्चित से व्यक्ति का अतीत और भविष्य दोनों ही पवित्र होता है...!

सर्मपण और अहंकार 

पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर लटक रहा नारियल रोज नीचे नदी में पड़े पत्थर पर हंसता और कहता...!

" तुम्हारी तकदीर में भी बस एक जगह पड़े रह कर नदी की धाराओं के प्रवाह को सहन करना ही लिखा है। 

देखना एक दिन यूं ही पड़े पड़े घिस जाओगे।

मुझे देखो कैसी शान से उपर बैठा हूं। पत्थर रोज उसकी अहंकार भरी बातों को अनसुना कर देता।

समय बीता एक दिन वही पत्थर घिस घिस कर गोल हो गया और  विष्णु प्रतीक शालिग्राम के रूप में जाकर एक मन्दिर में प्रतिष्ठित हो गया।

एक दिन वही नारियल उन शालिग्राम जी की पूजन सामग्री के रूप में मन्दिर  में लाया गया।

शालिग्राम ने नारियल को पहचानते हुए कहा " 

भाई...! 

देखो घिस घिस कर परिष्कृत होने वाले ही प्रभु के प्रताप से इस स्थिति को पहुँचते हैं।

सबके आदर का पात्र भी बनते हैं जबकि अहंकार के मतवाले अपने ही दम्भ के डसने से नीचे आ गिरते हैं।

तुम जो कल आसमान मे थे आज मेरे आगे टूट कर कल से सड़ने भी लगोगे पर मेरा अस्तित्व अब कायम रहेगा।

* भगवान की दृष्टि में, मूल्य...! 

समर्पण का है...! 

अहंकार का नहीं....!

ईश्वरीय अवतार



एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः 

" तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है। 

हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बार - बार आता है। 

यह ईश्वर का बार बार अवतार लेना, ये क्या बात हुई ? "

बीरबल जोकि एक ज्ञानी हिन्दू था:  

" जहाँपनाह ! " 

इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा। 

" आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए। "

चार - पाँच दिन बीत गये। 

बीरबल ने एक आयोजन किया। 

अकबर को यमुनाजी में नौकाविहार कराने ले गये। 

कुछ नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी। 

उस समय यमुनाजी छिछली न थीं। 

उनमें अथाह जल था।

बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था..., 

उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया। 

सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था। 

मोम का बालक पुतला बनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबर का बेटा लगे। 

दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था।

नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब....! 

'अरे.... रे... रे.... ओ.... ओ.....' कहकर दासी ने स्त्री चरित्र करके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी।

अपने बालक को बचाने - खोजने के लिए अकबर धड़ाम से यमुना में कूद पड़ा। 

खूब इधर - उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला। 

वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था।

अकबर कहने लगाः 

" बीरबल ! 

यह सारी शरारत तुम्हारी है। 

तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया। "

बीरबलः 

" जहाँपनाह ! 

आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए ऐसा ही किया गया था। 

आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े। 

उस समय आपको पता तो था ही इन सब नावों में कई तैराक बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ? हम कूदकरआपके बेटे की रक्षा करते !"

अकबरः "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों को कहने की फुरसत कहाँ रहती है? खुद ही कूदा जाता है।"

बीरबलः *"जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे किसी ऐैरे गैरों को नहीं भेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं। वे अपने बेटों की,धर्म की रक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को धर्म, आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं।* 

जहाँपनाह आपके उस दिन के सवाल का यही जवाब है।

 सूर्य नारायण की कहानी


 धर्मानुसार भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात लोगों को दिखाई देते हैं। सूर्य देव का वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। इसके अलावा एक प्रत्यक्ष देव के रूप में सूर्य देव का वर्णन कई जगह किया गया है। इनकी पत्नी का नाम अदिति और छाया है तथा उनके पुत्र शनि देव है जिन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। इन्हें कई नामों से जाना जाता है आइए जाने सूर्य देव के 108 नाम अर्थ सहित:-
सूर्य देव के 108 नाम (108 Names of Lord Surya in Hindi)

अरुण- तांबे जैसे रंग वाला

शरण्य- शरण देने वाला

करुणारससिन्धु- करुणा- भावना के महासागर

असमानबल- असमान बल वाले

आर्तरक्षक- पीड़ा से रक्षा करने वाले

आदित्य- अदिति के पुत्र

आदिभूत- प्रथम जीव

अखिलागमवेदिन- सभी शास्त्रों के ज्ञाता

अच्युत- जिसता अंत विनाश न हो सके (अविनाशी)

