https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: जुलाई 2020

धर्म - सबसे समर्थ सच्चा साथी / *प्रेम-सत्संग-सुधा-माला*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

धर्म - सबसे समर्थ सच्चा साथी / *प्रेम-सत्संग-सुधा-माला*


^^^🚩धर्म - सबसे समर्थ सच्चा साथी🚩^^^

एक छोटे से गाँव मे श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था स्वभाव से थोड़ा कमजोर और डरपोक किस्म का इंसान था!



एक बार वो एक महात्माजी के दरबार मे गया और उन्हे अपनी कमजोरी बताई और उनसे प्रार्थना करने लगा की हॆ देव मुझे कोई ऐसा साथी मिल जायें जो सबसे शक्तिशाली हो और विश्वासपात्र भी जिस पर मैं आँखे बँद करके विश्वास कर सकु जिससे मैं मित्रता करके अपनी कमजोरी को दुर कर सकु! 

हॆ देव भले ही एक ही साथी मिले पर ऐसा मिले की वो मेरा साथ कभी न छोड़े!

तो महात्मा जी ने कहा पुर्व दिशा मे जाना और तब तक चलते रहना जब तक तुम्हारी तलाश पुरी न हो जायें! 

और हाँ तुम्हे ऐसा साथी अवश्य मिलेगा जो तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो!

श्रीधर - बस एक बार वो मुझे मिल जायें तो फिर मैं उसका साथ कभी न छोडूंगा पर हॆ देव मॆरी तलाश तो पुरी होगी ना?

महात्माजी - हॆ वत्स यदि तुम सच्चे दिल से उसे पाना चाहते हो तो वो बहुत सुलभता से तुम्हे मिल जायेगा नही तो वो बहुत दुर्लभ है! 

फिर उसने महात्माजी को प्रणाम किया आशीर्वाद लिया और चल पड़ा अपनी राह पर चल पड़ा!

सबसे पहले उसे एक इंसान मिला जो शक्तिशाली घोड़े को काबू मे कर रहा था तो उसने देखा यही है वो जैसै ही उसके पास जाने लगा तो उस इंसान ने एक सैनिक को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया श्रीधर ने सोचा सैनिक ही है वो तो वो मित्रता के लिये आगे बड़ा पर इतने मे सैनापति आ गया सैनिक ने प्रणाम किया और घोड़ा आगे किया सैनापति घोड़ा लेकर चला गया श्रीधर भी खुब दौड़ा और अन्ततः वो सैनापति तक पहुँचा पर सैनापति ने राजाजी को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया तो श्रीधर ने राजा को मित्रता के लिये चुना और उसने मित्रता करनी चाही पर राजा घोड़े पर बैठकर शिकार के लिये वन को निकले श्रीधर भी भागा और घनघोर जंगल मे श्रीधर पहुँचा पर राजा कही न दिखे!

प्यास से उसका गला सुख रहा था थोड़ी दुर गया तो एक नदी बह रही थी वो पानी पीकर आया और एक वृक्ष की छाँव मे गया तो वहाँ एक राहगीर जमीन पे सोया था और उसके मुख से राम राम की ध्वनि सुनाई दे रही थी और एक काला नाग उस राहगीर के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था श्रीधर ने बहुत देर तक उस दृश्य को देखा और फिर वृक्ष की एक डाल टूटकर नीचे गिरी तो साँप वहाँ से चला गया और इतने मे उस राहगीर की नींद टूट गई और वो उठा और राम राम का सुमिरन करते हुये अपनी राह पे चला गया!

श्रीधर पुनः महात्माजी के आश्रम पहुँचा और सारा किस्सा कह सुनाया और उनसे पुछा हॆ नाथ मुझे तो बस इतना बताओ की वो कालानाग उस राहगीर के चारों और चक्कर काट रहा था पर वो उस राहगीर को डँस क्यों नही पा रहा था!

लगता है देव की कोई अद्रश्य सत्ता उसकी रक्षा कर रही थी!

