https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: फ़रवरी 2025

महा शिवरात्री :

|| शिवरात्री विशेष - ||


 शिवरात्री विशेष -

     
भोलेनाथ का बाल रूप भगवान भोलेनाथ अनादि हैं। 

उनके अलग अलग स्वरुपों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। 

विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा में भगवान शिव के बाल रूप का वर्णन किया गया है ।

यह कथा बेहद मनभावन है जिसमे बताया गया है की एक बार ब्रह्म देव को बच्चे की जरूरत थी तथा उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बेहद कठोर तपस्या करी। 

उनके तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव रोते हुए बालक के रूप में ब्रह्म देव के गोद में प्रकट हुए। 

अपने गोद में एक छोटे से बच्चे को रोते देख जब ब्रह्मा ने उससे रोने का कारण पूछा तो बच्चे ने बड़ी मासूमियत से उत्तर दिया की उसका नाम ब्रह्मा नहीं है इस लिए वह रो रहा है।

तब ब्रह्मा ने भगवान शिव का नाम रूद्र ( रूद्र का अर्थ होता है रोने वाला ) रखा परन्तु इस पर भी शिव रूपी वह बालक चुप नहीं हुआ। 

तब ब्रह्मा ने उन्हें दुसरा नाम दिया परन्तु फिर भी जब वह बालक चुप नहीं हुआ तब ब्र्ह्मा जी उस बालक का नाम देते गए और वह रोता रहा।

जब ब्रह्म देव ने उस बालक को उसका आठवाँ नाम दिया तब वह बालक चुप हुआ इस प्रकार भगवान शिव को ब्रह्म देव के इन आठ नमो ( रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव ) द्वारा जाने जाने लगा।




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शिव पुराण में यह उल्लेखित है की भगवान शिव के ये आठो नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।

शिव के इस प्रकार ब्रह्मा के पुत्र के रूप में जन्म लेने और उनके आठ नाम रखने के पीछे विष्णु पुराण में यह बतलाया गया है की जब धरती, पातल व ब्रह्मांड सभी जल मग्न थे उस समय भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के अलावा कोई भी देव या प्राणी विद्यमान नहीं था।

तब सिर्फ़ भगवान विष्णु जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे हुए थे उस समय उनके नाभि से कमल नाल पर ब्रह्म देव प्रकट हुए।

जब भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी सृष्टि के बारे में बात कर रहे तब तभी शिव उनके समाने प्रकट हुए परन्तु ब्रह्मा ने शिव को पहचाने से इंकार कर दिया।

तब शिव के नाराज हो जाने के भय से भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को दिव्य दृष्टि प्रदान करी व उन्हें भगवान शिव की याद दिलाई। 

ब्रह्मा जी को अपने गलती का अहसास हुआ और अपने पश्चाताप के लिए उन्होंने भगवान शिव से उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने की बात कही। 




शिव ने ब्रह्मा को क्षमा करते हुए उन्हें उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया।

कालांतर में विष्णु के कान के मल से उतपन्न मधु कैटभ का वध कर ब्रह्म देव को सृष्टि के निर्माण के समय एक बच्चे की जरूरत पड़ी तब ब्रह्म देव को भगवान शिव के आशीर्वाद का ध्यान आया तथा इस प्रकार ब्रह्म देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके गोद में बालक के रूप में प्रकट हुए।

      || हर हर महादेव ||

|| शिवरात्रि से पूर्व पढ़ें ||
       
पानिग्रहन जब किन्ह महेसा।
   हियँ हरषे तब सकल सुरेशा।।

वेद मंत्र मुनिवर उच्चरहिं।
 जय जय जय संकर सुर करहिं।।

बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना।
 सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना।।

हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू।
   सकल भुवन भरि रहा उछाहू।।
               ( मानस )

माँपार्वती और शिवजी के विवाह की कथा।
 
भगवान शिव और पार्वती का विवाह बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित हुआ। 

पार्वती जी की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के राजा - महाराजा और शाही रिश्तेदार इस विवाह में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से संबंध नहीं रखते। आइये जानते हैं आगे क्या हुआ…।

भगवान शिव की लग्न / शादी में आए
         हर तरह के प्राणी-

जब शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था, तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। 

उनकी लग्न / शादी बहुत ही भव्य पैमाने पर हो रही थी। इससे पहले ऐसी लग्न / विवाह शादी कभी नहीं हुई थी। 

शिव – 

जो दुनिया के सबसे तेजस्वी प्राणी थे – 

एक दूसरे प्राणी को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले थे। 

उनकी लग्न / विवाह / शादी में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग शामिल हुए। 

सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर भी वहां पहुंचे। 

आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे।

शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े - मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए।

यह एक शाही लग्न / विवाह / शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी, इस लिए विवाह समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था।

भगवान शिव और देवी पार्वती की वंशावली के बखान की रस्म वर - वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। 

एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। 

तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। 

यह कुछ देर तक चलता रहा। 

आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर शिव बैठे हुए थे।

सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर शिव के वंश के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा।

भगवान शिव ने धारण किया मौन
          
फिर पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया। 

‘ कृपया अपने वंश के बारे में कुछ बताइए ’ शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। 

वह न तो दुल्हन की ओर देख रहे थे,न ही शादी को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर आ रहा था। 

वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे और शून्य में घूरते रहे। 

वधू पक्ष के लोग बार - बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी की लग्न / विवाह / शादी ऐसे आदमी से नहीं करना चाहेगा।

जिसके वंश का अता - पता न हो। 

उन्हें जल्दी थी क्योंकि शादी के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था। 

मगर शिव मौन रहे।

समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा और पंडित बहुत घृणा से शिव की ओर देखने लगे और तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई। 

‘ इसका वंश क्या है ? 

यह बोल क्यों नहीं रहा है ? ' 

' हो सकता है कि इसका परिवार किसी नीची जाति का हो और इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म आ रही हो।’

नारद मुनि ने इशारे से बात समझानी चाही-

फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे।

ने यह सब तमाशा देखकर अपनी वीणा उठाई और उसकी एक ही तार खींचते रहे। 

वह लगातार एक ही धुन बजाते रहे – 

टोइंग टोइंग टोइंग। 

इससे खीझकर पार्वती के पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे। 

‘ यह क्या बकवास है ? 

हम वर की वंशावली के बारे में सुनना चाहते हैं मगर वह कुछ बोल नहीं रहा। ' 

क्या मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से कर दूं ? 

और आप यह खिझाने वाला शोर क्यों कर रहे हैं ? 

' क्या यह कोई जवाब है ? ’ 

नारद ने जवाब दिया...!

‘ वर के माता - पिता नहीं हैं। ’ 

राजा ने पूछा, ‘ क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने माता - पिता के बारे में नहीं जानता ?’

नारद ने सभी को बताया कि
    भगवान स्वयंभू हैं-

इनके माता-पिता ही नहीं हैं। 

इनकी कोई विरासत नहीं है। 

इनका कोई गोत्र नहीं है। 

इसके पास कुछ नहीं है। 

' इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है।’ 

पूरी सभा चकरा गई। 

पर्वत राज ने कहा, ‘हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते। 

ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। 

मगर हर कोई किसी न किसी से जन्मा है। 

' ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता या मां ही न हो।’ 

नारद ने जवाब दिया...!

