https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: जनवरी 2025

गुप्त नवरात्री :

ગુપ્ત નવરાત્રી:

गुप्त नवरात्री 

 माघ मास, શુક્લ પક્ષની પ્રથમ તિથિઓ ગુપ્ત નવરાત્રીઓ છે.

જેની શરૂઆત 30 જાન્યુઆરી 2025 ગુરુવારથી થશે !

એક વર્ષમાં કુલ ચાર નવરાત્રીઓ આવે છે, સામાન્ય રીતે બંને નવરાત્રીઓ વિશે તમને માલૂમ છે, બાકીના કેટલાક ગુપ્ત નવરાત્રીઓ છે






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શત્રુના મિત્ર બનાવવા માટે :- 

નવરાત્રિમાં શુભ સંકલ્પોને પોષિત કરવા, રક્ષિત કરવા, મનોવાંછિત સિદ્ધિઓ પ્રાપ્ત કરવા અને શત્રુઓને મિત્ર બનાવવાવાળા મંત્રની સિદ્ધિનો યોગ હતો.

नवरात्रि में स्नानादि निवृत्त हो तिलक लगाकर और दीपक जलाकर यदि कोई बीज मंत्र 'हूं' અથવા 'अं रां अं' મંત્ર की इक्कीस माला जप करे और 'श्री गुरुगीता' का पाठ करें तो शत्रु भी उसका मित्र बन जायेंगे l

મામો બહેનો માટે વિશેષ કષ્ટ નિવારણ માટેનો ઉપયોગ:

(1)

જીન મામો બહેનોને દુઃખ અને દુઃખ વધુ સતાવે છે, વે નવરાત્રીના પ્રથમ દિવસ ( देवी - स्थापना के दिन ) , જલ અને કુમ - કુમાર - अशोक वृक्ष की पूजा करते हैं, पूजा करते हैं समय निम्न मंत्र बोलें : 

 "अशोक शोक शमनो भव सर्वत्र नः कुले "
 મામો બહેનો માટે વિશેષ દુઃખ નિવારણ માટે

ઉપયોગ: (2) -

माघ मास शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन में केवल बिना नमक मिर्च का भोजन करें l

(જેમ દૂધ, રોટી या ખીર ખાય કરી શકો છો l)

ગુરુ મંત્ર या इष्ट देव का जप करते हैं उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्वयं को कुमकुम का तिलक करें l

 गाय को चन्दन का तिलक करके गुड़ और रोटी खिलाएं एल

 વિદ્યાર્થીઓ માટે📚

 પ્રથમ નવરાત્રિના દિવસના વિદ્યાર્થીને તેમના પુસ્તકો ઈશાન કોણે રાખશો અને પૂજન કરો અને નવરાત્રીના ત્રીજા દિવસના વિદ્યાર્થી સાર્વત્ર્ય મંત્રને જપ કરો.

 तें विद्या प्राप्ति में अपार सफ़लता मिलती है l 

बुद्धी व ज्ञान का विकास करना हो तो सूर्य देवता का भ्रूमध्य में ध्यान दें. 

જીન્કો ગુરુમંત્ર મળ્યો છે વે ગુરુમંત્ર કા, ગુરુદેવ, સૂર્યનારાયણનું ધ્યાન કરો.
 

*ગુરુ,આચાર્ય,પુરોહિત,પંડિત અને*
      *પુજારી કા ફેર જાનીએ।*

*अक्सर लोग पुजारी को पंडितजी या पुरोहित को आचार्य भी कहते हैं और खाने वाले भी उन्हें सही ज्ञान नहीं पाता है। 

આ વિશેષ પદોના નામ છે જીનકા કોઈ જાતિ વિશેષથી કોઈ સંબંધ નથી. આઓ અમે જાણીએ છીએ કે કોઈપણ શબ્દોનો સાચો અર્થ શું છે આગળથી અમે પુજારીને પંડિત ન કહીં.*

*1-ગુરુ-*

*ગુ કા અર્થ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश। અર્થાત્ જે વ્યક્તિ તમને अंधकार से प्रकाश की ओर लेते हैं वह गुरु होता है. गुरु का અર્થ अंधकार का नाश करने वाला। 

अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक धार्मिक प्रवचन देने वाले व्यक्ति में और गुरु में बहुत अंतर था। 

ગુરુ આત્મ વિકાસ અને પરમાત્માની વાત કરે છે. દરેક ગુરુ સંત હતા; 

प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है. केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता थी। 

ગુરુ કા અર્થ બ્રહ્મ જ્ઞાન કા નિર્દેશક*

*2-આચાર્ય-*

आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। 

आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। 

वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता था। 

आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है।*

*3- पुरोहित-*

पुरोहित दो शब्दों से बना है : -

पर' तथा 'हित', अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। 

प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी। 

हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। 

यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है। 

प्रचीन काल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे। 

अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे...! 

जो धर्म - कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे।

*4-पुजारी-*

पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वत: ही प्रकाट होता है। 

अर्थात जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी। 

किसी देवी - देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है।

*5- पंडित-*

पंडः का अर्थ होता है विद्वता। 

किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं। 

पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल। 

इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। 

किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। 

प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। 

इस पंडित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या कहते हैं। 

आज कल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है। 

कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पंडितों के नाम से ही जाना जाता है। 

पंडित की पत्नी को देशी भाषा में पंडिताइन कहने का चलन है।

*6- ब्राह्मण-*

ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है। 

जो ब्रह्म ( ईश्वर ) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। 

जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। 

जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है। 

पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है....! 

वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है। 

इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। 

जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं। 

स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है- 

मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 

8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। 

इस के अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। 

ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं।*

 || जय माताजी ||

*|| आप के नाम में छुपा है राम का नाम ||*
        
- अद्भुत गणित : 

अदभुत गणितज्ञ श्रीतुलसीदासजी से एक भक्त ने पूछा कि महाराज आप श्री राम के इतने गुणगान करते हैं, क्या कभी खुद श्रीराम ने आपको दर्शन दिए हैं ?*

तुलसीदास बोले :- 

हां

भक्त :- महाराज क्या आप मुझे....!

           भी दर्शन करा देंगे ?

तुलसीदास :- हां अवश्य* *तुलसीदास जी ने ऐसा मार्ग दिखाया कि एक गणित का विद्वान भी चकित हो जाए !

તુલસીદાસ જીએ કહ્યું, અરે ભાઈ ખૂબ જ સરળ છે.તમારા શ્રીરામના દર્શન સ્વયં તમારી અંદર પણ પ્રાપ્ત કરી શકે છે.હર નામના અંતમાં રામનું પણ નામ છે. ભક્ત :- 

કોણસા सूत्र महाराज ?*

તુલસીદાસ :- તે સ્ત્રોત છે -
          
નામ चतुर्गुण पंचत्व मिलन तासां द्विगुण प्रमाण ||
તુલસી અષ્ટ સોભાગ્યે અંત મે બાકી રામ જ રામ || 

इस सूत्र के अनुसार अब हम किसी का भी नाम ले और अक्षरों की गिनती करें।उस गिनती को ( चतुर्गुण ) 4 થી ગુણકાર કરો. 

उसमें ( पंचतत्व मिलन ) 5 मिला फिर उसे ( द्विगुण प्रमाण ) दुगना। 

તે 2 જ રામ છે. આ 2 અંક પણ રામ અક્ષર છે,*

વિશ્વાસ નથી હોતું ?

ચલાવો, અમે એક ઉદાહરણ લખીએ છીએ, તમે એક નામ લખો છો, અક્ષર કેટલા પણ છો !

ઉદાહરણ તરીકે -

નિરંજન 4 અક્ષર :

4 થી ગુણા કરો 4 x 4 =16

5 ઉમેરો 16 + 5 = 21

દુગને કરો 21 × 2 = 42

8 ભાગ વિભાજન પર 42 ÷ 8 = 5 પૂર્ણ અંકો 2 બાકીના બાકીના બંને બચશે....! 

આ બચે 2 એટલે કે - રામ 

વિશેષ તે છે કે સૂત્રોની સંખ્યા કો તુલસીદાસ જી ને વિશેષ મહત્વ આપે છે....!

ચતુર્ગુણ એટલે 4 પુરુષાર્થ : -

ધર્મ, અર્થ, કામ, મોક્ષ!

પંચતત્વ એટલે કે 5 पंचमहा भौतिक : - 

पृथ्वी,जल,अग्नि, वायु,आकाश।

द्विगुण प्रमाण अर्थात 2 માયા અને બ્રહ્મ. अष्ट सो भागे अर्थात 8 आठ प्रकार की लक्ष्मी (आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग आणि योग लक्ष्मी )अथवा तो अष्ठा प्रकृति।

અબ જો અમે બધા તમારા નામની તપાસ કરો તો આ સૂત્રોએ તે આશ્ચર્યચકિત રહે છે કે આગળના દિવસો 2 પણ પ્રાપ્ત થશે.

   || જય શ્રી સીતા રામ જી ||

कामक्रोधवियुक्तानां
यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं
वर्तते विदितात्मनाम् ॥

 ( श्रीमद्भगवद्गीता - ५.२६ ) 

अर्थात्  : काम - क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किए हुए ज्ञानी पुरुषों के लिए सब ओर से शांत परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण है।


प्राय यह देखा जाता हैं कि सोमवार को शिव मंदिरों में सबसे अधिक भीड़ होती हैं....! 

किन्तु श्री शिवमहापुराण के विद्येश्वर संहिता के अध्याय 14 के अनुसार भगवान् शिव ने वारों की रचना करते समय सर्वप्रfथम अपने वार का निर्धारण किया जिसे रविवार कहते हैं। 

सोमवार का दिन भगवान् शिव ने माँ भगवती के लिए....! 

मंगलवार का दिन कुमार कार्तिकेय, बुधवार का दिन भगवान विष्णु, बृहस्पतिवार का भगवान ब्रह्मा ,शुक्रवार का इन्द्र और शनिवार का दिन यम के लिए नियत किया।‌

जबकि लोक मतानुसार सोमवार भगवान् सदा शिव को, मँगल वार महाबली हनुमान, बुधवार विध्न नाशक गणेश, गुरुवार जगतगुरु विष्णु, शुक्रवार माँ संतोषी, शनिवार न्याय के देवता शनि महाराज व रविवार का दिन भगवान् सूर्य को समर्पित माने जाकर पूजे जाते हैं। 

( श्री शिवमहापुराण, विद्येश्वर संहिता, अध्याय १४ )


न कर्मणा लभ्यते चिन्तया वा
नाप्यस्ति दाता पुरुषस्य कश्चित्।
पर्याययोगाद्विहितं विधात्रा
कालेन सर्वं लभते मनुष्यः।।

( महाभारत, शान्तिपर्व - २५ / ५ )

अर्थात् : हे राजन् ! 

न तो कोई कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है....! 

