https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 2023

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णु पुराण श्री शिव महापुराण के अनुसार महा शिवरात्री महत्व फल ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णु पुराण श्री शिव महापुराण के अनुसार महा शिवरात्री महत्व फल ।।


श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णु पुराण श्री शिव महापुराण के अनुसार महाशिवरात्रि का महत्व फल ।

हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि का त्योहार असल में हर साल कार्तिकी साल अनुसार महा माह के कृष्ण पक्ष चैत्री साल अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. 

( इस लिहाज से अगर पंचांग को टटोला जाए तो इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार इस शनिवार यानी 18 फरवरी की रात 8.03 मिनट पर शुरू होगा और अगले दिन रविवार को यानी 19 फरवरी को शाम 04:19 मिनट पर इसका समापन होगा.  )

माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह  हुआ था और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का धरती पर प्रकाट्य हुआ था।

इस दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं।

इस त्योहार पर भगवान शिव की पूजा अर्चना बिल्वपत्र अर्पित करके की जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिव का पूजन और उपासना करने से दुखों का नाश होता है।

महाशिवरात्रि  पूजा सामग्री :

बेलपत्र, अक्षत, फूल, धतूरा, मदार पुष्प, गंगाजल, दूध ( कच्चा ), गाय का दूध, दही, शक्कर, भांग, इत्र, भोग के लिए हलवा, ठंडाई, लस्सी, मालपुआ आदि.

महाशिवरात्रि के लिए पूजन सामग्री में धूप-दीप को भी जरूर शामिल करें.  


महाशिवरात्रि व्रत के नियम :


यदि व्रत करना ही है तो पूरे विधि विधान के साथ करने चाहिए। 

व्रत पारण करने अर्थात व्रत खोलने का भी उचित समय और शुभ मुहूर्त में ही व्रत पारण करना उचित रहता है। 

माना की भोले शंकर के भक्त मस्त होते हैं और उनके नियम बहुत कड़े नही होते. 

मान्यताएं अपने विश्वास से जुड़ती है और विश्वास सीधा परम पिता परमेश्वर से संपर्क करता है। 

जब भी हम अपने आस्था को प्रकट करने हेतु अपने प्रभु में विश्वास दिखाते हैं। 

तो हमें एक ऊर्जा मिलती है और उसी ऊर्जा से हमें जीवन यापन करने में सुविधा रहती है। 

विधि विधान के साथ पूजा अर्चना संपन्न करने पर शिवभक्त शिवरात्रि व्रत का संकल्प लेते हैं। 

कोई न कोई शिव भक्तों तो उनका संतानों या खुद की जन्म कुंडली के आधीन पर हर मास की कृष्ण पक्ष की शिवरात्री का ही पूजन का संकल्प लेते है ।

ऐसा करने से शिव भक्तों को एक ऊर्जा शक्ति का एहसास होता है। 

अपने आराध्य भगवान शिव के प्रति भक्ति का परिचय देते हैं। 

मान्यताओं के अनुसार जो लड़का या लड़की अभी तक शादीशुदा नहीं है। 

वह भगवान शिव का व्रत धारण करते हैं। 

तो उन्हें विवाह संबंधी हो रही परेशानियां दूर होती है। 

क्योंकि मान्यता है की महाशिवरात्रि के दिन जो भी स्त्री, पुरुष, कन्या, बालक महाशिवरात्रि का व्रत धारण करते हैं। 

उन्हें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

सर्व प्रथम तो सवेरे जल्दी उठें और भगवान शिव का ध्यान करें और पृथ्वी को प्रणाम करें।

भगवान शिव त्रिभुवन पतियों में एक अदम्य साहस सकती हैं। 

जो स्वयं प्रकाशमान है।

फिर भी महाशिवरात्रि के उपवास के भी कुछ नियम हैं. 

तो चलिए जानते हैं इनके बारे में- 

- सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखें कि आप महाशिवरात्रि पर पूजा करने से पहले नहा लें और साफ - सुथरे कपड़े पहनें. 

- माना जाता है कि इस दिन मीठ - मास खाने से बचना चाहिए . 

- मान्यता है कि इस दिन स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए और भगवान के भोजन या स्थान को छूठन और गंदगी से बचा कर रखें. 

महाशिवरात्रि व्रत के आहार से जुड़े नियम, जानें क्या खाएं क्या नहीं।

 - इस दिन कुछ भक्त निर्जल उपवास रखते हैं, 

वहीं कुछ इस दिन फलाहार पर रहते हैं. 

आप जिस प्रकार इच्छा हो उपवास रख सकते हैं.

- मान्यता के अनुसार अगर आपने निर्जल व्रत रखा है, 

तो आपको पूरा दिन जल की एक बूंद भी नहीं लेनी है. 

- मान्यता के अनुसार फलाहार उपवास करने वाले भक्त दिनभर किसी भी फल का सेवन कर सकते हैं.

- मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के व्रत में आप दाल, चावल, गेहूं या कोई भी साबुत अनाज और सादे नमक का उपयोग नहीं कर सकते. 

हां आप व्रत वाले नम यानी सेंधा नमक का इस्तेमाल कर सकते हैं. 

महाशिवरात्रि के व्रत में क्या खा सकते:

इस उपवास को खोलते समय आप साबूदाना खिचड़ी, सिंघाड़े का हलवा, कुट्टू के आटे की पूड़ी, सामा के चावल, आलू का हलवा खा सकते हैं.

महाशिवरात्रि साधन की रात्रि है। 


इस दिन का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्व है जिसका जिक्र शिवपुराण, लिंग पुराण समेत कई धर्म ग्रंथों में मिलता है।

कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की भक्ति भाव से पूजा करने वाले को पूरे साल शिवजी की भक्ति करने का पुण्य मिल जाता है। 

महाशिवरात्रि व्रत की कथा में तो ऐसे उल्लेख मिलता है कि अनजाने में भी जिस किसी ने इस व्रत को कर लिया वह भी शिवलोक में स्थान पा गया। 

वैसे शिवरात्रि व्रत के कुछ नियम और विधि भी हैं जिन्हें जानकर आप शिवजी की उपासना करेंगे तो आपकी मनोकामना शिवजी जल्दी पूर्ण कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत के नियम :

1 महाशिवरात्रि के दिन गेंहू, चावल, बेसन, मैदा आदि से बनी चीजों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

2 इस दिन मांस  -  मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। 

यदि आप ऐसा करते हैं तो भगवान शिव आपसे रुष्ट भी हो सकते हैं।

3 यदि आप महाशिवरात्रि का व्रत रख रहें हैं तो आपको दिन में नहीं सोना चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार दिन में सोने से आपको व्रत का फल नहीं मिलता है।

