https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1

🙏🙏🙏 प्रार्थना 🙏🙏🙏

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश...

🙏🙏🙏 प्रार्थना....! 🙏🙏🙏


प्रार्थना....!


ऐसा हुआ कि रामकृष्ण के पास जब विवेकानंद आए, तो उनके घर की हालत बड़ी बुरी थी। 

पिता मर गए थे। 



और पिता मौजी आदमी थे, तो कोई संपत्ति तो छोड़ नहीं गए थे, उलटा कर्ज छोड गए थे। 

और विवेकानंद को कुछ भी न सूझता था कि कर्ज कैसे चुके। 

घर में खाने को रोटी भी नहीं थी। 

और ऐसा अक्सर हो जाता था कि घर में इतना थोड़ा बहुत अन्न जुट पाता, कि मां और बेटे दोनों थे, तो एक का ही भोजन हो सकता था।
 
तो विवेकानंद मां को कहकर कि मैं आज घर भोजन नहीं लूंगा...!

किसी मित्र के घर निमंत्रण है...!

मां भोजन कर ले, इस लिए घर से बाहर चले जाते। कहीं भी गली—

कूचों में चक्कर लगाकर—

कोई मित्र का निमंत्रण नहीं होता—

वापस खुशी लौट आते कि बहुत अच्छा भोजन मिला, ताकि मां भोजन कर ले।

रामकृष्ण को पता लगा तो उन्होंने कहा, तू भी पागल है। 

तू जाकर मां से क्यों नहीं मांग लेता! तू रोज यहां आता है। 

जा मंदिर में और मां से मांग ले, क्या तुझे चाहिए। 

रामकृष्ण ने कहा तो विवेकानंद को जाना पड़ा। रामकृष्ण बाहर बैठे रहे। 

आधी घड़ी बीती। 

एक घड़ी बीती। 

घंटा बीतने लगा। 

तब उन्होंने भीतर झांककर देखा। 

विवेकानंद आंख बंद किए खड़े हैं। 

आंख से आनंद के आंसू बह रहे हैं। 

सारे शरीर में रोमांच है।

फिर जब विवेकानंद बाहर आए, तो रामकृष्ण ने कहा, मांग लिया मां से? 

विवेकानंद ने कहा, वह तो मैं भूल ही गया। 

जो मिला है, वह इतना ज्यादा है कि मैं तो सिर्फ अनुग्रह के आनंद में डूब गया। 

अब दोबारा जब जाऊंगा, तब मांग लूंगा।

दूसरे दिन भी यही हुआ। 

तीसरे दिन भी यही हुआ। 

रामकृष्ण ने कहा, पागल, तू मांगता क्यों नहीं है? 

तो विवेकानंद ने कहा कि आप नाहक ही मेरी परीक्षा ले रहे हैं। 

भीतर जाता हूं तो यह भूल ही जाता हुं कि वे क्षुद्र जरूरतें, जो मुझे घेरे हैं, वे भी हैं, उनका कोई अस्तित्व है। 

जब मां के सामने होता हूं तो विराट के सामने होता हूं तो क्षुद्र की सारी बात भूल जाती है। 

यह मुझसे नहीं हो सकेगा। 

रामकृष्ण ने अपने शिष्यों को कहा कि इसी लिए इसे भेजता था...! 

कि अगर इसकी प्रार्थना अभी भी मांग बन सकती है....! 

तो इसे प्रार्थना की कला नहीं आई। 

अगर यह अब भी मांग सकता है प्रार्थना के क्षण में, तो इसका मन संसार में ही उलझा है....!

परमात्मा की तरफ उठा नहीं है।

आप पूछते हैं कि क्या मांगें?

मांगें मत। 

मांग संसार है। 

और जो मांगना छोड़ देता है....! 

वही केवल परमात्मा में प्रवेश करता है। 

तो कुछ भी न मांगें। 

सुख नहीं, कुछ भी मत मांगें। 

मोक्ष भी मत मांगें, मुक्ति भी मत मांगें। 

क्योंकि मांग ही उपद्रव है। 

मांग ही बाधा है। वह जो मांगने वाला मन है, वह प्रार्थना में हो ही नहीं पाता।

साधारणत: हमने सारी प्रार्थना को मांग बना लिया है। 

मांगना चाहते हैं....! 