न चिन्ता से ही। 

कोई ऐसा दाता भी नहीं है जो मनुष्य को उसकी विनष्ट वस्तु दे दे। 

विधाता के विधानानुसार मनुष्य बारी - बारी से समय पर सबकुछ प्राप्त कर लेता है।

जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं इस प्रकृति के पास जिसका समाधान ही न हो। 

समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो लेकिन उसका कोई न कोई समाधान अवश्य होता है। 

इस प्रकृति का एक नियम यह भी है....! 

कि यहाँ सदैव एक दूसरे द्वारा अपने से दुर्बल को ही सताया जाता है।  

कि दुःख बंदरों की तरह होते हैं जो पीठ दिखाने पर पीछा किया करते हैं और सामना करने पर भाग जाते हैं। 

समस्या का डटकर मुकाबला करना ही समस्या को कम करने का सर्वोत्तम उपाय है....!

सुखी जीवन का एक ही सिद्धांत है कि जीवन में कभी सुख आए तो हंस लेना चाहिए...!

और दुख आए तो हंस कर उड़ा देना चाहिए....!

सुख और दुख पारिवारिक सदस्य नहीं हैं मेहमान हैं...!

मेहमानों का क्या....! 

उनका आना जाना तो लगा ही रहता है।

॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥

पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )

मौनी अमावस्या / लड़की ने अपने पापा से पूछा :

मौनी अमावस्या  / लड़की ने अपने पापा से पूछा 

*|| मौनी अमावस्या ||* 

*मौनी अमावस्या का व्रत हर वर्ष माघ माह की अमावस्या तिथि पर रखा जाता है। 

इसे माघी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। 

इस वर्ष यह व्रत 29 जनवरी, बुधवार को यह व्रत रखा जाएगा....! 

और इसी दिन प्रयागराज महाकुंभ में अमृत स्नान भी रहेगा।






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🌘मौनी अमावस्या व धार्मिक मान्यता - :

धार्मिक ग्रंथों में अमावस्या तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। 

यह दिन गंगा स्नान, दान और पितरों की पूजा के लिए समर्पित होता है। 

प्रत्येक अमावस्या का अपना विशेष महत्व होता है....! 

लेकिन मौनी अमावस्या को इनमें सबसे खास माना गया है। 

इस दिन मौन रहकर व्रत करने की परंपरा है। 

इसे जप, तप और साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय माना गया है।

*🌘मौनी अमावस्या पर मौन रखने का कारण-:* 

मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का विधान है। 

साधक इस दिन मौन रहकर व्रत करते हैं....! 

जो मुख्यतः आत्मसंयम और मानसिक शांति के लिए किया जाता है। 

यह व्रत साधु - संतों के द्वारा भी किया जाता है....! 

क्योंकि मौन रहकर मन को नियंत्रित करना और ध्यान में एकाग्रता लाना सरल हो जाता है। 

शास्त्रों के अनुसार, मौन व्रत से व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक उन्नति होती है। 

इसके माध्यम से वाणी की शुद्धता और मोक्ष की प्राप्ति संभव है। 

यह व्रत आत्मिक शांति और साधना में गहराई लाने का एक सशक्त माध्यम है//

*🌘मौनी अमावस्या व्रत के नियम-:* 

इस दिन प्रातःकाल गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है। 

यदि गंगा स्नान संभव न हो तो घर में स्नान के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करना चाहिए।

स्नान के उपरांत भगवान सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए...! 

उसके उपरांत पितरों का तर्पण करना चाहिए और भगवान के समक्ष पूजा उपासना करने के उपरांत मौन व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

व्रत के दौरान किसी प्रकार का बोलना वर्जित है। 

इस दिन ज्यादा समय मौन में बिताना चाहिए। 

ध्यान - 

जप इत्यादि करना काफी लाभदायक होता है।

इस दिन फालतू- अनर्गल वार्तालाप तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

तिथि समाप्त होने के बाद मौन व्रत पूर्ण करें एवं व्रत खोलने से पहले भगवन नाम का जाप करते हुए व्रत खोलें।*

मौनी अमावस्या का व्रत आत्मसंयम, शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। 

यह व्रत मन और वाणी को शुद्ध करता है और आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है। 

शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से मान - सम्मान की वृद्धि होती है और साधक की वाणी में मधुरता आती है। 

साथ ही, यह व्रत व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी जीवन में संतुलन लाने में सहायक होता है।*

इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान- पुण्य करना बताया गया है। 

इस दिन किया हुआ दान-पुण्य कई गुना शुभ फल प्रदान करता है।

मौनी अमावस्या का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है....! 

बल्कि यह आत्म - नियंत्रण और ध्यान के माध्यम से मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करता है। 

मौनी अमावस्या पर विधिवत व्रत रखने से सकारात्मक ऊर्जा का विशेष प्रभाव आपके तन - मन व विचारों पर देखने को मिलेगा//*

*|| लड़की ने अपने पापा से पूछा -||*
        
पापा मैं अपने शरीर के कितने हिस्से को ढकूं और कितने हिस्से को खुला छोड़ दूं ?

पिता का बड़ा खूबसूरत जबाब मिला -

बेटा जितने हिस्से पर तुम नर्क की आग सहन कर सको उतना हिस्सा खुला छोड़ दो!

लड़की बोली - 

ऐसा क्यों पापा ?
     
पापा - 

क्योंकि पर्दा करना बहुत जरूरी है क्योंकि तुमने श्री कृष्ण की गोपियों के कपड़े चुराने बाली कहानी तो सुनी होगी जब गोपियां तालाब में निर्वस्त्र होकर नहाती थी...! 

तो भगवान श्री कृष्ण गोपियों के कपड़े उठा ले जाते थे और उनको परेशान करते थे ।

वो ऐसा इस लिए करते थे ।

क्योंकि वो नही चाहते थे कि कोई भी स्त्री बिना कपड़ों के नहाये।

क्योंकि गोपियों को इंसान के अलावा जीव जंतु पशु पक्षी मछली व अन्य जानवर भी देखते थे....! 