‘ क्योंकि यह स्वयंभू हैं। 

इन्होंने खुद की रचना की है। ' 

इनके न तो पिता हैं न माता। 

इनका न कोई वंश है, न परिवार। 

यह किसी परंपरा से ताल्लुक नहीं रखते और न ही इनके पास कोई राज्य है। 

इनका न तो कोई गोत्र है, और न कोई नक्षत्र। 

न कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। 

यह इन सब चीजों से परे हैं। 

यह एक योगी हैं और इन्होंने सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। 

इनके लिए सिर्फ एक वंश है – 

ध्वनि। 

आदि, शून्य प्रकृति ने जब अस्तित्व में आई, तो अस्तित्व में आने वाली पहली चीज थी – 

ध्वनि। 

इनकी पहली अभिव्यक्ति एक ध्वनि के रूप में है। 

ये सबसे पहले एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए। 

उसके पहले ये कुछ नहीं थे। 

' यही वजह है कि मैं यह तार खींच रहा हूं।’
     
  || शिव विवाह की अग्रिम बधाई ||

प्रयागराज महाकुंभ अमृत स्नान मानव शरीरों का महासमुद्र बना हुआ है, लगता है कि पूरा विश्व उमड़ पड़ा है। 

जहां तक दृष्टि जाती है वहां तक नरमुंड ही नरमुंड दिखते हैं। रात भी दिन बनी हुई है। 

कारों बसों व समस्त वाहनों के मीलों लंबे झूंड रुकने का नाम ही नहीं ले रहे। 

धन्य हैं प्रशासन, सुरक्षा, पुलिस वाले जो इतनी कठिन परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं ।

मैं तो कहता हूं कि यदि इतने लोग एक ही दिन में दिल्ली महानगर में आ जायें तो दिल्ली चरमरा जाएगी। 
मैं तो कहूंगा कि यह भगवान भोलेनाथ का चमत्कार ही है कि यह सम्भव हो पा रहा है।

क्योंकि यह किसी मानव के बस का कार्य नहीं है। 

यह काम तो कोई महाशक्ति ही योगी जी से करवा रही है और कोई महाशक्ति ही हम को भी वहां ले कर जा रही है अन्यथा यह काम असम्भव सा काम प्रतीत होता है।

भगवान शिव को कोटि कोटि धन्यवाद और नमन जो उसने मुझे यह शक्ति दी और मैं वहां पहुंच पाया और त्रिवेणी में डुबकी लगा पाया।

।। जय श्री राम ।।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को भारत की अर्थव्यवस्था में प्रयागराज महाकुम्भ का अदृश्य योगदान समझ ही नहीं आयेगा और उन्होंने इसे factor in ही नहीं किया होगा। 

प्रयागराज महाकुंभ भारत की अर्थव्यवस्था में और GDP में कम से कम 0.5% से 1% की बढ़ोतरी देगा!

यह महाकुंभ हज़ारों कारों, टैक्सियों, मोटर साइकल वालों, रेहड़े रिक्शा वालों, बैटरी रिक्शा वालों और अन्तराज्यीय ट्रांसपोर्ट सेक्टरों, खाने पीने वालों को Direct Employment दे रहा है और अर्थव्यवस्था में liquidity flow inject कर रहा है और हज़ारों लाखों लोगों की अर्थव्यवस्था को सीधे सुधार रहा है।

यह महाकुंभ FMCG सेक्टर को भी directly सदृढ़ कर रहा है, जिससे indirectly FMCG सेक्टर में भी तेज़ी से सुधार होगा और वहां भी व्यवसाय, रोज़गार बढ़ेगा।

इस प्रकार यह प्रयागराज महाकुंभ भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा जो कि विश्व बैंक के एक्सपर्ट और अर्थशास्त्री factor in करना भूल गये थे कि ये महाकुंभ भारत के GDP को 0.5% से 1% की बढ़ोतरी देगा।

विरोधियों, विपक्षियों, जाहिलों, गिद्धों की जलन, कुढ़़न, सड़न, फिसलन , घिसड़न स्वाभाविक है।

आदिदेव महादेव मंदिर - चौमुख नाथ मंदिर 

 महाशिवरात्रि विशेष

पन्ना जिले के सलेहा क्षेत्र में अवस्थित चौमुख नाथ मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।

इस मंदिर का निर्माण पांचवीं-छठीं शताब्दी के मध्य माना जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की अद्वितीय प्रतिमा विराजमान है।

जो उनके चार स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

एक ही पत्थर से निर्मित इस प्रतिमा का एक मुख विषग्रहण को चित्रित करता है।

जबकि दूसरा समाधि में लीन है।

तीसरा मुख दूल्हे की छवि दिखाता है और चौथे मुख पर अर्धनारीश्वर की छवि प्रकट होती है।

*मेरी संस्कृति…मेरा देश…
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु का हर हर महादेव 
🚩जय हो सनातन धर्म की 
      ।।🏹 जय श्री राम ।।
      🧘‍♂️🙏🏻🕉️🙏🏻🌞

"योग और भोग"," कर्मो की दौलत ", शिवाष्टकम् स्तोत्र

"योग और भोग"," कर्मो की दौलत ", शिवाष्टकम् स्तोत्र |

बांके बिहारी के स्वरूप,कलियुग केवल नाम आधारा, " योग और भोग "," कर्मो की दौलत ", शिवाष्टकम् स्तोत्र |

बांके बिहारी के स्वरूप और उनके भगत |

बहुत समय पहले की बात है श्री वृंदावन में एक बाबा का निवास था जो युगल स्वरुप की उपासना करते थे एक बार बाबा संध्या वंदन के उपरांत कुञ्जवन की राह पर जा रहे थे मार्ग में एक वटवृक्ष के नीचे होकर निकले तो उनकी जटा उस वटवृक्ष की जटाओं में उलझ गयी। 





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बहुत प्रयास किया सुलझाने का परन्तु जटा नहीं सुलझी महात्मा भी महात्मा ही होते हैं। 

वे आसन जमा कर बैठ गये कि जिसने जटा उलझाई है वो सुलझाने आएगा तो ठीक है नहीं तो मैं ऐसे ही बैठा रहूँगा और प्राण त्याग दूँगा। 

बाबा को बैठे हुए तीन दिन बीत गये तो एक सांवला सलोना ग्वाल आया जो पाँच-सात वर्ष का था वो बालक ब्रजभाषा में बड़े दुलार से बोला – 

बाबा ! 

तुम्हारी तो जटा उलझ गयी मैं सुलझा दऊँ का और जैसे ही वो बालक जटा सुलझाने आगे बढ़ा बाबा ने कहा – 

हाथ मत लगाना पीछे हटो कौन हो तुम।

ग्वाल – 

अरे ! 

हमारो जे ही गाम है महाराज गैया चरा रह्यो तो मैंने देखि बाबा की जटा उलझ गई है तो सोची मैं जाय के सुलझा दऊँ।बाबा – 

न न न दूर हट जा जिसने जटा उलझाई है वही सुलझायगा।

ग्वाल – 

अरे महाराज ! 

तो जाने उलझाई है वाको नाम बताय देयो वाहे बुला लाऊँगो।

बाबा – 

तू जा ! 