4 व्रत का पालन करते हुए ब्रह्मचर्य बनाए रखें।

5 व्रत के दौरान किसी के साथ भी वाद विवाद न करें और न ही ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जिससे किसी का दिल दुखे।

6 आप दिन में चाय, दूध और फल आदि का सेवन कर सकते हैं।

7 शाम के वक्त सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। 

इसके लिए साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग कर सकते है।

8 शिवपुराण में महाशिवरात्रि में रात के समय जागरण करने का अधिक महत्व बताया गया है। 

यदि आप रात्रि जागरण करते हैं तो आपको दोगुना फल प्राप्त होगा। 


यदि आप जागरण नहीं कर पा रहें है तो सोते समय अपने सिरहाने तुलसी का पत्ता रख लें।


9. शिवरात्रि व्रत का नियम है कि इस व्रत को चतुर्दशी में ही आरंभ कर इसका पारण ( समाप्ति ) चतुर्दशी में ही करनी चाहिए। 

जो लोग व्रत रखेंगे वह रात्रि 1 वजकर 15 मिनट से पहले व्रत खोल सकते हैं। 

वैसे लोग जो दिन रात का व्रत रखते हैं वह अगले दिन सूर्यदय से 2 घंटे के अंदर व्रत का पारण कर सकते हैं।

महाशिवरात्रि पर शिवजी का पूजन ऐसे करें:

महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अभिषेक की परंपरा युगों से चली आ रही है। 

इस दिन देवी - देवता भी शिवजी की पूजा अर्चना और अभिषेक करते हैं। 

इस अवसर पर आप गंगाजल, शहद, घी, दूध, दही, गन्ने का रस इनसे शिवजी का अभिषेक कर सकते हैं। 

जिनका जिक्र शिव पुराण में भी किया गया है। 

अगर आपके पास ये साधन उपलब्ध न हो तो शुद्ध जल से भी शिवजी का अभिषेक कर सकते हैं। 

अभिषेक के दौरान ॐ नमः शिवाय मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करते रहें। 

वैसे शिवजी को अभिषेक के अलावा बेलपत्र, धतूरा, आक, भांग एवं सफेद पुष्प अति प्रिय है तो इन्हें भी शिवजी को अर्पित करें।

महाशिवरात्रि व्रत की कथा और महा शिव पुराण में लिखी इस व्रत कथा।

महशिवरात्रि के व्रत को लेकर पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक कथा एक धनवान मनुष्य कुसंगवश की है। 

एक बार एक धनवान मनुष्य गलत संगत में फंसने के कारण अपना सारा धन खो चुका था। 

महाशिवरात्रि के दिन वह शिव मंदिर पहुंचा जहां एक सौभाग्यशाली स्त्री भक्तिपूर्वक पूजन में लीन थी। 

तब उस व्यक्ति ने स्त्री के सारे आभूषण चोरी कर लिए। 

वहां मौजूद लोगों ने इस घटना को देख लिया और उसे पीट-पीटकर मार डाला।

हांलाकि चोरी करने के चक्कर में वह मंदिर में आठ प्रहर तक भूखा प्यासा रहकर जागता रहा था। 

इस तरह अनजाने में ही उसका व्रत पूर्ण हो गया था। 

जिसकी वजह से भगवान शिव की उस पर कृपा हो गई और वह शिवलोक में स्थान पा गया।

श्री महा शिव पुराण की कथा :

एक चित्रभानु नाम का शिकारी था। 

वह अपने परिवार को पाने के लिए जंगल में शिकार किया करता था। 

कुछ दिनों तक उसे शिकार नहीं मिलने की वजह से वह कर्जे में डूबता चला गया और साहूकार से कर्जा ले लिया। 

साहूकार का कर्जा नहीं चुकाने की वजह से साहूकार ने उसे कैद कर लिया। 

कुछ दिनों बाद उसे छोड़ दिया। 

अब वह पूरे दिन जंगल में भटकता रहा भटकते भटकते एक पेड़ पर जा बैठा। 

जहां पर नीचे शिवलिंग बना हुआ था और वह वृक्ष बैल पत्र का ही था। 

जैसे:- वह शिकार का इंतजार कर रहा था। 

तभी चित्रभानु को एक हिरनी आती दिखाई दी।

उसने जैसे ही उसे मारने की तैयारी की तब हिरनी चित्रभानु से कहती है। 

कि मैं अपने बच्चों को जन्म देने वाली हूं।

मैं आपसे वादा करती हूं बच्चे के जन्म के बाद आपके पास आ जाऊंगी। 

आप मेरा शिकार कर दीजिएगा। 

चित्रभानु ने उनकी बात मान ली और उसे जाने दिया। 

कुछ देर बाद दूसरी हिरनी उधर से गुजर रही थी।

तब चित्रभानु ने उसका शिकार करने की तैयारी की। 

दूसरी हिरणी बोलती है कि मैं अभी रितु काल से बाहर आई हूं।

मुझे मेरा पति की तलाश है। 

मैं पति से मिलकर आपके पास जरूर आ जाऊंगी। 

कृपया मुझे छोड़ दीजिए। 

चित्रभानु ने उस हिरणी को जाने दिया। 

कुछ देर बाद तीसरी हिरनी उधर से गुजरती है। 

तब चित्रभानु ने उसे मारने के लिए अपने शस्त्र को तैयार कर ही रहा था कि हिरणी बोलती है, कि मैंने अभी अपने दो बच्चों को जन्म दिया है। 

वह अनाथ हो जाएंगे। 

मैं पहले उन्हें अपने पिता के हवाले कर आती हूं और आपके पास आ जाऊंगी।

चित्रभानु का मन पिघल चुका था। 

उसने तीसरे को भी जाने दिया। 

कुछ देर बाद एक हिरण उधर से गुजर रहा था। 

चित्रभानु ने सोचा कि हिरण को तो मुझे मारना ही पड़ेगा। 

वरना मैं आज पूरे दिन ही भूखा रहूंगा। 

जब तक हिरण उसके पास आता तब तक 4 पहर बीत चुके थे। 

हिरण को मारने के लिए चित्रभानु ने जैसे ही तैयारी की तो हिरण कहता है। 

यदि तुमने पहले तीनों को मार दिया है तो मुझे भी मार दो और यदि तुमने उन तीनों को नहीं मारा है तो मुझे छोड़ दो। 

मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं पूरे परिवार के साथ तुम्हारे सम्मुख प्रस्तुत हो जाऊंगा।

चित्रभानु ने संपूर्ण कथा हिरण को सुना दी हिरण ने वादा किया कि मैं आपके पास जल्द ही अपने पूरे परिवार को लेकर आता हूं।

