सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋग्वेद श्री अथर्वेद श्री सामवेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेशजी के पूजन और विषर्जन नही क्यों किया जाता है , सुंदर वर्णन ।।
।। श्री ऋग्वेद श्री अथर्वेद श्री सामवेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेशजी के पूजन और विषर्जन नही क्यों किया जाता है ।।
★★श्रीऋग्वेद श्री अथर्वेद श्री सामवेद के अनुसार श्री गणेशजी के पूजन और श्री विष्णुपुराण के अनुसार विदा नही किया जाता है ।
हर साल में भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन ही श्री गणेश चतुर्थी मनाया जाता है ।
गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
श्री ऋग्वेद के अनुसार हर साल में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय विघ्नविनाशक श्री गणेश का जन्म हुआ था |
अत: यह तिथि मध्याह्नव्यापिनी लेनी चाहिए |
इस दिन रविवार अथवा मंगलवार हो तो प्रशस्त है |
गणेश जी हिन्दुओं के प्रथमपूज्य देवता हैं |
सनातन धर्मानुयायी स्मार्तों के पञ्चदेवताओं में गणेशजी प्रमुख हैं |
हिन्दुओं के घर में चाहे पूजा या क्रियाकर्म हो, सर्वप्रथम श्रीगणेश जी का आवाहन और पूजन किया जाता है |
शुभ कार्यों में गणेश जी की स्तुति का अत्यन्त महत्त्व माना गया है |
गणेशजी विघ्नों को दूर करने वाले देवता हैं |
इनका मुख हाथी का, उदर लंबा तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है |
मोदक इन्हें विशेषप्रिय है |
बंगाल की दुर्गापूजा की तरह महाराष्ट्र में गणेशपूजा एक राष्ट्रिय पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है |
गणेशचतुर्थी के दिन नक्तव्रत का विधान है |
अत: भोजन सांयकाल करना चाहिए तथा पूजा यथासंभव मध्याह्न में ही करनी चाहिए ।
क्योंकि---
“पूजाव्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नव्यापिनी तिथि: |”
....अर्थात् सभी पूजा-व्रतों में मध्याह्नव्यापिनी तिथि लेनी चाहिए |
भाद्रपद मास क्व शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त हो कर अपनी शक्ति के अनुसार...!
सोने,चाँदी ,तांबे,मिट्टी, पीतल अथवा गोबर से गणेश की प्रतिमा बनाए या बनी हुई प्रतिमा का पुराणों में वर्णित गणेश जी के गजानन, लम्बोदरस्वरूप का ध्यान करे और अक्षत-पुष्प लेकर निम्न संकल्प करे—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य दक्षिणायने सूर्ये वर्षर्तौ भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे गणेशचतुर्थ्यां तिथौ अमुकगोत्रोऽमुक शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहं विद्याऽऽरोगीपुत्रधनप्राप्तिपूर्वकं सपरिवारस्य मम सर्वसंकटनिवारणार्थं श्रीगणपतिप्रसादसिद्धये चतुर्थीव्रतांगत्वेन श्रीगणपतिदेवस्य यथालब्धोपचारै: पूजनं करिष्ये |
हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प इत्यादि गणेशजीके पास छोड़ दें |
इसके बाद विघ्नेश्वर का यथाविधि “ ॐ गं गणपतये नम:” से पूजन कर दक्षिणा के पश्चात् आरती कर गणेशजी को नमस्कार करे एवं गणेशजी की मूर्त पर सिंदूर चढ़ाए |
मोदक और दूर्वा की इस पूजा में विशेषता है |
अत: पूजा के अवसर पर 21 दूर्वादल भी रखें |
तथा उनमें से 2 - 2 दूर्वा निम्नलिखित दस नाम मन्त्रों से क्रमश: चढ़ाएं ----
१-ॐ गणाधिपाय नम: ,
२- ॐ उमापुत्राय नम:,
३- ॐ विघ्ननाशनाय नम:,
४- ॐ विनायकाय नम:,
५-ॐ ईशपुत्राय नम:,
६-ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:,
७-ॐ एकदन्ताय नम:,
८-इभवक्त्राय नम:,
९-ॐ मूषकवाहनाय नम:,
१०- ॐ कुमारगौरवे नम: |
पश्चात् दसों नामों का एक साथ उच्चारण कर अवशिष्ट एक दूब चढ़ाएं |
इसी प्रकार 21 लड्डू भी गणेशपूजा में आवश्यक होते हैं |
इक्कीस लड्डू का भोग रखकर पांच लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और पांच, ब्राह्मण को दे दें एवं शेष को प्रसाद स्वरूप में स्वयं लेलें तथा परिवार के लोगों में बाँट दें |
पूजन की यह विधि चतुर्थी के मध्याह्न में करें |
ब्राह्मणभोजन कराकर दक्षिणा दे और स्वयं भोजन करें |
पूजन के पश्चात् नीचे लिखे वह सब सामग्री ब्राह्मण को निवेदन करें |
“दानेनानेन देवेश प्रीतो भव गणेश्वर |
सर्वत्र सर्वदा देव निर्विघ्नं कुरु सर्वदा |
मानोन्नतिं च राज्यं च पुत्रपौत्रान् प्रदेहि मे |”
इस व्रत से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं, क्योंकि विघ्नहर गणेशजी के प्रसान्न होने पर क्या दुर्लभ है ?
