सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
धर्म - सबसे समर्थ सच्चा साथी / *प्रेम-सत्संग-सुधा-माला*
^^^🚩धर्म - सबसे समर्थ सच्चा साथी🚩^^^
एक छोटे से गाँव मे श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था स्वभाव से थोड़ा कमजोर और डरपोक किस्म का इंसान था!
एक बार वो एक महात्माजी के दरबार मे गया और उन्हे अपनी कमजोरी बताई और उनसे प्रार्थना करने लगा की हॆ देव मुझे कोई ऐसा साथी मिल जायें जो सबसे शक्तिशाली हो और विश्वासपात्र भी जिस पर मैं आँखे बँद करके विश्वास कर सकु जिससे मैं मित्रता करके अपनी कमजोरी को दुर कर सकु!
हॆ देव भले ही एक ही साथी मिले पर ऐसा मिले की वो मेरा साथ कभी न छोड़े!
तो महात्मा जी ने कहा पुर्व दिशा मे जाना और तब तक चलते रहना जब तक तुम्हारी तलाश पुरी न हो जायें!
और हाँ तुम्हे ऐसा साथी अवश्य मिलेगा जो तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो!
श्रीधर - बस एक बार वो मुझे मिल जायें तो फिर मैं उसका साथ कभी न छोडूंगा पर हॆ देव मॆरी तलाश तो पुरी होगी ना?
महात्माजी - हॆ वत्स यदि तुम सच्चे दिल से उसे पाना चाहते हो तो वो बहुत सुलभता से तुम्हे मिल जायेगा नही तो वो बहुत दुर्लभ है!
फिर उसने महात्माजी को प्रणाम किया आशीर्वाद लिया और चल पड़ा अपनी राह पर चल पड़ा!
सबसे पहले उसे एक इंसान मिला जो शक्तिशाली घोड़े को काबू मे कर रहा था तो उसने देखा यही है वो जैसै ही उसके पास जाने लगा तो उस इंसान ने एक सैनिक को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया श्रीधर ने सोचा सैनिक ही है वो तो वो मित्रता के लिये आगे बड़ा पर इतने मे सैनापति आ गया सैनिक ने प्रणाम किया और घोड़ा आगे किया सैनापति घोड़ा लेकर चला गया श्रीधर भी खुब दौड़ा और अन्ततः वो सैनापति तक पहुँचा पर सैनापति ने राजाजी को प्रणाम किया और घोड़ा देकर चला गया तो श्रीधर ने राजा को मित्रता के लिये चुना और उसने मित्रता करनी चाही पर राजा घोड़े पर बैठकर शिकार के लिये वन को निकले श्रीधर भी भागा और घनघोर जंगल मे श्रीधर पहुँचा पर राजा कही न दिखे!
प्यास से उसका गला सुख रहा था थोड़ी दुर गया तो एक नदी बह रही थी वो पानी पीकर आया और एक वृक्ष की छाँव मे गया तो वहाँ एक राहगीर जमीन पे सोया था और उसके मुख से राम राम की ध्वनि सुनाई दे रही थी और एक काला नाग उस राहगीर के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था श्रीधर ने बहुत देर तक उस दृश्य को देखा और फिर वृक्ष की एक डाल टूटकर नीचे गिरी तो साँप वहाँ से चला गया और इतने मे उस राहगीर की नींद टूट गई और वो उठा और राम राम का सुमिरन करते हुये अपनी राह पे चला गया!
श्रीधर पुनः महात्माजी के आश्रम पहुँचा और सारा किस्सा कह सुनाया और उनसे पुछा हॆ नाथ मुझे तो बस इतना बताओ की वो कालानाग उस राहगीर के चारों और चक्कर काट रहा था पर वो उस राहगीर को डँस क्यों नही पा रहा था!
लगता है देव की कोई अद्रश्य सत्ता उसकी रक्षा कर रही थी!
