ગુપ્ત નવરાત્રી:
गुप्त नवरात्री
माघ मास, શુક્લ પક્ષની પ્રથમ તિથિઓ ગુપ્ત નવરાત્રીઓ છે.
જેની શરૂઆત 30 જાન્યુઆરી 2025 ગુરુવારથી થશે !
એક વર્ષમાં કુલ ચાર નવરાત્રીઓ આવે છે, સામાન્ય રીતે બંને નવરાત્રીઓ વિશે તમને માલૂમ છે, બાકીના કેટલાક ગુપ્ત નવરાત્રીઓ છે
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શત્રુના મિત્ર બનાવવા માટે :-
નવરાત્રિમાં શુભ સંકલ્પોને પોષિત કરવા, રક્ષિત કરવા, મનોવાંછિત સિદ્ધિઓ પ્રાપ્ત કરવા અને શત્રુઓને મિત્ર બનાવવાવાળા મંત્રની સિદ્ધિનો યોગ હતો.
नवरात्रि में स्नानादि निवृत्त हो तिलक लगाकर और दीपक जलाकर यदि कोई बीज मंत्र 'हूं' અથવા 'अं रां अं' મંત્ર की इक्कीस माला जप करे और 'श्री गुरुगीता' का पाठ करें तो शत्रु भी उसका मित्र बन जायेंगे l
મામો બહેનો માટે વિશેષ કષ્ટ નિવારણ માટેનો ઉપયોગ:
(1)
જીન મામો બહેનોને દુઃખ અને દુઃખ વધુ સતાવે છે, વે નવરાત્રીના પ્રથમ દિવસ ( देवी - स्थापना के दिन ) , જલ અને કુમ - કુમાર - अशोक वृक्ष की पूजा करते हैं, पूजा करते हैं समय निम्न मंत्र बोलें :
"अशोक शोक शमनो भव सर्वत्र नः कुले "
મામો બહેનો માટે વિશેષ દુઃખ નિવારણ માટે
ઉપયોગ: (2) -
माघ मास शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन में केवल बिना नमक मिर्च का भोजन करें l
(જેમ દૂધ, રોટી या ખીર ખાય કરી શકો છો l)
ગુરુ મંત્ર या इष्ट देव का जप करते हैं उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्वयं को कुमकुम का तिलक करें l
गाय को चन्दन का तिलक करके गुड़ और रोटी खिलाएं एल
વિદ્યાર્થીઓ માટે📚
પ્રથમ નવરાત્રિના દિવસના વિદ્યાર્થીને તેમના પુસ્તકો ઈશાન કોણે રાખશો અને પૂજન કરો અને નવરાત્રીના ત્રીજા દિવસના વિદ્યાર્થી સાર્વત્ર્ય મંત્રને જપ કરો.
तें विद्या प्राप्ति में अपार सफ़लता मिलती है l
बुद्धी व ज्ञान का विकास करना हो तो सूर्य देवता का भ्रूमध्य में ध्यान दें.
જીન્કો ગુરુમંત્ર મળ્યો છે વે ગુરુમંત્ર કા, ગુરુદેવ, સૂર્યનારાયણનું ધ્યાન કરો.
*ગુરુ,આચાર્ય,પુરોહિત,પંડિત અને*
*પુજારી કા ફેર જાનીએ।*
*अक्सर लोग पुजारी को पंडितजी या पुरोहित को आचार्य भी कहते हैं और खाने वाले भी उन्हें सही ज्ञान नहीं पाता है।
આ વિશેષ પદોના નામ છે જીનકા કોઈ જાતિ વિશેષથી કોઈ સંબંધ નથી. આઓ અમે જાણીએ છીએ કે કોઈપણ શબ્દોનો સાચો અર્થ શું છે આગળથી અમે પુજારીને પંડિત ન કહીં.*
*1-ગુરુ-*
*ગુ કા અર્થ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश। અર્થાત્ જે વ્યક્તિ તમને अंधकार से प्रकाश की ओर लेते हैं वह गुरु होता है. गुरु का અર્થ अंधकार का नाश करने वाला।
अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक धार्मिक प्रवचन देने वाले व्यक्ति में और गुरु में बहुत अंतर था।
ગુરુ આત્મ વિકાસ અને પરમાત્માની વાત કરે છે. દરેક ગુરુ સંત હતા;
प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है. केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता थी।
ગુરુ કા અર્થ બ્રહ્મ જ્ઞાન કા નિર્દેશક*
*2-આચાર્ય-*
आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो।
आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो।
वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता था।
आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है।*
*3- पुरोहित-*
पुरोहित दो शब्दों से बना है : -
पर' तथा 'हित', अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे।
प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी।
हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था।
यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है।
प्रचीन काल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे।
अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे...!
