https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1

श्री श्रीमद भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है.......!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

श्री श्रीमद भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है.......!


भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है........!


भागवत की कथा सूतजी ने शौनक जी को सुनाई, 

उस समय वे सभी यज्ञ करते थे,और यज्ञ से बचे हुए समय में कथा होती थी




अर्थात "कथा गौड़" और यज्ञ प्रधान था. 

दूसरा नारद जी ने जब वेद व्यास जी को सुनाई उस समय
" परोपकार प्रधान " था.और तीसरी जब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई,

उस समय कथा के लिए ही

" कथा कही गई " .

कथा ही साधन है कथा ही साध्य है.

भागवत की कथा शेरनी के 1 दूध जैसी है,शेरनी के दूध की ये खासियत होती है कि शेरनी का दूध केवल दो जगह ही ठहर सकता है,

पहला सोने के पात्र या उसके बच्चे के पेट में ही रह सकता है.

इसके अतिरिक्त कही और रखने पर खराब हो जाता है,


इसी तरह भागवत की कथा है,

जिसमे पात्र की प्रधानता है

कथा सुनने का पात्र कौन है? 

कैसा है ? 

ये महत्वपूर्ण है.

जैसे एक संत रोज भिक्षा के लिए जाते थे,

एक स्त्री रोज उन्हें भिक्षा देती एक दिन वह स्त्री संत से बोली -

बाबा! 

आप मुझे कुछ ज्ञान दीजिये ?

संत बोले - 

कल मै तुझे ज्ञान दूँगा.

अगले दिन बाबा भिक्षा लेने आये उस दिन उस उस स्त्री ने खीर बनायीं थी.

संत बोले - 

खीर मेरे इस पात्र में डाल दो,

अब जैसे ही वह स्त्री संत के पात्र में खीर डालने लगी तो क्या देखती है 

संत के पात्र में गोवर भरा है.

तुरंत बोली - 

बाबा! 

इस पात्र में तो गोवर भरा है खीर डालने पर इतनी अच्छी खीर खराब हो जायेगी.

संत बोले - 

यहाँ तो मै तुम्हे समझाना चाहता था,

यदि खीर पात्र में डालनी है तो पहले गोवर हटाना पड़ेगा फिर पात्र को धोना पड़ेगा फिर उसमे खीर रखने पर खराब नहीं होगी.

इसी तरह यदि हमें भगवत चर्चा करनी है उसे अपने जीवन में उतरना है

 तो पहले संसार के विषयों का गोवर जिससे हमारा मन रूपी पात्र गन्दा है,

उस विषय विकार रूपी गोवर को निकलना होगा.

फिर अच्छी तरह संत्संग के जल से धोना होगा 

तभी हमारा मन रूपी पात्र उस भागवत रूपी खीर रखने के लायक होगा,

अन्यथा विषय - विकारों से गंदे हुए मन में यदि कथा डालेगे 

तो कथा सुनने का कोई लाभ नहीं होगा.

जय जय श्री कृष्ण...!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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