अखिलज्ञ- सब कुछ का ज्ञान रखने वाले

अनन्त- जिसकी कोई सीमा नहीं है

इना- बहुत शक्तिशाली

विश्वरूप- सभी रूपों में दिखने वाला

इज्य- परम पूजनीय

इन्द्र- देवताओं के राजा

भानु- एक अद्भुत तेज के साथ

इन्दिरामन्दिराप्त- इंद्र निवास का लाभ पाने वाले

वन्दनीय- स्तुती करने योग्य

ईश- इश्वर

सुप्रसन्न- बहुत उज्ज्वल

सुशील- नेक दिल वाल

सुवर्चस्- तेजोमय चमक वाले

वसुप्रद- धन दान करने वाले

वसु- देव

वासुदेव- श्री कृष्ण

उज्ज्वल- धधकता हुआ तेज वाला

उग्ररूप-क्रोद्ध में रहने वाले

ऊर्ध्वग- आकार बढ़ाने वाला

विवस्वत्-चमकता हुआ

उद्यत्किरणजाल- रोशनी की बढ़ती कड़ियों का एक जाल उत्पन्न करने वाले

हृषीकेश- इंद्रियों के स्वामी

ऊर्जस्वल- पराक्रमी

वीर- (निडर) न डरने वाला

निर्जर- न बिगड़ने वाला

जय- जीत हासिल करने वाला

ऊरुद्वयाभावरूपयुक्तसारथी- बिना जांघों वाले सारथी

ऋषिवन्द्य- ऋषियों द्वारा पूजे जाने वाले

रुग्घन्त्र्- रोग के विनाशक

ऋक्षचक्रचर- सितारों के चक्र के माध्यम से चलने वाले

ऋजुस्वभावचित्त- प्रकृति की वास्तविक शुद्धता को पहचानने वाले

नित्यस्तुत्य- प्रशस्त के लिए तैयार रहने वाला

ऋकारमातृकावर्णरूप- ऋकारा पत्र के आकार वाला

उज्ज्वलतेजस्- धधकते दीप्ति वाले

ऋक्षाधिनाथमित्र- तारों के देवता के मित्र

पुष्कराक्ष- कमल नयन वाले

लुप्तदन्त- जिनके दांत नहीं हैं

शान्त- शांत रहने वाले

कान्तिद- सुंदरता के दाता

घन- नाश करने वाल

कनत्कनकभूष- तेजोमय रत्न वाले

खद्योत- आकाश की रोशनी

लूनिताखिलदैत्य- असुरों का नाश करने वाला

सत्यानन्दस्वरूपिण्- परमानंद प्रकृति वाले

अपवर्गप्रद- मुक्ति के दाता

आर्तशरण्य- दुखियों को अपने शरण में लेने वाले

एकाकिन्- त्यागी

भगवत्- दिव्य शक्ति वाले

सृष्टिस्थित्यन्तकारिण्- जगत को बनाने वाले, चलाने वाले और उसका अंत करने वाले

गुणात्मन्- गुणों से परिपूर्ण

घृणिभृत्- रोशनी को अधिकार में रखने वाले

बृहत्- बहुत महान

ब्रह्मण्- अनन्त ब्रह्म वाला

ऐश्वर्यद- शक्ति के दाता

शर्व- पीड़ा देने वाला

हरिदश्वा- गहरे पीले के रंग घोड़े के साथ रहने वाला

शौरी- वीरता के साथ रहने वाला

दशदिक्संप्रकाश- दसों दिशाओं में रोशनी देने वाला

भक्तवश्य- भक्तों के लिए चौकस रहने वाला

ओजस्कर- शक्ति के निर्माता

जयिन्- सदा विजयी रहने वाला

जगदानन्दहेतु- विश्व के लिए उत्साह का कारण बनने वाले

जन्ममृत्युजराव्याधिवर्जित- युवा,वृद्धा, बचपन सभी अवस्थाओं से दूर रहने वाले

उच्चस्थान समारूढरथस्थ- बुलंद इरादों के साथ रथ पर चलने वाले

असुरारी- राक्षसों के दुश्मन

कमनीयकर- इच्छाओं को पूर्ण करने वाले

अब्जवल्लभ- अब्जा के दुलारे

अन्तर्बहिः प्रकाश- अंदर और बाहर से चमकने वाले

अचिन्त्य- किसी बात की चिन्ता न करने वाले

आत्मरूपिण्- आत्मा रूपी

अच्युत- अविनाशी रूप वाले

अमरेश- सदा अमर रहने वाले

परम ज्योतिष्- परम प्रकाश वाले

अहस्कर- दिन की शुरूआत करने वाले

रवि- भभकने वाले

हरि- पाप को हटाने वाले

परमात्मन्- अद्भुत आत्मा वाले

तरुण- हमेशा युवा रहने वाले

वरेण्य- उत्कृष्ट चरित्र वाला

ग्रहाणांपति- ग्रहों के देवता

भास्कर- प्रकाश के जन्म दाता

आदिमध्यान्तरहित- जन्म, मृत्यु, रोग आदि पर विजय पाने वाले

सौख्यप्रद- खुशी देने वाला

सकलजगतांपति- संसार के देवता

सूर्य- शक्तिशाली और तेजस्वी

कवि- ज्ञानपूर्ण

नारायण- पुरुष की दृष्टिकोण वाले

परेश- उच्च देवता

तेजोरूप- आग जैसे रूप वाले

हिरण्यगर्भ्- संसार के लिए सोनायुक्त रहने वाले

सम्पत्कर- सफलता को बनाने वाले

ऐं इष्टार्थद- मन की इच्छा पूरी करने वाले

