सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।
।। सुंदर कटु सत्य वचन ।।
चन्द्रसूर्याग्निनेत्रश्च कालाग्नि: प्रलयान्तक:
कपिल: कपिश: पुण्यराशिर्द्वादशराशिग:।
सर्वाश्रयो प्रमेयात्मा रेवत्यादिनिवारक:
लक्ष्मणप्राणदाता च सीताजीवनहेतुक:।।
चन्द्र, सूर्य और अग्नि रूप तीनों नेत्र वाले शिव स्वरूप, मृत्युकारी अग्निरूप,प्रलयका अन्त करने वाले।
अर्थात भक्तों को जन्म - मृत्यु से रहित करने वाले।
काले - पीले वर्ण के रोम से युक्त।
श्याम - पीतवर्ण मिश्रित कपिश वर्ण।
पुण्य की राशि द्वादश राशियों के ज्ञाता।।
अर्थात ज्योतिष शास्त्र के जानने वाले।
सभी को आश्रय प्रदान करने वाले।
प्रमेय स्वरूप आत्मा वाले।
अनिष्ट को दूर करने वाले।
संजीवनी द्वारा श्री लक्ष्मण जी को प्राण प्रदान करने वाले।
श्री जानकीजी को श्रीराम का सन्देश देकर जीवन प्रदान करने वाले।'
श्री हनुमान जी को बार - बार प्रणाम है।
प्यार बांटा तो रामायण लिखी गई
और...!
सम्पत्ति बांटी तो महाभारत।।।
कल भी...!
यही सत्य था..!
आज भी यही सत्य है!!
भाव बिना बाजार में...!
वस्तु मिले ना मोल....!
तो..!
भाव बिना...!
"हरी "
कैसे मिले...!
जो है अनमोल.....!
इस संसार में...!
भूलों को...!
माफ करने की क्षमता...!
सिर्फ तीन में है...!
माँ....!
महात्मा.....!
और..!
परमात्मा।।
जय श्री कृष्ण...!
स्वयं को जानकर व समझकर ही मनुष्य सफलता की तरफ अग्रसर हो सकता है।
ऐसा इस लिए,क्योंकि हम सभी मनुष्य उस एक परमपिता परमेश्वर की संतान हैं, उसके अंश हैं।
आज हर व्यक्ति भाग रहा है।
एक जगह से दूसरे जगह की ओर, एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर।
व्यक्ति शायद स्वयं को खोज रहा है।
क्योंकि उसने स्वयं को खो दिया है।
स्वयं के साथ संबंधों को तोड़ लिया है और अब उसे ही खोज रहा है।
यदि आप अपने आसपास के हर व्यक्ति की तरफ ध्यान देंगे।
तो लगभग सबमें यही बात नजर आएगी।
हर एक व्यक्ति स्वयं को भूलकर एक व्यर्थ की दौड़ में भागता चला जा रहा है।
वह स्वयं को भूल गया है कि आखिर वह है कौन?
क्या खोज रहा है, कहां खोज रहा है?
उसे स्वयं पता नहीं।
परंतु फिर भी हरेक से पूछ रहा है।
हरेक के बारे में पूछ रहा है।
आज आवश्यकता है।
इस झंझावात से निकलने की।
स्वयं के अस्तित्व को समझने की।
परिवर्तन की इस सतत प्रक्रिया में स्थिर होने की।
यात्रा हो परंतु शून्य से महाशून्य की,परिधि से केंद्र की।
अज्ञान से ज्ञान की।
अंधकार से प्रकाश की।
असत्य से सत्य की।
स्वयं के अस्तित्व को तलाश कर ही हम जीवन के सही मूल्यों को समझ सकेंगे।
हम प्राय: अपना जीवन कंकड़ - पत्थर बटोरने में व्यर्थ गंवा देते हैं।
सत्ता, संपत्ति, सत्कार और बहुत कुछ पाकर भी अंतत: शून्य ही हाथ लगता है।
तो हम क्यों न आज ही जग जाएं।
स्वयं की खोज करके अपनी अंतरात्मा को प्रकाशित करें।
हमारा ध्यान दुनिया में है।
परंतु स्वयं के अंदर छिपी विराटता में नहीं।
स्वयं को समझकर ही हम उस एक परमात्म तत्व में विलीन हो सकते हैं।
अपने परमेश्वर के प्रति हम कृतज्ञता तक ज्ञापित नहीं करते।
जिसने अपनी परम कृपा से हमें अपना अंश बनाकर इस धरा पर मनुष्य रूप में भेजा है।
यदि हम स्वयं के प्रति सचेत हो जाएं।
तो बात बनते देर नहीं लगेगी।
तमाम ऐसे लोग जिन्होंने जीवन में कुछ गौरव शाली कार्य किया।
वे सभी स्वयं के अंदर छिपे अथाह सागर को समझने की बात करते हैं।
जो कृत्रिमता से कोसों दूर हो।
जहां हो एक गहन शांति।
शांति मिलती है।
कामनाओं को शांत करने से कामनाएं भी उसी की शांत होती हैं।
जो जीवन का सही मूल्य समझ सके।
जीवन मात्र चलते रहने का नाम नहीं है।
बल्कि जीवन में रहते हुए कुछ अच्छा कर गुजरने का नाम है।
इसे जानकर व समझकर ही आगे बढ़ना सही अर्थो में जीवन की सार्थकता है।
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