https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 🙏 भगवान जगन्नाथजी के प्रागट्य की कथा...! 🙏

🙏 भगवान जगन्नाथजी के प्रागट्य की कथा...! 🙏

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

🙏 भगवान जगन्नाथजी के प्रागट्य की कथा...! 🙏


🙏🙏🙏भगवान जगन्नाथ के प्रागट्य की कथा....🙏🙏🙏

द्वापरयुग के समय की बात है । 

द्वारका में भगवान श्री कृष्णचन्द्रजी की पटरानियों ने एक बार माता रोहिणीजी के भवन जाकर उनसे आग्रह पूर्वक किया कि वे उन्हें श्यामसुंदरजी व्रज लीला के गोपी प्रेम - प्रसंग को सुनाए । 

माता ने इस बात को टालने के बहुत प्रयत्न किया ! 

किंतु पटरानियों की आग्रह के कारण उन्हें वह वर्णन सुनाने की प्रस्तुत होना ही पड़ा । 

ऊँचीत भी नही था कि सुभद्राजी भी वहां रहे । 

अंतः माता रोहिणी ने सुभद्राजी को भवन के बहार द्वार पर खड़े रहने को कहा और आदेश दे दिया कि भीतर कोई किसी को भी अंदर न आने देना । 

संयोगवश उसी समय श्री कृष्ण और बलराम वहां पधारे हुवे थे । 

सुभद्राजी ने द्वार पर ही बीच मे खड़ा रहकर अपना दोनो हाथ फैलाकर लंबा कर दिया गया दोनो भाइयो को अंदर जाने से रोक दिया गया ।

बंध द्वार के भींतर जो व्रज प्रेम की बाते हो रही थी । 

उसे द्वार के बाहर से ही साफ साफ सुनकर तीनो के शरीर द्रवित होने लगे ।

वह ही उसी समय देवर्षि नारदजी वहां पधार चुके थे । 

देवर्षि नारदजी ने यह जो प्रेम - 

द्रवित रूप देखा तो प्रार्थना किया --- 

' आप तीनो इसी रूप में बिराजमान हो '
 
 श्रीकृष्णचंद्र ने स्वीकार किया --

' कलियुग में दारुविग्रह में इसी रूप में हम तीनों स्थित होंगे ।'



प्राचीन काल मे मालवदेश के नरेश इन्द्रधुमन को पता लगा कि उत्कलप्रदेश में कहीं नीलाचल पर भगवान नीलमाधव का देवपूजित श्रीविग्रह है । 

ये भी पूरा तरह परम् विष्णु के ही भक्त थे । 

उस श्रीविग्रह का दर्शन करने के बहुत प्रयत्न में लग गए ।  

बहुत महेनत करने के बाद उनको स्थान का पत्ता लग भी गया....! 

किंतु ये वहां पहुचे इसके पूर्व ही देवता उस श्रीविग्रह को लेकर अपने लोक में चले गए थे । 

उसी समय पर ही आकाशवाणी हुई के दारूब्रह्मस्वरूप में तुम्हे अब श्री जगन्नाथजी के दर्शन होंगे ।

मगराज इन्द्रधुमन सह परिवार सगा सबंधित ओर मित्र मंडल सहित आये थे वे नीलाचल के पास ही बस गए । 

एक दिन की बात है जब समुन्द्र में बहुत तूफान आ गया उसमे बहुत बड़ा काष्ट ( महादारु ) बहकर आया । 

राजा ने उसे निकलवा ने का हुक्म किया लेकिन वो काष्ट ( महादारु ) इतना बड़ा था कि एक दो आदमी तो उसे निकाल नही पाए बहुत लोग रसीओ लेकर जुत गया तब कष्ट ( महादारु ) को समुन्द्र से बहार निकाल पाए थे । 

इस से राजा ने विष्णुमूर्ति बनवाने का निश्चय कर ही लिये । 

उसी समय मे वृद्ध बढई के रूप में विश्वकर्मा ही उपस्थित हुवे । 

उन्हों ने मूर्ति बनाना स्वीकार कर लिया ; 

किंतु यह निश्चय करा लिया कि जबतक वे सूचित न करे ! 

उनका वह ग्रह खोला नही जाएगा , जिसमे मूर्ति बनायेगे । 

महादारु को लेकर ये वृद्ध बढ़ई गुंडीचा मंदिर के अंदर स्थान पर ही भवन में बंध हो गया ।  

अनेक दिन व्यतीत हो गए । महारानी ने आग्रह प्रारंभ किया -- 

' इतने दिनों में वह वृद्ध मूर्तिकार अवश्य भूखे प्यासे मर गया होगा या मरणासन्न होगा । 

भवन के द्वार खोलकर उसकी अवस्था देख लेनी चाहिए । 

महाराज ने द्वार खुलवाया । 

बढई तो अदृश्य हो चुका था....! 

किंतु वहाँ श्री जगन्नाथ , सुभद्रा तथा बलभद्रजी की असम्पूर्ण प्रतिमा मिली ।  

राजा को बड़ा ही दुःख हुवा के मूर्तियों का काम सम्पूर्ण न होने से....! 

किंतु उसी समय आकाशवाणी हुई --- 

' चिंता मत करो ! 

इसी रूप में रहने की हमारी इच्छा है । 

मूर्तियों पर पवित्र द्रव्य ( रंग आदि ) चढ़ाकर उन्हें प्रतिस्थापित कर दो ! '
 
इस आकाशवाणी के अनुसार वे ही मूर्तियों प्रतिष्ठित हुई । 

गुंडीचा मंदिर के पास मूर्ति - निर्माण हुआ था....! 

अंतः गुंडीचा मंदिर को ब्रह्मलोक या जनकपुर कहते है । 

द्वारिका में एक बार श्री सुभद्राजी ने नगर देखना चाहा । 

श्री कृष्ण तथा बलरामजी ने उन्हें पृथक रथ में बैठाकर.....! 

अपने रथों के मध्यमे उनका रथ करके उन्हें नगर दर्शन कराने ले गए । 

इसी घटना के स्मारक - रूप में यहां रथ यात्रा निकलती है ।

।। जय द्वारकाधीश ।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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