तभी हम प्रार्थना करते हैं। 

प्रार्थी का मतलब ही हो गया मांगने वाला। 

अन्यथा हम प्रार्थना ही नहीं करते। 

जब मांगना होता है, तभी प्रार्थना करते हैं। 

जब नहीं मांगना होता, तो प्रार्थना भी खो जाती है। 

हमारी सारी प्रार्थना भिक्षु की, मांगने वाले की प्रार्थना है। 

हम भिक्षा—

पात्र लेकर ही परमात्मा के सामने खड़े होते हैं। 

यह ढंग उचित नहीं है। 

यह प्रार्थना का ढंग ही नहीं है। 

फिर प्रार्थना क्या है? 

साधारणत: लोग समझते हैं कि प्रार्थना कुछ करने की चीज है—

कि आपने जाकर स्तुति की, कि गुणगान किया, कि भगवान की बड़ी प्रशंसा की—

कुछ करने की चीज है। 

प्रार्थना न तो मांग है और न कुछ करने की चीज है। 

प्रार्थना एक मनोदशा है।

उचित होगा कहना कि प्रार्थना की नहीं जाती, आप प्रार्थना में हो सकते हैं। 

यू कैन नाट डू प्रेयर, यू कैन बी इन इट। 

प्रार्थना में हो सकते हैं, प्रार्थना की नहीं जा सकती। 

वह कोई कृत्य नहीं है कि आपने कुछ किया—

घंटा बजाया, नाम लिया। 

वे सब बाह्य उपकरण हैं। 

प्रार्थना भीतर की एक मनोदशा है; ए स्टेट ऑफ माइंड।

दो तरह की मनोदशाएं हैं। 

मांग, डिजायर, वासना। 

वासना कहती है, यह चाहिए। 

मन की एक दशा है कि यह चाहिए, यह चाहिए, यह चाहिए। 

चौबीस घंटे हम वासना में हैं, यह चाहिए, यह चाहिए, यह चाहिए। 

एक क्षण ऐसा नहीं है, जब वासना न हो। 

कुछ न कुछ चाहिए। 

चाह धुएं की तरह चारों तरफ घेरे रहती है।

एक स्थिति है, वासना। 

अगर आप मांग लेकर प्रार्थना कर रहे हैं, तो वासना ही बनी हुई है, स्थिति बदली ही नहीं। 

वहां आप फिर कुछ मांग रहे हैं। 

बाजार में कुछ मांग रहे थे। 

पत्नी से कुछ मांग रहे थे। 

पति से कुछ मांग रहे थे। 

बेटे से, बाप से कुछ मांग रहे थे। 

समाज से कुछ मांग रहे थे। 

राज्य से कुछ मांग रहे थे। 

संसार से कुछ मांग रहे थे। 

अब परमात्मा से मांग रहे हैं। 

जिससे मांग रहे थे, वह बदल गया, लेकिन मांगने वाला मन, वह भिखारी वासना मौजूद है। 

कभी इससे मांगा, कभी उससे मांगा। 

जब कहीं भी न मिल सका, तो लोग भगवान से मांगने लगते हैं। 

सोचते हैं, जो कहीं नहीं मिला, वह भगवान से मिल जाएगा! मांगते लेकिन जरूर हैं। 

यह वासना है।

प्रार्थना बिलकुल उलटी अवस्था है। 

वासना है दौड़, कुछ जो नहीं है, उसके लिए। प्रार्थना, जो है, उसका आनदभाव। 

प्रार्थना है ठहर जाना, वासना है दौड़। 

वासना है भविष्य में, प्रार्थना है अभी और यहीं। 

प्रार्थनापूर्ण चित्त का अर्थ है, मिट गया अतीत, मिट गया भविष्य; यह क्षण सब कुछ है।

गीता दर्शन 
पुजारी प्रभु राज्यगुरु

🌹🙏श्री लक्ष्मीनारायण🙏🌹

🌹🙏जय जय श्री राधे🙏🌹
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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