जिसका ज्ञान गोपियों को नही था,इस लिए वो बिना कपड़ों के नहाने के लिए मना करते थे ।

व स्त्री को पर्दे में रहने की शिक्षा देते थे, लेकिन कुछ लोगो ने इसका उल्टा अर्थ निकाल लिया।

लड़की बोली - 

पापा अगर में पर्दा करूँगी तो खूबसूरत कैसे दिखूंगी ?

पिता -

इस का जबाब में बेटा बाद में दूंगा....!

कुछ दिन बाद पिता काम से विदेश चला गया,और वहाँ से उसने लड़की के लिये गिफ्ट भेजा,लड़की ने गिफ्ट खोला उसमे एप्पल का मोबाइल था।

पिता का फोन आया -

बेटा गिफ्ट कैसा लगा ?

लड़की - बहुत अच्छा..!

पिता - बेटा अब क्या करोगे...! 

लड़की - 

सबसे पहले मैं इस फोन का स्क्रीनगार्ड और कवर खरीदूंगी...!

पिता -

इससे क्या होगा ?

लड़की - 

इससे फोन सेफ रहेगा ।

पिता - 

क्या ये सब लगाना जरूरी है ?

लड़की - 

हां पापा बहुत जरूरी है ?

पिता - 

क्या ऐप्पल कंपनी के मालिक ने ये लगाने के लिए बोला है ? 

लड़की - 

हां पापा बॉक्स में इंस्ट्रक्सन लिखे है कि ये जरूर लगाएं।

पिता - 

इनको लगाने से फोन खराब तो नही दिखेगा ?

लड़की - 

नही पापा इसको लगाने से मेरा फोन और ज्यादा खूब सूरत दिखने लगेगा!

पिता - 

बेटा जब एक मोबाइल की सेफ्टी और खूबसूरत दिखने के लिए स्क्रीनगार्ड और कवर बहुत इम्पोर्टेन्ट है।

तो बेटा तुम तो उस ईश्वर की नायाब रचना हो।

तुम्हारी सेफ्टी और खूबसूरती के लिये ही उसने पर्दा करने को कहा है....! 

जब स्क्रीनगार्ड और कवर से मोबाइल खूब सूरत हो जाता है....! 

उसी प्रकार पर्दा करने से तुम भी और ज्यादा खूब सूरत दिखोगी और सब तुम्हारी इज्ज़त भी करेंगे। 

शरीर खुला रखने से नही ढकने से खूबसूरती आती है।

और ये केवल तुम पर नही हर इंसान पर लागू होता है वो चाहे स्त्री हो या पुरुष।

अगर हम लोग भी निर्वस्त्र होकर घूमने लगे तो जानवरों और हममें कोई फर्क नही,और न ही हमे खुद को बुद्धि जीवी कहने का अधिकार है।

बेटी की आखों के आंसू थे ।

आज पिता ने अपनी बेटी को जिंदगी की एक महत्व पूर्ण शिक्षा दी थी...।

|| हर हर महादेव हर  ||

दो पत्ते

गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ 🌳था। 

पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते 🍃नदी में आ गिरे।

एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा।

जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा....! 

“आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा…!

चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।”

वह जोर - जोर से चिल्लाने लगा– 

रुक जा गंगा….!

अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती….!

मैं तुझे यहीं रोक दूंगा!

पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी…!

उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।

पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी.....! 

वो लगातार संघर्ष कर रहा था…!

नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा, जहां लड़कर..! 

थककर..! 

हारकर पहुंचेगा!

पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. !

उसके संताप का काल बन जाएगा।

वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था....! 

वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था।

यह कहता हुआ कि “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…

चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा….!

तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।

नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…!

वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी। 

पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है....!

कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।

आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं....! 

नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है!

पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का….! 

उसके आनंद का काल बन जाएगा।

जो पत्ता नदी से लड़ रहा है…!

उसे रोक रहा है....! 

उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है....!

और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार का कोई उपाय संभव नहीं है।

हमारा जीवन भी उस नदी के सामान है....! 

जिसमें सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं ...!

और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकने का प्रयास भी करता है....! 

तो वह मूर्ख है....!

क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है। 

वह अज्ञान में है....! 

जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है ।

क्योंकि सुख की धारा जितने दिन बहनी है...! 

उतने दिन तक ही बहेगी। 

आप उसे बढ़ा नहीं सकते,नवनीत और अगर आपके जीवन में दुःख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा....! 

फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की फ़िज़ूल मेहनत करना।

बल्कि जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश हो कर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ....!

जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो।

सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ।
  
और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या? 

और दुःख क्या ? 

पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )

हथेली दर्शन का विधान : / वृन्दावन की माटी / 🕉 मेरे विट्ठल / समय बहुत बलवान होता है :

हथेली दर्शन का विधान : / वृन्दावन की माटी / 🕉 मेरे विट्ठल / समय बहुत बलवान होता है :

हथेली दर्शन का विधान : 

हमारे ऋषि - मुनियों ने सदियों से सुबह उठकर हथेली दर्शन का विधान बताया है...!






