https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: *इंसान की कीमत* सद्व्यवहार का जादू :

*इंसान की कीमत* सद्व्यवहार का जादू :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

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         *इंसान की कीमत*  सद्व्यवहार का जादू

     
        *इंसान की कीमत* 

✍️एक बार लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पूछा- 

*“पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?”*, 

पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये। 

फिर वे बोले- 

*“बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है।* 

बालक – 

क्या सभी उतने ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ? 

पिताजी – 

हाँ बेटे। 

बालक के कुछ पल्ले पड़ा नहीं।

उसने फिर सवाल किया – 

तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यों है? 







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किसी की कम इज्जत तो किसी की ज्यादा क्यों होती है? 

सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा। 

रॉड लाते ही पिताजी ने पूछा – 

इसकी क्या कीमत होगी? 

बालक – 

लगभग 300 रूपये। 

पिताजी – 







अगर मैं इसके बहुत से छोटे - छोटे कील बना दू, तो इसकी कीमत क्या हो जायेगी ? 

बालक कुछ देर सोच कर बोला – 

तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का। 

पिताजी – 

अगर मैं इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो? 

बालक कुछ देर सोचता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला....! 

” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी।”। 

पिताजी उसे समझाते हुए बोले – 

*“ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नहीं है की अभी वो क्या है, बल्कि इसमें है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है।”* 

बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।


*शिक्षा*:-
     
*हम अपने आपको मूल्यवान भी बना सकते हैं या फिर नीचे भी गिरा सकते हैं।*
      
*तो आज से जो आपको बनना है, उसकी तैयारी शुरू कर दीजिए ।*

सद्व्यवहार का जादू

*सद्व्यवहार का जादू* 






किसी गाँव में एक चोर रहता था। 

एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला ।

जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये। 

अब मरता क्या न करता..!

वह रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया। 

वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं ।

अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा...!

 'खाने पीने को ही कुछ मिल जायेगा। 

तो एक दो दिन का गुजारा चल जायेगा।'

जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहे थे ।

संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले। 

चोर से उनका सामना हो गया। 

साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है। 

उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! 

साधु ने बड़े प्रेम से पूछाः

 "कहो बालक...!

आधी रात को कैसे कष्ट किया ? 

कुछ काम है क्या ?"

चोर बोलाः...!

"महाराज...!

मैं दिन भर का भूखा हूँ।"

साधुः 

"ठीक है, आओ बैठो। 

मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ। 

तुम्हारा पेट भर जायेगा। 

शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते। 

पेट का क्या है बेटा ! 

अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है। 

'यथा लाभ संतोष' यही तो है।"

साधु ने दीपक जलाया। 

चोर को बैठने के लिए आसन दिया ।

पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिये। 

फिर पास में बैठकर उसे इस तरह खिलाया...!

जैसे कोई माँ अपने बच्चे को खिलाती है। 

साधु बाबा के सद्व्यवहार से चोर निहाल हो गया ।

सोचने लगा...!

'एक मैं हूँ और एक ये बाबा हैं। 

मैं चोरी करने आया और ये इतने प्यार से खिला रहे हैं ! 

मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूँ। 

यह भी सच कहा हैः 

आदमी - आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर। 

मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूँ।'

मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं ।

जो समय पाकर जाग उठती हैं। 

जैसे उचित खाद - पानी पाकर बीज पनप जाता है ।

वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं। 

चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गये। 

उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृतवर्षा दृष्टि का लाभ मिला।

*एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।*
*तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।*

उन ब्रह्मनिष्ठ साधुपुरुष के आधे घंटे के समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये। 

साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा। 

फिर उसे लगा कि...!

 'साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी !'

क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है ।

जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !' 

लेकिन फिर सोचा ।

 'साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा।'

इतने दयालू महापुरुष हैं ।

ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे।' 

संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।

उसका भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहाः 

"बेटा...! 

 अब इतनी रात में तुम कहाँ  जाओगे...!

मेरे पास एक चटाई है...!

इसे ले लो और आराम से यहाँ सो जाओ। 

सुबह चले जाना।"

नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। 

वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट - फूट कर रोने लगा। 

साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! 

साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया...!