 महात्माजी ने कहा उसका सबसे सच्चा साथी ही उसकी रक्षा कर रहा था जो उसके साथ था तो श्रीधर ने कहा वहाँ तो कोई भी न था देव बस संयोगवश हवा चली वृक्ष से एक डाली टूटकर नाग के पास गिरी और नाग चला गया!

महात्माजी ने कहा नही वत्स 

*उसका जो सबसे अहम साथी था वही उसकी रक्षा कर रहा था जो दिखाई तो नही दे रहा था पर हर पल उसे बचा रहा था और उस साथी का नाम है "धर्म" हॆ वत्स धर्म से समर्थ और सच्चा साथी जगत मे और कोई नही है केवल एक धर्म ही है जो सोने के बाद भी तुम्हारी रक्षा करता है और मरने के बाद भी तुम्हारा साथ देता है!* 

*हॆ वत्स पाप का कोई रखवाला नही हो सकता और धर्म कभी असहाय नही है महाभारत के युध्द मे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ सिर्फ इसिलिये दिया था क्योंकि धर्म उनके पक्ष मे था!*

हॆ वत्स तुम भी 


*केवल धर्म को ही अपना सच्चा साथी मानना और इसे मजबुत बनाना क्योंकि यदि धर्म तुम्हारे पक्ष मे है तो स्वयं नारायण और सद्गुरु तुम्हारे साथ है नही तो एक दिन तुम्हारे साथ कोई न होगा और कोई तुम्हारा साथ न देगा और यदि धर्म मजबुत है तो वो तुम्हे बचा लेगा इसलिये धर्म को मजबुत बनाओ!*

हॆ वत्स

 *एक बात हमेशा याद रखना की इस संसार मे समय बदलने पर अच्छे से अच्छे साथ छोड़कर चले जाते है केवल एक धर्म ही है जो घनघोर बीहड़ और गहरे अन्धकार मे भी तुम्हारा साथ नही छोडेंगा कदाचित तुम्हारी परछाई भी तुम्हारा साथ छोड़ दे परन्तु धर्म तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो इसलिये धर्म को मजबुत बनाना क्योंकि केवल यही है हमारा सच्चा साथी!*
!!~ ॐ हरि ॐ 🌹 हर हर महादेव हर 🌹 ॐ हरि ॐ ~!!

*प्रेम-सत्संग-सुधा-माला*
    
🔱🍃🍃🔱🍃🍃🔱🍃🍃🔱
       दक्षिणमें एक भक्त हुए हैं; वे भगवान् के बहुत ही विश्वासी थे, और गाँव के जमींदार थे। 

एक साल वहाँ अकाल पड़ा। 

कोठे का अनाज तो बाँट ही दिया, अपना मकान तक भेज कर गरीबों को लुटा दिया। 

स्त्री पुरुष पेड़ के नीचे रहने लगे।

       उनका नियम था- 

एकादशी का उपवास करना फिर द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराके व्रत का पारण करना। 

एकादशी के दिन भी पंढरपुर जाया करते थे‌। 

इस बार भी गये, दर्शन किया, किंतु पास में कुछ नहीं था। 

कुछ दिन पहले बहुत धनी थे, पर आज फूटी कौड़ी भी पास नहीं थी। 

लकड़ी बेचने से तीन पैसे मिले। 

एक पैसा की फूल - माला ली, एक पैसे का प्रसाद चढ़ा दिया तथा एक पैसा दक्षिणा में दे दिया।

       दूसरे दिन लकड़ी बेचने पर फिर तीन पैसे मिले उनका आटा ले लिया, पर अब केवल आटे का निमन्त्रण स्वीकार करने के लिये कोई ब्राह्मण तैयार नहीं हुआ। 

दोपहर हो गयी। 

एक - एक करके कई ब्राह्मण आये, पर खाली आटा अस्वीकार कर वापिस चले गये। 

अन्त में भक्त - दम्पति मन में सोचने लगे- 

प्रभो ! 

आज क्या हमारा नियम भंग होगा ?

