सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। सुंदर कहानी ।।
।। संत ज्ञानेश्वर जयंती आज *विश्वास ( believe ) तथा विश्वास ( trust ) में अंतर* वधाई वधाई वधाई ।।
संत ज्ञानेश्वर जयंती आज
आज यानी 12 अगस्त को संत ज्ञानेश्वर जयंती है।
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास आपेगांव में संत ज्ञानेश्वर का जन्म ई. सन् 1275 में भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी को हुआ।
उनके पिता विट्ठल पंत एवं माता रुक्मिणी बाई थीं।
बहुत छोटी आयु में ज्ञानेश्वरजी को जाति से बहिष्कृत हो नानाविध संकटों का सामना करना पड़ा।
उनके पास रहने को ठीक से झोपड़ी भी नहीं थी।
संन्यासी के बच्चे कहकर सारे संसार ने उनका तिरस्कार किया।
लोगों ने उन्हें सर्वविध कष्ट दिए, पर उन्होंने अखिल जगत पर अमृत सिंचन किया।
वर्षानुवर्ष ये बाल भागीरथ कठोर तपस्या करते रहे।
उनकी साहित्य गंगा से राख होकर पड़े हुए सागर पुत्रों और तत्कालीन समाज बांधवों का उद्धार हुआ।
भावार्थ दीपिका की ज्योति जलाई।
वह ज्योति ऐसी अद्भुत है कि उनकी आंच किसी को नहीं लगती, प्रकाश सबको मिलता है।
ज्ञानेश्वरजी के प्रचंड साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है।
क्रोध, रोष, ईष्र्या, मत्सर का कहीं लेशमात्र भी नहीं है।
समग्र ज्ञानेश्वर क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।
इस विषय में ज्ञानेश्वरजी की छोटी बहन मुक्ताबाई का ही अधिकार बड़ा है।
ऐसी किंवदंती है कि एक बार किसी नटखट व्यक्ति ने ज्ञानेश्वरजी का अपमान कर दिया।
उन्हें बहुत दुख हुआ और वे कक्ष में द्वार बंद करके बैठ गए।
जब उन्होंने द्वार खोलने से मना किया, तब मुक्ताबाई ने उनसे जो विनती की वह मराठी साहित्य में ताटीचे अभंग (द्वार के अभंग) के नाम से अतिविख्यात है।
मुक्ताबाई उनसे कहती हैं-
हे ज्ञानेश्वर! मुझ पर दया करो और द्वार खोलो।
जिसे संत बनना है, उसे संसार की बातें सहन करनी पड़ेंगी, तभी श्रेष्ठता आती है, जब अभिमान दूर हो जाता है।
जहां दया वास करती है वहीं बड़प्पन आता है।
आप तो मानव मात्र में ब्रह्मा देखते हैं, तो फिर क्रोध किससे करेंगे?
ऐसी समदृष्टि कीजिए और द्वार खोलिए।
यदि संसार आग बन जाए तो संत मुख से जल की वर्षा होनी चाहिए।
ऐसे पवित्र अंत:करण का योगी समस्त जनों के अपराध सहन करता है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
संत ज्ञानेश्वर के पूर्वज पैठण के पास गोदावरी तट के निवासी थे और बाद में आलंदी नामक गाँव में बस गए थे।
ज्ञानेश्वर के पितामह त्रयंबक पंत गोरखनाथ के शिष्य और परम भक्त थे।
ज्ञानेश्वर के पिता विट्ठल पंत इन्हीं त्र्यंबक पंत के पुत्र थे।
विट्ठल पंत बड़े विद्वान और भक्त थे।
उन्होंने देशाटन करके शास्त्रों का अध्ययन किया था।
उनके विवाह के कई वर्ष हो गए थे पर कोई संतान नहीं हुई।
इस पर उन्होंने सन्न्यास लेने का निश्चय किया, पर स्त्री इसके पक्ष में नहीं थी।
इस लिए वे चुपचाप घर से निकलकर काशी में स्वामी रामानंद के पास पहुँचे और यह कहकर कि संसार में मैं अकेला हूं, उनसे संन्यास की दीक्षा ले ली।
जन्म
कुछ समय बाद स्वामी रामानंद दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए आलंदी गाँव पहुँचे।
वहाँ जब विट्ठल पंत की पत्नी ने उन्हें प्रणाम किया, तो स्वामी जी ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया।
इस पर विट्ठल पंत की पत्नी रुक्मिणी बाई ने कहा-
मुझे आप पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे रहे हैं, पर मेरे पति को तो आपने पहले ही संन्यासी बना लिया है।
