https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1

‼️श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण श्री शिवमहापुराण के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि के फल , *पुर्ण निष्ठा और ईमानदारी* ‼️

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

‼️श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण श्री शिवमहापुराण के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि के फल  , *पुर्ण निष्ठा और ईमानदारी* ‼️

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण श्री शिवमहापुराण के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि के फल ।।


★★श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद श्री और श्री विष्णुपुराण श्री शिवमहापुराण के आधारित
 गणेश चतुर्थी फ़ल।



सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? 

आइये जानते है।

प्रभु राज्यगुरु के अनुसार श्री यजुर्वेद के आधारित महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।

लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था।

अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।

गणपती जी ने सहमति दी और दिन - रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। 

अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इस लिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। 

मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा। 

महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। 
अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।

वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। 

इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। 

तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी। 

इन दस दिनों में इसी लिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।

गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। 

मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। 

इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। 

गणेश जी को ऋद्धि - सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। 

इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।

*‬पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व*

 आचार्य प्रभु राज्यगुरु के अनुसार  श्री ऋग्वेद में दिये हुवे अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं।

(1) श्री गणेश मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!                         

(2) हेरम्बगुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे। 
                                         
(3) वाक्पति भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।

 (4) उच्चिष्ठ गणेश लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री  सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे। 

(5) कलहप्रिय नमक की डली या नमक  के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे। 

(6) गोबरगणेश गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है ( गोबर केवल गौ माता का ही हो )।
                           
(7) श्वेतार्क श्री गणेश सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे। 
                       
(8) शत्रुंजय कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
                           
(9) हरिद्रा गणेश हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे।

(10) सन्तान गणेश मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।

(11) धान्यगणेश सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।    

(12) महागणेश लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।

*पूजन मुहूर्त*

गणपति स्वयं ही मुहूर्त है। 

सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इस लिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिन भर कभी भी स्थापन कर सकते है। 

सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है आचार्य प्रभु राज्यगुरु के अनुसार इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है।

मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है । 

क्योंकि श्री विष्णुपुराण श्री शिवमहापुराण और श्री ऋग्वेद के अनुसार मान्यता है कि हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। 

मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है। 

गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यंतशुभ माना जाता है। 

*गणेश चतुर्थी पूजन*



हर साल खगोडिय ज्योतिष विधा गणित अनुसार पूजन के समय मे भी बहुत तफवत अलग अलग ही रहता है ।

( इस साल के आज दिन का खगोडिय ज्योतिष विधा के अनुसार पूर्ण पूजन मुहर्त दिया हुवा है )

मध्याह्न गणेश पूजा 
  11:03 से 13:31

चतुर्थी तिथि आरंभ
 (10 सितंबर 2021) रात्रि 00:16 से।

चतुर्थी तिथि समाप्त
 रात्रि 21:57 पर।

पंचांग के अनुसार अभिजित मुहूर्त सुबह लगभग 11.49 से दोपहर 12.39 तक रहेगा। इस समय के बीच श्रीगणेश पूजा आरम्भ कर देनी आवश्यक है।

चंद्रदर्शन से बचने का समय 09:11 से 20:55 (10 सितंबर 2021)

*चतुर्थी,चंद्रदर्शन और कलंक पौराणिक मान्यता*

हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि यानी गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी चंद्र दर्शन न करें वर्ना आपके उपर बड़ा कलंक लग सकता है। 

इसके पीछे एक पौराणिक कथा का दृष्टांत है।

एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। 

चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। 

जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। 

इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। 

तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। 

तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो। 

तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। 

भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। 

इस लिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। 

ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। 

इस लिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।

भाद्रपद ( भादव ) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के चन्द्रमा के दर्शन हो जाने से कलंक लगता है। 

अर्थात् अपकीर्ति होती है। 

भगवान् श्रीकृष्ण को सत्राजित् ने स्यमन्तक मणि की चोरी लगायी थी।

यदि भाद्रपद ( भादव )  के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो कलंक से कैसे छूटें ?