अं सुप्रसन्न- सबसे अधिक प्रसन्न रहने वाले

श्रीमत्- सदा यशस्वी रहने वाले

श्रेयस्- उत्कृष्ट स्वभाव वाले

सौख्यदायिन्- प्रसन्नता के दाता

दीप्तमूर्ती- सदा चमकदार रहने वाले

निखिलागमवेद्य- सभी शास्त्रों के दाता

नित्यानन्द- हमेशा आनंदित रहने वाले
।।।।।।।।। हर हर महादेव हर।।।।।।।
/////////जय श्री कृष्ण//////////
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*रामायण में भोग नहीं, त्याग है**भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।* ।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*रामायण में भोग नहीं, त्याग है**भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।* ।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।। 


रामायण में भोग नहीं, त्याग है


*भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।*

*एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?




*मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया ।*

*श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।*

*माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?*

*शत्रुघ्न कहाँ है ?*

*श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*

*उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया ।*

*तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*

*आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?*

*अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।*

*माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें*
*खोलीं, माँ !*

*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।*

*माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"*

*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी
नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

*माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*

*देखो यह रामकथा हैं...*

*यह भोग की नहीं त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा* 

*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।*

*रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*🌸🌸🌸ॐ नमों नारायणय 🌸🌸🌸

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!!

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!!

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया। 

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं। 

यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं??

हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- "
मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"

राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया ।

। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।



श्री विष्णु पुराण अंश 

ग्रन्थ - श्रीराम श्रीकृष्ण-२
संदर्भ - अन्धत्व, भाग-३


प्रश्न यह है कि गांधारी अगर आँख पर पट्टी न बाँधती तो क्या वह पतिव्रता नहीं कहलाती ? 

क्या यह आवश्यक था कि वह आँख पर पट्टी बाँधे ? 

बल्कि गांधारी ने अगर यह सोचा होता कि हमारे पतिदेव भले ही दृष्टिहीन हैं, पर मेरे पास तो आँखें हैं। 

इसलिये मैं उनकी इस कमी को अपनी आँखों से पूरा करूँगी। 

जहाँ आवश्यक होगा, वहाँ उन्हें मार्ग दिखलाऊँगी और इन आँखों से उनकी सेवा करूँगी। 

भले ही इस कार्य में उसका त्याग उतना ऊँचा दिखाई नहीं देता, पर क्या यह कोई कम पातिव्रत था ? 