नाम नहीं बताते हम कुछ देर तक वो बालक बाबा को समझाता रहा परन्तु जब नहीं माने तो ग्वाल में से साक्षात् मुरली बजाते हुए भगवान् बांके बिहारी प्रकट हो गये।

सांवरिया सरकार बोले – 

महात्मन ! 

मैंने जटा उलझाई है  तो लो आ गया मैं और जैसे ही सांवरिया जटा सुलझाने आगे बढ़े,बाबा – 

हाथ मत लगाना पीछे हटो पहले बताओ तुम कौन से कृष्ण हो बाबा के वचन सुनकर श्रीकृष्ण सोच में पड़ गए कि अरे कृष्ण भी क्या दस - पाँच हैं....।

श्रीकृष्ण – 

कौन से कृष्ण हो मतलब।

बाबा – 

देखो श्रीकृष्ण कई हैं एक देवकी नंदन श्री कृष्ण हैं,एक यशोदा नंदन श्री कृष्ण,एक द्वारिकाधीश श्री कृष्ण , एक नित्य निकुञ्ज बिहारी श्री कृष्ण।

श्रीकृष्ण – 

आपको कौन से चाहिए।

बाबा – 

मैं तो नित्य निकुञ्ज बिहारी श्रीकृष्ण का परमोपासक हूँ।

श्रीकृष्ण – 

वही तो मैं हूँ अब सुलझा दूँ क्या।

जैसे ही श्रीकृष्ण जटा सुलझाने के लिए आगे बढ़े तो बाबा बोले – 

हाथ मत लगाना पीछे हटो अरे ! 

नित्य निकुञ्ज बिहारी तो किशोरी जू के बिना मेरी स्वामिनी श्री राधा रानी के बिना एक पल भी नहीं रहते और आप तो अकेले ही खड़े हो।

बाबा के इतना कहते ही आकाश में बिजली सी चमकी एवं साक्षात श्री वृषभानु नंदिनी, वृन्दावनेश्वरी, श्री राधिका रानी बाबा के समक्ष प्रकट हो गईं।

और बोलीं – 

अरे बाबा ! 

मैं ही तो ये श्रीकृष्ण हूँ और श्रीकृष्ण ही तो राधा हैं हम दोनों एक हैं। 

अब तो युगल सरकार का दर्शन पाकर बाबा आनंद विभोर हो उठे उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। 

अब जैसे ही श्रीराधा - कृष्ण जटा सुलझाने आगे बढ़े –

बाबा चरणों में गिर पड़े और बोले – 

अब जटा क्या सुलझाते हो प्रभु अब तो जीवन ही सुलझा दो....!  

बाबा ने ऐसी प्रार्थना की और प्रणाम करते करते उनका शरीर शांत हो गया।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,

पुनरपि जननी जठरे शयनम्।

इह संसारे बहुदुस्तारे,

      कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥

( बार - बार जन्म, बार - बार मृत्यु, बार - बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें॥ )

|| जय श्री राधे कृष्ण ||

 

कलियुग केवल नाम आधारा

कलियुग केवल नाम आधारा,।

   सुमिर - सुमिर सब उतरें पारा ।।

प्रभू नाम की महिमा हर युग में महान रही है। 

कलयुग में मात्र राम नाम  जपने से ही अपने जीवन के उद्देश्य को साकार किया जा सकता है। 

जो सच्चे मन से प्रभु का नाम जप लेता है उसके जीवन की नैया हर मझधार से निकल , शांतिपूर्वक आगे बढ़ने लगती है। 

भगवान के नाम को बार - बार याद कर उनके और निकट होना, उनके चरणों में स्थान पाना, उनका दास बनना ही जप है l 

प्रह्लाद , शबरी, द्रौपदी, सुदामा और तुलसीदास जैसे कितने ही भक्तों ने नाम जप का सहारा लेकर अपना जीवन सफल किया है।

श्रीमद्भागवत के अनुसार कलियुग में पाप बहुत अधिक है....! 

इस लिए उन पापों का नाश कर भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल साधन "श्री हरि" का मंत्र है। 

" श्री हरि " मंत्र कलियुग के पापों को नष्ट करने वाला माना गया है। 

पद्मपुराण के अनुसार " श्री हरि " के मंत्र का जाप करने वाला मृत्यु के पश्चात बैकुंठ धाम को जाता है। 

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार इस नाम - मंत्र के जाप मात्र से मनुष्य ब्रह्ममय हो जाता है तथा उसे विभिन्न सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। 

श्रीमद्भागवत में लिखा है कि यज्ञ, अनुष्ठान, पूजा, व्रत आदि में जो कमी रह जाती है वह इस हरि नाम मात्र के जाप से पूर्ण हो जाती है। 

" हरि नाम " अनुष्ठान, पूजा, व्रत से श्रेष्ठ है। 

रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, गीता सभी में " हरि नाम " का गुणगान किया गया है।

कृष्ण नाम में अपार शन्ति , आनंद और शक्ति भरी हुई है। 

यह सुनने और स्मरण करने में सुन्दर और मधुर है l 

जो जीव सच्चे दिल से श्री कृष्ण को प्यार करता हो, याद करता हो,एक उनके सिवा उसे और कुछ याद ही ना आता हो । 


हमेशा प्रभु की याद के साथ रहता है , उस को प्रभु, हर मुसीबत के समय बाहर निकाल देता है l

इस लिए रात दिन कृष्ण नाम का जप करो l  

मन, वचन और कर्म से भगवान का ही भजन करें, उठते बैठते सोते जागते दुनियाँ के काम करते हुए हरि से लगन लगाये रखे।

नाम जप के लिए कोई स्थान पात्र विधि की जरुरत नही है l 

इस से निषिद्ध आचरणों से स्वतः ग्लानि हो जायेगी l अभी अंतकरण मैला है , इस लिए मलिनता अच्छी लगती है l 

मन के शुद्ध होने पर मैली वस्तुओं कि अकांक्षा नहीं रहेगी l 

जीभ से कृष्ण कृष्ण शुरू कर दो, मन की परवाह मत करो l 

ऐसा मत सोचो कि मन नहीं लग रहा है तो जप निरर्थक चल रहा है l 

जैसे आग,बिना मन के छुएंगे तो भी वह जलायेगी ही , ऐसे ही भगवान कृष्ण का नाम किसी तरह से लिया जाए,अंतर्मन को निर्मल करेगा ही l 

अभी मन नहीं लग रहा है तो परवाह नहीं करो, क्योंकि आपकी नियत तो मन लगाने की है तो मन लग जाएगा l 

भगवान कृष्ण ह्रदय की बात देखते हैं की यह मन लगाना चाहता है , लेकिन मन नहीं लग पा रहा है l 

इस लिए मन नहीं लगे तो घबराओ मत और जाप करते करते मन लगाने का प्रयत्न करो l

मंत्र कलियुग में भगवान की प्राप्ति, मुक्ति पाने व मन को शांति देने वाला मंत्र है। 

इस मंत्र की महिमा का बखान हिन्दू धर्म के पुराणों व ग्रंथों में किया गया है। 

मान्यता के अनुसार इस मंत्र के जाप मात्र से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। 

एक भक्त को दिन में कम से कम 16 माला जाप महामंत्र का करना होता है। 

श्रील प्रभुपाद जी के अनुसार, ' हमें हरे कृष्ण ' महामंत्र का जप उसी प्रकार करना चाहिए जैसे एक शिशु अपनी माता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोता है।