यदि उसके दो दिन पहले मतलब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया का चंद्र्मा आपने देख लिया है तो चतुर्थी का चन्द्र आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।

या भागवत की स्यमन्तक मणि की कथा सुन लीजिए ।

अथवा निम्नलिखित मन्त्र का 21 बार जप करलें -

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

यदि आप इन उपायों में कोई भी नहीं कर सकते हैं तो एक सरल उपाय बता रहा हूँ उसे सब लोग कर सकते हैं । 

एक लड्डू किसी भी पड़ोसी के घर पर फेंक दे ।

हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि को चंद्र दर्शन से बचने का समय अलग अलग होता रहता है - 

दाखला तरीके आज के दिन का समय -
09:11 से 20:55 (10 सितंबर 2021)

* हर साल गौचर के ग्रहों नक्षत्र योग करण बल के आधारित राशि के अनुसार करें गणेश जी का पूजन के अलग अलग महत्व होता है*

( इस मे दिया हुवा राशी अनुसार गणेश पूजन के फल सिर्फ इस  एक ही साल के खगोडिय गणित के अनुसार आधारित है )

गणेशचतुर्थी के दिन सभी लोग को अपने सामर्थ्य एवं श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करते है। 

फिर भी राशि स्वामी के अनुसार यदि विशेष पूजन किया जाए तो विशेष लाभ भी प्राप्त होगा।

*मेष एवं बृश्चिक राशि*

 आप अपने राशि स्वामी का ध्यान करते हुए लड्डु का विशेष भोग लगावें आपके सामथ्र्य का विकास हो सकता है।

*बृष एवं तुला  राशी*

 आप भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग विशेष रूप से लगावें आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है।

*मिथुन एवं कन्या राशि* 

गणेश जी को पान अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे आपको विद्या एवं बुद्धि की प्राप्ति होगी।

*धनु एवं सिंह राशि*  

 फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सुख, सुविधा एवं आनन्द की प्राप्ति हो सके।

*मकर एवं कुंभराशि* 

आप सुखे मेवे का भोग लगाये। जिससे आप अपने कर्म के क्षेत्र में तरक्की कर सकें।

 *सिंह राशि*

  केले का विशेष भोग लगाना चाहिए जिससे जीवन में तीव्र गति से आगे बढ़ सकें।

*कर्क राशि*

खील एवं धान के लावा और बताशे का भोग लगाए जिससे आपका जीवन सुख-शांति से भरपूर हो

*गणेश महोत्सव की हर साल की तिथिया*

1-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चौथ तिथि
गणेश चतुर्थी व्रत- ।

2-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की पांचम तिथि
ऋषि पंचमी -

3-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की छठ तिथि 
मोरछठ-चम्पा सूर्य, बलदेव षष्ठी, श्री महालक्ष्मी व्रत आरम्भ -

4-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की सातम तिथि
संतान सप्तमी -

5-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की आठम तिथि
ऋषिदधीचि जन्म, राधाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण - 

6-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की नोम तिथि 
चंद्रनवमी (अदुख) नवमी -

7-   भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की दशम तिथि
तेजा दशमी, रामदेव जयंती - ( इस उत्सवम ज्यादातर राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश में किया जाते है )

8-  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की अगियार तिथि
पद्मा, जलझूलनी एकादशी, श्रीवामान अवतार -

9 -  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चौदस तिथि अनन्त चतुर्दशी, गणपति विसर्जन -


         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

‼️ *पुर्ण निष्ठा और ईमानदारी* ‼️


एक समय की बात है । एक दिन संत अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नगर से होकर जा रहे थे । 

वह नगर आस – पास के सभी नगरों का व्यापारिक केंद्र होने के कारण धन – संपत्ति से परिपूर्ण था ।
 


उस नगर में भगवान शिव का एक भव्य मंदिर था, जिसे देखने की इच्छा से संत और उनके शिष्य मंदिर जा पहुंचे । 

मंदिर पहुँच कर उन्होंने देखा कि मंदिर के बाहर कुछ लोग इकट्ठे होकर मंदिर को और अधिक सुन्दर बनाने के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे है । 

यह देख संत को हंसी आ गई ।

जब उन्होंने मंदिर के अन्दर प्रवेश किया तो देखा कि द्वार पर एक ब्राह्मण दान पात्र लगाकर शिवजी का पाठ कर रहा है साथ ही दान पात्र पर भी बराबर नजर बनाये हुए है । 

यह देखकर फिर संत को हंसी आ गई । 

जब संत अपने शिष्यों के साथ गर्भ गृह में पहुंचे तो देखा कि शिवजी की मूर्ति की बगल में एक पुजारी बैठा है, जो वहाँ चढ़ाये जाने वाले चढ़ावे को एकत्रित कर रहा था । 

जब संत मंदिर से बाहर निकले तो देखा कि उस पुजारी ने वह सारा चढ़ावा एक दुकान पर बेच दिया और पैसा अपनी जेब में रखकर चल दिया। 