इस घटना के बाद स्वामी जी ने काशी आकर विट्ठल पंत को फिर गृहस्थ जीवन अपनाने की आज्ञा दी।
उसके बाद ही उनके तीन पुत्र और कन्या पैदा हुई।
ज्ञानेश्वर इन्हीं में से एक थे।
संत ज्ञानेश्वर के दोनों भाई निवृत्तिनाथ एवं सोपानदेव भी संत स्वभाव के थे।
इनकी बहिन का नाम मुक्ताबाई था।
माता - पिता की मृत्यु
सन्न्यास छोड़कर गृहस्थ बनने के कारण समाज ने ज्ञानेश्वर के पिता विट्ठल पंत का बहिष्कार कर दिया।
वे कोई भी प्रायश्चित करने के लिए तैयार थे, पर शास्त्रकारों ने बताया कि उनके लिए देह त्यागने के अतिरिक्त कोई और प्रायश्चित नहीं है और उनके पुत्र भी जनेऊ धारण नहीं कर सकते।
इस पर विट्ठल पंत ने प्रयाग में त्रिवेणी में जाकर अपनी पत्नी के साथ संगम में डूबकर प्राण दे दिए।
बच्चे अनाथ हो गए। लोगों ने उन्हें गाँव के अपने घर में भी नहीं रहने दिया।
अब उनके सामने भीख माँगकर पेट पालने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह गया।
शुद्धिपत्र की प्राप्ति
बाद के दिनों में ज्ञानेश्वर के बड़े भाई निवृत्तिनाथ की गुरु गैगीनाथ से भेंट हो गई।
वे विट्ठल पंत के गुरु रह चुके थे।
उन्होंने निवृत्तिनाथ को योगमार्ग की दीक्षा और कृष्ण उपासना का उपदेश दिया।
बाद में निवृत्तिनाथ ने ज्ञानेश्वर को भी दीक्षित किया।
फिर ये लोग पंडितों से शुद्धिपत्र लेने के उद्देश्य से पैठण पहुँचे।
वहाँ रहने के दिनों की ज्ञानेश्वर की कई चमत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं।
कहते हैं, उन्होंने भैंस के सिर पर हाथ रखकर उसके मुँह से वेद मंत्रों का उच्चारण कराया।
भैंस को जो डंडे मारे गए, उसके निशान ज्ञानेश्वर के शरीर पर उभर आए।
यह सब देखकर पैठण के पंडितों ने ज्ञानेश्वर और उनके भाई को शुद्धिपत्र दे दिया।
अब उनकी ख्याति अपने गाँव तक पहुँच चुकी थी। वहाँ भी उनका बड़े प्रेम से स्वागत हुआ।
मृत्यु
ऐसे महान संत ज्ञानेश्वरजी ने मात्र 21 वर्ष की उम्र में संसार का परित्याग कर समाधि ग्रहण की तथा 1296 ई. में उनकी मृत्यु हुई।
रचनाएँ
पंद्रह वर्ष की उम्र में ही ज्ञानेश्वर कृष्णभक्त और योगी बन चुके थे।
बड़े भाई निवृत्तिनाथ के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही भगवद्गीता पर टीका लिख डाली।
ज्ञानेश्वरी नाम का यह ग्रंथ मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10 हजार पद्यों में लिखा गया है।
यह भी अद्वैतवादी रचना है, किंतु यह योग पर भी बल देती है।
28 अभंगों ( छंदों ) की इन्होंने हरिपाठ नामक एक पुस्तिका लिखी है, जिस पर भागवतमत का प्रभाव है।
भक्ति का उदगार इसमें अत्यधिक है।
मराठी संतों में ये प्रमुख समझे जाते हैं।
इनकी कविता दार्शनिक तथ्यों से पूर्ण है तथा शिक्षित जनता पर अपना गहरा प्रभाव डालती है।
इसके अतिरिक्त संत ज्ञानेश्वर के रचित कुछ अन्य ग्रंथ हैं-
अमृतानुभव, चांगदेवपासष्टी, योगवशिष्ठ टीका आदि।
ज्ञानेश्वर ने उज्जयिनी, प्रयाग, काशी, गया, अयोध्या, वृंदावन, द्वारका, पंडरपुर आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा की।
।।।। जय जय परशुरामजी ।।।।।।।
*विश्वास (believe) तथा विश्वास (trust) में अंतर*
*एक बार, दो बहुमंजिली इमारतों के बीच, बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े, एक नट चल रहा था । उसने अपने कन्धे पर अपना बेटा बैठा रखा था ।*
*सैंकड़ों, हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए, अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर, उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली ।*
*भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी, तालियाँ, सीटियाँ बजने लगी ।।*
*लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्फी ले रहे थे। उससे हाथ मिला रहे थे । वो कलाकार माइक पर आया, भीड़ को बोला, "क्या आपको विश्वास है कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ ??"*
*भीड़ चिल्लाई, "हाँ हाँ, तुम कर सकते हो ।"*
*उसने पूछा, क्या आपको विश्वास है,भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।*
*कलाकार बोला, पूरा पूरा विश्वास है ना*
*भीड़ बोली, हाँ हाँ*
*कलाकार बोला, "ठीक है, कोई मुझे अपना बच्चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा ।"*
*खामोशी, शांति, चुप्पी फैल गयी।*
*कलाकार बोला, "डर गए...!" अभी तो आपको विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ। असल मे आप का यह विश्वास (believe) है, मुझमेँ विश्वास (trust) नहीं है।दोनों विश्वासों में फर्क है साहेब!*
*यही कहना है, "ईश्वर हैं !" ये तो विश्वास है! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास नहीं है ।*
*You believe in God, but you don't, trust him.*
*अगर ईश्वर में पूर्ण विश्वास है तो चिंता, क्रोध, तनाव क्यों ??? जरा सोचिए !!!*
वधाई वधाई वधाई
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*🎷🎺वधाई वधाई वधाई*🎺🎷
सोने छड़ी, रुपे की मशाल, झरियन के जामा, मोतियन की माला, व्रज के अधिपति, गोकुल के छत्रपति, महाराजाधिराज, गौ, ब्राह्मण प्रतिपाल, रास रासेश्वर, यशोदोत्संगलालित, भक्तवत्सल, जगत प्रतिपालक, अखिल ब्रम्हांड के स्वामी करूणानिधान, नंदके लाला श्री कृष्ण प्रभु के प्राकट्योत्सव ( जन्माष्टमी ) की बहुत बहुत मंगल बधाई.......!🌹🌷🌹* 🥁💃🏽🥁💃🏽🥁💃🏽🥁💃🏽🥁
*"नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की.....!
*जीवन की समग्रता और जीवन की परिपूर्णता ही कृष्ण हो जाना है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि केवल और केवल एक मात्र भगवान श्रीकृष्ण ऐसे देव अथवा व्यक्तित्व हैं जो चौसठ कलाओं से परिपूर्ण हैं।।*
*जीवन का चौसठ कलाओं से परिपूर्ण होने का अर्थ ही जीवन की परिपूर्णता है।
जीवन में सभी गुणों की परिपूर्णता ही श्रीकृष्ण हो जाना भी है।।*
*एक तरफ युद्ध में परिपूर्ण हैं तो दूसरी तरफ शांति में परिपूर्ण हैं।
एक तरफ शस्त्र में परिपूर्ण हैं तो दूसरी तरफ शास्त्र में परिपूर्ण हैं।परिपूर्ण वक्ता हैं तो परिपूर्ण श्रोता भी हैं।
परिपूर्ण नृत्यकार हैं तो परिपूर्ण गीतकार भी हैं।
परिपूर्ण भगवान हैं तो परिपूर्ण भक्त भी हैं।।*
*जिस प्रकार से संसार की सभी नदियाँ गिरकर सागर में मिल जाती हैं उसी प्रकार मनुष्य के समस्त गुणों का मिलकर परिपूर्ण मात्रा में एक जीवन में अथवा एक चरित्र विशेष में आ जाना ही श्रीकृष्ण बन जाना है।।*
*इस लिए ही उन श्रीकृष्ण ने जब भी किया और जो भी किया सदा परिपूर्ण ही किया है।
प्रत्येक कार्य की स्वीकारोक्ति और उसके साथ साथ कार्य कुशलता और कार्य निपुणता वर्तमान समय में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की सबसे प्रधान शिक्षा है।।*
*लीला पुरूषोत्तम योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के मंगलमय पावन प्राकट्य महोत्सव जन्माष्टमी महापर्व की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं मंगल बधाइयाँ!*
*🙏🏽🥁🎻जय श्री कृष्ण*🎻🥁🙏🏽
🚩 *हर हर नर्मदे* 🚩
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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