मुझे जाने की आज्ञा दें चित्रभानु का मन था पूरे दिन भूखा रहा और बेलपत्र के वृक्ष पर बैठने की वजह से बिल पत्र के पत्ते नीचे शिवलिंग पर गिर रहे थे। 

शिवलिंग पर बार - बार पत्ते गिरने से चित्रभानु का हृदय परिवर्तन होता रहा।

कुछ देर बाद हिरण पूरे परिवार के साथ चित्रभानु के पास आ गया कहा कि अब आप मेरे पूरे परिवार का शिकार कर सकते हैं ।

हमने वादे के अनुसार आपके समक्ष प्रस्तुत हैं  चित्रभानु का हृदय परिवर्तन हो चुका था ।

उसने फिर हिरण के पूरे परिवार को जीवनदान दे दिया और चित्रभानु भगवान शिव की शरण में चला गया और उसे शिव लोक में स्थान मिला अर्थात चित्रभानु एक उपकार के बदले अपने पूरे जीवन को मोक्ष के मार्ग पर ले गया।

महा शिवरात्री घर , फ्लैट ,  दुकान के वास्तु दोष :

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की अराधना करने से मनचाहा फल मिलता है। 

यूं तो भोलेभंडारी भगवान शिव सभी के बिगड़े काम बनाते हैं लेकिन क्या आप जानते है कि, महाशिवरात्रि के दिन आप अपने घर के वास्तु दोष को भी बड़ी घर में आपसी तालमेल की कमी और क्लेश का कराण वास्तु दोष भी होता है। 

वास्तु संबंधी कमियों की वजह से परिवार में आपसी कहासुनी और रोग का प्रभाव बना रहा है। 

इस समस्या को दूर करने के लिए महाशिवरात्रि के दिन घर की उत्तर पूर्व दिशा में शिवलिंग का पूरे विधि विधान से रुद्राभिषेक करें। 

इससे आपके घर के वास्तु दोष में सुधार होगा और घर के सदस्यों में तालमेल बढ़ेगा। 

रोग का प्रभाव भी कम होगा।

गृह कलेश में दूर करने का एक और आसान उपाय आप महाशिवरात्रि के दिन कर सकते हैं। 

इस दिन घर में शिव परिवार की स्थापना करना शुभ माना जाता है। 

ऐसी मान्यता है कि घर में शिव परिवार ( माता पार्वती, भगवान शिव, कार्तिकेय और गणेश जी ) की मूर्ति लगाने से बच्चे आज्ञाकारी होते हैं। 

परिवार में आपसी प्रेम और सद्भाव भी बना रहता है।

महाशिवरात्रि पर आर्थिक परेशानी दूर करने के लिए वास्तु :

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के षडाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक करें।

 शिवजी को 108 , 1108, 10108 , 100108, 121108,  बेल के पत्ते अर्पित करें और अंतिम पत्ते को शिव के आशीर्वाद स्वरूप तिजोरी या धन रखने के स्थान में सुरक्षित रख दें। 

इससे वास्तु दोष के कारण चल रही आर्थिक परेशानियों में कमी आएगी। 

धन का अपव्यय भी कम होगा।

महाशिवरात्रि के दिन पांच प्रहर की पूजा से वास्तु दोष :

महाशिवरात्रि के दिन पांच पहर की पूजा का अधिक महत्व है।

प्रथम पहर सुबह चार बजे से सात बजे तक 

दूसरा पहर सुबह सात बजे से नव बजे तक

तीसरा पहर दूपहर 11 बजे से साम तीन बजे तक

चौथा पहर साम 6 बजे से नव बजे तक 

पांचमा पहर रात्रि को 11 बजे से मध्य रात्री 1 बजे तक 

इस पूजा को करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

इसमें ध्यान रखें कि सुबह में गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करें। 

दोपहर में दूध से शिवजी का अभिषेक करें। 

शाम में शहद से शिवजी का अभिषेक करें और रात्रि में घी से शिवजी का अभिषेक करें। 

पांचों प्रहर के लिए पांच मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण करें या स्थापित शिवलिंग का ही पूजन करे और जो मिट्टी के शिवलिंग निर्माण  किए हो इनकी पूजा करके अगले दिन इन्हें जल में प्रवाहित कर दें। 

इस उपाय से घर में वास्तु दोष का प्रभाव दूर हो जाता है। 

इस उपाय से आरोग्य, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है।

महाशिवरात्रि पर डमरू से करें वास्तु :

घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए आप महाशिवरात्रि के दिन अपने घर के मंदिर में डमरू की स्थापना कर सकते हैं। 

अगर रोजाना आरती के समय डमरू में बजाया जाए तो ये आपके घर की सभी दिशाओं को वास्तु दोष को दूर करेगा। 

साथ ही इससे घर में प्रेम, सद्भाव और सुखों की वृद्धि होगी।

घर में करें पारद शिवलिंग की स्थापना :

महाशिवरात्रि के दिन अगर आप अपने घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करते हैं और उसकी रोजाना पूजा अर्चना करते हैं ।

तो सभी प्रकार के वास्तुदोष का निवारण होगा। 

शिवपुराण के अनुसार घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करके जो व्यक्ति नियमित इनकी पूजा करता है और इन्हें शमी पत्र अर्पित करता है ।

वह सुख भोगों को भोगकर अंत में उत्तम गति को प्राप्त करता है।

महाशिवरात्रि पर रामायण पाठ से दूर करें वास्तु दोष :

रामायण में वर्णित है कि भगवान राम शिव को और शिवजी भगवान राम का ध्यान करते हैं। 

महाशिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति अपने घर पर रामायण पाठ का आयोजन करता है और आठ प्रहर का रामायण पाठ करता है ।

उसके घर पर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। 

ऐसे भक्त के घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष नहीं रह जाता है। 

महालक्ष्मी और भगवान राम भी ऐसे शिव भक्त पर प्रसन्न होते हैं।

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409 
व्हाट्सएप नंबर:+ 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।।वेद पुराण शास्त्रों के अनुशार भाग्य का लिखा होकर रहेगा ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।वेद पुराण शास्त्रों के अनुशार भाग्य का लिखा होकर रहेगा ।।


एक समय की बात है। 

एक बहुत बड़ा ही ज्ञानी पण्डित था। 

वह अपने एक बचपन के घनिष्‍ट मित्र से मिलने के लिए किसी दूसरे गाँव जा रहा था।

जो कि बचपन से ही गूंगा व एक पैर से अपाहिज था। 

उसका गांव काफी दूर था और रास्‍ते में कई और छोटे - छोटे गांव भी पडते थे।

पण्डित अपनी धुन में चला जा रहा था कि रास्‍ते में उसे एक आदमी मिल गया।

जो दिखने मे बडा ही हष्‍ठ - पुष्‍ठ था।

वह भी पण्डित के साथ ही चलने लगा। 

पण्डित ने सोचा कि चलो अच्‍छा ही है।

साथ - साथ चलने से रास्‍ता जल्‍दी कट जायेगा। 

पण्डित ने उस आदमी से उसका नाम पूछा तो उस आदमी ने अपना नाम महाकाल बताया। 

पण्डित को ये नाम बडा अजीब लगा।

लेकिन उसने काम नाम के विषय में और कुछ पूछना उचित नहीं समझा। ‍





दोनों धीरे - धीरे चलते रहे तभी रास्‍त में एक गाँव आया। 

महाकाल ने पण्डित से कहा-

तुम आगे चलो....!

