सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
*......."लक्ष्मी जी के पग"..... मृगतृष्णा ...*
*......."लक्ष्मी जी के पग".....*
️रात_के_8_बजे_का_समय_रहा_होगा।
एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है, गांव का रहने वाला था, पर तेज़ था।
उसका बोलने का लहज़ा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा हुआ लग रहा था। उम्र लगभग 22 वर्ष का रहा होगा ।
दुकानदार की पहली नज़र उसके पैरों पर ही जाती है। उसके पैरों में लेदर के शूज थे, सही से पाॅलिश किये हुये।
*#दुकानदार* -- "क्या सेवा करूं ?"
*#लड़का* -- "मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये, किंतु टिकाऊ होनी चाहिये !"
*#दुकानदार* -- "वे आई हैं क्या ? उनके पैर का नाप ?"
लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, *चार बार फोल्ड किया हुआ एक कागज़ जिस पर पेन से आऊटलाईन बनाई हुई थी दोनों पैर की !*
वह लड़का बोला...!
"क्या नाप बताऊं साहब ?
मेरी माँ की ज़िन्दगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पल नहीं पहनी।
*माँ मेरी मजदूर है, मेहनत कर-करके मुझे पढ़ाया, पढ़ कर, अब नौकरी लगी।*
आज़ पहली तनख़्वाह मिली है।
दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊँ ?
तो मन में आया कि *अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ !"*
दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई, जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी।
"चलेगी क्या ?"
आगन्तुक लड़का उस कीमत के लिये तैयार था ।
दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया -- "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"
"अभी तो बारह हजार, रहना-खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाएंगे यहाँ, और तीन हजार माँ के लिये !."
"अरे !, फिर आठ सौ रूपये... कहीं ज्यादा तो नहीं...।"
तो बात को बीच में ही काटते हुए लड़का बोला -- "नहीं, कुछ नहीं आप पैक कर दीजिए !"
दुकानदार ने चप्पल बाॅक्स में पैक कर दिया। लड़के ने पैसे दिये और ख़ुशी-ख़ुशी दुकान से बाहर निकला, दुकानदार ने उसे कहा --
"थोड़ा रुको !"
साथ ही दुकानदार ने एक और बाॅक्स उस लड़के के हाथ में दिया
-- *"यह चप्पल माँ को, तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाये तो दूसरी पहन लेना, नँगे पैर नहीं घूमना और इसे लेने से मना मत करना !"*
दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा--
"उन्हें मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?"
"बोलिये।"
*"वह पेपर, जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी, वही पेपर मुझे चाहिये !"*
वह कागज़, दुकानदार के हाथ में देकर वह लड़का ख़ुशी-ख़ुशी चला गया !
वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा,
दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि -- "ये क्या है पापा ?"
दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला --
*"लक्ष्मीजी के पगले हैं बेटा !!*
एक सच्चे भक्त ने बनाया है, इससे धंधे में बरकत आती है !"
*मां* तो इस संसार में साक्षात *परमात्मा* है !
मृगतृष्णा
तृष्णा
मन की हो
या तन की हो
या हो धन वैभव की
या कि जीवन की
होती है सदैव
दुखदायिनी ।
कभी न बुझाती प्यास
रहती मन में अतृप्ति
मिल जाये कितना भी पानी
दूर पर दिखती
पानी की धारा
पर नहीं मिलता किनारा
पास जाओ तो
होता दृष्टि का भ्रम
सब कुछ पा कर भी
और पाने की
अदम्य लालसा
पर कहाँ मिलता है।
वह मृग जल
जो संतृप्त करे
मन की हर तृष्णा को।
बस मिलती है।
अतृप्ति
और,,,कभी न बुझने वाली
सतत प्यास....
जय श्री कृष्ण...!!
🙏🙏🙏जय लक्ष्मीनारायण 🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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