सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्रीरामचरितमानस प्रर्वचन ।।
प्रलय: प्रभवश्चैव व्यक्ताव्यक्त: सनातन:
ईश्वरात्परतो विद्या विद्याया:परत: शिव:।
शिवात्परतरो देवस्त्वमेव परमेश्वर:
सर्वत: पाणिपादान्त:सर्वतोऽक्षिशिरोमुख:।
सहस्त्रांशु: सहस्त्रास्य:सहस्त्रचरणेक्षण:
भूतादिर्भूर्भुव:स्वश्च मह: सत्यं तपो जन:।
प्रदीप्तं दीपनं दिव्य सर्वलोकप्रकाशकम्
दुर्निरीक्षं सुरेन्द्राणां यद्रूपं तस्य ते नमः।।
हे सूर्य भगवान्!
प्रलय, सृष्टि, व्यक्त,अव्यक्त एवं सनातन पुरुष आप ही हैं।
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साक्षात् परमेश्वर आप ही हैं।
आपके हाथ और पैर सब ओर हैं।
नेत्र, मस्तक और मुख भी सब ओर हैं।
आपके सहस्त्रों किरणें, सहस्त्रों मुख, सहस्त्रो चरण और सहस्त्रों नेत्र हैं।
आप सम्पूर्ण भूतों के आदि कारण हैं।
भू: , भुव:, स्व:, मह:,जन:,तप: और सत्यम् - यह सब आपके ही स्वरूप हैं।
आपका जो स्वरूप अत्यंत तेजस्वी, सबका प्रकाशक, दिव्य, सम्पूर्ण लोकों में प्रकाश बिखेरने वाला...!
और देवेश्वरों के द्वारा भी कठिनता से देखे जाने योग्य है....!
उसको हमारा नमस्कार है।'
|| जय श्री सूर्य देव प्रणाम ||
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम॥
जैसे कामी को स्त्री प्रिय लगती है और लोभी को जैसे धन प्यारा लगता है।
वैसे ही हे रघुनाथजी।
हे रामजी!
आप निरंतर मुझे प्रिय लगिए॥
लोभी कही भी लोभ से तृप्त नही होता।
इसी प्रकार बार - बार प्रभु की झांकी का लोभ चाहिये, सुमिरन का मीठा - मीठा दर्द चाहिये।
हर समय उसी का ध्यान, इसी को जागृति कहा है।
अगर जागोगे तो हर कार्य आपका ध्यान हो जायेगा।
ध्यान और धंधा ये कोई अलग - अलग नहीं है।
जागकर किया गया हर कार्य ध्यान बन जाता हैं।
हम पाठ भी सोते - सोते करते है।
बोलते कहीं है।
देखते कहीं हैं।
सोचते कुछ और है होश भी नहीं रहता कि क्या बोला था?
क्या गाया था?
इस लिये सोये हुये किया गया भजन भी प्रकाश नहीं दे पा रहा है।
जीवन लग गया भजन करते - करते क्योंकि सोते - सोते हो रहा है।
सोते में तो स्वपन देखे जाते हैं।
अगर हम सब कार्य जागकर करेंगे तो अलग से फिर कोई ध्यान करने की आवश्यकता ही नही है।
ध्यान तो उसका किया जाता है।
जो हम से दूर हैं।
जो हमारे भीतर बैठा है वो तो ध्यान में रहता ही है।
अभी भगवान भीतर नहीं है।
इस लिये ध्यान करना पड़ता है।
ध्यान करना और ध्यान में रहना ये दोनों अलग - अलग बाते है।
काम करना और काम में रहना ये दोनों अलग - अलग बाते है।
जैसे हम शरीर से मंदिर मे है पर ध्यान मे घर बैठा हैं।
जब जीव प्रभु में डूब जाता है तो अलग से ध्यान करने की जरूरत नही होती।
इस लिये गोपियो को भीतर से ध्यान से निकालने के लिये ध्यान करना पड़ता था।
गोपियाँ ध्यान करती है कि भगवान भीतर से बाहर निकले ताकि घर का काम - काज कुछ हम कर पायें।
ये जागृति अवस्था है।
यह घटना आपने सुनी होगी।
एक शिष्य गुरु के पास आया दीक्षा लेने के लिये, भगवत - साक्षात्कार करने के लिये।
गुरु ने कहा बारह वर्ष तक धान कूटो।
उठते, बैठते, सोते जागते बस धान कूटो।
बस चौबीसों घंटे धान कूटते कूटते ध्यान में आ गया।
ध्यान अलग से करने की आवश्यकता नहीं।
हरि व्यासजी बहुत बड़े संत हुये है।
उनके गुरूदेव ने हरि व्यासजी को बोला जाओ बारह वर्ष तक गिरिराजजी की परिक्रमा लगाओ।
अब जो बारह वर्ष गिरिराजजी में डूबेगा उसे अलग से ध्यान करने की आवश्यकता पडेगी क्या?
