सुख - दुख तो सबके साथी हैं/लज्जा/एक गिलास पानी की कीमत...!
सुख-दुख तो सबके साथी हैं....!
न तो सुख सदा रहता है,और न ही दुख।
दोनों बारी - बारी से आते जाते रहते हैं।
किसी के जीवन में सुख अधिक होता है, तो किसी के जीवन में दुख अधिक होता है।
इस के अनेक कारण हो सकते हैं।
उनमें से एक कारण यह है कि जो व्यक्ति अपने मन में भौतिक सुख प्राप्ति की इच्छाएं बहुत अधिक रखता है....!
वह अधिक दुखी होता है।
क्योंकि सारी इच्छाएं किसी भी व्यक्ति की पूरी हो नहीं सकती।
बल्कि ऐसा देखा जाता है कि जितनी जितनी इच्छाएं पूरी होती जाती हैं...!
उतनी उतनी वे बढ़ती जाती हैं।
जब सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती...!
तब कुछ इच्छाएं जो पूरी नहीं हो पाई, वे दुख देती हैं।
इस लिए विद्वानों ने कहा है कि इच्छा दुख की माता है।
इच्छाएं ही दुखों को जन्म देती हैं।
इस प्रकार से जो व्यक्ति अपने मन में इच्छाएं अधिक रखता है...!
वह दुखी अधिक होता है।
और जो व्यक्ति ऊपर बताए गए इच्छाओं के विज्ञान को समझकर अपने मन में इच्छाएं कम रखता है...!
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वह अधिक सुखी होता है।
अब दोनों रास्ते आपके सामने हैं...!
आपको जो रास्ता अच्छा लगे....!
उस पर चलें।
"यदि मन में इच्छाएं अधिक रखेंगे....!
तो आप दुखी अधिक रहेंगे।
यदि मन में इच्छाएं कम रखेंगे....!
तो आप सुखी अधिक रहेंगे।
नाभिप्रजातकमलस्थचतुर्मुखाय
क्षीरोदकार्णवनिकेतयशोधराय।
नानाविचित्रमुकुटाङ्गदभूषणाय
सर्वेश्वराय वरदाय नमो वराय।।
भक्तिप्रियाय वरदीप्तिसुदर्शनाय
फुल्लारविन्दविपुलायतलोचनाय।
देवेन्द्रविघ्नशमनोद्यतपौरुषाय
योगेश्वराय विरजाय नमो वराय।।
नाभिप्रजातकमलस्थचतुर्मुखाय
क्षीरोदकार्णवनिकेतयशोधराय।
नानाविचित्रमुकुटाङ्गदभूषणाय
सर्वेश्वराय वरदाय नमो वराय।।
भक्तिप्रियाय वरदीप्तिसुदर्शनाय
फुल्लारविन्दविपुलायतलोचनाय।
देवेन्द्रविघ्नशमनोद्यतपौरुषाय
योगेश्वराय विरजाय नमो वराय।।
नाभि से उत्पन्न हुए कमलपर स्थित ब्रह्मा से युक्त, क्षीरसमुद्र को अपना निवास बनाने वाले यशस्वी, अनेक प्रकार के विचित्र मुकुट एवं अङ्गद आदि आभूषणों से युक्त, वरदानी तथा वरस्वरुप सर्वेश्वर को नमस्कार है।
भक्ति के प्रेमी, श्रेष्ठ दीप्ति से सर्वथा पूर्ण एवं सुन्दर दिखलाई देने वाले, खिले हुए कमल के समान विशाल आंखों वाले, देवेन्द्र के विघ्नों का विनाश करने के लिए पुरुषार्थ करने को उद्यत वरस्वरुप, विरज योगेश्वर को नमस्कार है।
|| लक्ष्मी नारायण की जय हो ||
|| लक्ष्मी नारायण की जय हो ||
जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नाचती है
और जहां सरस्वती होती है लक्ष्मी नाचती है।
जहाँ सरस्वती, वहाँ लक्ष्मी का अर्थ है कि जहाँ ज्ञान और विद्या है, वहीं धन और समृद्धि अपने आप आ जाती है।
और जहां सरस्वती होती है लक्ष्मी नाचती है।
जहाँ सरस्वती, वहाँ लक्ष्मी का अर्थ है कि जहाँ ज्ञान और विद्या है, वहीं धन और समृद्धि अपने आप आ जाती है।
यह कहावत बताती है कि ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा का सही उपयोग करने से व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है और आर्थिक रूप से संपन्न होता है...!
क्योंकि विद्या से प्राप्त बुद्धि ही धन कमाने और उसे बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त करती है।
ज्ञान ( सरस्वती ) और धन ( लक्ष्मी ) एक - दूसरे के पूरक हैं, जहाँ ज्ञान से धन को सही ढंग से उपयोग करने की कला आती है और धन के सही उपयोग से ही ज्ञान को सार्थक किया जा सकता है...!