महात्माजी ने कहा उसका सबसे सच्चा साथी ही उसकी रक्षा कर रहा था जो उसके साथ था तो श्रीधर ने कहा वहाँ तो कोई भी न था देव बस संयोगवश हवा चली वृक्ष से एक डाली टूटकर नाग के पास गिरी और नाग चला गया!
महात्माजी ने कहा नही वत्स
*उसका जो सबसे अहम साथी था वही उसकी रक्षा कर रहा था जो दिखाई तो नही दे रहा था पर हर पल उसे बचा रहा था और उस साथी का नाम है "धर्म" हॆ वत्स धर्म से समर्थ और सच्चा साथी जगत मे और कोई नही है केवल एक धर्म ही है जो सोने के बाद भी तुम्हारी रक्षा करता है और मरने के बाद भी तुम्हारा साथ देता है!*
*हॆ वत्स पाप का कोई रखवाला नही हो सकता और धर्म कभी असहाय नही है महाभारत के युध्द मे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों का साथ सिर्फ इसिलिये दिया था क्योंकि धर्म उनके पक्ष मे था!*
हॆ वत्स तुम भी
*केवल धर्म को ही अपना सच्चा साथी मानना और इसे मजबुत बनाना क्योंकि यदि धर्म तुम्हारे पक्ष मे है तो स्वयं नारायण और सद्गुरु तुम्हारे साथ है नही तो एक दिन तुम्हारे साथ कोई न होगा और कोई तुम्हारा साथ न देगा और यदि धर्म मजबुत है तो वो तुम्हे बचा लेगा इसलिये धर्म को मजबुत बनाओ!*
हॆ वत्स
*एक बात हमेशा याद रखना की इस संसार मे समय बदलने पर अच्छे से अच्छे साथ छोड़कर चले जाते है केवल एक धर्म ही है जो घनघोर बीहड़ और गहरे अन्धकार मे भी तुम्हारा साथ नही छोडेंगा कदाचित तुम्हारी परछाई भी तुम्हारा साथ छोड़ दे परन्तु धर्म तुम्हारा साथ कभी नही छोडेंगा बशर्ते की तुम उसका साथ न छोड़ो इसलिये धर्म को मजबुत बनाना क्योंकि केवल यही है हमारा सच्चा साथी!*
!!~ ॐ हरि ॐ 🌹 हर हर महादेव हर 🌹 ॐ हरि ॐ ~!!
*प्रेम-सत्संग-सुधा-माला*
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दक्षिणमें एक भक्त हुए हैं; वे भगवान् के बहुत ही विश्वासी थे, और गाँव के जमींदार थे।
एक साल वहाँ अकाल पड़ा।
कोठे का अनाज तो बाँट ही दिया, अपना मकान तक भेज कर गरीबों को लुटा दिया।
स्त्री पुरुष पेड़ के नीचे रहने लगे।
उनका नियम था-
एकादशी का उपवास करना फिर द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराके व्रत का पारण करना।
एकादशी के दिन भी पंढरपुर जाया करते थे।
इस बार भी गये, दर्शन किया, किंतु पास में कुछ नहीं था।
कुछ दिन पहले बहुत धनी थे, पर आज फूटी कौड़ी भी पास नहीं थी।
लकड़ी बेचने से तीन पैसे मिले।
एक पैसा की फूल - माला ली, एक पैसे का प्रसाद चढ़ा दिया तथा एक पैसा दक्षिणा में दे दिया।
दूसरे दिन लकड़ी बेचने पर फिर तीन पैसे मिले उनका आटा ले लिया, पर अब केवल आटे का निमन्त्रण स्वीकार करने के लिये कोई ब्राह्मण तैयार नहीं हुआ।
दोपहर हो गयी।
एक - एक करके कई ब्राह्मण आये, पर खाली आटा अस्वीकार कर वापिस चले गये।
अन्त में भक्त - दम्पति मन में सोचने लगे-
प्रभो !
आज क्या हमारा नियम भंग होगा ?
इतने में एक ब्राह्मण आया, जो अत्यन्त बुढ़ा था।
बोला-
पटेल !