मुझे इस गाँव मे एक संदेशा देना है। 

मैं तुमसे आगे मिलता हुं।

“ठीक है....!

” कहकर पण्डित अपनी धुन में चलता रहा तभी एक भैंसे ने एक आदमी को मार दिया और जैसे ही भैंसे ने आदमी को मारा....!

लगभग तुरन्‍त ही महाकाल वापस पण्डित के पास पहुंच गया।

चलते - चलते दोनों एक दूसरे गांव के बाहर पहुंचे जहां एक छोटा सा मन्दिर था। 

ठहरने की व्‍यवस्‍था ठीक लग रही थी और क्‍योंकि पण्डित के मित्र का गांव अभी काफी दूर था साथ ही रात्रि होने वाली थी।

सो पण्डित ने कहा- 

रात्रि होने वाली है।  

पूरा दिन चले हैं...!

थकावट भी बहुत हो चुकी है।

इस लिए आज की रात हम इसी मन्दिर में रूक जाते हैं। 

भूख भी लगी है।

सो भोजन भी कर लेते हैं और थोडा विश्राम करके सुबह फिर से प्रस्‍थान करेंगे।

महाकाल ने जवाब दिया- 

ठीक है।

लेकिन मुझे इस गाँव में किसी को कुछ सामान देना है।

सो मैं देकर आता हुं।

तब तक तुम भोजन कर लो।

मैं बाद मे खा लुंगा...!”

और इतना कहकर वह चला गया।

लेकिन उसके जाते ही कुछ देर बाद उस गाँव से धुंआ उठना शुरू हुआ और धीरे - धीरे पूरे गांव में आग लग गई थी । 

पण्डित को आर्श्‍चय हुआ। 

उसने मन ही मन सोचा कि- 

जहां भी ये महाकाल जाता है।

वहां किसी न किसी तरह की हानि क्‍यों हो जाती है? 

जरूर कुछ गडबड है।

लेकिन उसने महाकाल से रात्रि में इस बात का कोई जिक्र नहीं किया। 

सुबह दोनों ने फिर से अपने गन्‍तव्‍य की ओर चलना शुरू किया। 

कुछ देर बाद एक और गाँव आया और महाकाल ने फिर से पण्डित से कहा कि- 

पण्डित जी…...!

आप आगे चलें। 

मुझे इस गांव में भी कुछ काम है।

सो मैं आपसे आगे मिलता हुँ’।

इतना कहकर महाकाल जाने लगा। 

लेकिन इस बार पण्डित आगे नहीं बढा बल्कि खडे होकर महाकाल को देखता रहा।

कि वह कहां जाता है।

और करता क्‍या है।

तभी लोगों की आवाजें सुनाई देने लगीं कि एक आदमी को सांप ने डस लिया और उस व्‍यक्ति की मृत्‍यु हो गई। 

ठीक उसी समय महाकाल फिर से पण्डित के पास पहुंच गया। 

लेकिन इस बार पण्डित को सहन न हुआ। 

उसने महाकाल से पूछ ही लिया कि- 

तुम जिस गांव में भी जाते हो....!

वहां कोई न कोई नुकसान हो जाता है? 

क्‍या तुम मुझे बता सकते हो कि आखिर ऐसा क्‍याें होता है?

महाकाल ने जवाब दिया: 

पण्डित जी…...!

आप मुझे बडे ज्ञानी मालुम पडे थे।

इसी लिए मैं आपके साथ चलने लगा था क्‍योंकि ज्ञानियाें का संग हमेंशा अच्‍छा होता है। 

लेकिन क्‍या सचमुच आप अभी तक नहीं समझे कि मैं कौन हुँ?

पण्डित ने कहा: 

मैं समझ तो चुका हुँ।

लेकिन कुछ शंका है।

सो यदि आप ही अपना उपयुक्‍त परिचय दे दें।

तो मेरे लिए आसानी होगी।

महाकल ने जवाब दिया कि- 

मैं यमदूत हुँ और यमराज की आज्ञा से उन लोगों के प्राण हरण करता हुँ।

जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है।

हालांकि पण्डित को पहले से ही इसी बात की शंका थी। 

फिर भी महाकाल के मुंह से ये बात सुनकर पण्डित थोडा घबरा तो गया।

लेकिन फिर हिम्‍मत करके पूछा कि- 

अगर ऐसी बात है और तुम सचमुच ही यमदूत हो।

तो बताओ अगली मृत्‍यु किसकी है?

यमदूत ने जवाब दिया कि- 

अगली मृत्‍यु तुम्‍हारे उसी मित्र की है।

जिसे तुम मिलने जा रहे हो और उसकी मृत्‍यु का कारण भी तुम ही होगे।

ये बात सुनकर पण्डित ठिठक गया और बडे पशोपेश में पड गया...!

कि यदि वास्‍तव में वह महाकाल एक यमदूत हुआ...!

तो उसकी बात सही होगी और उसके कारण मेरे बचपन के सबसे घनिष्‍ट मित्र की मृत्‍यु हो जाएगी। 

इस लिए बेहतर यही है।

कि मैं अपने मित्र से मिलने ही न जाऊं....!

कम से कम मैं तो उसकी मृत्‍यु का कारण नहीं बनुंगा। 

तभी महाकाल ने कहा कि-

तुम जो सोंच रहे हो....!