       इतने में एक ब्राह्मण आया, जो अत्यन्त बुढ़ा था।  

बोला- 

पटेल ! 

बड़ी जोर की भूख लगी है। 

उस बेचारे ने लजाकर कहा- 

हे ब्राह्मण देव! मेरे पास तो केवल आटा है। 

ब्राह्मण ने कहा- 

फिर क्या चाहिये। 

यहीं से थोड़े कंडे इकट्ठे् कर लेते हैं। 

मैं बाटी बना कर खा लूँगा। 

यही हुआ, बाटी बनने लगी। 

इतनेमें एक बुढ़िया आयी। 

ब्राह्मण बोले- 

बड़ा अच्छा हुआ, पटेल! यह मेरी पत्नि है, हम दोनों प्रसाद पा लेंगे। 

पटेल लज्जित हो गये, सोचने लगे एक आदमी के लिये भी आटा पर्याप्त नहीं है, दो कैसे जीमेंगे, पर भगवान् की लीला थी, बाटी बनायी गयी।

       
ब्राह्मण ने कहा- 

एक पत्तल तुम अपने लिये भी ले लो। 

पटेल बड़े विचार में पड़ गया। 

अन्ततोगत्वा पटेल के बहुत कहने - सुनने के बाद ब्राह्मण - ब्राह्मणी जीमने लगे। 

कुछ खाकर वे दोनों अन्तर्धान हो गये।

       पटेल बड़े चकित हुए। बचा हुआ प्रसाद ( बाटी ) पाकर मन्दिर में दर्शन करने गये। 

वहाँ भगवान् प्रत्यक्ष चिन्मय रूप धारण कर उससे बात करने लगे। बहुत बातें हुई। 

अन्तमें भगवान् बोले- 

भक्त! हमें, आज जैसी ही बाटियाँ खाने में आनन्द आता है।

       पटेल ने पूछा- 

प्रभू ! 

तब क्या आप कभी बड़े - बड़े यज्ञों और भण्डारों में नहीं जाते? 

भगवान् ने कहा- 

वे लोग हमको खिलाना ही नहीं चाहते। 

पटेल से भगवान् ने फिर कहा- 

कल तमाशा देखना, उसी ब्राह्मण के वेश में मैं कल अमुक जगह जाऊँगा; देखना, वहाँ मेरी कैसी पूजा होती है।

       एक बहुत बड़े धनी के यहाँ यज्ञ था। 

भण्डार चल रहा था, हजारों ब्राह्मणों को भोजन का निमन्त्रण था। 

ठीक जीमने के अवसर पर वे वही बूढ़े बाबा पहुँचे और बोले- 

जय हो दाता की। 

एक पत्तल हमें भी मिल जाय, बहुत भूखा हूँ।

       लोगों ने पूछा- 

आपको निमंन्त्रण मिला है ? 

ब्राह्मण बोले- 

निमंत्रण तो नहीं मिला, पर हूँ बहुत भूखा; बड़ा पुण्य होगा। 

ब्राह्मण की एक बात भी उन लोगों ने नहीं सुनी। 

आखिर ब्राह्मण जबरदस्ती एक पत्तल लेकर बैठ गये। 

अब तो धनिक बाबू के क्रोध का पार नहीं रहा। 

उन्होंने हाथ पकड़कर ब्राह्मण को निकलवा दिया।

       पटेल वहाँ खड़े सब देख रहे थे। 

बुढ़े ब्राह्मण ने पटेल को इशारा करके कह रहे थे- 

देखा हमारा सत्कार कैसा होता है? 