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मान्यता है कि हमारे हाथों में देवी - देवताओं का निवास होता है। 

सुबह उठकर हथेली दर्शन करने से इन देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

शास्त्रों के अनुसार, हाथों में कई तीर्थ भी होते हैं, जिनका दर्शन करने से पापों का नाश होता है। 

हथेली दर्शन करने से व्यक्ति की ग्रह दशा सुधरती है, मन शांत होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

इस प्रकार, यह एक सरल सा साधन है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को सकारात्मक बना सकते हैं। 

इसके लिए आपको सुबह उठकर बस अपने हाथों का दर्शन करना होता है और उसके साथ कुछ खास नियमों का पालन करते हुए मंत्र का जाप करना होता है। 

आइए इस लेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

क्या है मंत्र?

माना जाता है कि जब हम सुबह उठकर तुरंत अपनी दोनों हथेली को एक साथ मिलाकर पुस्तक की तरह खोल लें और उसका दर्शन करें, और साथ में इस मंत्र का जाप करते हैं तो पूरा दिन अच्छा जाता है।

कराग्रे बसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।

करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥

यह श्लोक हमारे हाथों के अग्रभाग में माता लक्ष्मी, मध्य भाग में माता सरस्वती और मूल भाग में भगवान विष्णु के निवास होने का वर्णन करता है। 

सुबह उठकर इनका दर्शन करने का अर्थ है कि हम इन देवताओं को प्रणाम कर रहे हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। यह श्लोक हमें धन, विद्या और भगवत कृपा प्राप्त करने की कामना करता है। 

अर्थात 

यह श्लोक हमारे जीवन में धन, विद्या और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करता है। 

सुबह उठकर इस श्लोक का जाप करने से व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है और उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

कर्म की भावना है निहित

हथेली दर्शन का मूल भाव सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है,बल्कि यह हमारे जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

जब हम अपनी हथेलियों को देखते हैं, तो हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम ऐसे कर्म करें जिनसे हमें धन,सुख और ज्ञान प्राप्त हो।

यह हमें अपने कर्मों पर विश्वास करने और सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। 

साथ ही,यह हमें दूसरों की सेवा करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।

हथेली दर्शन का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह हमें भगवत चिंतन की ओर ले जाता है।

जब हम अपने हाथों को देखते हैं,तो हम समझते हैं कि हमारे सभी कार्य हमारे हाथों से ही होते हैं।

यह हमें पराश्रित न रहकर अपनी मेहनत से जीविका कमाने के लिए प्रेरित करता है।

जब हम विश्वास के साथ अपने हाथों को देखते हैं....!

तो हमें यह विश्वास हो जाता है कि हमारे शुभ कर्मों में देवता भी हमारा साथ देंगे।

यह हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक बनाता है और हमें सफलता की ओर अग्रसर करता है..!!

नतेतरातिभीकरं    नवोदितार्कभास्वरं

नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।

सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्।।

जो प्रणत न होने वाले - उद्दण्ड मनुष्यों के लिए भयंकर हैं; 

नवोदित सूर्य के समान अरुण प्रभा से उद्भासित हैं..!

दैत्य और देवता - सभी जिनके चरणों में शीश झुकाते हैं...!

जो प्रणत भक्तों का भीषण आपत्तियों से उद्धार करने वाले हैं....! 

उन सुरेश्वर, निधियों के अधिपति, गजेन्द्र शासक, महेश्वर, परात्पर गणेश्वर का मैं निरन्तर आश्रय ग्रहण करता हूं।'


|| " वृन्दावन की माटी " ||


शोभा नाम की औरत जिसकी बहन वृंदावन में रहती थी। 

एक दिन वह उसको मिलने के लिए वृंदावन गई। 

शोभा जो कि काफी पैसे वाली औरत थी...! 

लेकिन उसकी बहन कीर्ति जो कि वृंदावन में रहती थी ज्यादा पैसे वाली नहीं थी....! 

लेकिन दिल की वह बहुत अच्छी थी या यह कह सकते हैं....! 

कि दिल कि वह बहुत अमीर थी। 

उसका पति मिट्टी के घड़े बनाने का काम करता था।

शोभा काफी सालों बाद अपनी बहन को मिलकर बहुत खुश हुई। 

लेकिन उसमें थोड़ा सा अपने पैसे को लेकर घमंड भी था....! 

वो कीर्ति के घर हर छोटी बात पर उसकी चीजों के में से नुक्स निकालती रहती थी....! 

लेकिन कीर्ति जो थी उसको कुछ ना कह कर बस यही कह देती जो बिहारी जी की इच्छा। 

लेकिन शोभा हर बात में उस को नीचा दिखाने की कोशिश करती। 

कीर्ति ने अपनी तरफ से अपनी बहन की आवभगत में कोई कमी ना छोड़ी उसने अपनी बहन का पूरा ख्याल रखा उसने उसको वृंदावन के सारे मंदिर के दर्शन करवाए और उनकी महिमा के बारे में बताया शोभा यह दर्शन करके खुश तो हुई और उसने महिमा भी सुनी...! 

लेकिन उसका इन चीजों में इतना ध्यान नहीं था बस दर्शन करके वापस आ गई।

उसको वृंदावन में रहते हुए काफी दिन हों गए। 

एक दिन वह अपनी बहन से बोली कि कीर्ति अब बहुत दिन हो गए तेरे घर को रहते हुए अब मुझे अपने घर को जाना चाहिए तो कीर्ति थोड़ी सी उदास हो गई और बोली बहन कुछ दिन और रुक जाओ। 

लेकिन शोभा बोली नहीं काफी दिन हो गए मुझे आए हुए घर में मेरा पति और बच्चे अकेले हैं उनको सास के सहारे छोड़ कर आई हूँ अब मैं फिर कभी आऊंगी। 

जब शोभा वापिस जाने लगी की कीर्ति जो कि शोभा की बड़ी बहन थी तो उसने अपनी छोटी बहन को उपहार स्वरूप मिट्टी का घड़ा दिया। 

घड़े को देखकर शोभा हैरान सी हो गई और मन में सोचने लगी क्या कोई उपहार में भी घड़ा देता है..!