वो मुझे भी पता है।

लेकिन तुम्‍हारे अपने मित्र से मिलने न जाने के विचार से नियति नहीं बदल जाएगी। 

तुम्‍हारे मित्र की मृत्‍यु निश्चित है और वह अगले कुछ ही क्षणों में घटित होने वाली है।

महाकाल के मुख से ये बात सुनते ही पण्डित को झटका लगा।

क्‍योंकि महाकाल ने उसके मन की बात जान ली थी।

जो कि किसी सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए तो सम्‍भव ही नहीं थी। 

फल स्‍वरूप पण्डित को विश्‍वास हो गया कि महाकाल सचमुच यमदूत ही है। 

इस लिए वह अपने मित्र की मृत्‍यु का कारण न बने इस हेतु वह तुरन्‍त पीछे मुडा और फिर से अपने गांव की तरफ लौटने लगा।

परन्‍तु जैसे ही वह मुडा...!

सामने से उसे उसका मित्र उसी की ओर तेजी से आता हुआ दिखाई दिया।

जो कि पण्डित को देखकर अत्‍यधिक प्रसन्‍न लग रहा था। 

अपने मित्र के आने की गति को देख पण्डित को ऐसा लगा।

जैसे कि उसका मित्र काफी समय से उसके पीछे - पीछे ही आ रहा था।

लेकिन क्‍योंकि वह बचपन से ही गूूंगा व एक पैर से अपाहिज था।

इस लिए न तो पण्डित तक पहुंच पा रहा था न ही पण्डित को आवाज देकर रोक पा रहा था।

लेकिन जैसे ही वह पण्डित के पास पहुंचा, अचानक न जाने क्‍या हुआ और उसकी मृत्‍यु हो गई। 

पण्डित हक्‍का - बक्‍का सा आश्‍चर्य भरी नजरों से महाकाल की ओर देखने लगा....!

जैसे कि पूछ रहा हो कि आखिर हुआ क्‍या उसके मित्र को। 

महाकाल....!

पण्डित के मन की बात समझ गया और बोला-

तुम्‍हारा मित्र पिछले गांव से ही तुम्‍हारे पीछे - पीछे आ रहा था।

लेकिन तुम समझ ही सकते हो कि वह अपाहिज व गूंगा होने की वजह से ही तुम तक नहीं पहुंच सका। 

उसने अपनी सारी ताकत लगाकर तुम तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन बुढापे में बचपन जैसी शक्ति नहीं होती शरीर में....!

इस लिए हृदयाघात की वजह से तुम्‍हारे मित्र की मृत्‍यु हो गई...!

और उसकी वजह हो तुम....!

क्‍योंकि वह तुमसे मिलने हेतु तुम तक पहुंचने के लिए ही अपनी सीमाओं को लांघते हुए तुम्‍हारे पीछे भाग रहा था।

अब पण्डित को पूरी तरह से विश्‍वास हो गया कि.....!

महाकाल सचमुच ही यमदूत है और जीवों के प्राण हरण करना ही उसका काम है। 

चूंकि पण्डित एक ज्ञानी व्‍यक्ति था और जानता था कि मृत्‍यु पर किसी का कोई बस नहीं चल सकता व सभी को एक न एक दिन मरना ही है।

इस लिए उसने जल्‍दी ही अपने आपको सम्‍भाल लिया। 

लेकिन सहसा ही उसके मन में अपनी स्‍वयं की मृत्‍यु के बारे में जानने की उत्‍सुकता हुई। 

इस लिए उसने महाकाल से पूछा- 

अगर मृत्‍यु मेरे मित्र की होनी थी।

तो तुम शुरू से ही मेरे साथ क्‍यों चल रहे थे?

महाकाल ने जवाब दिया- 

मैं, तो सभी के साथ चलता हुं और हर क्षण चलता रहता हुं।

केवल लोग मुझे पहचान नहीं पाते...!

क्‍योंकि लोगों के पास अपनी समस्‍याओं के अलावा किसी और व्‍यक्ति, वस्‍तु या घटना के संदर्भ में सोंचने या उसे देखने, समझने का समय ही नहीं है।

पण्डित ने आगे पूछा- 

तो क्‍या तुम बता सकते हो कि मेरी मृत्‍यु कब और कैसे होगी?

महाकाल ने कहा - 

हालांकि किसी भी सामान्‍य जीव के लिए ये जानना उपयुक्‍त नहीं है।

क्‍योंकि कोई भी जीव अपनी मृत्‍यु के संदर्भ में जानकर व्‍यथित ही होता है।

लेकिन तुम ज्ञानी व्‍यक्ति हो और अपने मित्र की मृत्‍यु को जितनी आसानी से तुमने स्‍वीकार कर लिया है।

उसे देख मुझे ये लगता है....!

कि तुम अपनी मृत्‍यु के बारे में जानकर भी व्‍यथित नहीं होगे। 

सो, तुम्‍हारी मृत्‍यु आज से ठीक छ: माह बाद आज ही के दिन लेकिन किसी दूसरे राजा के राज्‍य में फांसी लगने से होगी और आश्‍चर्य की बात ये है।

कि तुम स्‍वयं खुशी से फांसी को स्‍वीकार करोगे। 

इतना कहकर महाकाल जाने लगा।

क्‍योंकि अब उसके पास पण्डित के साथ चलते रहने का कोई कारण नहीं था।

पण्डित ने अपने मित्र का यथास्थिति जो भी कर्मकाण्‍ड सम्‍भव था।

किया और फिर से अपने गांव लौट आया। 

लेकिन कोई व्‍यक्ति चाहे जितना भी ज्ञानी क्‍यों न हो।

अपनी मृत्‍यु के संदर्भ में जानने के बाद कुछ तो व्‍यथित होता ही है।

और उस मृत्‍यु से बचने के लिए कुछ न कुछ तो करता ही है।

सो पण्डित ने भी किया।

चूंकि पण्डित विद्वान था।

इस लिए उसकी ख्‍याति उसके राज्‍य के राजा तक थी। 

उसने सोंचा कि राजा के पास तो कई ज्ञानी मंत्राी होते हैं।

और वे उसकी इस मृत्‍यु से सम्‍बंधित समस्‍या का भी कोई न कोई समाधान तो निकाल ही देंगे। 

इस लिए वह पण्डित राजा के दरबार में पहुंचा और राजा को सारी बात बताई। 

राजा ने पण्डित की समस्‍या को अपने मंत्रियों के साथ बांटा और उनसे सलाह मांगी।

अन्‍त में सभी की सलाह से ये तय हुआ।

कि यदि पण्डित की बात सही है।

तो जरूर उसकी मृत्‍यु 6 महीने बाद होगी।

लेकिन मृत्‍यु तब होगी।

जबकि वह किसी दूसरे राज्‍य में जाएगा। 

यदि वह किसी दूसरे राज्‍य जाए ही न....!

