सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
*तिरुपति बालाजी को गोविंदा क्यों कहा जाता है...?*
यह एक अत्यंत रोचक घटना है, महालक्ष्मी की खोज में भगवान विष्णु जब भूलोक पर आए, तब यह सुंदर घटना घटी ।
भूलोक में प्रवेश करते ही, उन्हें भूख एवं प्यास यह मानवीय गुण प्राप्त हुए, भगवान श्री निवास ऋषि अगस्त के आश्रम में गए और बोले, "मुनिवर मैं एक विशिष्ट मुहिम से भूलोक पर ( पृथ्वी ) पर आया हूँ", "और कलयुग का अंत होने तक यहीं रहूंगा"।
मुझे गाय का दूध अत्यंत पसंद है और और मुझे अन्न के रूप में उसकी आवश्यकता है।
*मैं जानता हूँ कि आपके पास एक बड़ी गौशाला है, उसमें अनेक गाएँ हैं, मुझे आप एक गाय दे सकते हैं क्या?
ऋषि अगस्त्य हँसे और कहने लगे, "स्वामी मुझे पता है कि आप श्रीनिवास के मानव स्वरूप में, श्रीविष्णु हैं"।
मुझे अत्यंत आनंद है कि इस विश्व के निर्माता और शासक स्वयं मेरे आश्रम में आए हैं, मुझे यह भी पता है की आपने मेरी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए यह मार्ग अपनाया है....!
फिरभी स्वामी मेरी एक शर्त है कि, मेरी गौशाला की पवित्र गाय केवल ऐसे व्यक्ति को मिलनी चाहिए जो उसकी पत्नी संग यहाँ आए, मुझे आप को उपहार स्वरूप गाय देना अच्छा लगेगा....!
परंतु जब तुम मेरे आश्रम में देवी लक्ष्मी संग आओगे, और गो दान देने के लिए पूछोगे, तभी मैं ऐसा कर पाऊँगा।*
श्रीनिवासन हँसे, और बोले ठीक है मुनिवर, तुम्हें जो चाहिए वह मैं करूँगा, ऐसा कहकर वे वापस चले गए।
बाद में भगवान श्रीनिवास ने देवी पद्मावती से विवाह किया, विवाह के कुछ दिन पश्चात भगवान श्रीनिवासन, उनकी दिव्य पत्नी पद्मावती के साथ, ऋषि अगस्त्य महामुनि के आश्रम में आए, पर उस वक्त ऋषि आश्रम में नहीं थे।
भगवान श्रीनिवासन से उनके शिष्यों ने पूछा आप कौन हैं?
और हम आपके लिए क्या कर सकते हैं ?
प्रभु ने उत्तर दिया, "मेरा नाम श्रीनिवासन है, और यह मेरी पत्नी पद्मावती है"।
आपके आचार्य को मेरी रोज की आवश्यकता के लिए एक गाय दान करने के लिए कहा था, परंतु उन्होंने कहा था कि पत्नी के साथ आकर दान मांगेंगे तभी मैं गाय दान दूंगा।
यह तुम्हारे आचार्य की शर्त थी, इसी लिए मैं अब पत्नी संगआया हूँ, शिष्यों ने विनम्रता से कहा, "हमारे आचार्य आश्रम में नहीं है इसी लिए कृपया आप गाय लेने के लिए बाद में आइये"।
श्रीनिवासन हंँसे और कहने लगे, मैं आपकी बात से सहमत हूंँ, परंतु मैं संपूर्ण जगत का सर्वोच्च शासक हूंँ, इसी लिए तुम सभी शिष्य गण मुझ पर विश्वास रख सकते हैं, और मुझे एक गाय दे सकते हैं मैं फिर से नहीं आ सकता।
शिष्यों ने कहा, निश्चित रूप से आप धरती के शासक हैं बल्कि यह संपूर्ण विश्व भी आपका ही है, परंतु हमारे दिव्य आचार्य हमारे लिए सर्वोच्च हैं, और उनकी आज्ञा के बिना हम कोई भी काम नहीं कर सकते।