लेकिन कीर्ति के बार - बार आग्रह करने पर उसने अनमने से घड़ा ले लिया।

जब शोभा जाने लगी तो कीर्ति की आँखों में आँसू थे लेकिन शोभा उससे नजरें चुराती हुई जल्दी - जल्दी वहाँ से चली गई। 

सारे रास्ते शोभा यही सोचती रही कि मैं घर जाकर अपनी सास और पति को क्या बताऊँगी कि मेरी बड़ी बहन ने मुझे घड़ा उपहार के रूप में दिया है तो उसको इस बात से बहुत लज्जा आ रही थी ।

तो उसने सोचा कि मैं घर में जाकर झूठ बोल दूँगी कि घड़ा मै खरीद कर लाई हूँ मुझे तो मेरी बहन ने काफी कुछ दिया है। 

इसी तरह सोचती सोचती मैं घर पहुँची और उसने घर जाकर घड़ा अपनी रसोई के ऊपर रख दिया।

उसको मन में बहुत ही गुस्सा आ रहा था कि मेरी बहन क्या इस लायक भी नहीं थी छोटी बहन को कुछ पैसे उपहार में दे सके। 

एक घड़ा सा पकड़ा दिया है।

अब उसको अपने घर आए काफी दिन हो गए। 

गर्मियों के दिन थे तभी उसके गाँव में पानी की बहुत दिक्कत आने लगी कुएँ में नदियों में पानी सूख गया उसके गाँव के लोग दूर - दूर से पानी भर कर लाते थे पैसे होने के बावजूद भी शोभा को पानी के लिए बहुत दिक्कत हो रही थी।

एक दिन शोभा बहुत दूर जाकर उनसे पानी भर रही थी वहाँ पर और भी औरतें पानी भरने के लिए आई हुई थी तो जल्दी पानी भरने की होड़ में धक्का - मुक्की में शोभा का घड़ा टूट गया। 

शोभा दूसरी औरतों पर चिल्लाने लगी यह आपने क्या किया बड़ी मुश्किल से तो मैंने पानी भरा था आप लोगों ने धक्का - मुक्की करके मेरा घडा तोड़ दिया है। 

अब वह उदास मन से घर को आई अब उसके पास कोई और दूसरा बर्तन भी नहीं था पानी भरने के लिए....!

तभी अचानक उसको अपनी बहन के दिए हुए घडे की याद आई तो उसने रसोई के ऊपर से घड़ा उतारा और फिर चल पड़ी बड़ी दूर पानी भरने के लिए जब कुएँ पर पहुँची। 

अभी भीड़ कम हो चुकी थी। 

वह घड़े में पानी भरकर घर लाई। 

तभी उसका पति खेतों से वापस आया गर्मी अधिक होने के कारण वह गर्मी से बेहाल हो रहा था और आकर कहता शोभा क्या घर में पानी है। 

क्या एक गिलास पानी मिलेगा तो शोभा ने कहा हाँ मैं अभी भरकर लाई हूँ। 

तभी उसने उस घड़े में से एक गिलास पानी भरकर अपने को पति को दिया गले में से पानी उतरते ही उसका पति एकदम से उठ खड़ा हुआ और बोला यह पानी तुम कहाँ से लाई हो तो शोभा एकदम से डर गई कि शायद मुझसे कोई भूल हो गई है तो उसने कहा, क्यों क्या हुआ ? 

तो उसने कहा यह पानी नहीं यह तो अमृत लग रहा है। 

इतना मीठा पानी तो आज तक मैंने नहीं पिया। 

यह तो कुएँ का पानी लग ही नहीं रहा यह तो लग रहा है किसी मंदिर का अमृत है। 

तो शोभा बोली मैं तो कुएँ से ही भरकर लाई हूँ।

यह देखो घड़ा भरा हुआ उसके पति ने कहा यह घडा तुम कहाँ से लाई थी उसने कहा जब मैं वृंदावन से वापस आ रही थी तो मेरी बहन ने मुझे दिया था यह सुनकर उसका पति चुप हो गया।

अब शोभा का पति बोला कि मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहा हूँ तब तक तुम भोजन तैयार करो। 

तो शोभा ने उसे घड़े के जल से दाल चावल बनाये घड़े के पानी से दाल चावल बनाने से उसकी खुशबू पूरे गाँव में फैल गई गाँव के सब लोग सोचने लगे कि आज गाँव में कहाँ उत्सव है...! 

जो इतनी अच्छी खाने की खुशबू आ रही है....! 

सब लोग एक एक करके खुशबू को सूँघते हुए शोभा के घर तक आ पहुँचे साथ में उसका पति भी था....! 

तो उसने आकर पूछा कि आज तुमने खाने में क्या बनाया है...! 

तो उसने कहा कि मैंने तो दाल और चावल बनाए हैं....! 

तो सब लोग हैरान हो गए की दाल चावल की इतनी अच्छी खुशबू। 

सब लोग शोभा का मुँह देखने लगे कि आज तो हम भी तेरे घर से दाल चावल खा कर जायेंगे। 

उसने किसी को मना नहीं किया और थोड़ी थोड़ी दाल चावल सब को दिए। 

दाल चावल खाकर सब लोग उसको कहने लगे यह दाल चावल नहीं ऐसे लग रहा है...! 

कि हम लोग अमृत चख रहे हैं ।

तो शोभा के पति ने कहा कि तुमने आज दाल चावल कैसे बनाये।

उसने कहा कि....! 