और अगर उसके मन में यह व्याख्या आती तो इसका तात्पर्य है कि उसका धर्म, ज्ञान, विवेक से जुड़ा हुआ होता। 

अगर उसका विवेक चैतन्य होता तो वह यही निर्णय करती कि पति के जीवन की कमी को हम अपने गुण के द्वारा दूर करें। 

पर गांधारी ने पट्टी बाँध ली। 

और यह पट्टी बाँध लेना बड़ा रहस्यपूर्ण है।

याद रखियेगा, यह धृतराष्ट्र मूर्तिमान "मोह" है। 

"मोह न अंध कीन्ह केहि केही।" 

और गांधारी मूर्तिमति "ममता" है।

और केवल गांधारी ही पट्टी नहीं बाँधती, अपितु ये जितने भी ममता वाले हैं, वे सब के सब अपनी आँखों पर पट्टी बाँधें हुये हैं। 

वे कहते हैं कि चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन हमें कुछ नहीं देखना है। 

कहा जाता है कि गांधारी ने जीवन में केवल एक बार पट्टी खोलने का निर्णय लिया। 

और वह निर्णय भी उसकी बुद्धि की विडम्बना का सबसे बड़ा प्रमाण है। 

जब महाभारत के युद्ध में कौरवों की पराजय होने लगी तो उस समय यह स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाता है कि गांधारी तथा धृतराष्ट्र के मन में कितनी ममता है अपने विकृतियुक्त पुत्रों के प्रति।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जिस "निर्ममी" ( निर्ममता ) शब्द की प्रशंसा की है, उसको वे अपने जीवन में चरितार्थ कर देते हैं। 

अपने मामा को भी विनष्ट करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। 

अपने परिवार के विनष्ट हो जाने से, सृष्टि से प्रयाण कर जाने में, उन्हें लेश मात्र दु:ख नहीं होता। 

भगवान कृष्ण का अभिप्राय है कि जहाँ पर विकृति है, वहाँ पर कोई भी सम्बन्ध क्यों न हो, उसे तो नष्ट ही कर देना चाहिये।

क्योंकि विकृति तो विकृति ही है।

लेकिन धृतराष्ट्र और गांधारी का पक्ष यह है कि दुर्योधन, दु:शासन और हमारे सौ बेटे चाहे कितने भी बुरे क्यों न हों, पर हैं तो हमारे बेटे‌। 

और यह केवल महाभारत का ही सत्य नहीं है, बल्कि यही सत्य तो हमारे और आपके जीवन का भी है। 

हमने निर्णय कर लिया है कि हमारा बेटा यदि बुरा भी है, तब भी हम आँखों पर पट्टी बाँधे रहेंगे, लेकिन हम उसकी बुराई पर दृष्टि नहीं डालेंगे।

आगे - भाग-४
पतिव्रता अपने धर्म का उपयोग अधर्म को ही अमर बनाने में कर रही है।

।। श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि ।।
🙏🙏🙏
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*"ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी"* विज्ञान_वनाम_शास्त्र_विधि , जीवन में सही फैसले लेने में विश्वास कीजिये।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

" ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी " विज्ञान_वनाम_शास्त्र_विधि , जीवन में सही फैसले लेने में विश्वास कीजिये।


" ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी "

१. ढोल ( वाद्य यंत्र )

ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है....! 

इस से जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है....!



२. गंवार ( गांव के रहने वाले लोग )

गाँव के लोग छल - प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं....! 

गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है....!

जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं...!

आदि - अनादि काल से ही अनेकों देवी - देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं....!

सरलता में ही ईश्वर का वास होता है। 

३. शुद्र ( जो अपने कर्म व सेवा भाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे )
 
सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है. कर्म ही पूजा है।

४. पशु ( जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो ) 

प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन में भी पशुओं से उपकृत होते रहे हैं....! 

पहले तो वाहन और कृषि कार्य में भी पशुओं का उपयोग किया जाता था.....!

आज भी हम दूध, दही. घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं....!

पशुओ के बिना हमारे जीवन का कोई औचित्य ही नहीं....!

वर्षों पहले जिसके पास जितना पशु होता था उसे उतना ही समृद्ध माना जाता था....!

सनातन में पशुओं को प्रतीक मानकर पूजा जाता है।

५. नारी ( जगत - जननी, आदि - शक्ति, मातृ -     शक्ति )

नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है.....! 

नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली - भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं. विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है....! 

जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है.....! 

इस लिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्व प्राप्त है।

॥ सकल तारणा के अधिकारी से यह तात्पर्य है ॥

      १. सकल = सबका
      २. तारणा = उद्धार करना
      ३. अधिकारी = अधिकार रखना

उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है....! 