तो मृत्‍यु नहीं होगी। 

ये सलाह राजा को भी उपयुक्‍त लगी सो उसने पण्डित के लिए महल में ही रहने हेतु उपयुक्‍त व्‍यवस्‍था करवा दी। 

अब राजा की आज्ञा के बिना कोई भी व्‍यक्ति उस पण्डित से नहीं मिल सकता था।

लेकिन स्‍वयं पण्डित कहीं भी आ - जा सकता था।

ताकि उसे ये न लगे कि वह राजा की कैद में है। 

हालांकि वह स्‍वयं ही डर के मारे कहीं आता - जाता नहीं था।

धीरे - धीरे पण्डित की मृत्‍यु का समय नजदीक आने लगा और आखिर वह दिन भी आ गया...!

जब पण्डित की मृत्‍यु होनी थी। 

सो, जिस दिन पण्डित की मृत्‍यु होनी थी।

उससे पिछली रात पण्डित डर के मारे जल्‍दी ही सो गया। 

ताकि जल्‍दी से जल्‍दी वह रात और अगला दिन बीत जाए और उसकी मृत्‍यु टल जाए। 

लेकिन स्‍वयं पण्डित को नींद में चलने की बीमारी थी और इस बीमारी के बारे में वह स्‍वयं भी नहीं जानता था।

इस लिए राजा या किसी और से इस बीमारी का जिक्र करने अथवा किसी चिकित्‍सक से इस बीमारी का भी इलाज करवाने का तो प्रश्‍न ही नहीं था।

चूंकि पण्डित अपनी मृत्‍यु को लेकर बहुत चिन्तित था और नींद में चलने की बीमारी का दौरा अक्‍सर तभी पडता है।

जब ठीक से नींद नहीं आ रही होती।

सो उसी रात पण्डित रात को नींद में चलने का दौरा पडा।

वह उठा और राजा के महल से निकलकर अस्‍तबल में आ गया। 

चूंकि वह राजा का खास मेहमान था।

इस लिए किसी भी पहरेदार ने उसे न ताे रोका न किसी तरह की पूछताछ की। 

अस्‍तबल में पहुंचकर वह सबसे तेज दौडने वाले घोडे पर सवार होकर नींद की बेहोशी में ही राज्‍य की सीमा से बाहर दूसरे राज्‍य की सीमा में चला गया। 

इतना ही नहीं।

वह दूसरे राज्‍य के राजा के महल में पहुंच गया और संयोग हुआ।

ये कि उस महल में भी किसी पहरेदार ने उसे नहीं रोका न ही कोई पूछताछ की...!

क्‍योंकि सभी लोग रात  के अन्तिम प्रहर की गहरी नींद में थे।

वह पण्डित सीधे राजा के शयनकक्ष में पहुंच गया। 

रानी के एक ओर उस राज्‍य का राजा सो रहा था।

दूसरी और स्‍वयं पण्डित जाकर लेट गया। 

सुबह हुई।

तो  राजा ने पण्डित को रानी की बगल में सोया हुआ देखा। 

राजा बहुत क्रोधित हुआ। 

पण्डित काे गिरफ्तार कर लिया गया।

पण्डित को तो समझ में ही नहीं आ रहा था।

कि वह आखिर दूसरे राज्‍य में और सीधे ही राजा के शयन कक्ष में कैसे पहुंच गया। 

लेकिन वहां उसकी सुनने वाला कौन था। 

राजा ने पण्डित को राजदरबार में हाजिर करने का हुक्‍म दिया। 

कुछ समय बाद राजा का दरबार लगा।

जहां राजा ने पण्डित को देखा और देखते ही इतना क्रोधित हुआ।

कि पण्डित को फांसी पर चढा दिए जाने का फरमान सुना दिया।

फांसी की सजा सुनकर पण्डित कांप गया। 

फिर भी हिम्‍मत कर उसने राजा से कहा कि महाराज...!

मैं नहीं जानता कि मैं इस राज्‍य में कैसे पहुंचा। 

मैं ये भी नहीं जानता कि मैं आपके शयन कक्ष में कैसे आ गया और आपके राज्‍य के किसी भी पहरेदार ने मुझे रोका क्‍यों नहीं।

लेकिन मैं इतना जानता हुं कि आज मेरी मृत्‍यु होनी थी और होने जा रही है।

राजा को ये बात थोडी अटपटी लगी। 

उसने पूछा- 

तुम्‍हें कैसे पता कि आज तुम्‍हारी मृत्‍यु होनी थी? 

कहना क्‍या चाहते हो तुम?

राजा के सवाल के जवाब में पण्डित से पिछले 6 महीनों की पूरी कहानी बता दी और कहा कि- 

महाराज....!

मेरा क्‍या....!

किसी भी सामान्‍य व्‍यक्ति का इतना साहस कैसे हो सकता है।

कि वह राजा की उपस्थिति में राजा के ही कक्ष में रानी के बगल में सो जाए। 

ये तो सरासर आत्‍महत्‍या ही होगी और मैं दूसरे राज्‍य से इस राज्‍य में आत्‍महत्‍या करने क्‍यों आऊंगा।

राजा को पण्डित की बात थोडी उपयुक्‍त लगी।

लेकिन राजा ने सोंचा कि शायद वह पण्डित मृत्‍यु से बचने के लिए ही महाकाल और अपनी मृत्‍यु की भविष्‍यवाणी का बहाना बना रहा है। 

इस लिए उसने पण्डित से कहा कि – 

यदि तुम्‍हारी बात सत्‍य है।

और आज तुम्‍हारी मृत्‍यु का दिन है।

जैसाकि महाकाल ने तुम से कहा है।

तो तुम्‍हारी मृत्‍यु का कारण मैं नहीं बनुंगा लेकिन यदि तुम झूठ कह रहे हो।

तो निश्चित ही आज तुम्‍हारी मृत्‍यु का दिन है।

चूंकि पडौसी राज्‍य का राजा उसका मित्र था।

इस लिए उसने तुरन्‍त कुछ सिपाहियों के साथ दूसरे राज्‍य के राजा के पास पत्र भेजा और पण्डित की बात की सत्‍यता का प्रमाण मांगा।

शाम तक भेजे गए सैनिक फिर से लौटे और उन्‍होंने आकर बताया कि- महाराज…..!

