https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1

आज काल के समय में सच्चे कथाकार संत और ढोंगी कथाकार असन्त में कितना फर्क है.?....भाग 4 , यमराज की मृत्यु कैसे हुई?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

आज काल के समय मे सच्चे कथाकार संत और ढोंगी कथाकार असन्त में कितना फर्क  है ?....
( भाग 4 )  यमराज की मृत्यु कैसे हुई? 


जब हमारा हिन्दू शास्त्र वेद पुराण में भी दिया गया है कि ब्राह्मणो में भी  84 प्रकार का ब्राह्मण होता है । 

सब ब्राह्मणो को यजमानों का हवन पूजन यज्ञ करना करवाना शास्र का अध्ययन करना गुरुकुल जैसा आश्रम वेद पुराणों शास्त्र शस्त्र का अध्ययन करवाना वही कार्य ही ब्राह्मणों का होता है कि यजमानों का अच्छा हो यजमानों का जीनव में सुखी रहे वही आशा का ही आशीर्वचन बार बार सब यजमानों को देता रहता है ।





जब हमारा श्री रामचरित्रमानस काण्ड का उत्तरकाण्ड में लिखा है --
संत संग अपवर्ग कर कामी भव कर पंथ ।
कहहि संत कवि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ ।।

सच्चे कथाकार सन्त भव बंधन से मुक्त होने के लिये पेरणा दायक होता है ।  

लेकिन जब पहले के समय का सब यजमानों ओर क्षत्रिय राजाओ ब्राह्मणो का प्रत्ये खुद का घर जैसा व्यवहार रखते भी थे कि हमारा पत्नी बच्चे खायेगा तो आपका भी पत्नी बच्चे सब है आप भी हमारा तरह संसारी हो आप हमारे कुलगुरु का मतलब ही आप हमारे घर परिवार का मोभी मुखिया हो ऐसा यजमानों का राजा महाराजाओ का ब्राह्मणो प्रत्ये हेत प्रेम भावनाओं था इस हिसाब से ब्राह्मण कभी खुद का यजमानों राजाओं के पास ज्यादा आशा रखता भी नही था और बोलने में भी अचकते के में कैसे मेरा यजमान राजा को बोलु के मेरा पास ये नही है मुझे ये चाहिए । 

लेकिन यजमान ओर राजा भी खुद का कुलगुरु ब्राह्मणों का दिल की बात को ब्राह्मणो का मुख देखकर ही पहचान जाते थे ।


जब सुदामा भी भगवान कृष्ण का कुलगुरु भी था और बच्पन का दोस्त भी था ।

जब सुदामा को खुद का कुटुबिक परिवार वालोने ओर उधर अवंतिका पूरी का राजा सहित ज्यादा परेशान करने लग गया क्योंकि सुदामा धर्म शास्त्र के नीति नियम पूर्ण तरह जानता ही था कि ये राजा भी भगवान समान होता है लेकिन राजा के पास राजा जितना गुणों होना जरूरी होता है । 

जब सुदामा का परिवारिक चाचा के लड़के भाइयो ओर खुद का भाई सब राजा के दरबार मे राजा का तारीफ करने के लिये पहुच जाते तो राजा उस लोगो को सोना महोरो जेवरात से सन्मान करता था तो वो लोग सुदामा को ज्यादा परेशान करता रहता था । कि सुदामा तुझे चार बच्चे है तुम सिर्फ दो घर का भिक्षा मांग कर गुजरान चला रहे हो । 

सुदामा तुम धर्म शास्त्र नीति नियम छोड़ दे हमारा साथ राज महल पर आ जा तेरा सन्तान कभी भूखे नही सो जायेगे । 

तब सुदामा खुद का भाइयो परिवार वालो को साफ साफ सुना दिया कि ब्राह्मण कभी किसी का जूठा तारीफ कभी नही करेगा वो क्यों खरबो दौलत सच्चा ब्राह्मण का नजर के सामने रख दे वो ब्राह्मण छूना तो उधर रह गया देखेगा भी नही । 

जिसका पास जितना गुण हो वही गुण उसका नजर के सामने वस्त्र का दाधा जैसा दिखाई देगा । 

लेकिन सुदामा के परिवार वालो जब सुदामा के साथ बहुत लड़ाई झगड़े करने लगे तब सुदामा उसका पत्नी लीलावती का कहने पर राजा के दरबार मे तो गया । 

लेकिन राजा के मुह पर ही साफ साफ सुना दिया कि तुम कपटी हो तेरा पास किसी प्रकार का गुण नही है तुम रजक  नाम पर एक घबा हो । 