इस लिए जहाँ बुद्धिमत्ता और ज्ञान है....!
वहाँ धन अपने आप आता है और जहाँ धन का सही प्रबंधन है...!
वहाँ ज्ञान भी फल - फूलता है।
|| लक्ष्मी सरस्वती मात की जय हो ||
लज्जा....!
लज्जा का अर्थ है 'शर्म', 'लाज' या 'विनम्रता'।
लज्जा का अर्थ है 'शर्म', 'लाज' या 'विनम्रता'।
यह एक संस्कृत मूल का स्त्रीलिंग नाम है...!
जिसे हिंदू धर्म में एक सकारात्मक गुण माना जाता है...!
और यह स्वाभिमान, विनम्रता और अच्छे चरित्र से जुड़ा है।
लज्जा शब्द को समझने की कोशिश करें।
क्योंकि शब्द बहुत गहरा है और बहुत पूर्वीय है...!
पश्चिम की भाषाओं में ऐसा कोई शब्द नहीं है।
क्योंकि लज्जा एक पूरब की अपनी अनूठी खोज है।
लज्जा की अवस्था का अर्थ है....!
जैसी प्रेयसी अपने प्रेमी के लिए करती है।
और जब प्रेमी पास आता है तो प्रेयसी घूंघट डाल लेती है।
छिपती है।
प्रेमी के सामने अपने को प्रगट नहीं करती...!
क्योंकि प्रगट करना तो निर्लज्ज अवस्था है।
छिपाती है...!
अवगुंठित होती है।
प्रेमी के लिए प्रतीक्षा करती है।
प्रेमी को निमंत्रण भेजती है...!
जब प्रेमी पास आता है तो अपने को छिपाती है।
क्योंकि प्रेमी के सामने प्रकट करना तो अहंकार होगा।
सब प्रकट करने की इच्छा प्रदर्शित करना अहंकार है।
परमात्मा के सामने क्या तुम अपने को प्रगट करना चाहोगे?
तुम परमात्मा के सामने तो छिप जाओगे,जमीन में गड़ जाओगे।
तुम तो परमात्मा के सामने घूंघटों में छिप जाओगे।
परमात्मा के सामने अपने को प्रकट करने का भाव तो अहंकार है।
वहां तो तुम प्रेयसी की भांति जाओगे,पंडित की भांति नहीं।
वहां तो तुम ऐसे जाओगे कि पदचाप भी पता न चले।
वहां तो तुम छुपे - छुपे जाओगे।
क्योंकि तुम्हारे पास है क्या जो दिखाएं ?
लज्जा का अर्थ है, है क्या हमारे पास जो दिखाएं ?
कुछ भी तो नहीं है दिखाने को...!
इस लिए छिपाते हैं।
इस लिए भारत में जो स्त्री का परम गुण हमने माना है...!
वह लज्जा है।
इस लिए भारत की स्त्रियों में जो एक ग्रेस...!
एक प्रसाद मिल सकता है...!
वह पश्चिम की स्त्रियों में नहीं मिल सकता।
क्योंकि पश्चिम की स्त्री को कभी लज्जा सिखायी नहीं गयी।
लज्जा दुर्गुण मालूम होती है।
उसे दिखाना है...!
प्रदर्शन करना है...!
उसे बताना है...!
उसे आकर्षित करना है बता कर।
जैसे बाजार में खड़ी है।
पूरब में हमने स्त्री को लज्जा सिखायी है।
छिपाना है।
इस से घूंघट विकसित हुआ।
घूंघट लज्जा का हिस्सा था।
फिर घूंघट खो गया।
और जैसे ही घूंघट खोया...!
लज्जा भी खोने लगी।
क्योंकि घूंघट लज्जा का हिस्सा था।
वह उसका बाह्य अंग था।
अब हमारी स्त्री भी प्रकट कर के घूम रही है।
वह चाहती है लोग देखें।
सज - संवर कर घूम रही है।
और जब तुम सज - संवर कर घूम रहे हो...!
लोग देखें यह भीतर आकांक्षा है...!
तो तुम बाजार में खड़े हो गए।
नानक कहते हैं-
परमात्मा के सामने हमारी लज्जा वैसी ही होगी...!
परमात्मा के सामने हमारी लज्जा वैसी ही होगी...!
जैसी प्रेमी के सामने प्रेयसी की होती है।
वह अपने को छिपाएगी।
दिखाने योग्य क्या है ?
इस लिए लज्जा।
बताने योग्य क्या है?
इस लिए लज्जा।
इस लिए घूंघट है।
और ध्यान रखना...!