भगवान कृष्ण नाम जप करने से यह अचेतन - मन में बस जाता है उसके बाद अपने आप से कृष्ण राम जप होने लगता है , करना नहीं पड़ता है ।

रोम रोम उच्चारण करता है ,चित्त इतना खिंच जाता है की छुडाये नहीं छुटता l 

जो जीव सच्चे दिल से श्री कृष्ण को प्यार करता हो, याद करता हो , एक उनके सिवा उसे और कुछ याद ही ना आता हो ।

हमेशा प्रभु की याद के साथ रहता है , उस को प्रभु, हर मुसीबत के समय बाहर निकाल देता है l 

संत , महापुरुष , भगवत भक्तगण बताते हैं  कि भगवान हमे किस रूप में दे रहे हैं, ये समझ पाना बेहद कठिन होता है l 

भगवान निश्चित ही अपनी कृपा आप पर बनाए रखेंगे l 

जीवन मे आने वाले दुखों और परेशानियों से कभी ये न समझे कि भगवान हमारे साथ नही है l

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी

हे नाथ नारायण वासुदेवाय! 

   || श्री कृष्ण: शरणम् मम ||


" योग और भोग "

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा सभा बुलाकर प्रश्न किया कि " मेरी जन्म पत्रिका " के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना , किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ? 

इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं । 

सब सोच में पड़ गये । 

कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो ! 

आपके प्रश्न का उत्तर यहां भला कौन दे सकता है , यदि आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरम गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं ,

सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा...! 

महात्मा ने क्रोधित होकर कहा " तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ। "

" तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं ।"

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या...! 

महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे ।


राजा के प्रश्न पूछते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा....! 

" मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है , आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है...! "

जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है।

सुनकर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, उत्सुकता प्रबल थी कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपती के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा जैसे ही बच्चा हुआ दम्पती ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! 

मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुनो लो -

तुम, मैं और वो दोनों महात्मा पिछले जन्म में चारों भाई व राजकुमार थे ।

एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। 

दो दिन भूखे प्यासे भटकते रहे । 

अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा -

" बेटा मैं तीन दिन से भूखा हूँ " अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो , मुझ पर दया करो जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी।

इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले " तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या ये अंगार खाऊंगा ? चलो भागो यहां से ....। "

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि...! 

" बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा ? "

" भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये,मुझे भी बाटी मांगी...! 

तथा दया करने को कहा किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि...! " 

" चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ ...?"।


बालक बोला...! 

" अंतिम आशा लिये वो महात्मा हे राजन। 

आपके पास आये , आपसे भी दया की याचना की, सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी। "

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले...! 

" तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा "

बालक ने कहा....! 

" इस प्रकार हे राजन ! 

उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं...! " 

धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं....! 

" किन्तु सबके फल रूप, गुण, आकार - प्रकार, स्वाद में भिन्न होते हैं " ..।

इतना कहकर वह बालक मर गया । 

राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है।

एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्म लेते हैं....! 

किन्तु सब अपना किया , दिया , लिया ही पाते हैं । 

जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही योग बनेंगे। 

जैसा योग होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा यही जीवन चक्र ज्योतिष शास्त्र समझाता है।

सुभ अरु असुभ करम अनुहारी।

ईसु देइ फलु हृदयँ बिचारी॥

करइ जो करम पाव फल सोई।

निगम नीति असि कह सबु कोई॥

भावार्थ:-

शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार ईश्वर हृदय में विचारकर फल देता है,जो कर्म करता है,वही फल पाता है।

ऐसी वेद की नीति है,यह सब कोई कहते हैं..!!

   🙏🏼🙏🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🏽🙏🏿🙏🏾

" कर्मो की दौलत "

एक राजा था जिसने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत ( शाही खज़ाना ) इकट्ठा करके आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने में खुफिया तौर पर छुपा दिया। 

खजाने की सिर्फ दो चाबियाँ थी, एक चाबी राजा के पास और एक उसके खास मंत्री के पास। 

इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था। 

एक दिन किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकल गया। 

तहखाने का दरवाजा खोल वह अन्दर दाखिल हुआ और अपने खजाने को देख - देख कर खुश हो रहा था और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।

उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खज़ाने का दरवाजा खुला है तो वो हैरान हो गया और उसे ख्याल आया कि कहीं कल रात जब मैं खज़ाना देखने आया था तब कहीं खज़ाने का दरवाजा खुला तो नहीं रह गया मुझसे ? 

उसने जल्दी - जल्दी खज़ाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहाँ से चला गया। 

उधर खज़ाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ तो दरवाजे के पास आया। 

अरे ये क्या ! 

दरवाजा तो बाहर से बंद है। 

उसने जोर - जोर से दरवाज़ा पीटना शुरू किया पर वहाँ उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई ना था।

राजा चिल्लाता रहा पर अफसोस कोई ना आया। 

वो थक हार के खज़ाने को देखता रहा। 

अब राजा भूख और प्यास से बेहाल हो रहा था। 

उसकी हालत पागलों सी हो गई थी। 

वो रेंगता रेंगता हीरों के संदूक के पास गया और बोला- 

" ए दुनिया के नायाब हीरों, मुझे एक गिलास पानी दे दो। " 

फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला- 

" ए मोती चांदी सोने के खज़ाने, मुझे एक वक़्त का खाना दे दो। " 

राजा को ऐसा लगा कि हीरे मोती उससे बात कह रहे हों कि तेरी सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती। 

राजा भूख प्यास से बेहोश हो कर गिर गया।

जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया। 

वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था। 

राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया।

उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढ रही थी पर उनको राजा नही मिला। 

कई दिन बाद जब मंत्री राजा के खज़ाने को देखने आया तो उसने देखा कि राजा हीरे ज़वाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है और उसकी लाश को कीड़े मकोड़े खा रहे हैं। 

राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था- 

" ये सारी दौलत एक घूंट पानी और एक निवाला नही दे सकी। "

यही अंतिम सच है। 

आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मों की दौलत जाएगी।

चाहे आपने कितने ही हीरे , पैसा , सोना , चांदी इकट्ठा किया हो , सब यहीं रह जाएगा। 

इसी लिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है, उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के और अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत।

जो आपके सदैव काम आएगी..!!