फिर कहा- 

अब देखो क्या होता है। 

उसी समय बहुत जोर की आँधी आयी, बड़े - बड़े ओले गिरने लगे। 

सारा यज्ञ नष्ट हो गया। 

वहाँ एक ब्राह्मण भी भोजन नहीं कर सका।

       यह कथा बहुत विस्तार से एवं बहुत लम्बी है। 

परंतु इसका सारांश यह है कि किसी भी दु;खी और भूखे को देखकर उसकी सहायता करनी चाहिए और उसमे विशेष रूप से भगवान् को देखना चाहिये।
           🙏जय श्रीराधे-कृष्णा🙏
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। *बहुत सुंदर प्रसंग*।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। *बहुत सुंदर प्रसंग*।।
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
*एक राजा ने यह ऐलान करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा तब जिस शख़्स ने भी महल में जिस चीज़ को हाथ लगा दिया वह चीज़ उसकी हो जाएगी।*

*इस ऐलान को सुनकर सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं तो सबसे क़ीमती चीज़ को हाथ लगाऊंगा।*

*कुछ लोग कहने लगे मैं तो सोने को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग चांदी को तो कुछ लोग कीमती जेवरात को, कुछ लोग घोड़ों को तो कुछ लोग हाथी को, कुछ लोग दुधारू गाय को हाथ लगाने की बात कर रहे थे।*

*जब सुबह महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद चीज़ों के लिये दौड़ने लगे।*

*सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद चीज़ों को हाथ लगा दूँ ताकि वह चीज़ हमेशा के लिए मेरी हो जाऐ।*

*राजा अपनी जगह पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस - पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था।*


*उसी समय उस भीड़ में से एक शख्स राजा की तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे चलता हुआ राजा के पास पहुँच कर उसने राजा को छू लिया।*

*राजा को हाथ लगाते ही राजा उसका हो गया और राजा की हर चीज भी उसकी हो गयी।*

*जिस तरह राजा ने उन लोगों को मौका दिया और उन लोगों ने गलतियां की।*

*ठीक इसी तरह सारी दुनियाँ का मालिक भी हम सबको हर रोज़ मौक़ा देता है, लेकिन अफ़सोस हम लोग भी हर रोज़ गलतियां करते हैं।*

*हम  प्रभु को पाने की बजाए उस परमपिता की बनाई हुई दुनियाँ की चीजों की कामना करते हैं। 

लेकिन कभी भी हम लोग इस बात पर गौर नहीं करते कि क्यों न दुनियां  के बनाने वाले प्रभु  को पा लिया जाए*
*अगर प्रभु हमारे  हो गए तो ही उसकी बनाई हुई हर चीज भी हमारी हो जाएगी*🙏🏻 🌹🙏

   *!! कर्म और भाग्य !!*

एक चाट वाला था। 

जब भी उसके पास चाट खाने जाओ तो ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। 

हर विषय पर उसको बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। 

कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।

 एक दिन अचानक उसके साथ मेरी कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।

तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासॉफ़ी देख ही लेते हैं। 


मैंने उससे एक सवाल पूछ लिया। 

मेरा सवाल उस चाट वाले से था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?

उसने जो जवाब दिया उसका जबाब को सुन कर मेरे दिमाग़ के सारे जालें ही साफ़ हो गए। 

वो चाट वाला मेरे से कहने लगा आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा.?

मैंने कहा हाँ, तो उस चाट वाले ने मेरे से कहा कि उस लॉकर की चाबियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाबियाँ होती हैं। 

एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।

 आप के पास जो चाबी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।

जब तक दोनों चाबियाँ नहीं लगतीं लॉकर का ताला नहीं खुल सकता। 

आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान! आपको अपनी चाबी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। 

कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाबी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये।

*शिक्षा:-*
कर्म करते रहिए, भाग्य भरोसे रहकर अपने लक्ष्य से दूर मत होइए।

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
✍️जय श्री कृष्ण✍️✍️✍️जय श्री कृष्ण✍️✍️✍️जय श्री कृष्ण✍️
हट हट महादेव हर 🙏🌹🙏
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🌹🌹🌹हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र... / *जीवन का सही लक्ष्य*🌹🌹🌹

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🌹🌹🌹हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र... / *जीवन का सही लक्ष्य*🌹🌹🌹

हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...


कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। 


पर क्या आप जानते हैं कि श्री *हनुमान चालीसा* में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।

माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व किया था। 

हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।

अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी  के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं। 

हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई। 

हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। 

आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या - क्या बदलाव ला सकते हैं….

*शुरुआत गुरु से…*

हनुमान चालीसा की शुरुआत *गुरु* से हुई है…

श्रीगुरु चरन सरोज रज, 
निज मनु मुकुरु सुधारि।

*अर्थ* - 

अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।

गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। 

जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। 

गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं। 

इस लिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। 

आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। 

माता - पिता को पहला गुरु ही कहा गया है। 

समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। 

अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।

*ड्रेसअप का रखें ख्याल…*

चालीसा की चौपाई है

कंचन बरन बिराज सुबेसा, 
कानन कुंडल कुंचित केसा।

*अर्थ* - 

आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।

आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए। 

अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है। 

इस लिए, रहन - सहन और ड्रेसअप हमेशा अच्छा रखें।

आगे पढ़ें - हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...

*सिर्फ डिग्री काम नहीं आती*

बिद्यावान गुनी अति चातुर, 
राम काज करिबे को आतुर।

*अर्थ* - 

आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। 

राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।

आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है। 

लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। 

विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। 
हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।

*अच्छा लिसनर बनें*

प्रभु चरित सुनिबे को रसिया, 
राम लखन सीता मन बसिया।

*अर्थ* -

आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।

जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए। 

अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। 

अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।

*कहां, कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है*

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।

*अर्थ* - 

आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए। 

और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।

कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है। 

सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया। 

अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।

*अच्छे सलाहकार बनें*

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना।

*अर्थ* - 

विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।

हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी। 

विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। 

किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। 

सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।

*आत्मविश्वास की कमी ना हो*

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।

*अर्थ* - 

राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।

अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं। 

आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। 

आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। 

प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। 

अपनेआप पर पूरा भरोसा रखे।

🙏🙏🕉🙏🙏

🌹🌹🌹*जीवन का सही लक्ष्य"* 🌹🌹🌹


     *ये  शरीर  कृष्ण कृपा से मिला है और केवल कृष्ण  की प्राप्ति के लिये ही मिला है। 

इस लिये हम को चाहे कुछ भी त्यागना पडें, सब छोड़कर कृष्ण भक्ति में तुरन्त लग जाना चाहिये।*
         *जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है। 

उससे कोई पूँछे कि माँ तेरी क्यों है तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है। 

उसके मन में यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है ? 

माँ मेरी है बस इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता। 

इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढता से मान लो कि कृष्ण  मेरे हैं। 

कृष्ण के सिवाय और कोई मेरा नहीं है क्योंकि वह  सब छूटने वाला है। 

जिनके प्रति आप बहुत आसक्त  रहते हैं, वे माँ - बाप, पति - पत्नी, बच्चे, रूपये, जमीन, मकान, रिश्ते - नाते आदि सब छूट जायेंगें। 

उनकी याद तक नहीं रहेगी।*

           *अगर याद रहने की रीत हो तो बतायें कि इस जन्म से पहले आप कहाँ थे। 

आपके माँ, बाप स्त्री, पुत्र कौन थे ?* 

*आपका घर कौन सा था। 

जैसे पहले जन्म की याद नहीं है, ऐसे ही इस जन्म की भी याद नहीं रहेगी। 

जिसकी याद तक नही रहेगी उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो। 

यह सबके अनुभव की बात है कि हमारा कोई नहीं है सब मिले हैं और विछुड जायेगें, आज नहीं तो कल इस लिये- 

"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई", ऐसा मानकर मस्त हो जाओ।*

           *दुनियाँ सब की सब चली जाये तो परवाह नहीं है पर हम केवल कृष्ण के हैं, और केवल कृष्ण हमारे हैं। 