जितनी स्त्री लज्जावान होगी...!
उतनी आकर्षक हो जाती है।
जितनी प्रगट होगी,उतना आकर्षण खो जाता है।
पश्चिम में स्त्री का आकर्षण खो गया है।
खो ही जाएगा।
क्योंकि जो चीज बाजार में खड़ी है,उसका आकर्षण समाप्त हो जाएगा।
और परमात्मा के सामने तो हम बेचने को नहीं गए हैं अपने को।
और परमात्मा के सामने तो हमारे पास क्या है दिखाने को?
इस लिए परमात्मा के सामने तो हम प्रेयसी की तरह जाएंगे।
कंपते पैरों से, कि पता नहीं स्वीकार होंगे या नहीं संकोच से, कि पता नहीं उसके योग्य हो पाएंगे कि नहीं!
लज्जा से, क्योंकि दिखाने योग्य कुछ भी नहीं है।
लज्जा बड़ी विनम्र दशा है।
और उतनी विनम्रता से कोई उसके पास जाएगा तो ही अंगीकार होगा।
और जो भक्त जितना अपने को छिपाता है...!
उतना आकर्षक हो जाता है परमात्मा के लिए।
और जो भक्त अपने को जितना खोलता है और ढोल पीटता है कि देखो मैं पूजा कर रहा हूं...!
देखो मैं प्रार्थना कर रहा हूं....!
कि देखो मैं मंदिर जा रहा हूं...!
कि देखो मैंने कितने जपत्तप किए....!
वह उतना ही दूर हो जाता है।
क्योंकि यह कोई अहंकार नहीं है....!
परमात्मा से मिलन एक निरअहंकार चित्त की बात है।
एक गिलास पानी की कीमत :
सिकंदर जब भारत लौटा तो एक साधु से मिलने गया...!
सिकंदर को आते देख साधु हंसने लगा।
इस पर सिकंदर को लगा कि यह तो मेरा अपमान कर रहा है।
उस ने साधु से कहा “या तो तुम मुझे जानते नहीं हो।
या फिर तुम्हारी मौत आ गई है....!
तुम जानते नही कि मैं कौन हूँ?
मैं हूँ महान सिकंदर।
इस पर साधु और भी जोर जोर से हंसने लगा।
उस ने सिकंदर से कहा, मुझे तो तुम में कोई महानता नजर नहीं आती।
मैं तो तुम्हे बड़ा दीन और दरिद्र देखता हूँ।
तो सिकंदर ने उस से कहा, क्या तुम पागल हो गये हो।
मैंने पूरी दुनिया को जीत लिया है, तो इस पर उस साधु ने कहा ऐसा कुछ नहीं है।
तुम अभी भी एक साधारण मनुष्य ही हो मैं तुम से एक बात पूछता हूँ कि मान लो तुम किसी रेगिस्तान मे फंस गये हो...!
और दूर दूर तक तुम्हारे आस पास कोई पानी का स्त्रोत नहीं है और कोई हरियाली भी नहीं है...!
जहां तुम पानी खोज सको।
तब तुम एक गिलास पानी के लिए तरस रहे हो। तब तुम एक गिलास पानी के लिए...!
अपने इस राज्य में से क्या दे सकते हो। सिकंदर ने कुछ देर सोच विचार किया और उस के बाद वह बोला कि मैं उसे अपना आधा राज्य दे दूंगा।
तो इस पर साधु ने कहा अगर वह आधे राज्य के लिए ना माने तो तुम क्या करोगे।
सिकंदर ने कहा इतनी बुरी हालत में तो मैं, अपना पूरा राज्य ही उसे दे दूंगा।
साधु फिर हंसने लगा और बोला कि तेरे राज्य का कुल मूल्य, बस एक गिलास पानी ही है और तू ऐसे ही घमंड से चूर चूर हुआ जा रहा है।
वक़्त पड़ जाये तो एक गिलास पानी के लिए भी तेरा राज्य काफी नहीं होगा।
फिर रेगिस्तान में खूब चिल्लाना - महान सिकंदर, महान सिकंदर, रेगिस्तान में कोई नहीं सुनेगा।
सारी महानता बस तेरा एक भ्रम है।
इस लिए हमें इस सिकंदर की कहानी से शिक्षा लेनी चाहिए...!
हमें किसी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।
पैसा ही सब कुछ नहीं होता....!
अगर आप अपने धन को सही मायने में इस्तेमाल करना चाहते हैं।
तो दीन दुखियों की सेवा कीजिए...!
किसी जरूरत मंद की अपने धन से उसकी जरूरत पूरी करें।
ऐसा करने से भगवान आप पर जरूर खुश होगा।
!!!!! शुभमस्तु !!!🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85 website :https://sarswatijyotish.com/
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


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