   🙏🏿🙏🏽🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🙏🏼🙏🏾


|| शिवाष्टकम् स्तोत्र - मूल पाठ का अर्थ ||

शिव की प्रशंसा में अनेकों अष्टकों की रचना हुई है जो शिवाष्टक, लिंगाष्टक, रुद्राष्टक, बिल्वाष्टक जैसे नामों से प्रसिद्ध हैं। 

शिवाष्टकों की संख्या भी कम नहीं है।

आदि अनादि अनंत अखंङ,

अभेद अखेद सुबेद बतावैं ।

अलख अगोचर रुप महेस कौ,

जोगि जती मुनि ध्यान न पावैं ॥

आगम निगम पुरान सबै,

इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।

बङभागी नर नारि सोई,

जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥

     ( देखें पुस्तक में )

शिवाष्टकम् स्तोत्र में इतनी शक्ति है कि इसके उपासक के जीवन में कभी कोई बाधा नहीं आती है। 

श्री शिवाष्टकम् स्तोत्र के पाठ से मनुष्य को महादेव की कृपा प्राप्ति होती है। 

इस के जाप से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

जो मनुष्य श्री शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ कर भगवान शिव की स्तुति करता है, उससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। 

इस स्तोत्र की रचना आदि गुरु शंकराचार्य ने की है। ये शिव स्तोत्रों में उनके सबसे प्रिय स्तोत्र है।


हे शिव, शंकर, शंभु, आप पूरे जगत के भगवान हैं, हमारे जीवन के भगवान हैं, विभु हैं, दुनिया के भगवान हैं, विष्णु ( जगन्नाथ ) के भगवान हैं, हमेशा परम शांति में निवास करते हैं, हर चीज को प्रकाशमान करते हैं, आप समस्त जीवित प्राणियों के भगवान हैं, भूतों के भगवान हैं, इतना ही नहीं आप समस्त विश्व के भगवान हैं, मैं आपसे मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।


जिनके गले में मुंडो की माला है, जिनके शरीर के चारों ओर सांपों का जाल है, जो अपार - विनाशक काल का नाश करने वाले हैं, जो गण के स्वामी हैं, जिनके जटाओं में साक्षात गंगा जी का वास है , और जो हर किसी के भगवान हैं, मैं उन शिव शंभू से मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।


हे शिव, शंकर, शंभु, जो दुनिया में खुशियाँ बिखेरते हैं, जिनकी ब्रह्मांड परिक्रमा कर रहा है, जो स्वयं विशाल ब्रह्मांड हैं, जो राख के श्रृंगार का अधिकारी है, जो प्रारंभ के बिना है, जो एक उपाय, जो सबसे बड़ी संलग्नक को हटा देता है, और जो सभी का भगवान है, मैं आपकी शरण में आता हूं।


हे शिव, शंकर, शंभु, जो एक वात ( बरगद ) के पेड़ के नीचे रहते हैं, जिनके पास एक मनमोहक मुस्कान है, जो सबसे बड़े पापों का नाश करते हैं, जो सदैव देदीप्यमान रहते हैं, जो हिमालय के भगवान हैं, जो विभिन्न गण और असुरों के भगवान है, मैं आपकी शरण में आता हूं।


हिमालय की बेटी के साथ अपने शरीर का आधा हिस्सा साझा करने वाले शिव, शंकर, शंभू, जो एक पर्वत ( कैलाश ) में स्थित है, जो हमेशा उदास लोगों के लिए एक सहारा है, जो अतिमानव है, जो पूजनीय है ( या जो श्रद्धा के योग्य हैं ) जो ब्रह्मा और अन्य सभी के प्रभु है, मैं आपकी शरण में आता हूं।


हे शिव, शंकरा, शंभू, जो हाथों में एक कपाल और त्रिशूल धारण करते हैं, जो अपने शरणागत के लिए विनम्र हैं, जो वाहन के रूप में एक बैल का उपयोग करते है, जो सर्वोच्च हैं। 

विभिन्न देवी - देवता, और सभी के भगवान हैं, मैं ऐसे शिव की शरण में आता हूं।


हे शिव, शंकर, शंभू, जिनके पास एक शीतलता प्रदान करने वाला चंद्रमा है, जो सभी गणों की खुशी का विषय है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हमेशा शुद्ध हैं, जो कुबेर के मित्र हैं, जिनकी पत्नी अपर्णा अर्थात पार्वती है, जिनकी विशेषताएं शाश्वत हैं, और जो सभी के भगवान हैं, मैं आपकी शरण में आता हूं।


शिव, शंकर, शंभू, जिन्हें दुख हर्ता के नाम से जाना जाता है, जिनके पास सांपों की एक माला है, जो श्मशान के चारों ओर घूमते हैं, जो ब्रह्मांड है, जो वेद का सारांश है, जो सदैव श्मशान में रहते हैं, जो मन में पैदा हुई इच्छाओं को जला रहे हैं, और जो सभी के भगवान है मैं उन महादेव की शरण में आता हूं।


जो लोग हर सुबह त्रिशूल धारण किए शिव की भक्ति के साथ इस प्रार्थना का जप करते हैं, एक कर्तव्यपरायण पुत्र, धन, मित्र, जीवनसाथी और एक फलदायी जीवन पूरा करने के बाद मोक्ष को प्राप्त करते हैं। 

शिव शंभो गौरी शंकर आप सभी को उनके प्रेम का आशीर्वाद दें और उनकी देखरेख में आपकी रक्षा करें।


  || इति श्रीशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ||

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 

तमिल / द्रावीण ब्राह्मण

पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा। 

पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की कथा :  प्रभु - मिलन की आस जगत में : ठाकुर जी का चमत्कार : बेंट बिल्वामृतेश्वर महादेव :

पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की कथा। 

हमारे सनातन धर्म ग्रंथो वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि में कई ऐसे पात्रों का वर्णन है जिनका जन्म बिना माँ के गर्भ और पिता के वीर्य के हुआ था। 

ऐसे ही पौराणिक पात्रो क़े ज़न्म की कहानी बतायेँगे। 

इन मे से कई पात्रो के ज़न्म मे माँ के गर्भ का कोई योगदान नहीं था तो कुछ पात्रों के ज़न्म में पिता क़े वीर्य का जबकि कुछ मैं दोनो क़ा हीं।




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माँ के गर्भ में बच्चा -

1 - धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर के जन्म कि कथा : 

हस्तिनापुर नरेश शान्तनु और रानी सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। 

शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इस लिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया। 

भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया लेकिन कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारा गया। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। 

अब भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई।

उन्हीं दिनों काशीराज की तीन कन्याओं, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। 

उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण कर के हस्तिनापुर ले आये। 

बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह अपना तन - मन राज शाल्व को अर्पित कर चुकी है। 

उसकी बात सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।

राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, हे आर्य ! 

आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें। 

किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। 

अम्बा रुष्ट हो कर परशुराम के पास गई और उनसे अपनी व्यथा सुना कर सहायता माँगी। 

परशुराम ने अम्बा से कहा, हे देवि! 