मैंने तो यह घड़े के जल से ही दाल चावल बनाए हैं। 

शोभा का पति बोला तेरी बहन ने तो बहुत अच्छा उपहार दिया है....! 

अगले दिन जब शोभा घड़ा भरनेें के लिए जाने जाने लगी तो उसने देखा घड़ा तो पहले से ही भरा हुआ है उसका जल वैसे का वैसा है जितना वो कल लाई थी....! 

उसने उसमें से खाना भी बनाया था जल भी पिया था....! 

लेकिन घड़ा फिर भरा का भरा था। 

शोभा एकदम से हैरान हो गई यह कैसे हो गया।

तभी अचानक से उसी दिन उसकी बहन कीर्ति थी.....! 

उसको मिलने के लिए उसके घर आई तो शोभा अपनी बहन को देख कर बहुत खुश हुई। 




उसको गले मिली और उस को पानी पिलाया तो उसने अपनी बहन को कहा कि.....! 

दीदी यह जो तूने मुझे घड़ा दिया था....! 

यह तो बहुत ही चमत्कारी घड़ा है....! 

मैंने तो तुच्छ समझ कर रसोई के ऊपर रख दिया था....! 

लेकिन कल से जब से यह मैं इस में जल भरा हुआ है...! 

तब से जल से भरा हुआ है...! 

इसका जल इतना मीठा है और इस के जल से मैंने दाल और चावल बनाए...! 

जो कि अमृत के समान बने थे।

उसकी बहन बोली,...! 

अरी ! 

ओ मेरी भोली बहन क्या तू नहीं जानती कि यह घड़ा ब्रज की रज यानी वृंदावन की माटी से बना है....! 

जिस पर साक्षात किशोरी जू और ठाकुर जी नंगे पांव चलते हैं....! 

उसी रज से यह घड़ा बना है....! 

यह घड़ा नहीं साक्षात किशोरी जी और ठाकुर जी के चरण तुम्हारे घर पड़े हैं। 

किशोरी जी और ठाकुर जी का ही स्वरूप तुम्हारे घर आया है।

यह सुनकर उसकी बहन अपने आप को कोसती हुई और शर्मिंदा होती हुई....! 

अपनी बहन के कदमों में गिर पड़ी और बोली मुझे क्षमा कर दो....! 

जो मैं वृंदावन की रज ( माटी ) की महिमा को न जान सकी। 

जिसकी माटी में इतनी शक्ति है तो उस बांके बिहारी और लाडली जू मे कितनी शक्ति होगी। 

मैं अज्ञानी मूर्ख ना जान सकी।

मुझे ब्रज की रज की महिमा और उसकी महत्वता का नहीं पता था। 

मुझे क्षमा कर दो तो उसकी बहन उसको उठाकर गले लगाती हुई बोली....! 

की बहन किशोरी जी और ठाकुर जी बहुत ही करुणा अवतार है....! 

तुम्हारे ऊपर उनकी कृपा थी.....! 

जो इस घड़े के रूप में इस रज के रूप में तुम्हारे घर पधारे। 

शोभा बोली बहन तुम्हारे ही कारण मैं धन्य हो उठी हूँ। 

तुम्हारा लाख - लाख धन्यवाद। 

यह कहकर दोनों बहने आँखों में आँसू भर कर एक दूसरे के गले लग कर रोने लगीं।                 

नमो नमोऽविशेषस्त्वं त्वं ब्रह्मा त्वं पिनाकधृक्

इन्द्रस्त्वमग्नि:  पवनो   वरुण: सविता  यम:।

वसवो  मरुत:  साध्या विश्वेदेवगणा: भवान्

 योऽयं  तवाग्रतो  देव  समीपं देवतागण:।।

हे प्रभो!

( हे भगवान् विष्णु! ) 

आपको नमस्कार है, नमस्कार है। 

आप निर्विशेष हैं तथापि आप ही ब्रह्मा हैं, आप ही शंकर हैं तथा आप ही इन्द्र, अग्नि,पवन, वरुण, सूर्य और यमराज हैं।

हे देव! 

वसुगण, मरुद्गण, साध्यगण और विश्वदेवगण भी आप ही हैं तथा आपके सम्मुख यह जो देव समुदाय है, हे जगत्स्ष्टा! 

वह भी आप ही हैं क्योंकि आप सर्वत्र परिपूर्ण हैं।'आपको प्रणाम है।


            (( 🕉 मेरे विट्ठल ))


कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नि ने कहा- 

भगत जी! 

आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।

आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।

शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।

भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया- 

देखता हूँ जैसी विठ्ठल जी की कृपा।

अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,

तो निश्चय ही घर में आज धन - धान्य आ जायेगा।

पत्नि बोली संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,...!

तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।

घर के बड़े - बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।

पर बच्चे अभी छोटे हैं,...!

उनके लिए तो कुछ ले ही आना।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।

ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट - बाजार को चले गए।

बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- 

वाह मेरा कृष्णा! 

कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।

तेरा परिवार बसता रहे।

ये गरीब ठंड में कांप - कांप कर मर जाएगा।

दया के घर में आ और भगवान के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस गरीब की झोली में डाल दे।

भक्त नामदेव जी - 

दो चादरों में कितना कपड़ा लगेगा  जी ?

भिखारी ने जितना कपड़ा मांगा...!

संयोग से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।

और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस भिखारी को दान कर दिया।

दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे।

फिर पत्नि की कही बात...!

कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।

दाम कम भी मिले तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आना।

अब दाम तो क्या...!

थान भी दान जा चुका था।

भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।

जब सारी सृष्टि की सार पूर्ती वो खुद करता है,..!

तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।

और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरि विठ्ठल के भजन में लीन गए।

अब भगवान कहां रुकने वाले थे।

भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।

अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।

नामदेव जी की पत्नी ने पूछा - कौन है?

नामदेव का घर यही है ना ?

भगवान जी ने पूछा।

अंदर से आवाज हां जी यही आपको कुछ चाहिये....! 

भगवान सोचने लगे कि धन्य है....! 

नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है फिर ह्र्दय मे देने की सहायता की जिज्ञासा हैl

भगवान बोले दरवाजा खोलिये.....!

लेकिन आप हैं कौन ?

भगवान जी ने कहा- 




सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?

जैसे नामदेव जी विठ्ठल के सेवक....!

वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूl

ये राशन का सामान रखवा लो।

पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया।

फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,

कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।

इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है?

मुझे नहीं लगता।

पत्नी ने पूछा।

भगवान जी ने कहा- 

हाँ भगतानी! 

आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।

जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।

और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।

जगह और बताओ।

सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।

शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।

समान रखवाते -रखवाते पत्नि थक चुकी थीं।

बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे।

वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।

कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर - भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।

उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।

भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे...!

पर सामान आना लगातार जारी था।

आखिर पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- 

सेवक जी! 

अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आना।

हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।

भगवान जी बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर विठ्ठल सरकार का भजन - सिमरन कर रहे हैं।

अब परिजन नामदेव जी को देखने गये...!

सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे...!

जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।

इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते...!

उनकी पत्नी बोल पड़ीं- 

कुछ पैसे बचा लेने थे।

अगर थान अच्छे भाव बिक गया था...!

तो सारा सामान संत जी आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?

भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।

फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया...!

कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है।

पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे भैजने से रुकता ही नहीं था।

पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।

उन्सें विनती कर के रुकवाया- 

बस कर! बाकी संत जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।

भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले- ! 

वो सरकार है ही ऐसी।

जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।

उसकी दया कभी भी खत्म नहीं होती।

वह सच्ची सरकार की तरह सदा विघमान रहती है..!!

|| समय बहुत बलवान होता है ||

 शिखण्डी से भीष्म को मात दिला सकता है !

 कर्ण के रथ को फंसा सकता है !

द्रौपदी का चीरहरण करा सकता है !

इस लिये किसी से डरना है तो वह है समय !

महाभारत में एक प्रसंग आता है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा-

हे राजन ! 

मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम कंक है मैं द्यूत विद्या में निपुण आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ। 

द्यूत जुआ वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार गए थे अब कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।

जिस बाहुबली के लिये रसोइये भोजन परोसते थे....! 

वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर रसोइया बन गये ; 

नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे ; 

दासियों से घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी स्वयं एक दासी सैरन्ध्री बन गयी और धनुर्धर उस युग का सबसे आकर्षक युवक, वह महाबली योद्धा द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य ; 

जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक महानायक अर्जुन एक नपुंसक बन गया।

उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली और आंखों में काजल लगा कर बृह्नलला बन गया।

परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। 

पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया एक महाबली साधारण रसोईया बन गया नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे ; 

और द्रौपदी एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रही।

पांडवों के लिये वह अज्ञातवास का काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।

वह जिस रूप में रहे जो अपमान सहा....!

जिस कठिन दौर से गुज़रे उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था अपितु परिस्थितियों को देखते हुये परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था !

आज भी अज्ञातवास जी रहे ना जाने कितने महायोद्धा हैं कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते उससे बेवजह गाली खा रहा है क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल फीस भरनी है।

बेटी के ब्याह के लिये पैसे इकट्ठे करता बाप एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।

ऐसे असंख्य पुरुष निरंतर संघर्ष से हर दिन अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं। 

रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू हों तो उसका आदर कीजिये उसका सम्मान करें। 

फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड होटल में रोटी परोसता वेटर सेठ की गालियां खाता मुनीम वास्तव में कंक , बल्लभ और बृह्नला ही है।

क्योंकि कोई भी अपनी मर्ज़ी से संघर्ष या पीड़ा नही चुनता वे सब यहाँ कर्म करते हैं वे अज्ञात वास जी रहे हैं......!

परंतु वो अपमान के भागी नहीं बल्कि प्रशंसा के पात्र हैं यह उनकी हिम्मत,ताकत और उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।

वो कमजोर नहीं हैं उनके हालात कमज़ोर हैं उनका वक्त कमज़ोर है।

अज्ञातवास के बाद बृह्नला जब पुनः अर्जुन के रूप में आये तो कौरवों के नाश कर दिया। 

वक्त बदलते वक्त नहीं लगता इस लिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो,उसका उपहास और अनादर ना करें उसका सम्मान करें,उसका साथ दें....! 

क्योंकि एक दिन संघर्ष शील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।

समय का चक्र घूमेगा और इतिहास बृह्नला को भूलकर अर्जुन को याद रखेगा।

यही नियति है ; 

यही समय का चक्र है। 

यही महाभारत की भी सीख है!

पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 

( द्रविड़ ब्राह्मण )

   🙏🏾🙏🏿🙏🏼जय श्री कृष्ण🙏🙏🏻🙏🏽



aadhyatmikta ka nasha

एक लोटा पानी।

 श्रीहरिः एक लोटा पानी।  मूर्तिमान् परोपकार...! वह आपादमस्तक गंदा आदमी था।  मैली धोती और फटा हुआ कुर्ता उसका परिधान था।  सिरपर कपड़ेकी एक पु...

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