जागृत अवस्था ही ध्यान है।
शास्त्र पढकर सत्य के बारे मे जाना तो जा सकता है पर सत्य का अनुभव तो जागृत जीव ही कर पायेगा।
इसके लिये साधना करनी पड़ती है।
साधना बड़ा मूल्यवान शब्द है।
जो मन हमारा बिना इच्छा के इधर उधर गड्ढे में गिर रहा है।
वो सध जाये।
ये साधना है।
साधु का अर्थ क्या है?
जो सध गया है।
साधक का अर्थ है जो सधने का प्रयत्न कर रहा है।
मन हमारे अनुसार रहे साधना का बस इतना ही अर्थ हैं।
हम लोग कहते है न कि रास्ते में बहुत फिसलन है जरा सध के चलो।
इधर - उधर पैर पड जायेगा तो पैर फिसल जायेगा।
इस लिये सत्य को जाना नहीं जाता, सत्य को जिया जाता है।
पंडित जानता है।
साधक अनुभव करता है।
विद्वान सत्य की व्याख्या करता है और साधु सत्य का पान करता हैं।
इस लिये जागने से मन के विचार मिट जाते हैं।
स्वपन तो निद्रा में आते हैं।
कुछ लोग जरूर बैठे - बैठे सपने देखते है उन्हे शेखचिल्ली कहा जाता है।
वो घटना आपने सुनी होगी, सिर पर दही की मटकी लिये जा रहा था।
सोच रहा था बच्चा होगा, पापा - पापा बोलेगा।
पैसे माँगेगा, मैं थप्पड़ लगाऊँगा और सोचते - सोचते मटकी को ही थप्पड़ मार दिया और मटकी धड़ाम से नीचे गिर गई।
सज्जनों...!
जो जागृत में स्वप्न देखते हैं उनकी मटकी बीच रास्ते में फूट जाया करती है।
इस लिये भागो मत...!
जागो...!
जहा भी हो वहीं जागिये।
जनकजी की घटना आपने सुनी होगी।
साधु को ले गये स्नान कराने के लिये और सेवक ने आकर कहा कि महल में आग लगी है।
जनकजी चैन से स्नान करते रहे और साधु दौड़ा, जनकजी ने पूछा बाबा कहाँ दौड़कर गये थे?
बोले तुमने सुना नही...!
तुम्हारे महल में आग लग गई थी...!
महल तो मेरा था आग लगी तो तुम क्यों दौड़े?
मेरी लंगोटी उसमें सूख रही थी।
आग लग रही थी इस लिये लंगोट को लेने गया था।
बाँधने के लिये महल नहीं चाहिये।
बाँधने के लिये लंगोटी ही काफी है।
योगियों ने महल छोड दिया हम भिक्षापात्र नही छोड पाते।
इस लिये पशु सोये हुये हैं।
ये बंधन में रहते है।
पाश का अर्थ है बंधन...!
हम सब किसी न किसी पाश में बंधे हैं।
कोई धन से भाग रहा है तो कोई धन की ओर भाग रहा है।
भागने का कारण ही धन है।
एक धन की और तो दूसरा धन से दूर...!
एक पैर के बल खड़ा है।
एक सिर के बल खड़ा है।
व्यक्ति तो वहीं रहता है बदलता कुछ भी नही।
इस लिये सज्जनों...!
स्थान बदलने से कई बार लोग सोचते है कि सब कुछ बदल जायेंगे।
किसी तीर्थ में चलते हैं।
स्थान बदलने से जीव नही बदलता..!
स्थिति बदलने से जीवन बदलता है।
साधु-बैरागी हो गये पर वृत्ति तो वही की वहीं रही।
घर छोड़कर तीर्थ - आश्रम में आ गये।
जो वृत्ति घर मे थी वही बाहर घेर लेगी।
स्वभाव नही बदलता...!
भाई - बहनों...!
कपड़े बदलने से कोई परिवर्तन नहीं आ सकता।
इसी लिये भेद के लिये तो भीतर से बदलना होगा।
कुछ तो समय ख़राब था कुछ लोग भी ऐसे हीं मिल गये थे..!
उम्र तो आधी भी नहीं हुई पर सबक़ सारे मिल गये....!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
https://sarswatijyotish.com/
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


बहुत सुंदर
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