आप चिन्ता न करें, मैं आपका विवाह भीष्म के साथ करवाउँगा। 

परशुराम ने भीष्म को बुलावा भेजा किन्तु भीष्म उनके पास नहीं गये। 

इस पर क्रोधित होकर परशुराम भीष्म के पास पहुँचे और दोनों वीरों में भयानक युद्ध छिड़ गया। 

दोनों ही अभूतपूर्व योद्धा थे इस लिये हार - जीत का फैसला नहीं हो सका। 

आखिर देवताओं ने हस्तक्षेप कर के इस युद्ध को बन्द करवा दिया। अम्बा निराश हो कर वन में तपस्या करने चली गई।

विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। 

अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, “ पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो। 

माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता। "

यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। 

तब  उन्हें अपने ज्येष्ठ पुत्र वेदव्यास का स्मरण किया।

स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। 

सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निः सन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। 

अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम नियोग विधि से उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो। 

वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले, माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिये कि वो मेरे सामने से निवस्त्र हॉकर गुजरें जिससे की उनको गर्भ धारण होगा।  

सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी छोटी रानी अम्बालिका गई पर अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई।

वेदव्यास लौट कर माता से बोले, माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से  पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा ।  

यह जानकार इससे माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। 

इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। 

दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी। 

इस बार वेद व्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, माते! इस दासी के गर्भ से वेद - वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा। 

इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।

समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।


प्रभु - मिलन की आस जगत में :

व्यक्ति अपनी रुचि, स्वभाव एवं सुविधा के अनुसार विभिन्न साधन अपनाकर मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है, किंतु ये सब ज्ञान - प्राप्ति के साधन मात्र हैं, जिनकी अंतिम उपलब्धि ज्ञान ही है। 

सृष्टि, जगत, जीव, आदि का स्पष्ट अनुभव आत्मानुभूति द्वारा ही होता है, जिससे वह असत्य, भ्रम, माया, अज्ञान, प्रकृति आदि से मुक्त होकर यह अनुभव करता है कि मैं शुद्ध चेतन तत्व ब्रम्ह ही हूं।

अज्ञानवश ही अथवा माया के भ्रम में पड़कर मैं अपने को क्षुद्र जीव समझ बैठा था। यह अज्ञान ग्रंथि जब खुल जाती है तो जीव शिव हो जाता है, ब्रम्ह हो जाता है। 

वेदांत के अनुसार जीव ईश्वर बनता नहीं, बल्कि वह ईश्वर का ही अंश होने से स्वयं ईश्वर ही है। 

अज्ञान अथवा अविद्या के कारण वह अपने को उससे भिन्न क्षुद्र जीव समझ बैठा था। 

इस भ्रांति का निवारण आत्मानुभूति के बिना नहीं हो पाता तथा आत्मानुभूति के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

संसार में अनेक प्रकार के दुख हैं, अशांति है, राग, द्वेष, घृणा,आसक्ति, मोह, वासना, प्रेम, संघर्ष आदि सब कुछ है। 

इससे जीवन में न तो शांति का अनुभव होता है और न ही आनंद का। 

पैदा होकर जीवन भर इन संघर्षो में उलझ कर अपने प्राण गंवा देता है, तथा फिर दोबारा भोगने के लिए पैदा हो जाता है। 

उसके हाथ में कुछ भी नहीं आता। 

यही उसकी नियति बन गई है तथा यही उसका भाग्य। 

इसके आगे जीवन में कुछ पाने योग्य भी है, जो उसे शाश्वत सुख व शांति दे सकता है। 

हमारे चारों ओर एक अज्ञान का पर्दा पड़ा हुआ है, एक झूठी माया का आवरण है, जिससे हम इस सत्य एवं शाश्वत ज्ञान से वंचित हैं। 

ऐसा अनेक जन्मों से होता आ रहा है कि इतने जन्मों के अनुभव के बाद भी कुछ नहीं सीख पाया है कि इसका अंत भी किया जा सकता है। 

जिस क्षण हमें संसार की असारता, अस्थिरता तथा इसके मिथ्यात्व का बोध हो जाता है उसी क्षण ज्ञान - प्राप्ति के द्वारा खुल जाते हैं।


ठाकुर जी का चमत्कार :

ठाकुर जी के हस्ताक्षर जो भक्त का रूप धारण कर के न्यायालय में किये...! 

आज भी उसकी प्रतिलिपि भगत अपने साथ एवंले जाते है आइये जाने पूरी कहानी.....!

मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला हैं। 

वहाँ के न्यायालय में सन 1932 ई. में जयनारायण शर्मा नाम के वकील थे। 

उन्हें लोग आदर से बापजी कहते थे। 

वकील साहब बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे और रोज प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद स्थानीय बैजनाथ मन्दिर में जाकर बड़ी देर तक पूजा व ध्यान करते थे। 

इस के बाद वे वहीं से सीधे कचहरी जाते थे ...!

एक दिन रोजाना की तरह पूजा करने के बाद न्यायलय जाना था बापजी का मन ध्यान में इतना लीन हो गया कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। 

जब उनका ध्यान टूटा तब वे यह देखकर सन्न रह गये कि दिन के 11 बज गये थे। 

वे परेशान हो गये क्योंकि उस दिन उनका एक जरूरी केस बहस में लगा था और सम्बन्धित जज बहुत ही कठोर स्वभाव का था। 

इस बात की पूरी सम्भावना थी कि उनके मुवक्किल का नुकसान हो गया हो। 

ये बातें सोचते हुए बापजी न्यायालय 12 बज....!

पहुँचे और जज साहब से मिलकर निवेदन किया कि यदि उस केस में निर्णय न हुआ हो तो बहस के लिए अगली तारीख दे दें ...!

जज साहब ने आश्चर्य से कहा ....!

” यह क्या कह रहे हैं। सुबह आपने इतनी अच्छी बहस की। 

मैंने आपके पक्ष में निर्णय भी दे दिया और अब आप बहस के लिए समय ले रहे हैं ...! “

जब बापजी ने कहा कि मैं तो था ही नहीं .... !

तब जज साहब ने फाइल मँगवाकर उन्हें दिखायी। 

वे देखकर सन्न रह गये कि उनके हस्ताक्षर भी उस फाइल पर बने थे। 

न्यायालय के कर्मचारियों, साथी वकीलों और स्वयं मुवक्किल ने भी बताया कि ....!

आप सुबह सुबह ही न्यायालय आ गये थे और अभी थोड़ी देर पहले ही आप यहाँ से निकले हैं ...!

बापजी की समझ में आ गया कि उनके रूप में कौन आया था? 

समझ गए टेढ़ी टांग वाला काम कर गया.

उन्होंने उसी दिन संन्यास ले लिया और फिर कभी न्यायालय या अपने घर नहीं आये ...!

इस घटना की चर्चा अभी भी आगर मालवा के निवासियों और विशेष रूप से वकीलों तथा न्यायालय से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों में होती है। 

न्यायालय परिसर में बापजी की मूर्ति स्थापित की गयी है। 

न्यायालय के उस कक्ष में बापजी का चित्र अभी भी लगा हुआ है जिसमें कभी भगवान बापजी का वेश धरकर आये थे। 

यही नहीं लोग उस फाइल की प्रतिलिपि कराकर ले जाते हैं जिसमें बापजी के रूप मे आये भगवान ने हस्ताक्षर किये थे और उसकी पूजा करते हैं ....!

बिहारी जी के प्रेमियो यह घटना बताती है विश्वास पूरा हो तो ठाकुर जी काम भी पूरा करते है अधूरा नहीं रहने देते भगत की जिम्मेदारी को..!!

विश्व चकित है। 

होना भी चाहिये। 

ना कोई मास्क हैं!

 ना कोई दूरियां हैं!

ना कोई हाइजीन है!

ना कोई सैनिटाइजर्स !

करोड़ों मानव एक ही नदी में, एक सीमित जगह पर स्नान कर रहे हैं और कोई महामारी नहीं फैल रही। 

सारे कीटाणु और जीवाणु दुम दबाये पड़े हैं। 

कैसी श्रद्धा है। 

कैसी गंगा मां है। 

कैसी आस्था है 

और कैसा कुंभ है। 

कैसा धर्म है। 

कैसा विज्ञान है। 

कैसा सितारों का योग है। 

जन सैलाब एक ही उद्देश्य को लेकर उमड़ रहा है। 

पापों का क्षय, नाश और मोक्ष की प्राप्ति। 

ना कोई जात - पात का भेद, ना कोई वर्ण का भेद, ना कोई ब्राह्मण, ना क्षत्रिय, ना वैश्य और ना शूद्र, ना कोई ऊंचा ना कोई नीचा। 

सब समान। 

हे आधुनिक विज्ञान...!