और राज के दरबार मे सुदामा खुद का परिवार वालो को भी सुना दिया कि राजा के पास कोई किसी प्रकार का गुण ही न हो उसका तारीफ करने का काम भाट का होता है ब्राह्मण का नही ब्राह्मण कभी किसी का गलत रीते जूठा तारीफ करेगा ही नही आप लोग राजा के सोना महोरो के पीछे ब्रह्म समाज के नाम पर बहुत बड़ा कलंक बनकर बैठा हो । 

तब राजा के दरबार मे राजा का सिपाहियों ने सुदामा को उठा कर राज महल बहार फेंक तो दिया लेकिन ज्यादा मारपीट के कारण सुदामा को बहुत ज्यादा चोट लग गई तो खुद रुक्ष्मणि ने सुदामा के घर माखण भेज दिया था ।

जब सुदामा का पत्नी लीलावती सुदामा के घाव पर माखण लगा रही थी तो सुदामा का मार पीट का घाव पर जलन कम हो गई । बहुत ठंडा ठंडा लगने लगा तो सुदामा कहा कि देवी हमारा घर मे तो खाने का अन्न है नही आप ये माखण कहा से लाई हो कोई हमको भिक्षा भी अब नही दे रहा है तो आपको माखण किस ने दिया । 

तब लीलावती ने कहा आपका कोई पुराना दोस्त ने भेजवा दिया । 

तब सुदामा रोने लगता है कि ऐसा कोई मेरा दोस्त है नही श्री कृष्ण के शिवाय लेकिन किस ने दिया होगा वो मालूम नही पड़ता । 

तब लीलावती बोल देती है सुदामा को के आप द्वारका जाए आपका दोस्त के पास तो सुदामा मना बोल रहा है कि में नही जावूगा वो तो अब राजा है में उसका पास कैसे जाव । 

लेकिन लीलावती का हठ का पास सुदामा लाचार बन जाता है । 

द्वारका जाने के लिये निकल पड़ता है तब लीलावती श्री कृष्ण के लिये चावल का अरु ( ममरा ) के पोटली लगा देती है वही लेकर सुदामा चल पड़ता है सुदामा के पास रास्ता में खाने का भाथा अन्न भी साथ मे नही था । 

लेकिन श्री कृष्ण को सब मालूम ही पड़ जाते है तो वो बेल गाड़ी लेकर सुदामा को रास्ता में मिल जाते है । 

कहते है ब्रह्म देवता बेल गाड़ी में बैठ जाये अभी तो द्वारका बहुत दूर है आपका पांव में छल्ला पड़ गया है । 

ऐसा कैसे कब द्वारका पहुचेंगे सुदामा मना बोल देता है लेकिन श्री कृष्ण भी खुद का जिद पर मक्कम बन जाते है । 

उसमे रात हो जाती है तो सुदामा तो खुद का भक्ति भाव मे ही लीन बन जाते है । 

सुबह उठ कर स्नान करके सुदामा खुद का पूजन भक्ति का काम पूर्ण कर लेते है तो श्री कृष्ण के पास खाने का अन्न आ जाय तो श्री कृष्ण सुदामा को कहते है । 

ब्रह्म देवता  चलो अन्न ग्रहण कर लो । 

सुदामा अन्न खाते ही नही है सुदामा को मन मे विचार आते है कि मेरा पत्नी बच्चे उधर घर पर भूखा छोड़कर आये हु । 

तो में यहां ये आदमी को में पहचानता भी नही हु तो मुझे इसका अन्न कैसे खाया जाए । 

लेकिन श्री कृष्ण तो सुदामा का मन का बात सब कुछ समझ गए है कि क्यों सुदामा मेरा अन्न नही खाते लेकिन सुदामा को कहता नही है लेकिन जिद करके लड़ाई करके सुदामा को खाना तो खिला ही देता है । 

फिर बेल गाड़ी पर बैठ कर सुदामा द्वारका जा रहे है तब सुदामा उसको पूछताछ करते है कि दोस्त तुमने मेरे साथ लड़ाई करके मुझे खाना खिला दिया लेकिन तुम इतना तो बता के तेरा नाम क्या है तुम इधर कहा गए थे । 

तब श्री कृष्ण भी बहुत चालक बन जाते है कह देते के मेरा नाम व्रजेशसिह है में मेरी लक्ष्मी जी को उसका पियर छोड़ने के लिये गया था । 

ये मेरा लक्ष्मीजी बहुत जिदी हठीली है तो मुझे बेल गाड़ी लेकर उसको छोड़ने के लिये उसका मायके जाना पड़ा । 

तब सुदामा हसने लगता है । 

उसमे श्री कृष्ण ही सुदामा को पूछ रहे है कि आप द्वारका क्यों जा रहे हो तो सुदामा तो एक ही बात बोल देता है के ये श्री कृष्ण मेरा यजमान भी है मेरा बच्चपन का लँगोटी दोस्त भी है । 

बाद द्वारका आ जाते है म श्री कृष्ण तो खुद का महल चला जायेगा सुदामा नगरी में पूछताछ करके द्वारका के राज महल तक पहुच भी जाते है ।

कामी ओर पापी ढोंगी असन्त कथाकारो का संग जन्म और मृत्यु के बंधन में बंधे रहने का ही मार्ग है 
( विषेष भाग 5 पर )

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यमराज की मृत्यु कैसे हुई? 