केवल एक मात्र यही सच है और बाकी सब झूठ। 

इसके सिवाय और किसी बात की ओर देखो ही मत, विचार ही मत करो।*

          
*आज से कृष्ण  के होकर रहो, कोई क्या कर रहा है कृष्ण जानें, हमें मतलब नहीं है। 

सब संसार नाराज हो जाये तो परवाह नहीं पर कृष्ण तो मेरे हैं - 
इस बात को पकड़ कर रखो।*         
।। जय श्री कृष्ण 👏🕉️🚩💐जय श्री कृष्ण ।।👏🕉️
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।। लंकापति रावण की मृत्यु कब हुई / श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ...... ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस और श्री पद्मपुराण सहित के प्रवचन ।।

।। लंकापति रावण की मृत्यु कब हुई / श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ...... ।।

लंकापति रावण की मृत्यु कब हुई


श्रीपद्मपुराण के पातालखंड इसका विवरण है ।

‘‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ( 87 दिन )’'’ ।


15 दिन अलग अलग युद्धबंदी ।

72 दिन चले महासंग्राम में लंकाधिराज रावण का संहार ।

क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को हुआ।

घन घमंड गरजत चहु ओरा।
प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।

रामचरित मानस हो बाल्मीकि रामायण अथवा ‘रामायण शत कोटि अपारा’ हर जगह ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास के प्रमाण मिलते हैं। 

श्रीपद्मपुराण के पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में पहुंचते हैं। 

परिचय देकर प्रणाम करतेे है।

शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले-

 गुरु का वचन सत्य हुआ। 

सारूप्य मोक्ष का समय आ गया। 

उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य का उपदेश देते हुए कहा था ।

कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा आश्रम में आयेगा ।

रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। 

वे तुम्हें राम के पास पहुंचा देंगे।

इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथि वार उद्घाटित करते है-

 जनक पुरी में धनुषयज्ञ में राम लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र द्वारा पहुचना और राम द्वारा धनुषभंग कर राम- 

सीता विवाह का प्रसंग सुनाते हुए ।

आरण्यक ने बताया तब विवाह राम 15 वर्ष के और सीता 06 वर्ष की थी । 

विवाहोपरांत वे 12 वर्ष अयोध्या में रहे ।

27 वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई ।

मगर रानी कैकेई के वर मांगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।

वनवास में राम प्रारंभिक 3 दिन जल पीकर रहे । 

चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया।

पांचवें दिन वे चित्रकूट पहुंचे ।

वहां पूरे 12 वर्ष रहे। 

13 वें वर्ष के प्रारंभ में राम लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुचे। 

जहां सुर्पनखाॅ को कुरूप किया।

माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता का हरण किया। 

श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे।

जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे ।

सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया। 

आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। 

शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी 
कार्तिक शुक्लपक्ष तें वानरों ने सीता की खोज शुरू की समुद्र तट पर ही ।

कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया ।

 सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं।

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी ( देवोत्थानी ) को हनुमान ने छलांग लगाई , रात में लंका प्रवेश कर खोजवीन करने लगे। 

कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। 

कार्तिक शुक्ल तेरस को वाटिका विध्वंश किया ।

उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। 

कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद ब्रह्मपाश में बांधकर दरवार में ले गये और लंकादहन किया। 

हनुमानजी कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। 

प्रफुल्लित सभी वानरों ने नाचते गाते 5 दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया।

हनुमान की अगुवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुचे। 

हालचाल दिये। 

अगहन कृष्ण अष्टमी उ. फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और 7 दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे। 

अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया।

अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। 

अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर परिचर्चा हुई। 

सागर से मार्ग याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक 4 दिन अनशन किया। 

सप्तमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। 

अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक 4 दिन में श्रीराम सेतुबनकर तैयार हुआ।

अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्रपार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया ।

अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक 3 दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। 

पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। 

पौष कृष्ण एकादशी को सुक सारन वानर सेना में घुस आये। 

पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और पहचान करके उन्हें अभयदान दिया।

पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया। 

पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया। 

इसके बाद पौष शुक्ल द्वितीया से अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ।

पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया गया। 

श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया । 

पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटा और राम लक्ष्मण को मुक्त किया।

पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध ।

पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध ।

पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का बध ।

माघ कृष्ण द्वितीया से चतुर्थी तक राम रावण में तुमुल युद्ध हुआ और रावण को भागना पड़ा।

रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक 4 दिन में कुंभकरण को जगाया। 

माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया।

कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। 

माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि 5 राक्षसीें का बध हुआ। 

माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया।

माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ बध ।

माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष बध हुआ।

फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण मेघनाद युद्ध प्रारंभ सप्तमी को लक्ष्मण मूच्र्छित हुए उपचार हुआ। 

इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक 5 दिन युद्ध विराम रहा।

फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया ।

फागुन कृष्ण नवमी से तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया।

इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया। 

फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ।

फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापाश्र्व आदि का राक्षसों का बध हुआ। 

फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूच्र्छित हुए । 

सुखेन बैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चेतन्य हुए।

राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। 

फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया।

फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक 18 दिन युद्ध चला। 

चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण को मौत के घाट उतारा गया ।

युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चैदस तक ( 87 दिन ) 15 दिन अलग अलग युद्धबंदी रही ।

 72 दिन चला महासंग्राम और श्रीराम विजयी हुए ।

चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( नव संवत्सर ) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ। 

चैत्र शुक्ल द्वितीया को विभीषण का राज्याभिषेक किया गया। 

अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का सीता की अग्निपरीक्षा ली गई और चैत्र शुक्ल चतुर्थी को पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण, सीता उत्तर दिशा में उड़े। 

चैत्र शुक्ल पंचमी को भरद्वाज के आश्रम में पहंचे। 

चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में राम-भरत मिलन हुआ।

चैत्र शुक्ल सप्तमी को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। 

यह पूरा आख्यान ऋषि आरण्यक ने शत्रुघ्न को सुनाया फिर शत्रुघ्न ने आरण्यक को अयोघ्या पहुंचाया जहां अपने आराध्य पूर्णावतार श्रीराम के सान्निध्य में ब्रह्मरंध्र द्वारा सारूप्य मोक्ष पाया।


।। श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ...... ।।


हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। 

शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे। 

1. हनुमानजी का जन्म स्थान 

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। 

तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। 

यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। 

कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। 

श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। 

प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। 

हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी 

इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। 

श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। 

सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। 

इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। 

कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-
'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।

3.कपि नामक वानर 

हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। 

रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। 

उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।

रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर - शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। 

अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4. हनुमान परिवार 

हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। 

उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। 

ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। 

उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।

कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। 

इसी लिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। 

कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। 

हनुमानजी रुद्रावतार हैं। 

पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।

5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी 

रोग और शोक, भूत - पिशाच, शनि, राहु - केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट - कचहरी - जेल बंधन, मारण - सम्मोहन - उच्चाटन, घटना - दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।


6. हनुमानजी के पराक्रम 

हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। 

बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। 

एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। 

उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। 

लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।

अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। 

जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। 

उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। 

हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। 

पाताल लोक में जाकर राम - लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। 

उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था। 

हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।

7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ 

तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। 

तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। 

समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। 

आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। 

इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। 

गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।

8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी 

रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। 

हनुमानजी माता के आगे - आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे - पीछे। 

माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। 

हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। 

कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।

9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी 

हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। 

ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।

सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। 

जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। 

हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। 

इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। 

महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

10. इन्होंने देखा हनुमानजी को 

13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। 

हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं।
🔸🔸जय श्री राम 🔸🔸🔹🔸🔸जय श्री राम🔸🔸🔹🔸🔸जय श्री राम🔸🔹
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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जय द्वारकाधीश....
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*......."लक्ष्मी जी के पग"..... मृगतृष्णा ...*