एक बार फिर से बैठ कर गहन चिंतन करो। 

क्यों नहीं फैल रही महामारी ? 

क्या होता है मोक्ष, कोशिश करो जानने की ? 

क्या होते हैं पाप और पुण्य ? 

क्या होता है पुनर्जन्म ? 

जानो आधुनिक विज्ञान। 

तुम्हें अभी बहुत कुछ जानना है..। 

झुको आस्था के आगे। 

धर्म के आगे। 

हो सकता है आस्था का विज्ञान, धर्म का विज्ञान तुमसे बड़ा हो ? 

थोड़ा झुकना सीखो आधुनिक विज्ञान। 

कहते हैं झुकने से ज्ञान बढ़ता है।

बेंट बिल्वामृतेश्वर महादेव :

ऋषि दधीचि ने इस संसार को बचाने के लिए अपनी अस्थियों को दान किया था। 

ऐसे महान ऋषि जिस मंदिर में महादेव की पूजा करते थे वे बिल्वामृतेश्वर कहलाए।

नर्मदा की दो धाराओं के बीच तीन किमी लंबे टापू पर बेंट के नाम से पहचाना जाता है। 

इस टापू पर 30 हजार वर्गफीट में श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। 

मंदिर के पास ही महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी की समाधि है। 

टापू के दक्षिण भाग में ही मंदिर में भगवान दत्तात्रेय एवं नर्मदा देवी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। 

दधीचि ऋषि ने बेंट पर ही विश्व कल्याण के लिए बज्र बनाने अपनी अस्थियों का दान किया था।

यहां पर पांडव भी अज्ञातवास में रुके थे। 

तभी से इस जगह का नाम धर्मराज युधिष्ठिर के नाम पर धर्मपुरी रखा गया जो धार जिला मध्यप्रदेश में स्थित है। 

यहां पर स्थित बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर रामायण कालीन है। 

यहां भगवान भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। 

यहां पर प्रत्येक सावन सोमवार को बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन पूजन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। 

इस मंदिर की मान्यता महाभारत काल से है कि यहां सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। 

महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। 

जिसमें हजारों श्रद्धालु बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

मंदिर प्रभु श्रीराम के पूर्वज राजा रंतिदेव ने मानव और धर्म के उत्थान के लिए यज्ञ का आयोजन किया था....! 

उस यज्ञ में विघ्न डालने के लिए शुभाउ और महाभाउ नाम के असुरों ने ब्राह्मणों पर हमला किया था...! 

तब यज्ञ कुंड में ब्राह्मणों ने बिल्वफल और आमफल की आहुति दी, तब यज्ञ कुंड में से स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव प्रकट हुए और उन्होंने शुभाउ और महाभाउ असुरों का नाश किया....! 

तब से ही स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव यहां पर विराजे हैं। 

यज्ञ कुंड में आम और बिल्व फल की आहुति देने से महादेव प्रकट हुए थे....! 

जिससे महादेव का नाम श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव पड़ा।

ऐसा कहा जाता है कि स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के नाम स्मरण मात्र से ही बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन बराबर ही उतना ही पुण्य मिलता है।

  || बिल्वामृतेश्वर महादेव की जय हो ||

जय जय  महाकुंभ 

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 

तमिल / द्रावीण ब्राह्मण

जय जय सनातन।

🙏🙏🙏🙏🙏


प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। जीवन की सत्य घटना।।

 प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है। 

प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है।


एक ब्राह्मण रोज अपनी प्रार्थना में परमात्मा को धन्यवाद देता था : 

कि अहा, 

तू भी खूब है...!

मुझ नाकुछ को इतना देता है कि मैं कैसे तेरा धन्यवाद करूं? 

किस जबां से तेरा धन्यवाद करूं?

ब्राह्मण...! 

उसके पास कुछ था भी नहीं। 

और रोज धन्यवाद दे। 

उसके गांव में नया और पुराना परिवारिक कुटुब मोशल प्रॉब्लम से हद से ज्यादा गहरा संकटो से भी थक गए थे उसकी बातें सुन — सुनकर। 

फिर एक दिन तो ऐसा हुआ कि उसने उसके घर परिवार वालो को बोल दिया कि मुझे भगवान इधर बुला रहा है में वहां सेटिंग हो जावूगा बाद आपको भी उधर बुला लिया जाएगा ।





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एक समय वो उसका वतन से हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकले थे....! 

वो भी टिकट जितना ही पैसा को लेकर रास्ता में रेलवे के कोच में टिकिट तो कम्प्लीट ही था लेकिन ओरिजनल आई डी प्रूफ साथ मे नही था ।

चलती रेलवे में एक कोच से दुशरा कोच पर रेलवे के टीटी के पीछे पीछे धूमते रहते थे रेलवे के टीटी इसको दंड वसूल कर में लगा रहता था....! 

ये बोल रहा था कि मेरा पास कुछ पैसा भी नही है क्या दु आपको मेरा टिकिट तो कंप्लीट है । 

रेलवे के टीटी और ब्राह्मण दोनों एक दुशरो कि भाषा मे परिचित भी नही था टीटी बोल रहा था तो वो समझ नही रहे थे और वो बोल रहे थे तब टीटी समझ नही रहे थे ।  

जैसा तीर्थयात्रा अंतिम स्टेशन नजदीक आ रहा था ब्राह्मण भगवान को प्रार्थना पर प्रार्थना करता रहता और टीटी के पीछे पीछे धूमता रहता था ।

इसी समय वहां एक कोच में टीटी को एक यात्री पूछताछ करते है....! 

कि ये ब्राह्मण आपके पीछे पीछे क्यों घूम रहे है क्या आपका प्रॉब्लम है ।

तब टीटी उस यात्री को सब बात बोल देता है.....! 

तब यात्री ब्राह्मण को उसके बगल में बैठाकर सब बात पुछ लेता है कि तुम किस लिए यात्रा पर आए हो क्या घर छोड़कर आये हो तब ब्राह्मण बोलता है....! 

कि में काम की तलाश में भगवान की भक्ति के लिए ही आया हु घूमने के लिए नही ।

यात्री टीटी के पास से ब्राह्मण का पीछा छुड़वा लेता है....! 

बाद वही यात्री उस ब्राह्मण को खुद के होटल में थोड़ाक दिन रुकता भी है ।

बाद वही यात्री ब्राह्मण को उसका होटल से ब्राह्मण को निकाल देता है और ब्राह्मण गांव के अंदर रोज के किराया पर रूम पकड़ लेता है....! 

लेकिन भगवान का स्थान नही छोड़ता ।

थोड़ा ज्यादा कभी काम भी ब्राह्मण को मिल भी जाता है और यहां के राजकीय आदमी के पास ब्राह्मण के वतन का राजकीय आदमी धूमने के लिए आता है और लिकल वाले राजकीय आदमी उस ब्राह्मण का राजकिय आदमी को बोल रहा है....! 