धीरे - धीरे हंसते हुए भगवान कहने लगे, आपके आचार्य का आदर करता हूँ कृपया वापस आने पर आचार्य को बताइए कि मैं सपत्नीक आया था, ऐसा कहकर भगवान श्रीनिवासन तिरुमाला की दिशा में जाने लगे, कुछ मिनटों में ऋषि अगस्त्य आश्रम में वापस आए, और जब उन्हें इस बात का पता लगा तो वे अत्यंत निराश हुए ।
*"श्रीमन नारायण स्वयं लक्ष्मी के संग, मेरे आश्रम में आए थे"।
दुर्भाग्यवश मेैं आश्रम में नहीं था, बड़ा अनर्थ हुआ ।
फिर भी कोई बात नहीं प्रभु को जो गाय चाहिए थी, वह मैंने तो देना ही चाहिए।
ऋषि तुरंत गौशाला में दाखिल हुए, और एक पवित्र गाय लेकर भगवान श्रीनिवास और देवी पद्मावती की दिशा में भागते हुए निकले, थोड़ी दूरी पर श्रीनिवास एवं पत्नी पद्मावती उन्हें नजर आए।*
*उनके पीछे भागते हुए ऋषि तेलुगु भाषा में पुकारने लगे स्वामी ( देवा ) गोवु ( गाय ) इंदा ( ले जाओ ) तेलुगु में गोवु अर्थात गाय, और इंदा अर्थात ले जाओ।*
*स्वामी, गोवु इंदा...!
स्वामी, गोवु इंदा...!
स्वामी, गोवु इंदा...!
स्वामी, गोवु इंदा...!
( स्वामी गाय ले जाइए )......!
कई बार पुकारने के पश्चात भगवान ने नहीं देखा, इधर मुनि ने अपनी गति बढ़ाई, और स्वामी ने पुकारे हुए शब्दों को सुनना शुरू किया।*
*भगवान की लीला, उन शब्दों का रूपांतर क्या हो गया।*
*स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, गोविंदा गोविंदा गोविंदा,*
*ऋषि ने बार बार पुकारने के पश्चात भगवान श्रीनिवास वेंकटेश्वर एवं देवी पद्मावती वापिस मुडे, और ऋषि से पवित्र गाय स्वीकार की ।*
*मुनिवर तुमने ज्ञात अथवा अज्ञात अवस्था में मेरे सबसे प्रिय नाम गोविंदा को 108 बार बोल दिया है, कलयुग के अंत तक पवित्र पहाड़ियों पर मूर्ति के रूप में भूलोक पर रहूँगा, मुझे मेरे सभी भक्त "गोविंदा" नाम से पुकारेंगे....!*
*इन सात पवित्र पहाड़ियों पर, मेरे लिए एक मंदिर बनाया जाएगा, और हर दिन मुझे देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते रहेंगे।
भक्त पहाड़ी पर चढ़ते हुए, अथवा मंदिर में मेरे सामने मुझे, गोविंदा नाम से पुकारेंगे*।
*मुनिराज कृपया ध्यान दीजिए हर समय मुझे इस नाम से पुकारे जाते वक्त, तुम्हें भी स्मरण किया जाएगा क्योंकि इस प्रेम भरे नाम का कारण तुम हो, यदि किसी भी कारण वश कोई भक्त मंदिर में आने में असमर्थ रहेगा, और मेरे गोविंदा नाम करेगा।
तब उसकी सारी आवश्यकता मैं पूरी करूँगा।
सात पहाड़ियों पर चढ़ते हुए जो गोविंदा नाम को पुकारेगा, उन सभी श्रद्धालुओं को मैं मोक्ष दूंगा।*
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*वेंकटरमना गोविंदा-*
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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