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*......."लक्ष्मी जी के पग"..... मृगतृष्णा  ...*


*......."लक्ष्मी जी के पग".....*


️रात_के_8_बजे_का_समय_रहा_होगा। 


एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है, गांव का रहने वाला था, पर तेज़ था।
उसका बोलने का लहज़ा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा हुआ लग रहा था। उम्र लगभग 22 वर्ष का रहा होगा । 

दुकानदार की पहली नज़र उसके पैरों पर ही जाती है। उसके पैरों में लेदर के शूज थे, सही से पाॅलिश किये हुये।

*#दुकानदार* -- "क्या सेवा करूं ?"

*#लड़का* -- "मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये, किंतु टिकाऊ होनी चाहिये !"

*#दुकानदार* -- "वे आई हैं क्या ? उनके पैर का नाप ?"

लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, *चार बार फोल्ड किया हुआ एक कागज़ जिस पर पेन से  आऊटलाईन बनाई हुई थी दोनों पैर की !*

 वह लड़का बोला...!

"क्या नाप बताऊं साहब ?
मेरी माँ की ज़िन्दगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पल नहीं पहनी। 

*माँ मेरी मजदूर है,  मेहनत कर-करके मुझे पढ़ाया, पढ़ कर, अब नौकरी लगी।*
आज़ पहली तनख़्वाह मिली है।
 दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊँ ?
तो मन में आया कि *अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ !"*

दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई, जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी।
"चलेगी क्या ?"

आगन्तुक लड़का उस कीमत के लिये तैयार था ।


दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया -- "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"

"अभी तो बारह हजार, रहना-खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाएंगे यहाँ, और तीन हजार माँ के लिये !." 

"अरे !, फिर आठ सौ रूपये... कहीं ज्यादा तो नहीं...।"

तो बात को बीच में ही काटते हुए लड़का बोला -- "नहीं, कुछ नहीं आप पैक कर दीजिए !"

दुकानदार ने चप्पल बाॅक्स में पैक कर दिया। लड़के ने पैसे दिये और ख़ुशी-ख़ुशी दुकान से बाहर निकला, दुकानदार ने उसे कहा -- 
"थोड़ा रुको !" 

साथ ही दुकानदार ने एक और बाॅक्स उस लड़के के हाथ में दिया

 -- *"यह चप्पल माँ को,  तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाये तो दूसरी पहन लेना, नँगे पैर नहीं घूमना और इसे लेने से मना मत करना !"*

दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा-- 
"उन्हें मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?"

"बोलिये।"

*"वह पेपर, जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी, वही पेपर मुझे चाहिये !"*

वह कागज़, दुकानदार के हाथ में देकर वह लड़का ख़ुशी-ख़ुशी चला गया !

वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा,
दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि -- "ये क्या है पापा  ?"

दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला --
*"लक्ष्मीजी के पगले हैं बेटा !!*

एक सच्चे भक्त ने बनाया है, इससे धंधे में बरकत आती है !"

*मां* तो इस संसार में साक्षात *परमात्मा*  है !

मृगतृष्णा 


तृष्णा 
मन की हो
या तन की हो
या हो धन वैभव की
या कि जीवन की
होती है सदैव
दुखदायिनी ।

कभी न बुझाती प्यास
रहती मन में अतृप्ति
मिल जाये कितना भी पानी
दूर पर दिखती
पानी की धारा
पर नहीं मिलता किनारा
पास जाओ तो
होता दृष्टि का भ्रम
सब कुछ पा कर भी
और पाने की
अदम्य लालसा
पर कहाँ मिलता है।

वह मृग जल
जो संतृप्त करे
मन की हर तृष्णा को।

बस मिलती है।

अतृप्ति
और,,,कभी न बुझने वाली
सतत प्यास....
जय श्री कृष्ण...!!
           🙏🙏🙏जय लक्ष्मीनारायण 🙏🙏🙏
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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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