कि ये अलका वतन का ब्राह्मण है....! 

आप हमारे साथ आये मंदिर के ऑफिस में आप इसका नाम पर ज़िमेदारी पत्र पर आपकी सही कर दे तो इसको इधर ही काम अच्छा मिल जाएगा....! 

आपका पास हौदों है पावर है तो आपकी सही इस ब्राह्मण की जीवन सुधार देगी....! 

लेकिन वो राजकीय आदमी उसका अहंकार में इतना मस्त था....! 

कि उसने सही करने को मना बोल दिया ।

उस ब्राह्मण ने ऐसा प्रार्थना कर के भगवान को धन्यवाद कर दिया....! 

कि तीन से चार ही मास में उसका बड़ा लड़का 45 साल का हदयरोग के हुमला आ गया....! 

फिर जैसा थोड़ाक दिन हुवा तो वही राजकीय आदमी के ऊपर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने का समय आ गया वो भी बहुत खर्च करने के बाद कोर्ट कचहरी ने उसके हाथ मे सस्पेंड का ओडर तो थमा ही दिया......!  

लेकिन उस ब्राह्मण तो भगवान को धन्यवाद पर धन्यवाद करता रहता है ।

पर। 

कभी कभी आज के दिन पर भी उस ब्राह्मण को न खाना पूरा मिला कभी कभी  तीन दिन सात दिन एकविस दिन तक पानी पर दिन गुजरता रहता है ।

गांव के ज्यादातर लोग उस ब्राह्मण के खिलाफ थे, जैसे लोग परदेशी लोगो के खिलाफ सदा से रहे हैं। 

लोग कहते थे, वह बाहर का हिंदी भाषी परदेशी ब्राह्मण है । 

इस लिए इसको मंदिर के अंदर का पुजारी ब्राह्मणों ने ज्यादातर काम करने के लिए रखा भी नही था और लोकल वाले दुशरा लोगो को उसकेर कर इस ब्राह्मण को मारपीट खिलाकर मंदिर बाहर करवा दिया था ।

लेकिन इसने गांव के दुशरा ब्राह्मणों के साथ काम करना भी शुरू भी कर दिया थोड़ा ज्यादा काम भी मिल जाते थे....! 

इस मे मंदिर का ब्राह्मणों ने फिर गांव के लोकल लोगो को उसकेर कर गांव के ब्राह्मणों का साथ लड़ाई झगड़े करके उस ब्राह्मण को काम पर रखने को मना बोल दिया था ।

अब वह ब्राह्मण अपने ही घर मे अकेला अकेला पूराकर बैठा रहता है....!  

गांव के अमुक उसका दोस्तो  के बीच कहता है बैठकर : 

"अनलहक' —— 

कि मुझे भगवान इधर लाये है में आया इधर हूं। 

यह बात ठीक भी है कि ये ब्राह्मण रॉड पर खड़ा रहता तो एक दो यात्री भी मिल जाते है.....! 

उसको अगल बगल के स्थान भी घुमा देता है तो कुछ मिल जाते है....! 


इसको इसका खर्च जितना लेकिन अमुक लोग लोग ऐसा करने ही नहीं देते है। 


यह  किसी को कुछ नही कहेगा भगवान की मर्जी ऐसा हो तो ऐसा ही होता है।

उस ब्राह्मण के पास ठहरने की जग्या तो है.....! 

लेकिन आवक का कोई साधन भी नही है.....! 

किराया जितना पैसा कोई न कोई भेज देता भी देगा लेकिन कोई दुशरा आवक जितना पैसा नहीं देगा। 

दुशरा आवक ही नही होगा तो भोजन भीं कहा से मिलेगा। 


फिर उस ब्राह्मण ने कभी भी किसी के पास लंबा हाथ तो किया ही नही करता भी नही वो तो एक ही बात उसका दोस्तो को बोलता रहता है.....! 

कि भूखा रहना अच्छा है लेकिन किसी के पास हाथ लंबा नही करना भगवान मुझे इधर लाये है क्यों में सामने से तो आया नही हु ।

मगर उस ब्राह्मण ने फिर वही कहा कि हे प्रभु! 

उसकी आंखें चमक रही हैं आनंद से। 

उसके चेहरे पर फिर वही आनंद का भाव, फिर वही प्रार्थना : 

"हे प्रभु! 




तेरा बड़ा धन्यवाद है। 

तू सदा मुझे जिस चीज की जरूरत होती है, पहुंचा देता है।'
 
एक दोस्त ने कहा कि अब बस, ठहरो! 

अब हद हो गई। 

जिस चीज की जरूरत होती है, पहुंचा देता है। 

और कभी कभी तीन दिन सात दिन पन्द्र दिन बिस दिन से हम भी तुम्हारे साथ हैं...! 

जिस चीज की जरूरत है, वही नहीं मिली है। 

रोटी नहीं मिली, पानी पीकर दिन रात गुजारने को तो मिला। 

अब और क्या है ? 

मिला क्या है इतना सालों में ?

उस ब्राह्मण ने कहा, तुम बीच में मत बोलो। 

वह मेरी जरूरत का खयाल रखता है। 

इतना दिन तक भूखे रखना, इतना दिन तक भूखे रहना मेरे लिए लाभ का हुआ है। 

इतना दिन तक भूख और अपमान खाने के बाद भी मैं प्रार्थना कर सकूं, यही मेरी जरूरत थी। 

उसने अवसर दिया। 

सुख मिले तब धन्यवाद देना तो बहुत आसान है पागलो! 




जब दुःख मिले तब धन्यवाद देने की क्षमता प्रार्थना की ही छाती में होती है।

उसने मुझे एक मौका दिया। उसने मुझे एक अवसर दिया। 

मगर मैं भी समझ गया कि अवसर क्यों दे रहा है। 

वह इसलिए दे रहा है कि अब देखूं। 

एक दिन उसने कुछ भी न दिया, भूखा रखा, फिर भी मैंने प्रार्थना की। 

दूसरे दिन भी उसने कहा, अच्छा ठीक है, एक दिन तूने कर ली, दूसरे दिन? 

दूसरा दिन भी बीत गया, अब यह तीसरा दिन भी आ गया। 

उसने फिर एक मौका दिया कि आज तीसरा दिन फिर आ गया। 

अब तू बिल्कुल भूखा है...!

जीर्ण — जर्जर है, गिरा पड़ता है, अब तू धन्यवाद देगा कि नहीं देगा? 

अब तो रुकेगा न? 

अब तो बंद कर देगा प्रार्थना। 

मगर मैंने कहा कि तू मुझे हरा न सकेगा। 

मैं धन्यवाद देता ही जाऊंगा। 

अंतिम घड़ी तक धन्यवाद देता चला जाऊंगा। 

जब तक श्वास है, धन्यवाद उठेगा। 

श्वास ही न रहे तो फिर बात और। 

मरते क्षण तक ओंठ पर धन्यवाद होगा। 

तू अगर मौत भी देगा तो वह मेरी जरूरत है तो ही देगा; 

नहीं तो क्यों देगा ?

इसका नाम श्रद्धा है। 

इसका नाम प्रार्थना है। 

प्रार्थना की नहीं जाती। 

प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है !!

       !! एक ब्राह्मण ऐसा भी.., !!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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