जो धर्म - कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे।
*4-पुजारी-*
पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वत: ही प्रकाट होता है।
अर्थात जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी।
किसी देवी - देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है।
*5- पंडित-*
पंडः का अर्थ होता है विद्वता।
किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं।
पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल।
इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं।
किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है।
प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था।
इस पंडित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या कहते हैं।
आज कल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है।
कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पंडितों के नाम से ही जाना जाता है।
पंडित की पत्नी को देशी भाषा में पंडिताइन कहने का चलन है।
*6- ब्राह्मण-*
ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है।
जो ब्रह्म ( ईश्वर ) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है।
जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।
जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है।
पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है....!
वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है।
इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है।
जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं।
स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है-
मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि।
8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं।
इस के अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं।
ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं।*
|| जय माताजी ||
*|| आप के नाम में छुपा है राम का नाम ||*
- अद्भुत गणित :
अदभुत गणितज्ञ श्रीतुलसीदासजी से एक भक्त ने पूछा कि महाराज आप श्री राम के इतने गुणगान करते हैं, क्या कभी खुद श्रीराम ने आपको दर्शन दिए हैं ?*
तुलसीदास बोले :-
हां
भक्त :- महाराज क्या आप मुझे....!
भी दर्शन करा देंगे ?
तुलसीदास :- हां अवश्य* *तुलसीदास जी ने ऐसा मार्ग दिखाया कि एक गणित का विद्वान भी चकित हो जाए !
તુલસીદાસ જીએ કહ્યું, અરે ભાઈ ખૂબ જ સરળ છે.તમારા શ્રીરામના દર્શન સ્વયં તમારી અંદર પણ પ્રાપ્ત કરી શકે છે.હર નામના અંતમાં રામનું પણ નામ છે. ભક્ત :-
કોણસા सूत्र महाराज ?*
તુલસીદાસ :- તે સ્ત્રોત છે -
નામ चतुर्गुण पंचत्व मिलन तासां द्विगुण प्रमाण ||
તુલસી અષ્ટ સોભાગ્યે અંત મે બાકી રામ જ રામ ||
इस सूत्र के अनुसार अब हम किसी का भी नाम ले और अक्षरों की गिनती करें।उस गिनती को ( चतुर्गुण ) 4 થી ગુણકાર કરો.
उसमें ( पंचतत्व मिलन ) 5 मिला फिर उसे ( द्विगुण प्रमाण ) दुगना।
તે 2 જ રામ છે. આ 2 અંક પણ રામ અક્ષર છે,*
વિશ્વાસ નથી હોતું ?
ચલાવો, અમે એક ઉદાહરણ લખીએ છીએ, તમે એક નામ લખો છો, અક્ષર કેટલા પણ છો !
ઉદાહરણ તરીકે -
નિરંજન 4 અક્ષર :
4 થી ગુણા કરો 4 x 4 =16
5 ઉમેરો 16 + 5 = 21
દુગને કરો 21 × 2 = 42
8 ભાગ વિભાજન પર 42 ÷ 8 = 5 પૂર્ણ અંકો 2 બાકીના બાકીના બંને બચશે....!
આ બચે 2 એટલે કે - રામ
વિશેષ તે છે કે સૂત્રોની સંખ્યા કો તુલસીદાસ જી ને વિશેષ મહત્વ આપે છે....!