।।श्री विष्णु पुराण यमराज की मृत्यु कैसे हुई ? और कर्म का लेख केसा होता है ?।।



।।श्री विष्णु पुराण यमराज की मृत्यु कैसे हुई ? और कर्म का लेख केसा होता है ?।।

वैद पुराणों के अनुसार यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है।

यदि यमराज स्वयं मृत्यु के देवता हैं तो इनकी मृत्यु कैसे संभव है? 

यह बात हास्यप्रद सी लगती है परंतु वेद और पुराण में इनकी मृत्यु की एक कथा बताई गई है।

इसको बताने से पहले यमराज के बारे में कुछ जान लेना बहुत जरूरी है।

यमराज की एक जुड़वा बहन थी जिसे यमुना भी कहा जाता है।

यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और यमराज की आराधना विभिन्न नामों से की जाती है।

जैसे कि यम, धर्मराज मृत्यु, आतंक, वैवस्वत और काल.

बहुत समय पहले एक श्वेत मुनि थे।

जो भगवान शिव के परम भक्त थे और गोदावरी नदी के तट पर निवास करते थे।

जब उनकी मृत्यु का समय आया तो यम देव ने उनके प्राण लेने के लिए मृत्यु पास को भेजा लेकिन श्वेतमुनि अभी प्राण नहीं त्यागना चाहते थे। 

तो उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया।

जब मृत्यु पाश श्वेत मुनि के आश्रम में पहुंचे तो देखा कि आश्रम के बाहर भैरो बाबा पहरा दे रहे हैं।

धर्म और दायित्व में बंधे होने के कारण जैसे ही मृत्यु पास ने मुनि के प्राण हरने की कोशिश की तभी भैरव बाबा ने प्रहार करके मृत्यु पास को मुर्छित कर दिया।

वह जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।

यह देखकर यमराज अत्यंत क्रोधित हो गए और स्वयं आकर भैरव बाबा को मृत्युपाश में बांध लिया।

फिर श्वेत मुनि के प्राण हरने के लिए उन पर भी में मृत्युपाश डाला पर श्वेत मुनि ने अपने इष्टदेव महादेव को पुकारा और महादेव ने तुरंत अपने पुत्र कार्तिकेय को भेजा।

कार्तिकेय के पहुंचने पर कार्तिकेय और यम देव के बीच घमासान युद्ध हुआ।

कार्तिकेय के सामने यमराज टिक नहीं पाए और कार्तिकेय के प्रहार से जमीन पर गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई।

भगवान सूर्य को जब यमराज की मृत्यु का समाचार लगा तो वह विचलित हो गए।

ध्यान लगाने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने भगवान शिव की इच्छा के विपरीत श्वेत मुनि के प्राण हरने चाहे थे।

इस कारण यमराज को भगवान भोले के क्रोध को झेलना पड़ा।

यमराज सूर्य देव के पुत्र हैं और इस समस्या के समाधान के लिए सूर्य देव भगवान विष्णु के पास गए।

भगवान विष्णु ने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करने का सुझाव दिया।

सूर्य देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा।

तब सूर्य देव ने कहा कि....!

“हे महादेव, यमराज की मृत्यु के बाद पृथ्वी पर भारी असंतुलन फैला हुआ है।

पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए यमराज को पुनर्जीवित कर दें।” 

भगवान शिव ने नंदी से यमुना का जल मंगवाकर यमदेव के पार्थिव शरीर पर छिड़का जिससे वो पुन: जीवित हो गए..!!

विधाता के लिखा हुवा कर्म का लेख केसा होता है?

पुराने समय की बात है...!

बहेलियां ( पक्षी शिकारी ) ने तीर छोड़ा...!

वह लता बल्लरियों की बाधाओं को चीरता...!

राजकुमार सुकर्णव के मस्तिष्क पर जा लगा। 

राजकुमार वही धराशाई हो गए। 

समस्त अंतापुर रो पड़ा अपने राजकुमार की याद में!

