सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। पाप और पुण्य / यूँ तो अधिकांश लोग जिन्दगी से शिकायत किया करते हैं ।।
।। पुण्य ओर पाप ।।
पुण्य मन के उस धर्म का ही नाम है , जो कि मनुष्य को सुख उपजाता है ।
सुख उपजाने वाले या भविष्य में जो -- जो भी कर्म सुख उपजाए , वे सब पुण्य कर्म कहे जाते है ।
इसी प्रकार पुण्य की एक ऐसी सूक्ष्म अवस्था है , जो कि मोक्ष के सुख की ओर अग्रसर करती है , जिस में इस पूर्ण संयम से जो पुण्य उदय हॉट्स है ।
वह अंततः मोक्ष -- प्राप्ति का कारण होती है ।
परंतु ऐसा पुण्य करने वाले को यदि कोई सांसारिक सुख पाने की इच्छा या संकल्प या कामना न हो तो वह बड़े आराम से सब पापों का समाप्त करता हुवा मोक्ष मार्ग पर ही अग्रसर हो जायेगा और अंत मे मोक्ष को ही प्राप्त करेगा ।
पाप मन का वह धर्म है , जो मन के अंदर सूक्ष्म रूप से या अदृष्ट रूप से बेठा हुआ मनुष्य के दुख को उपजाता है ।
पुण्य के समान यह पाप भी की प्रकार के खोटे कर्मो से उपजाता है ।
वे सब पाप कर्म कहे जाते है ।
जैसे पुण्य सूक्ष्म रूप से मोक्ष का दाता है ; ऐसे ही इन्द्रियों का असेम्ब, मन -- बुद्धि का असंयम ओर शरीर का भी असंयम पाप का हेतु है ।
यह ही पाप रूप है ।
इस पाप से बचकर ही दुर्गति के ऊपर जीत लिया जा शकता है ।
पाप दुर्गति देने वाले है ।
दुर्गति उसका नाम है , जिस में दुख की नातरा बहुत अधिक होती है ।
जो मनुष्य की बुद्धि को भष्ट करे और उसको हित -- अहित के बारे में सोचने भी न दे और समझने भी न दे , यही पाप है ।
पुनः साधन करने में विध्न या प्रतिबंध डाले , यही पाप का स्वरूप है , जो मनुष्य की बुद्धि को मनुष्यता के स्तर से नीचे नही गिरने देता और मोक्ष तक ले जाता है ।
मनुष्य की बुद्धि का स्तर तब ही गिरता है , जब कि मनुष्य के अंदर उनके काम , क्रोध इत्यादि विकार ओर उतेजना द्वारा हित -- अहित के बारे में विचार करने की ओर समझने की बुद्धि खो जाए ।
जैसे कि पशु -- पक्षी , किट -- पतंग में यह मनुष्यताके स्तर की बुद्धि नही है , इस लिये वह दुर्गति है ।
मनुष्य होते हुवे भी यदि अंततक दुःख में पड़ा रहे , तो यह दुर्गति ही है ।
यह सब पाप का कार्य ही है ।
इस लिये वह सब प्रकार के मिथ्या कर्मो को करने में प्रेरित वह कर्म करने लग जाय , जो कि दुशरो की दृष्टि में भी न करने योग्य माने जाते है ।
ऐसा कर्मो से मनुष्य को मोक्ष का मार्ग ओर अपनी आत्मा का सुख मिलना तो दूर रहा ; परंतु संसार मे कोई अच्छा या मनुष्य के स्तर का जन्म तक भी नही मिलेगा ।
कोई नही कह सकता कि वह मरने के पश्चात किन -- किन योनियों में जन्म पाता है भयंकर दुःखो को पाप्त होता रहेगा ।
केवल मनुष्य की बुद्धि रखकर यदि उन सब पापों से बचता रहेगा ;
तभी कही मनुष्य -- जन्म पाकर अन्त में पवित्रता -- निर्मलता रखता हुआ मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त हो जाएगा अर्थात नोक्ष मार्ग पर चढ़ जाएगा और अंत मे मुक्त हो जाएगा ।
।।। जय श्री कृष्ण..! जय श्री कृष्ण..! जय श्री कृष्ण..! ।।।
।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।
यूँ तो अधिकांश लोग जिन्दगी से शिकायत किया करते हैं।
मगर बहुत थोड़े ही लोग हुआ करते हैं जो शिकायतों में भी हँसकर जिया करते हैं।
जिन्दगी से हमारी शिकायतों का कारण अभाव नहीं अपितु हमारा स्वभाव है।
🌇हम सिर्फ खोने का दुःख मनाना जानते हैं, पाने की ख़ुशी नहीं।
ख़ुशी के लिए काम करोगे तो ख़ुशी ही मिले यह निश्चित नहीं मगर खुश होकर काम करोगे तो ख़ुशी अवश्य मिलेगी।
🌇जिन्दगी से शिकायत करने की अपेक्षा जो प्राप्त है ।
उसका आनंद लो ।
यही जीवन की वास्तविक उपलब्धि है।
🌇तकदीर के लिखे पर कभी शिकवा न कर ,
तू अभी इतना समझदार नहीं कि
ईश्वर के इरादे समझ सके।
जय श्री कृष्ण !
जय श्री राधे कृष्ण !!
🌹🙏🌹🙏🌹
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