यह देख संत को फिर हंसी आ गई ।

अब संत नगर के बाजार की ओर चल दिए । थोड़ी दूर चलने के बाद संत ने देखा कि कोई बहुत ऊँची आवाज में भाषण दे रहा है । 

जब और नजदीक गए तो पता चला कि कोई श्री श्री १००८ संत श्रीमद्भागवत का कथावाचन कर रहे है । 

जब उनके कुछ अनुनायियों से पूछा गया तो पता चला कि महाराज एक दिन कथावाचन का २ लाख रूपये लेते है । 

यह सुनकर संत को फिर हंसी आ गई ।

संत वहाँ से आगे बढ़कर अपने आश्रम की ओर चल दिए । रास्ते में उन्होंने देखा कि एक वैद्यजी एक कुत्ते की चिकित्सा कर रहे थे । 

संत उन वैद्यजी के घर की और चल दिए । संत ने पूछा – वैद्यजी ! क्या यह आपका पालतू कुत्ता है ?

वैद्यजी बोले – “ नहीं महात्मन् ! कल रात को इसे किसी ने पत्थर मार दिया इसलिए बहुत चिल्ला रहा था । 

मुझे घाव भरने की ओषधियों का ज्ञान है अतः मैं इसे अपने घर ले आया ।

संत बोले – “किन्तु यह तो आपको कोई धन नहीं देगा, फिर आप इसकी चिकित्सा क्यों कर रहे है ?

वैद्यजी बोले – “ महात्मन् ! मैं एक वैद्य हूँ और अपनी विद्या से मैं किसी का दुःख दूर कर सकू, यही मेरा धर्मं है । 

मुझे अपने धर्म के पालन के लिए धन की आवश्यकता नहीं ।”

यह सुनकर संत की आँखों में आँसू आ गये । 

अब संत अपने शिष्यों के साथ अपने आश्रम की ओर चल दिए । 

जब आश्रम पहुंचे तो एक शिष्य अपने आचार्य के लिए जल लाया और उत्सुकता की दृष्टि से संत की और देखने लगा । 

संत अपने शिष्य की मनोदशा को समझ गये, उन्होंने कहा – बोलो कुमार ! किस बारे में जानना चाहते हो ?

शिष्य – आचार्य ! मुझे आपके चार बार हंसने और एक बार रोने का रहस्य समझा दीजिये ।

संत बोले – कुमार ! पहले चार स्थानों पर मैं यह सोचकर हँसा की लोग धर्म से कितने अनजान है ! 

जिन लोगों को मंदिर में बैठकर ज्ञान चर्चा करना चाहिए, वह उसे और भव्य बनाने के लिए धन जुटाने के लिए लगे है । 


जिस ब्राह्मण का धर्म ब्रह्म की उपासना है, वह धन के लोभ में शिवजी के पाठ करने का ढोंग कर रहा है । 

जिस पुजारी का धर्म पूजा के प्रति समर्पित होना चाहिए वह शिवजी के चढ़ावे को बेचकर अपनी जेब भर रहा है । 

जिन श्री श्री १००८ महाराज को ज्ञान दान मुफ्त में करना चाहिए वह उस श्रीमद्भागवत गीता के ज्ञान को लाखों रुपयों में बेच रहे है । 

कुमार ! यह सब लोग धर्म के नाम पर अधर्म द्वारा ठगे जा रहे है । 

किन्तु मुझे उस वैद्य की निस्वार्थ सेवा ने रुला दिया । जिसने अपने वैद्य के धर्म के पालन के लिए धन की भी परवाह नहीं की । असल में वही सच्चा धर्मात्मा है ।

कुमार को अब धर्म का रहस्य समझ में आ चूका था । अब वह समझ चूका था कि –

*असली धर्म क्रियाओं में नहीं संवेदनाओं में निवास करता है ।अंत में आपसे पुनः निवेदन है कि आप करोना काल में मानवीय दूरी का पालन करें मास्क का प्रयोग करें &चीन के सामान का बहिष्कार करें और स्वदेशी सामान अपनाए ताकि आने वाले आर्थिक संकट का सामना हम कर सके।*

*घर पर रहिए,दूरी बनाये रखिये,कोरोना से बचे रहिए,अभी लड़ाई बाकी है, अपनी जीत निश्चित है*

*ज्ञानरहित भक्ति-अंधविश्वास*
*भक्तिरहित ज्ञान-नास्तिकता*

*जय श्री राम*
*सदैव प्रसन्न रहिये*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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