पण्डित जो कह रहा है।

वह सच है। 

दूसरे राज्‍य के राजा ने पण्डित को अपने महल में ही रहने की सम्‍पूर्ण व्‍यवस्‍था दे रखी थी और पिछले 6 महीने से ये पण्डित राजा का मेहमान था। 

कल रात राजा स्‍वयं इससे अन्तिम बार इसके शयन कक्ष में मिले थे और उसके बाद ये इस राज्‍य में कैसे पहुंच गया।

इसकी जानकारी किसी को नहीं है। 

इस लिए उस राज्‍य के राजा के अनुसार पण्डित को फांसी की सजा दिया जाना उचित नहीं है।

लेकिन अब राजा के लिए एक नई समस्‍या आ गई। 

चूंकि उसने बिना पूरी बात जाने ही पण्डित को फांसी की सजा सुना दी थी।

इस लिए अब यदि पण्डित को फांसी न दी जाए।

तो राजा के कथन का अपमान हो और यदि राजा द्वारा दी गई सजा का मान रखा जाए।

तो पण्डित की बेवजह मृत्‍यु हो जाए।

राजा ने अपनी इस समस्‍या का जिक्र अपने अन्‍य मंत्रियों से किया और सभी मंत्रियों ने आपस में चर्चा कर ये सुझाव दिया कि- 

महाराज…..!

आप पण्डित को कच्‍चे सूत के एक धागे से फांसी लगवा दें।

इस से आपके वचन का मान भी रहेगा और सूत के धागे से लगी फांसी से पण्डित की मृत्‍यु भी नहीं होगी।

जिससे उसके प्राण भी बच जाऐंगे।

राजा को ये विचार उपयुक्‍त लगा और उसने ऐसा ही आदेश सुनाया। 

पण्डित के लिए सूत के धागे का फांसी का फन्‍दा बनाया गया और नियमानुसार पण्डित को फांसी पर चढाया जाने लगा।

सभी खुश थे कि न तो पण्डित मरेगा न राजा का वचन झूठा पडेगा। 

पण्डित को भी विश्‍वास था कि सूत के धागे से तो उसकी मृत्‍यु नहीं ही होगी।

इस लिए वह भी खुशी - खुशी फांसी चढने को तैयार था।

जैसा कि महाकाल ने उसे कहा था।

लेकिन जैसे ही पण्डित को फांसी दी गई।

सूत का धागा तो टूट गया लेकिन टूटने से पहले उसने अपना काम कर दिया। 

पण्डित के गले की नस कट चुकी थी उस सूत के धागे से और पण्डित जमीन पर पडा तडप रहा था।

हर धडकन के साथ उसके गले से खून की फूहार निकल रही थी और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पण्डित का शरीर पूरी तरह से शान्‍त हो गया। 

सभी लोग आश्‍चर्य चकित...!

हक्‍के - बक्‍के से पण्डित को मरते हुए देखते रहे। 

किसी को भी विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि एक कमजाेर से सूत के धागे से किसी की मृत्‍यु हो सकती है।

लेकिन घटना घट चुकी थी।

नियति ने अपना काम कर दिया था।

जो होना होता है....!

वह होकर ही रहता है। 

हम चाहे जितनी सावधानियां बरतें या चाहे जितने ऊपाय कर लें।

लेकिन हर घटना और उस घटना का सारा ताना - बाना पहले से निश्चित है।

जिसे हम रत्‍ती भर भी इधर - उधर नहीं कर सकते। 

इसी लिए ईश्‍वर ने हमें भविष्‍य जानने की क्षमता नहीं दी है।

ताकि हम अपने जीवन को ज्‍यादा बेहतर तरीके से जी सकें और यही बात उस पण्डित पर भी लागु होती है। 

यदि पण्डित ने महाकाल से अपनी मृत्‍यु के बारे में न पूछा होता।

तो अगले 6 महीने तक वह राजा के महल में कैद होकर हर रोज डर - डर कर जीने की बजाय ज्‍यादा बेहतर जिन्‍दगी जीता।

प्रकृति ने जो भी कुछ बनाया है और उसे जैसा बनाया है।

वह सब कुछ किसी न किसी कारण से वैसा है और उसके वैसा होने पर सवाल उठाना गलत है।

क्‍योंकि हर व्‍यक्ति...!



वस्‍तु या स्थिति का सम्‍बंध किसी न किसी घटना से है।


जिसे घटित होना है।

उदाहरण के लिए पण्डित की मृत्‍यु का सम्‍बंध उसके मित्र से था।

क्‍योंकि यदि वह उसके मित्र से मिलने न जा रहा होता।

तो उसे रास्‍ते में महाकाल न मिलता और पण्डित उससे अपनी मृत्‍यु से सम्‍बंधित सवाल न पूछता। 

जबकि यदि पण्डित अपने मित्र से मिलने न जाता और पण्डित का मित्र बचपन से ही गूंगा व अपाहिज न होता।

तो उसकी मृत्‍यु न होती...!

क्‍योंकि उस स्थिति में वह अपने मित्र को पीछे से आवाज देकर रोक सकता था। 

यानी बपचन से प्रकृति ने उसे जो अपंगता दी थी।

उसका सम्‍बंध उसकी मृत्‍यु से था।

*इसी तरह से पण्डित को नींद में चलने की बीमारी है।

इस बात का पता यदि स्‍वयं पण्डित को पहले से होता।

तो वह इस बात का जिक्र राजा से जरूर करता...!

परिणाम स्‍वरूप वह राजा के महल से निकलता तो कोई न कोई पहरेदार उसे जरूर रोक लेता अथवा राजा ने कुछ ऐसी व्‍यवस्‍था जरूर की होती।

ताकि पण्डित नींद में उठकर कहीं न जा सके।

यानी हर घटना के घटित होने के लिए प्रकृति पहले से ही सारे बीज बो देती है।

जो अपने निश्चित समय पर अंकुरित होकर उस घटना के घटित होने में अपना योगदान देते हैं। 

इस लिए प्रकृति से लडने का कोई मतलब नहीं है।

क्‍योंकि हमें नहीं पता कि किस घटना के घटित होने के लिए कौन - कौन कारण होंगे और उन कारणों से सम्‍बंधित बीज कब...!

कहां और कैसे बोए गए हैं।

और इसी को हम सरल शब्‍दों में भाग्‍य कहते हैं।

कर्मों का फल तो झेलना पडे़गा!

भीष्म पितामह रणभूमि में शरशैया पर पड़े थे। 

हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। 

श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। 

उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा......!

आइये जगन्नाथ...!

आप तो सर्व ज्ञाता हैं। 

सब जानते हैं।

बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था।

जिसका दंड इतना भयावह मिला ?

कृष्ण: पितामह! 

आपके पास वह शक्ति है।

जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। 

आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! 

मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ ? 

मैंने सब देख लिया .....!

अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। 

मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है।

हर आने वाला क्षण.....!

और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! 

आप एक भव और पीछे जाएँ....!

आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। 

एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।

एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन! 

मार्ग में एक सर्प पड़ा है। 

यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा....!