ચતુર્ગુણ એટલે 4 પુરુષાર્થ : -
ધર્મ, અર્થ, કામ, મોક્ષ!
પંચતત્વ એટલે કે 5 पंचमहा भौतिक : -
पृथ्वी,जल,अग्नि, वायु,आकाश।
द्विगुण प्रमाण अर्थात 2 માયા અને બ્રહ્મ. अष्ट सो भागे अर्थात 8 आठ प्रकार की लक्ष्मी (आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग आणि योग लक्ष्मी )अथवा तो अष्ठा प्रकृति।
અબ જો અમે બધા તમારા નામની તપાસ કરો તો આ સૂત્રોએ તે આશ્ચર્યચકિત રહે છે કે આગળના દિવસો 2 પણ પ્રાપ્ત થશે.
|| જય શ્રી સીતા રામ જી ||
कामक्रोधवियुक्तानां
यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं
वर्तते विदितात्मनाम् ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता - ५.२६ )
अर्थात् : काम - क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किए हुए ज्ञानी पुरुषों के लिए सब ओर से शांत परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण है।
प्राय यह देखा जाता हैं कि सोमवार को शिव मंदिरों में सबसे अधिक भीड़ होती हैं....!
किन्तु श्री शिवमहापुराण के विद्येश्वर संहिता के अध्याय 14 के अनुसार भगवान् शिव ने वारों की रचना करते समय सर्वप्रfथम अपने वार का निर्धारण किया जिसे रविवार कहते हैं।
सोमवार का दिन भगवान् शिव ने माँ भगवती के लिए....!
मंगलवार का दिन कुमार कार्तिकेय, बुधवार का दिन भगवान विष्णु, बृहस्पतिवार का भगवान ब्रह्मा ,शुक्रवार का इन्द्र और शनिवार का दिन यम के लिए नियत किया।
जबकि लोक मतानुसार सोमवार भगवान् सदा शिव को, मँगल वार महाबली हनुमान, बुधवार विध्न नाशक गणेश, गुरुवार जगतगुरु विष्णु, शुक्रवार माँ संतोषी, शनिवार न्याय के देवता शनि महाराज व रविवार का दिन भगवान् सूर्य को समर्पित माने जाकर पूजे जाते हैं।
( श्री शिवमहापुराण, विद्येश्वर संहिता, अध्याय १४ )
न कर्मणा लभ्यते चिन्तया वा
नाप्यस्ति दाता पुरुषस्य कश्चित्।
पर्याययोगाद्विहितं विधात्रा
कालेन सर्वं लभते मनुष्यः।।
( महाभारत, शान्तिपर्व - २५ / ५ )
अर्थात् : हे राजन् !
न तो कोई कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है....!
न चिन्ता से ही।
कोई ऐसा दाता भी नहीं है जो मनुष्य को उसकी विनष्ट वस्तु दे दे।
विधाता के विधानानुसार मनुष्य बारी - बारी से समय पर सबकुछ प्राप्त कर लेता है।
जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं इस प्रकृति के पास जिसका समाधान ही न हो।
समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो लेकिन उसका कोई न कोई समाधान अवश्य होता है।
इस प्रकृति का एक नियम यह भी है....!
कि यहाँ सदैव एक दूसरे द्वारा अपने से दुर्बल को ही सताया जाता है।
कि दुःख बंदरों की तरह होते हैं जो पीठ दिखाने पर पीछा किया करते हैं और सामना करने पर भाग जाते हैं।
समस्या का डटकर मुकाबला करना ही समस्या को कम करने का सर्वोत्तम उपाय है....!
सुखी जीवन का एक ही सिद्धांत है कि जीवन में कभी सुख आए तो हंस लेना चाहिए...!
और दुख आए तो हंस कर उड़ा देना चाहिए....!
सुख और दुख पारिवारिक सदस्य नहीं हैं मेहमान हैं...!
मेहमानों का क्या....!
उनका आना जाना तो लगा ही रहता है।
॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )
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