ऐसा कोई प्रजाजन नहीं था जिसने सुकर्णव की अर्थी देख आँसू ना बनाए हों।

दाह संस्कार संपन्न हुआ। 

पुत्र शोक अब प्रतिशोध की ज्वाला में भड़क उठा और महाराज वेनुविकर्ण ने कारागृह से बंदी बहेलिया को उपस्थित करने का आदेश दिया। 

बहेलिया लाया गया। 

महाराज ने तड़पते हुए पूछा- 

दुष्ट बहेलियां! 

तूने राजकुमार का वध किया है....!

बोल तुझे मृत्युदंड क्यों न दिया जाए ?

बहेलिया ने एक बार सभा भवन में बैठे हर व्यक्ति पर दृष्टि दौड़ाई। 

फिर राजपुरोहित पर एक क्षण को उसकी दृष्टि ठहर गई। 

उसे कुछ याद आया -

बहेलिए ने कहा महाराज मेरा इसमें क्या दोष?

मृत्यु ने राजकुमार को मारने का निश्चय किया था।

मुझे माध्यम बनाया...!

मेरी बुद्धि भ्रमित की...!

मैंने राजकुमार को कस्तूरी मृग समझकर तीर छोड़ दिया! 

जो दंड आप मुझे देना चाहते हैं...!

वही मृत्यु को दें। 

चाहे तो राज पुरोहित से पूछ ले! 

यह भी तो कहते हैं...!

कि विधाता ने जितनी आयु लिख दी...!

उसे कोई घटा या बढ़ा नहीं सकता। 

घटनाएं तो मृत्यु के लिए मात्र माध्यम होती हैं।

राजा विकर्ण का क्रोध विस्मय में बदल गया। 

उन्होंने राजपुरोहित की ओर दृष्टि डाली तो लगा।

कि सचमुच वे भी बहेलिया का मूक समर्थन कर रहे हैं। 

उन्होंने मृत्यु का आव्हान किया।

मृत्यु उपस्थित हुई ।

महाराज ने उससे पूछा- 

आपने राजकुमार को मारने का विधान क्यों रचा?

उनका काल आ गया था! 

मृत्यु बोली।

तो फिर काल को बुलाया गया।

काल ने कहा,- 

"मैं क्या कर सकता था महा महिम ! 

राजकुमार के कर्मों का दोष था। 

कर्मफल से कोई बच नहीं सकता। 

राजकुमार ही उसके अपवाद कैसे हो सकते थे ?

कर्म की पुकार की गई। 

उसने उपस्थित होकर कहा -

आर्य श्रेष्ठ...!

अच्छा हूँ या बुरा....!

मैं तो जड़ हूं। 

मुझे तो आत्म चेतना चलाती है....!

उसकी इच्छा ही मेरा अस्तित्व है । 

आप राजकुमार की आत्मा को ही बुला कर पूछ लें।

उन्होंने मुझे क्रियान्वित ही क्यों किया? 

अंत में राजकुमार की आत्मा बुलाई गई ।

दंड नायक ने प्रश्न किया-

भन्ते....!

तुम कर्ता की स्थिति में थे।

क्या यह सच है....!

कि तुमने कोई ऐसा कार्य किया।

जिसके फलस्वरूप तुम्हें अकाल, काल - कब लित होना पड़ा?

शरीर के बंधन से मुक्त, आकाश में स्थिर, राजकुमार की आत्मा थोड़ा मुस्कुराई !

फिर गंभीर होकर....!

बोली -

"राजन! पूर्व जन्म में, मैंने इसी स्थान पर मांस भक्षण की इच्छा से एक मृग का वध किया था। 

मृग में मरते समय प्रतिशोध का भाव था।

उसी भाव ने व्याध ( बहेलियां ) को भ्रमित किया।

इसी लिए व्याध का कोई दोष नहीं...!

ना मुझे काल ने मारा है। 

मनुष्य के कर्म ही उसे मारते और जलाते हैं।

इसी लिए तुम मेरी चिंता छोडो़...!

कर्म की गति बड़ी गहन है। 

अपने कर्मों का हिसाब करो।

भावी जीवन की प्रगति और उससे स्वर्ग मुक्ति...!

सब कर्म की गति पर ही आधारित है। 

सो तात...!

तुम भी अपने कर्म सुधारो।

इसी लिए गीता का सार समझना चाहिये।

करम किये जा फल की इच्छा मत कर।

ऐ इंसान....!

जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान....!

यह है गीता का ज्ञान । 

तेरा मेरा करते एक दिन चले जाना है जो भी कमाया यही रह जाना है।

कर ले कुछ अच्छे कर्म साथ यही तेरे आना है।

 वही करमो की ही गति न्यारी न्यारी होती है।

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!


पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी..🙏🙏🙏

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