इस लिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है।


आप यह सब जानकारी / कथा / कहानी / मुहूर्त / पंचाग / हमारे ब्लॉग पोस्ट के समूह हिंदू संस्कार के माध्यम से पढ़ रहे हैं और भी ऐसी सभी जानकारियों के लिए हमारे हिंदू संस्कार आध्यात्मिक के रास्ते को लाइक करें और उसके सदस्य बने....!🙏🏻🙏


अब यदि कोई व्यक्ति या समुदाय विधर्मियों या पाखंडियों के कहने पर अपने ही सनातन को माध्यम बनाकर.....!

उसे गलत बताकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो ऐसे विकृत मानसिकता वालों को भगवान् सद्बुद्धि दे....!

तथा सनातन पर चलने की प्ररेणा दे....!

ज्ञात रहे सनातन सबके लिए कल्याणकारी था कल्याणकारी है और सदा कल्याणकारी ही रहेगा....!

सनातन सरल है इसे सरलता से समझे कुतर्क पर न चले. अपने पूर्वजों पर सदेह करना महापाप है।

इस लिए जो भी रामचरितमानस सुन्दरकाण्ड के चौपाई का अर्थ गलत समझाए तो उसे इसका अर्थ जरूर समझाए और अपने धर्म की रक्षा करे.........!"

विज्ञान_वनाम_शास्त्र_विधि

जब किसी की मृत्यु होती थी तब भी 13 दिन तक उस घर में कोई प्रवेश नहीं करता था। 

यही #Isolation period था। 

क्योंकि मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण जिसमें शरीर तमाम रोगों का घर होता है। 

यह रोग हर जगह न फैले इसलिए 14 दिन का #quarantine_period बनाया गया।

जो शव को अग्नि देता था उसको घर वाले तक नहीं छू सकते थे 13 दिन तक। 

उसका खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिए जाते थे। 

तेरहवें दिन शुद्धिकरण के पश्चात, सिर के बाल हटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध होता था ।

तब भी आप बहुत हँसे थे।  

bloody indians कहकर मजाक बनाया था। 

जब किसी रजस्वला स्त्री को 4 दिन isolation में रखा जाता है....!

ताकि वह भी बीमारियों से बची रहें और आप भी बचे रहें तब भी आपने पानी पी पी कर गालियाँ दी। 

और नारीवादियों को कौन कहे वो तो दिमागी तौर से अलग होती हैं.....!

उन्होंने जो जहर बोया कि उसकी कीमत आज सभी स्त्रियाँ तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर चुका रही हैं।

जब किसी के शव यात्रा से लोग आते हैं....!

घर में प्रवेश नहीं मिलता है और बाहर ही हाथ पैर धोकर स्नान करके....!

कपड़े वहीं निकालकर घर में आया जाता है....!

इसका भी खूब मजाक उड़ाया आपने।

आज भी गांवों में एक परंपरा है कि बाहर से कोई भी आता है तो उसके पैर धुलवायें जाते हैं। 

जब कोई भी बहू लड़की या कोई भी दूर से आता है....!

तो वह तब तक प्रवेश नहीं पाता जब तक घर की बड़ी बूढ़ी लोटे में जल लेकर....!

हल्दी डाल कर उस पर छिड़काव करके वही जल बहाती नहीं हों, तब तक। 

खूब मजाक बनाया था न। 

इन्हीं सवर्णों को और ब्राह्मणों को अपमानित किया था...! 

जब ये गलत और गंदे कार्य करने वाले माँस और चमड़ों का कार्य करने वाले लोगों को तब तक नहीं छूते थे जब क वह स्नान से शुद्ध न हो जाय। 

ये वही लोग थे जो जानवर पालते थे जैसे सुअर, भेड़, बकरी, मुर्गा, इत्यादि जो अनगिनत बीमारियाँ अपने साथ लाते थे।

ये लोग जल्दी उनके हाथ का छुआ जल या भोजन नहीं ग्रहण करते थे तब बड़ा हो हल्ला आपने मचाया और इन लोगों को इतनी गालियाँ दी कि इन्हें अपने आप से घृणा होने लगी।

यही वह गंदे कार्य करने वाले लोग थे जो प्लेग, टी बी, चिकन पॉक्स, छोटी माता, बड़ी माता, जैसी जानलेवा बीमारियों के संवाहक थे और जब आपको बोला गया कि बीमारियों से बचने के लिए आप इनसे दूर रहें तो आपने गालियों का मटका इनके सिर पर फोड़ दिया और इनको इतना अपमानित किया कि इन्होंने बोलना छोड़ दिया और समझाना छोड़ दिया।

