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जय द्वारकाधीश
।। श्री रामचरित्रमानस और श्री पद्मपुराण सहित के प्रवचन ।।
।। लंकापति रावण की मृत्यु कब हुई / श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ...... ।।
लंकापति रावण की मृत्यु कब हुई
श्रीपद्मपुराण के पातालखंड इसका विवरण है ।
‘‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ( 87 दिन )’'’ ।
15 दिन अलग अलग युद्धबंदी ।
72 दिन चले महासंग्राम में लंकाधिराज रावण का संहार ।
क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को हुआ।
घन घमंड गरजत चहु ओरा।
प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।
रामचरित मानस हो बाल्मीकि रामायण अथवा ‘रामायण शत कोटि अपारा’ हर जगह ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास के प्रमाण मिलते हैं।
श्रीपद्मपुराण के पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में पहुंचते हैं।
परिचय देकर प्रणाम करतेे है।
शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले-
गुरु का वचन सत्य हुआ।
सारूप्य मोक्ष का समय आ गया।
उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य का उपदेश देते हुए कहा था ।
कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा आश्रम में आयेगा ।
रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी।
वे तुम्हें राम के पास पहुंचा देंगे।
इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथि वार उद्घाटित करते है-
जनक पुरी में धनुषयज्ञ में राम लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र द्वारा पहुचना और राम द्वारा धनुषभंग कर राम-
सीता विवाह का प्रसंग सुनाते हुए ।
आरण्यक ने बताया तब विवाह राम 15 वर्ष के और सीता 06 वर्ष की थी ।
विवाहोपरांत वे 12 वर्ष अयोध्या में रहे ।
27 वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई ।
मगर रानी कैकेई के वर मांगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।
वनवास में राम प्रारंभिक 3 दिन जल पीकर रहे ।
चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया।
पांचवें दिन वे चित्रकूट पहुंचे ।
वहां पूरे 12 वर्ष रहे।
13 वें वर्ष के प्रारंभ में राम लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुचे।
जहां सुर्पनखाॅ को कुरूप किया।
माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता का हरण किया।
श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे।
जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे ।
सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।
आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ।
शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी
कार्तिक शुक्लपक्ष तें वानरों ने सीता की खोज शुरू की समुद्र तट पर ही ।
कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया ।
सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं।
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी ( देवोत्थानी ) को हनुमान ने छलांग लगाई , रात में लंका प्रवेश कर खोजवीन करने लगे।
कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई।
कार्तिक शुक्ल तेरस को वाटिका विध्वंश किया ।
उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया।
कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद ब्रह्मपाश में बांधकर दरवार में ले गये और लंकादहन किया।
हनुमानजी कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया।
प्रफुल्लित सभी वानरों ने नाचते गाते 5 दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया।
हनुमान की अगुवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुचे।
हालचाल दिये।
अगहन कृष्ण अष्टमी उ. फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और 7 दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे।
अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया।
अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ।
अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर परिचर्चा हुई।
सागर से मार्ग याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक 4 दिन अनशन किया।
सप्तमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया।
अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक 4 दिन में श्रीराम सेतुबनकर तैयार हुआ।
अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्रपार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया ।
अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक 3 दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई।
पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली।
पौष कृष्ण एकादशी को सुक सारन वानर सेना में घुस आये।
पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और पहचान करके उन्हें अभयदान दिया।
पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया।
पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।
इसके बाद पौष शुक्ल द्वितीया से अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ।
पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया गया।
श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया ।
पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटा और राम लक्ष्मण को मुक्त किया।
पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध ।
पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध ।
पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का बध ।
माघ कृष्ण द्वितीया से चतुर्थी तक राम रावण में तुमुल युद्ध हुआ और रावण को भागना पड़ा।
रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक 4 दिन में कुंभकरण को जगाया।
माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया।
कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया।
माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि 5 राक्षसीें का बध हुआ।
माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया।
माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ बध ।
माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष बध हुआ।
फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण मेघनाद युद्ध प्रारंभ सप्तमी को लक्ष्मण मूच्र्छित हुए उपचार हुआ।
इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक 5 दिन युद्ध विराम रहा।
फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया ।
फागुन कृष्ण नवमी से तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया।
इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ।
फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापाश्र्व आदि का राक्षसों का बध हुआ।
फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूच्र्छित हुए ।
सुखेन बैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चेतन्य हुए।
राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ।
फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया।
फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक 18 दिन युद्ध चला।
चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण को मौत के घाट उतारा गया ।
युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चैदस तक ( 87 दिन ) 15 दिन अलग अलग युद्धबंदी रही ।
72 दिन चला महासंग्राम और श्रीराम विजयी हुए ।
चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( नव संवत्सर ) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ।
चैत्र शुक्ल द्वितीया को विभीषण का राज्याभिषेक किया गया।
अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का सीता की अग्निपरीक्षा ली गई और चैत्र शुक्ल चतुर्थी को पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण, सीता उत्तर दिशा में उड़े।
चैत्र शुक्ल पंचमी को भरद्वाज के आश्रम में पहंचे।
चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में राम-भरत मिलन हुआ।
चैत्र शुक्ल सप्तमी को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया।
यह पूरा आख्यान ऋषि आरण्यक ने शत्रुघ्न को सुनाया फिर शत्रुघ्न ने आरण्यक को अयोघ्या पहुंचाया जहां अपने आराध्य पूर्णावतार श्रीराम के सान्निध्य में ब्रह्मरंध्र द्वारा सारूप्य मोक्ष पाया।
।। श्री हनुमानजी के 10 रहस्य ...... ।।
हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं।
शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।
1. हनुमानजी का जन्म स्थान
कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं।
तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है।
यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।
हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है।
कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था।
श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था।
प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था।
हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।
2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी
इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला।
श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी।
सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे।
इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं।
कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।
ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-
'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।
3.कपि नामक वानर
हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था।
रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए।
उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर - शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।
अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।
4. हनुमान परिवार
हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं।
उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था।
ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं।
उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।
कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ।
इसी लिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं।
कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं।
हनुमानजी रुद्रावतार हैं।
पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।
5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी
रोग और शोक, भूत - पिशाच, शनि, राहु - केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट - कचहरी - जेल बंधन, मारण - सम्मोहन - उच्चाटन, घटना - दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
6. हनुमानजी के पराक्रम
हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं।
बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था।
एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे।
उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया।
लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।
अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया।
जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी।
उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया।
हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।
इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया।
पाताल लोक में जाकर राम - लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया।
उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था।
हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।
7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ
तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे।
तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।
इंद्रादि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की।
समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया।
आनंद रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं।
इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं।
गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मंत्रों की रचना की है।
8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी
रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं।
हनुमानजी माता के आगे - आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे - पीछे।
माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं।
हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है।
कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।
9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी
हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे।
ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।
सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं।
जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती।
हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है।
इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी।
महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।
10. इन्होंने देखा हनुमानजी को
13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं।
हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं।
🔸🔸जय श्री राम 🔸🔸🔹🔸🔸जय श्री राम🔸🔸🔹🔸🔸जय श्री राम🔸🔹
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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