सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।
।। तृष्णैका तरुणायते - श्रीराम की दिव्य अयोध्या - ।।
तृष्णैका तरुणायते
🌇 यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण- शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है।
जरा किसी को भी नहीं छोड़ती।
( जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल )
🌇 " तृष्णैका तरुणायते "
लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती ।
सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है।
घर बन जाये यह आवश्यकता है ।
अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ?
दो तीन घर होने चाहियें ।
बस इसी का नाम तृष्णा है।
🌇 तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती।
विवेकवान बनो....
बिचारवान बनो....
और.....
सावधान होओ।
खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो।
कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है।
जय मुरली मनोहर !
जय श्री राधे कृष्ण !!
।। - श्रीराम की दिव्य अयोध्या - ।।
' जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि'
जो सर्वत्र रमे वहीं राम है।
परमात्मा धरा के पाप को कम करने और धर्म की स्थापना हेतु बार - बार अंश सहित अवतार होता है।
आज जिस ब्रह्माण्ड में हम लोग रहते हैं-
यह चौदह लोकों से व्याप्त है।
यह प्राकृत ब्रह्माण्ड साठ करोड़ योजना ऊंचा और पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है।
पृथ्वी का घेरा एक करोड़ योजना का है तो जल का घेरा दस करोड़ योजन, अग्नि का घेरा सौ करोड़ योजन और वायु का घेरा हजार करोड़ योजन परिमाण का है।
आकाश का आवरण दस हजार करोड़ योजन का है।
अहंकार का आवरण एक लाख करोड़ योजन तथा प्रकृति का आवरण असंख्य योजन कहा गया है।
इसी ब्रह्माण्ड में जम्बू द्वीप में भारत - वर्ष है जहां अयोध्या नगरी है।
यह पावन सरयू नदी के तट पर बसी है।
अयोध्या का तात्पर्य जहां कोई युद्ध नहीं हो।
सर्वत्र अमन - चैन।
इस पावन नगरी में ही भगवान श्रीराम द्वादश कला लेकर राजा दशरथ के राजमहल में चारों भाई एवं एक बहन सहित अवतरित हुए थे।
वह देश, वह नगर,वह नदी , वह कुल, वह कोख धन्य है जहां पर प्रभु का प्राकट्य हुआ हो।
अयोध्या नगरी के अनेक नाम मिलते हैं-
नंदिनी, सत्या,साकेत,कोसला, राजधानी,ब्रह्मपुरी और अपराजिता।
अयोध्या नगरी की आकृति शास्त्रानुसार अष्टदल कमल की तरह है।
नौ द्वारों से युक्त है।
यह धर्म के धनी लोगों की नगरी है।
अथर्ववेद के मंत्रसंहिता के दसवें काण्ड के दूसरे सूक्त में अयोध्या का जितना वर्णन है, उतना किसी भी पुरी का वेद में वर्णन नहीं है।
इसी लिए सप्त पुरियों में इसका नाम प्रथम आता है-
' अयोध्या मथुरा माया काशी कांची ह्यवंतिका पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका। '
यह मोक्षदायिनी पुरी है।
यह पुण्य लीला भूमि है।
अयोध्या के चारों ओर कनकोज्ज्वल,दिव्यप्रकाश वाला आवरण है।
इसके द्वार पर सरयू नदी क्रीड़ा करती है और चरण पखारती है।
अयोध्या के आठों घेरे में प्रथम घेरे में शुभ्र ब्रह्ममयी ज्योति प्रकाशित है।
द्वितीय घेरे में सरयू नदी है ।
तीसरे घेरे में महाशिव, महाब्रह्मा, महेंद्र,वरुण, कुबेर, धर्मराज,दिक्पाल,महासूर्य, महाचण्ड,यक्ष, गंधर्व, गुह्यक,किन्नर, विद्याधर,सिद्ध ,चारण, सिद्धियां और निधियां निवास करती हैं।
चौथे घेरे में वेद,पुराण,ज्योतिष, काल, कर्म गुणादि निवास करते हैं।
पांचवें घेरे में भगवान का ध्यान करने वाले योगी और ज्ञानीजन निवास करते हैं।
छठवें घेरे में मिथिला पुरी, चित्रकूट, वृंदावन, महावैकुण्ठ हैं।
सातवें घेरे में विहारवन, पारिजातवन,अशोकवन सहित बारह उपवन हैं।
आठवें घेरे में भगवान के पार्षदगण रहते हैं।
भगवान राघवेन्द्र की राजधानी अयोध्या पुरी देवताओं ऋषियों, मुनियों द्वारा उपासित है।
।। जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम ।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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