https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: *रामायण में भोग नहीं, त्याग है/भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।*

*रामायण में भोग नहीं, त्याग है/भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*रामायण में भोग नहीं, त्याग है**भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।* ।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।। 


रामायण में भोग नहीं, त्याग है


*भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।*

*एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। 

नींद खुल गई । 

पूछा कौन हैं ?

*मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।

नीचे बुलाया गया ।*

*श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं...! 

आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।*

*माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! 

इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? 

क्या नींद नहीं आ रही ?*

*शत्रुघ्न कहाँ है ?*

*श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं...! 

बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*

*उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया ।*

*तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । 

आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*

*आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?*

*अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं...! 






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उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं...! 

उसी शिला पर...! 

अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।*

*माँ सिराहने बैठ गईं...! 

बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें...!*

*खोलीं, माँ !*

*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! 

आपने क्यों कष्ट किया ? 

मुझे बुलवा लिया होता ।*

*माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! 

यहाँ क्यों ?"*

*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! 

भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए...! 

भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं...! 

क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

*माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*

*देखो यह रामकथा हैं...*

*यह भोग की नहीं त्याग की कथा हैं...! 

यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा...!* 

*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत - अभिनव और अलौकिक हैं ।*

*रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*







🌸🌸🌸ॐ नमों नारायणय 🌸🌸🌸

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। 

परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की....! 

परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी...! 

परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! 

क्या कहूंगा!!

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- 

"आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। 

मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये...! 

इस लिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। 

परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। 

वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। 

पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!!

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। 

वन में भैया - भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया। 

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं...! 

तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। 

तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं। 

यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। 

राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। 

मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। 

माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। 

परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? 

क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं??

हनुमान जी पूछते हैं- देवी! 

आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? 

आपके पति के प्राण संकट में हैं। 

सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। 

उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। 

वे बोलीं- "

मेरा दीपक संकट में नहीं है...! 

वो बुझ ही नहीं सकता। 

रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये...! 

क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। 

आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। 

जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। 

यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। 

मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। 

उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इस लिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। 

और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। 

वे उठ जायेंगे। 

और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। 

मेरे पति की हर श्वास में राम हैं...! 

हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं...! 

उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं...! 

और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम...! 

तो शक्ति राम जी को ही लगी...! 

दर्द राम जी को ही हो रहा। 

इस लिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। 

सूर्य उदित नहीं होगा।"

राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं...! 

कभी सीता तो कभी उर्मिला। 

भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया ।

। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।






श्री विष्णु पुराण अंश 

ग्रन्थ - श्रीराम श्रीकृष्ण-२
संदर्भ - अन्धत्व, भाग-३


प्रश्न यह है कि गांधारी अगर आँख पर पट्टी न बाँधती तो क्या वह पतिव्रता नहीं कहलाती ? 

क्या यह आवश्यक था कि वह आँख पर पट्टी बाँधे ? 

बल्कि गांधारी ने अगर यह सोचा होता कि हमारे पतिदेव भले ही दृष्टिहीन हैं, पर मेरे पास तो आँखें हैं। 
इस लिये मैं उनकी इस कमी को अपनी आँखों से पूरा करूँगी। 

जहाँ आवश्यक होगा, वहाँ उन्हें मार्ग दिखलाऊँगी और इन आँखों से उनकी सेवा करूँगी। 

भले ही इस कार्य में उसका त्याग उतना ऊँचा दिखाई नहीं देता, पर क्या यह कोई कम पातिव्रत था ? 

और अगर उसके मन में यह व्याख्या आती तो इसका तात्पर्य है कि उसका धर्म, ज्ञान, विवेक से जुड़ा हुआ होता। 

अगर उसका विवेक चैतन्य होता तो वह यही निर्णय करती कि पति के जीवन की कमी को हम अपने गुण के द्वारा दूर करें। 

पर गांधारी ने पट्टी बाँध ली। 

और यह पट्टी बाँध लेना बड़ा रहस्यपूर्ण है।

याद रखियेगा, यह धृतराष्ट्र मूर्तिमान "मोह" है। 

"मोह न अंध कीन्ह केहि केही।" 

और गांधारी मूर्तिमति "ममता" है।

और केवल गांधारी ही पट्टी नहीं बाँधती, अपितु ये जितने भी ममता वाले हैं, वे सब के सब अपनी आँखों पर पट्टी बाँधें हुये हैं। 

वे कहते हैं कि चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन हमें कुछ नहीं देखना है। 

कहा जाता है कि गांधारी ने जीवन में केवल एक बार पट्टी खोलने का निर्णय लिया। 

और वह निर्णय भी उसकी बुद्धि की विडम्बना का सबसे बड़ा प्रमाण है। 

जब महाभारत के युद्ध में कौरवों की पराजय होने लगी तो उस समय यह स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाता है कि गांधारी तथा धृतराष्ट्र के मन में कितनी ममता है अपने विकृतियुक्त पुत्रों के प्रति।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में जिस "निर्ममी" ( निर्ममता ) शब्द की प्रशंसा की है...! 

उसको वे अपने जीवन में चरितार्थ कर देते हैं। 

अपने मामा को भी विनष्ट करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। 

अपने परिवार के विनष्ट हो जाने से, सृष्टि से प्रयाण कर जाने में, उन्हें लेश मात्र दु:ख नहीं होता। 

भगवान कृष्ण का अभिप्राय है कि जहाँ पर विकृति है, वहाँ पर कोई भी सम्बन्ध क्यों न हो, उसे तो नष्ट ही कर देना चाहिये।

क्योंकि विकृति तो विकृति ही है।

लेकिन धृतराष्ट्र और गांधारी का पक्ष यह है कि दुर्योधन, दु:शासन और हमारे सौ बेटे चाहे कितने भी बुरे क्यों न हों, पर हैं तो हमारे बेटे‌। 

और यह केवल महाभारत का ही सत्य नहीं है, बल्कि यही सत्य तो हमारे और आपके जीवन का भी है। 

हमने निर्णय कर लिया है कि हमारा बेटा यदि बुरा भी है...! 

तब भी हम आँखों पर पट्टी बाँधे रहेंगे...! 

लेकिन हम उसकी बुराई पर दृष्टि नहीं डालेंगे।

आगे - भाग-४
पतिव्रता अपने धर्म का उपयोग अधर्म को ही अमर बनाने में कर रही है।

।। श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि ।।
🙏🙏🙏
।।।।। जय श्री राम ।।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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