बड़ी जोर की भूख लगी है।
उस बेचारे ने लजाकर कहा-
हे ब्राह्मण देव! मेरे पास तो केवल आटा है।
ब्राह्मण ने कहा-
फिर क्या चाहिये।
यहीं से थोड़े कंडे इकट्ठे् कर लेते हैं।
मैं बाटी बना कर खा लूँगा।
यही हुआ, बाटी बनने लगी।
इतनेमें एक बुढ़िया आयी।
ब्राह्मण बोले-
बड़ा अच्छा हुआ, पटेल! यह मेरी पत्नि है, हम दोनों प्रसाद पा लेंगे।
पटेल लज्जित हो गये, सोचने लगे एक आदमी के लिये भी आटा पर्याप्त नहीं है, दो कैसे जीमेंगे, पर भगवान् की लीला थी, बाटी बनायी गयी।
ब्राह्मण ने कहा-
एक पत्तल तुम अपने लिये भी ले लो।
पटेल बड़े विचार में पड़ गया।
अन्ततोगत्वा पटेल के बहुत कहने - सुनने के बाद ब्राह्मण - ब्राह्मणी जीमने लगे।
कुछ खाकर वे दोनों अन्तर्धान हो गये।
पटेल बड़े चकित हुए। बचा हुआ प्रसाद ( बाटी ) पाकर मन्दिर में दर्शन करने गये।
वहाँ भगवान् प्रत्यक्ष चिन्मय रूप धारण कर उससे बात करने लगे। बहुत बातें हुई।
अन्तमें भगवान् बोले-
भक्त! हमें, आज जैसी ही बाटियाँ खाने में आनन्द आता है।
पटेल ने पूछा-
प्रभू !
तब क्या आप कभी बड़े - बड़े यज्ञों और भण्डारों में नहीं जाते?
भगवान् ने कहा-
वे लोग हमको खिलाना ही नहीं चाहते।
पटेल से भगवान् ने फिर कहा-
कल तमाशा देखना, उसी ब्राह्मण के वेश में मैं कल अमुक जगह जाऊँगा; देखना, वहाँ मेरी कैसी पूजा होती है।
एक बहुत बड़े धनी के यहाँ यज्ञ था।
भण्डार चल रहा था, हजारों ब्राह्मणों को भोजन का निमन्त्रण था।
ठीक जीमने के अवसर पर वे वही बूढ़े बाबा पहुँचे और बोले-
जय हो दाता की।
एक पत्तल हमें भी मिल जाय, बहुत भूखा हूँ।
लोगों ने पूछा-
आपको निमंन्त्रण मिला है ?
ब्राह्मण बोले-
निमंत्रण तो नहीं मिला, पर हूँ बहुत भूखा; बड़ा पुण्य होगा।
ब्राह्मण की एक बात भी उन लोगों ने नहीं सुनी।
आखिर ब्राह्मण जबरदस्ती एक पत्तल लेकर बैठ गये।
अब तो धनिक बाबू के क्रोध का पार नहीं रहा।
उन्होंने हाथ पकड़कर ब्राह्मण को निकलवा दिया।
पटेल वहाँ खड़े सब देख रहे थे।
बुढ़े ब्राह्मण ने पटेल को इशारा करके कह रहे थे-
देखा हमारा सत्कार कैसा होता है?
फिर कहा-
अब देखो क्या होता है।
उसी समय बहुत जोर की आँधी आयी, बड़े - बड़े ओले गिरने लगे।
सारा यज्ञ नष्ट हो गया।
वहाँ एक ब्राह्मण भी भोजन नहीं कर सका।
यह कथा बहुत विस्तार से एवं बहुत लम्बी है।
परंतु इसका सारांश यह है कि किसी भी दु;खी और भूखे को देखकर उसकी सहायता करनी चाहिए और उसमे विशेष रूप से भगवान् को देखना चाहिये।
🙏जय श्रीराधे-कृष्णा🙏
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