सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। भक्त रामदास ।।
एक बार की बात है, एक बच्चा था उसका कोई भी नहीं था, वह बहुत दुखी था, एक दिन वह एक संत के पास आश्रम में गया, संत जी से कहने लगा-
बाबा आप सबका ख्याल रखते है, लेकिन मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है, क्या मैं आपके आश्रम में रह सकता हुं ?
बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीं है, तब संत जी ने उसका नाम रामदास रखा और आश्रम के सारे काम करने लगा ।
उन संत की आयु 80 साल की हो गई थी, एक दिन उन्हें तीर्थ यात्रा पर जाना पड़ा और अपने शिष्यों को बुलाकर कहते है,कि ”मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है मेरे साथ कौन-कौन चलेगा ?
और आश्रम में कौन रुकेगा ?”
संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की बाबा हम आपके साथ चलेंगे, क्योंकि उन सबको पता था कि यहां आश्रम में रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा, इसलिये सभी शिष्य बोले कि हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे ।
अब संत सोचने लगे की किसे साथ लेकर जाये ?
और किसे आश्रम में छोड़ कर जाये ?
क्योकि अगर सभी साथ चल दिए तो आश्रम में काम कौन करेगा ?
और आश्रम पर भी किसी का रुकना जरुरी था ।
बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैं यहीं आश्रम पर रुक जाता हूं, तो संत ने कहा ठीक है पर तुझे सभी काम करना पड़ेगा, और संत जी कहते है की बेटा चाहे आश्रम की सफाई में कोई कमी रह जाये पर भगवान की सेवा में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए !
रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे तो भगवान जी की सेवा करनी नहीं आती !
आप बता दीजिये कि भगवान जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैं कर दूंगा ।
आश्रम में एक मंदिर था, वहां उस मंदिर मे राम दरबार की सुन्दर झाँकी थी, जिसमे प्रभु श्रीरामजी, श्रीसीताजी, श्रीलक्ष्मणजी और श्रीहनुमानजी विराजमान थे ।
उसके बाद संत ने सब बता दिया की सेवा- पूजा कैसे करनी है ।
रामदास ने गुरु जी से कहा की बाबा मेरा इनसे मेरा संबंध क्या होगा ?
ये भी बता दो, क्योँकि अगर संबंध का पता चल जाये तो सेवा करने में और ज्यादा आनंद आयेगा, संत कहते है की बेटा तू कहता था न की तेरा कोई नहीं है इस संसार मे तू अनाथ है, तो देख, आज से यह रामजी और सीताजी तेरे माता-पिता है ।
रामदास ने साथ में खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास में खड़े है वह कौन है ?
संत ने कहा ये तेरे चाचा लक्ष्मणजी हैं और हनुमानजी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है ।
सब समझ गये न, अब रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा, और संत बाकी सब शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये ।
आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैं भी खाऊँगा ।
रामदास को लगा की सच मे भगवान बैठकर खायेंगे, पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी, तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना है न तो शरमा रहे होंगे, रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मे खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पड़ा था ।
अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवामे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नही खा रहे हैं और यह नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नही खाऊँगा और मैं भूख से मर जाऊँगा.
इस तरह तो मैं भुखा मर जाँऊगा,और जब गुरूजी पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगा मैं ?
रामदास मरने के लिए पहाड़ की ओर जाने निकाला तब भगवान रामजी हनुमान जी को कहते हैं की हनुमान जाओ और उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैं ।
हनुमान जी जाते हैं और रामदास कूदने ही वाला ही था कि हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैं और कसने लगे.. ये क्या कर रहे हो ?
रामदास कहता है आप कौन ?
हनुमान जी कहते है मै तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये हमें ?
रामदास कहता है अब आए हो, इतनी देर से वहां बोल रहा था की खाना खा लो तब आये नहीं अब क्यों आ गए ?
तब हनुमान जी बोले पिताश्री का आदेश है, अब हम सब साथ बैठकर खाना खाएंगे, अब वापस चलो ।
फिर रामजी, सीताजी, लक्ष्मणजी ,हनुमानजी साक्षात समक्ष बैठकर भोजन करते हैं ।
इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता ।सेवा करते करते 15 दिन हो गये, एक दिन रामदास ने सोचा कि कोई भी माँ बाप हो वो घर में काम तो करते ही हैं, पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैं, मैं ऐसा नहीं चलने दूंगा, और एसा सोचकर रामदास मंदिर जाता है और भगवान से कहता है, की पिताजी कुछ बात करनी है मुझे आपसे, तब राम जी कहते हैं बोलो न बेटा क्या बात है ?
रामदास कहता है अबसे मैं अकेले काम नहीं करुंगा आप सभी को भी काम करना पड़ेगा, मेरे साथ ।
आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा ।
रामजी कहते हैं तो फिर बताओ बेटा हमें क्या काम करना होगा ?
रामदास ने कहा माताजी अब से रसोई आप संभालिये, और चाचा लक्ष्मणजी, आप सब्जी तोड़कर लाओगे, और बडे भैय्याजी आप लकड़ियाँ लायेँगे और पिताजी आप कथा बाँचने की सेवा लीजिए, सबने कहा ठीक है, अब सभी साथ मिलकर काम करते हुऐ एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे ।
कुछ दिन बाद वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर में गए और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐं सब गायब हैं ।
संत ने सोचा की कहीं रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीं दी ?
संत ने रामदास को बुलाया और पूछा भगवान कहाँ गए ?
रामदास भी थोडा अकड़कर बोला की मुझे क्या पता ?
रसोई में कही काम कर रहे होंगे ।
संत बोले ये क्या बोल रहा है तू ?
रामदास ने कहा बाबा मैं सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हो ये चारों काम में लगे हुऐ हैं ।
वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक देखा की सीता माता जी भोजन बना रही हैं, और राम जी कथा बाँच रहे हैं, ।
तभी अचानक वह चारों गायब हो गये, और पुन: मंदिर में मुर्ति स्वरूप में विराजमान हो गये ।
संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तु धन्य है, और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिए
कहने का तात्पर्य यही है कि ठाकुरजी तो आज भी दर्शन देने को तैयार है, पर कोई रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहिए न ।
क्या आप दर्शन करना चाहोगे ठाकुरजी के ?
तो हो जाईये तैयार
हमारें ठाकुरजी एसे नहीं जो दर्शन न दे.
बस आप रामदास बन जाइये और गाते रहिये जय ठाकुरजी.. जय जय ठाकुरजी.
जय जय श्री श्याम जी
जय श्री कृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