प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछाः

 "बेटा..! "

" क्या हुआ ?"

रोते - रोते चोर का गला रूँध गया। 

उसने बड़ी कठिनाई से अपने को सँभालकर कहाः 

"महाराज...!" 

" मैं बड़ा अपराधी हूँ।"

साधु बोलेः...!

"बेटा...! 
 
भगवान तो सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं। 

उनकी शरण में जाने से वे बड़े - से - बड़े अपराध क्षमा कर देते हैं। 

तू उन्हीं की शरण में जा।"

चोरः...!

" महाराज ! ”

" मेरे जैसे पापी का उद्धार नहीं हो सकता।"

साधुः "अरे पगले ! 

भगवान ने कहा हैः...!

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है।"

"नहीं महाराज ! 

मैंने बड़ी चोरियाँ की हैं। 

आज भी मैं भूख से व्याकुल होकर आपके यहाँ चोरी करने आया था ।

लेकिन आपके सदव्यवहार ने तो मेरा जीवन ही पलट दिया। 

आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ ।

कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा ।

किसी जीव को नहीं सताऊँगा। 

आप मुझे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लीजिये।"

साधु के प्यार के जादू ने चोर को साधु बना दिया। 

उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके अमूल्य मानव जीवन को अमूल्य - से - अमूल्य परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।

महापुरुषों की सीख है कि...! 

"आप सबसे आत्मवत् व्यवहार करें क्योंकि...!

सुखी जीवन के लिए विशुद्ध निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है। 

संसार इसी की भूख से मर रहा है। 

अतः प्रेम का वितरण करो। 

अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो। 

*उदारता के साथ उसे बाँटो, जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जायेगा।"*
जय द्वारकाधीश....!!!

||मुमुक्षुता :—||

वेदांत का प्रथम द्वार, गुरुदेव भगवान ऐसा कहते हैं कि जिसके हृदय में संसार से वैराग्य और आत्मज्ञान की प्यास तीव्र है ,वही सच्चा मुमुक्षु है ।

1- मुमुक्षु कौन है ?

जो यह जान गया है कि यह संसार असार है ।

जिसे यह अनुभव हुआ है कि धन,संबंध, प्रतिष्ठा, मान सम्मान आदि सब क्षणिक हैं । 

जो यह जानकर भीतर से पुकारता है।

अब बस ! 

अब मुझे केवल सत्य चाहिए,केवल आत्मा का अनुभव चाहिए !

2- क्यों जरूरी है मुमुक्षुता ?

जैसे भूखे को रोटी की,प्यासे को पानी की तड़प होती है वैसे ही आत्मा के दर्शन की तड़प,मुमुक्षुता की तड़प के बिना, वेदांत का ज्ञान केवल शब्द रह जाएगा ।

3- मुमुक्षुता कैसे प्रकट होती है ? 

बार - बार यह समझने से कि संसार में सुख नहीं है । 

सत्संग,शास्त्र-चिंतन और गुरुदेव की कृपा से,भीतर का एक आर्त पुकार हे प्रभु ! 

मुझे मुक्त करो !

4- मुमुक्षुता के चार लक्षण (संक्षेप में) :--

1- विवेक :–
क्या शाश्वत है, क्या नाशवान है,इसका निर्णय!

2- वैराग्य :– अस्थायी वस्तुओं से मन हटाना । 

3-षट्सम्पत्ति :– मन की स्थिरता और संयम 
                      (शम ,दम ,उपरति , तितिक्षा,श्रद्धा, (समाधान)

4-मुमुक्षुता :– मुक्ति की तीव्र इच्छा ।

परमात्मा कहते हैं कि मुमुक्षुता वह आग है जिसमें अहंकार,वासनाएँ और संसार की माया जल जाती है यह वही अग्नि है जो साधक को आत्मा तक पहुँचाती है ।

संक्षेप में सार -

मुमुक्षता ही वेदांत का प्रवेश द्वार है।यह साधक को संसार से ऊपर उठाकर आत्मा के अनुभव की ओर ले जाती है ।

गुरुकृपा से जब मुमुक्षुता की प्यास जागती है , तब ही जीवन में सच्ची साधना शुरू होती है । 

    *🙏सादर जय श्री कृष्ण 🙏*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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