आज जब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप इसे ही विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं। 

Quarantine किया जा रहा है तो आप खुश होकर इसको अपना रहे हैं ।

पर शास्त्रों के उन्हीं वचनों को तो ब्राह्मणवाद / मनुवाद कहकर आपने गरियाया था और अपमानित किया था।

आज यह उसी का परिणति है कि आज पूरा विश्व इससे जूझ रहा है।

याद करिये पहले जब आप बाहर निकलते थे तो आप की माँ आपको जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि देती थी रखने को।

यह सब कीटाणु रोधी होते हैं।

शरीर पर कपूर पानी का लेप करते थे ताकि सुगन्धित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें।

लेकिन सब आपने भुला दिया। 

आपको तो अपने शास्त्रों को गाली देने में और ब्राह्मणों को अपमानित करने में उनको भगाने में जो आनंद आता है शायद वह परमानंद आपको कहीं नहीं मिलता।

अरे समझो अपने शास्त्रों के level के जिस दिन तुम हो जाओगे न तो यह देश विश्व गुरु कहलायेगा।

तुम ऐसे अपने शास्त्रों पर ऊँगली उठाते हो जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति के मूर्ख 7 वर्ष का बेटा ISRO के कार्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाए।

अब भी कहता हूँ अपने शास्त्रों का सम्मान करना सीखो। 

उनको मानो। 

बुद्धि में शास्त्रों की अगर कोई बात नहीं घुस रही है तो समझ जाओ आपकी बुद्धि का स्तर उतना नहीं हुआ है। 

उस व्यक्ति के पास जाओ जो तुम्हे शास्त्रों की बातों को सही ढंग से समझा सके।

लेकिन गाली मत दो उसको जलाने  का दुष्कृत्य मत करो।

जिसने विज्ञान का गहन अध्ययन किया होगा वह शास्त्र वेद पुराण इत्यादि की बातों को बड़े ही आराम से समझ सकता है correlate कर सकता है और समझा भी सकता है।

Note it down  Mark my words again 

पता नहीं कि आप इसे पढ़ेंगे या नहीं लेकिन मेरा काम है आप लोगों को जगाना जिसको जगना है या लाभ लेना है वह पढ़ लेगा।

यह भी अनुरोध है कि आप भले ही किसी भी जाति / समाज से हों धर्म के नियमों का पालन कीजिये इससे इहलोक और परलोक दोनों सुधरेगा। 

॥सर्वे भवन्तु सुखिनः सवेँसनतु निरामया:॥

                   🔱 जय सत्य सनातन 🔱

जीवन में सही फैसले लेने में विश्वास कीजिये।

ऐसा न हो कि नादान फैसले
लेकर आप फिर उन्हें जीवन
भर सही साबित करने का
असफल प्रयत्न करते रहें।

ग़लत फ़ैसले प्रायः तभी होते
हैं, जब बिना किसी संकल्प
के ही बहुत ज़्यादा विकल्प
प्राप्त हों। सही, संतुलित एवं
सटीक फ़ैसला लेने के लिये
मात्र एक दृढ़ संकल्प की ही
आवश्यकता होती है।

अपना विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित
कीजिये, उसे प्राप्त करने का
दृढ़ निश्चय करिये, फिर उसके
लिए ईमानदारी से एकाग्रचित्त
होकर अपना शत - प्रतिशत देते

हुए प्रयास कीजिये।

प्लम्बर कितना भी एक्सपर्ट क्यों न हो ?

पर वो आँखों से टपकता पानी बंद नहीं कर सकता
उनके लिये तो दोस्त ही चाहिय
जीवन मे दो तरह के दोस्त ज़रूर बनाएं

एक ' कृष्ण ' के जैसे, जो आपके लिए लड़ेंगे नहीं, पर ये  सुनिश्चित करेंगे की जीत आप की ही हो ।

*और ....!*

✌🏼दुसरा ' कर्ण ' की तरह जो आप के लिए तब भी लड़े जब आपकी हार सामने दिख रही हो।

🙏🏽🕉🙏🏽

🙏🙏🙏🙏जय श्री कृष्ण🙏🙏🙏🙏
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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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