 " एक काम करो। 

उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।

उस सांप को एक बाण की नोक पर में उठा कर कर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी।
 
सांप उनमें फंस गया। 

जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता...!

कांटे उसकी देह में गड गए। 

खून रिसने लगा जिसे झाड़ियों में मौजूद कीड़ी नगर से चीटियाँ रक्त चूसने लग गई। 

धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।

5 - 6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।


भीष्म:...!
हे त्रिलोकी नाथ। 

आप जानते ही हैं।

कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। 

अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। 

तब ये परिणाम क्यों ?

कृष्ण:....!

तात श्री! 

हम जान बूझ कर क्रिया करें 
या अनजाने में.....!

किन्तु क्रिया तो हुई न।   

उसके प्राण तो गए ना।

ये विधि का विधान है।

कि जो क्रिया हम करते हैं।

उसका फल भोगना ही पड़ता है।

आपका पुण्य इतना प्रबल था कि...!

101 भव ( जन्म ) उस पाप फल को उदित होने में लग गए। 

किन्तु अंततः वह हुआ...!

जिस जीव को लोग जानबूझ कर मार रहे हैं....!

उसने जितनी पीड़ा सहन की....!

वह उस जीव (आत्मा ) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में ही अवश्य भोगनी होगी।

ये बकरे, मुर्गे, भैंसे, गाय, ऊंट आदि वही जीव हैं।

जो ऐसा वीभत्स कार्य पूर्व जन्म में करके आये हैं।

और इसी कारण पशु बनकर....!

यातना झेल रहे हैं।

अतः 

हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।

कर्मों का फल तो झेलना ही पडे़गा...!

कर्म फल या भगवान् का दंड..!

गया के आकाशगंगा पहाड़ पर एक परमहंस जी वास करते थे।

एक दिन परमहंस जी के शिष्य ने एकादशी के दिन निर्जला उपवास करके द्वादशी के दिन प्रातः उठकर फल्गु नदी में स्नान किया।

विष्णुपद का दर्शन करने में उन्हें थोड़ा विलम्ब हो गया। 

वे साथ में एक गोपाल जी को सर्वदा ही रखते थे।

द्वादशी के पारण का समय बीतता जा रहा था।

देखकर वे अधीर हो गये एवं शीघ्र एक हलवाई की दुकान में जाकर उन्होंने दुकानदार से कहा....!

पारण का समय निकला जा रहा है।

मुझे कुछ मिठाई दे दो।

गोपाल जी को भोग लगाकर मैं थोड़ा जल ग्रहण करुँगा।        

दुकानदार उनकी बात अनसुनी कर दी। 

साधु के तीन - चार बार माँगने पर भी हाँ ना कुछ भी उत्तर नहीं मिलने से व्यग्र होकर एक बताशा लेने के लिए जैसे ही उन्होने हाथ बढ़ाया।

दुकानदार और उसके पुत्र ने साधु की खुब पिटाई की।

निर्जला उपवास के कारण साधु दुर्बल थे।

इस प्रकार के प्रहार से वे सीधे गिर पड़े। 

रास्ते के लोगों ने बहुत प्रयास करके साधु की रक्षा की। 

साधु ने दुकानदार से एक शब्द भी नहीं कहा।

ऊपर की ओर देखकर थोड़ा हँसते हुए प्रणाम करके कहा- 

भली रे दयालु गुरुजी...!

तेरी लीला। 

केवल इतना कहकर साधु पहाड़ की ओर चले गये।

गुरुदेव परमहंस जी पहाड़ पर ध्यानमग्न बैठे हुए थे।

एका एक चौक उठे एवं चट्टान से नीचे कूदकर बड़ी तीव्र गति से गोदावरी नामक रास्ते की ओर चलने लगे। 

रास्ते में शिष्य को देखकर परमहंस जी कहा।

 'क्यो रे बच्चा...!

क्या किया ? 

शिष्य ने कहा।

गुरुदेव मैने तो कुछ नहीं किया। 

परमहंस जी ने कहा, बहुत किया। 

तुमने बहुत बुरा काम किया। 

रामजी के ऊपर बिल्कुल छोड़ दिया। 

जाकर देखो।

रामजी ने उसका कैसा हाल किया। 

यह कहकर शिष्य को लेकर परमहंस जी हलवाई की दुकान के पास जा पहुँचे। 

उन्होंने देखा हलवाई का सर्वनाश हो गया है।

साधु को पीटने के बाद....!

जलाने की लकड़ी लाने के लिए हलवाई का लड़का जैसे ही कोठरी में घुसा था।

उसी समय एक काले नाग ने उसे डस लिया। 

हलवाई घी गर्म कर रहा था...!

सर्पदंश से मृत अपने पुत्र को देखने दौड़ा। 

उधर चूल्हे पर रखे घी के जलने से दुकान की फूस की छत पर आग लग गई।

परमहंस जी ने देखा।

लड़का रास्ते पर मृतवत पड़ा है।

दुकान धू - धू करके जल रही है।

रास्ते के लोग हाहाकार कर रहे है। 

भयानक दृश्य था। 

परमहंस जी शिष्य को लेकर पहाड़ पर आ गए। 

शिष्य को खूब फटकारते हुए कहा कि बिना अपराध के कोई अत्याचार करता है।

तो क्रोध न आने पर भी साधु पुरुष को कम-से - कम एक गाली ही देकर आना चाहिए। 

साधु के थोड़ा भी प्रतिकार करने से अत्याचारी की रक्षा हो जाती है।

परमात्मा के ऊपर सब भार छोड़ देने से परमात्मा बहुत कठोर दंड देते हैं। 

भगवान् का दंड बड़ा भयानक है।

न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥

भावार्थ~जो न पृथ्वी हैं न जल हैं न अग्नि हैं न वायु हैं।

और न आकाश हैं।

न तन्द्रा हैं।

न निद्रा हैं।

न ग्रीष्म हैं।

और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है न वेष है।

उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति मेरे प्राणनाथ की मैं स्तुति करता हूँ..!

नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः।।

जिसे सभी मुनि सम्मान और श्रद्धा से प्रणाम करते हैं।

जिसे सभी देवता आदर और श्रद्धा से प्रणाम करते हैं।

जिसे सभी अप्सराएं सम्मान और श्रद्धा से नमन करती हैं।

जिसे मनुष्य भी सम्मान और श्रद्धा से नमन करते हैं।

मैं ऐसे शिव को नमन करता हूं।

जो देवताओं के देवता हैं।

रस्सी से बंधा इंसान कोशिश करके  मुक्त हो सकता है....!

परंतु विचारो से बंधा इंसान कभी मुक्त  नही हो सकता ....!!

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409 
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी..🙏🙏🙏

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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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