गणेशजी का यह पूजन बुद्धि,विद्या,तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति एवं विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है |
कई व्यक्ति श्रीगणेशसहस्रनामावली के एक हजार नामों से प्रत्येक नाम के उच्चारण के साथ लड्डू अथवा दूर्वादल आदि श्रीगणेशजी को अर्पित करते हैं |
इसे गणपतिसहस्रार्चन कहा जाता है |
श्रीऋग्वेद , श्रीअथर्वेद , श्रीसामवेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्रीगणेश जी को कभी भी विदा नहीं करना चाहिए ।
क्योंकि विघ्न हरता ही अगर विदा हो गए तुम्हारे विघ्न कौन हरेगा।
क्या कभी सोचा है गणेश प्रतिमा का विसर्जन क्यों?
अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा देखी गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, और 3 या 5 या 7 या 11 दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करेंगे।
आप सब से निवेदन है कि आप छोटे से मूर्ति की श्रीगणपति की स्थापना करें पर विसर्जन नही विसर्जन केवल महाराष्ट्र में ही होता हैं।
क्योंकि श्रीगणपति परिवार सहित वहाँ एक मेहमान बनकर गये थे ।
वहाँ लाल बाग के राजा कार्तिकेय ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था ।
जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि वहीँ रही इनके रहने से लाल बाग धन धान्य से परिपूर्ण हो गया ।
तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
अब रही बात देश की अन्य स्थानों की तो श्रीगणेश जी हमारे घर के मालिक हैं और घर के मालिक को कभी विदा नही करते ।
वहीं अगर हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ लक्ष्मी जी व रिद्धि सिद्धि भी चली जायेगी तो जीवन मे बचा ही क्या।
हम बड़े शौक से कहते हैं ।
*गणपति बाप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ*
इसका मतलब हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को जबरदस्ती पानी मे बहा दिया ।
तो आप खुद सोचो कि आप किस प्रकार से नवरात्रि पूजा करोगे ।
किस प्रकार दीपावली पूजन करोगे और क्या किसी भी शुभ कार्य को करने का अधिकार रखते हो जब आपने उन्हें एक वर्ष के लिए भेज दिया।
इस लिए श्रीगणेश जी की स्थापना करें पर विसर्जन कभी न करे।
*निवेदन* - आगामी श्री गणेश चतुर्थी पर श्री गणपति जी की पारंपरिक छोटी सी मूर्ति ख़रीदे ।
जिसमे गणेश जी के मूल स्वरुप की प्रतिकृति हो, ऋद्धि-सिद्धि विद्यमान हो ।
बाहुबली गणेश , सेल्फ़ी लेते हुए स्कूटर चलाते हुए ऑटो चलाते हुए बॉडी बिल्डर बाहुबली सिक्स पैक या अन्य किसी प्रकार के अभद्र स्वरुप में गणेश जी को बिठाने का कोई औचित्य नहीं है सनातन धर्म की हँसी उड़ाई जा रही है..
*अपने धर्म का मज़ाक न उड़ायें*
सभी से निवेदन है समझदारी का परिचय देवे , और सही श्री गणेश जी की छोटी प्रतिमा का स्थापना करे धर में रोज सुबह ही उसकी पूजन करे ।
*ॐ एकदंताय नमो नमः*
!!!!! शुभमस्तु !!!
।। सुंदर वर्णन ।।
जो मन को नियंत्रित नहीं करते,
उनके लिए वह शत्रु के समान
कार्य करता है।
हमारे जीवन में अच्छाई व बुराई,
सकारात्मकता व नकारात्मकता,
हमारी अपनी सोच से ही उत्पन्न
होती है, व हमारे जीवन को पूर्ण
रूप से प्रभावित करते हैं। हमारी
सोच, हमारे विचार तथा हमारे
संस्कार हमारी इच्छाओं के द्वारा
एवं मन में चल रही उथल-पुथल
से ही निर्देशित व संचालित होते
हैं। ऐसे में यदि हमारा अपने मन
पर नियंत्रण नही रहता, तो फिर
निश्चित जानिए, स्वयं हमारा मन
ही एक शत्रु समान व्यवहार करते
हुए हमारे जीवन को सम्पूर्ण रूप
से अनियंत्रित व अव्यवस्थित कर
देगा। अतः अपने मन एवं विचारों
पर नियंत्रण करना सीखिए, जिस
के लिए निरंतर प्रयास व साधना
की आवश्यकता होती है।
*आप किसी को नहीं बदल सकते अपने आप को बदलिए हक़ से*
*अपने दिल में जो है*
*उसे कहने का साहस,*
*और*
*दूसरों के दिल में जो है*
*उसे समझने की कला*
*अगर है,*
*तो रिश्ते कभी टूटेंगे नहीं*
*ख़ुश रहो मस्त रहो हक़ से यह दुनियाँ रंग बिरंगी है ऐसे ही चलती रहेगी*
।।।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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