https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: अक्टूबर 2025

श्री रामचरित्रमानस संक्षिप्त प्रवर्चन :

श्री रामचरित्रमानस संक्षिप्त प्रवर्चन :

दश धर्मं न जानन्ति

धृतराष्ट्र! निबोध तान्।

मत्त: प्रमत्त उन्मत्त:

श्रान्त: क्रुद्धो बुभुक्षितः।।

त्वरमाणश्च लुब्धश्च

भीतः कामी च ते दश।।


(महाभारत, उ.प. ३३/१०१-०२)


अर्थात : नशे में मतवाला, असावधान, पागल, थका हुआ, क्रोधी, भूखा, शीघ्र कार्य करने वाला ( जल्दबाज ),  लोभी , भयभीत और कामी - हे महाराज धृतराष्ट्र! 

ये दस प्रकार के लोग धर्म के तत्व को नही जानते।


महर्षि वाल्मीकि जन्मोत्सव विशेष :


आश्विन मास की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाया जाता है। 

इस दिन को परगट दिवस या वाल्मिकी जयंती के रूप में भी जाना जाता है , और यह हिंदू धर्म के बाल्मीकि धार्मिक संप्रदाय के अनुयायियों का एक प्रमुख उत्सव भी है।




pnf Bhole Nath Parivar (Maa Parvati, Ganesh, Kartikey And Shiv Shankar) Religious Wood Photo Frames(Photoframe,Multicolour,8X6Inch)-20826, Wall Mount, Rectangular

Visit the pnf Store  https://amzn.to/4hJ0BCH


वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। 

उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। 

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। 

रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है। 

आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 

'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। 

वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। 

प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये।


जीवन परिचय :


किंवदंती के अनुसार वह एक बार महान ऋषि नारद से मिले और उनके साथ उनके कर्तव्यों पर चर्चा की। 

नारद के शब्दों से प्रभावित होकर, अग्नि शर्मा ने तपस्या करना शुरू कर दिया और "मरा" शब्द का जाप किया जिसका अर्थ था "मरना"। 

जैसे ही उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की, शब्द "राम" बन गया, जो भगवान विष्णु का एक नाम था। 

अग्नि शर्मा के चारों ओर विशाल एंथिल का निर्माण हुआ और इससे उन्हें वाल्मिकी नाम मिला।


एक अन्य कथा के अनुसार ऋषि बनने से पहले वाल्मिकी एक चोर थे, इसके बारे में कुछ किंवदंतियाँ भी मौजूद हैं। 

स्कंद पुराण के नागर खंड में मुखारा तीर्थ के निर्माण पर अपने खंड में उल्लेख किया गया है कि वाल्मिकी का जन्म एक ब्राह्मण के रूप में हुआ था , जिसका नाम लोहजंघा था और वह अपने माता-पिता के प्रति समर्पित पुत्र थे। 

उसकी एक खूबसूरत पत्नी थी और वे दोनों एक - दूसरे के प्रति वफादार थे। 

एक बार, जब अनारता क्षेत्र में बारह वर्षों तक बारिश नहीं हुई, तो लोहजंघा ने अपने भूखे परिवार की खातिर, जंगल में मिलने वाले लोगों को लूटना शुरू कर दिया। 

इस जीवन के दौरान वह सात ऋषियों या सप्तर्षियों से मिला और उन्हें भी लूटने की कोशिश की। 

लेकिन विद्वान ऋषियों को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे उसकी मूर्खता बता दी। 

उनमें से एक, पुलहा ने उसे ध्यान करने के लिए एक मंत्र दिया और ब्राह्मण बना चोर उसके पाठ में इतना तल्लीन हो गया कि उसके शरीर के चारों ओर चींटियों की पहाड़ियाँ उग आईं। 

जब ऋषि वापस आये और उन्होंने चींटी पहाड़ी से मंत्र की ध्वनि सुनी, तो उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, "चूंकि तुमने वाल्मीक ( एक चींटी का झुंड ) के भीतर बैठकर महान सिद्धि प्राप्त की है, इस लिए तुम दुनिया में वाल्मिकी के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे।" ।"


वाल्मिकी जी के पिता का नाम प्रचेत था। 

वाल्मीकि जी ने 24000 श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी। 

ऐसा वर्णन है कि- एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहार रहे थे। 

वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम - मग्न क्रौंच ( सारस ) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। 

इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। 

उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।


मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥


अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। 

जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।


उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य "रामायण" ( जिसे "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है ) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये। 

अपने महाकाव्य "रामायण" में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। 

इस से ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। 

महर्षि वाल्मीकि जी ने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की परंतु वे आदिराम से अनभिज्ञ रहे।


अपने वनवास काल के दौरान भगवान"श्रीराम" वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे। 

भगवान वाल्मीकि को "श्रीराम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था। 

सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है....! 

इस लिए भगवान वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है....! 

रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे....! 

तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था....! 

"तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा।" 

अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। 

ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।


महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। 

जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी यज्ञ रखती है.....! 

जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था....! 

परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। 

जब वाल्मीकि वहाँ प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। 

इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। 

पाण्डवो के यज्ञ में शंख बजाए।




〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰


रावण को मुक्का मार क्यो रोने लगे हनुमान जी :


हनुमान जी अजर और अमर हैं। 

हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा। 

जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। 

हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं। 

इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठको को हनुमानजी से संबंधित एक रोचक प्रसंग बताने जा रहे हैं। 

क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे। 


रामचरितमानस में हनुमान जी को "महावीर" कहा गया है। 

शास्त्रों में "वीर" शब्द का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है। 

जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु "महावीर" शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है। 

रामचरितमानस के अनुसार "वीर" वो है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हों....! 


1.विद्या-वीर, 

2.धर्म-वीर, 

3.दान-वीर, 

4.कर्म-वीर, 

5.बलवीर। 


परंतु "महावीर" वो है जिसने पांच लक्षण से युक्त वीर को भी अपने वश में कर रखा हो। 

भगवान् श्री राम में पांच लक्षण थे और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में कर रखा था। 

रामचरितमानस मानस की यह चौपाई इसे सिद्ध करती है...!


"सुमिर पवनसुत पावननामु। 

अपने वस करि राखे रामू" 


तथा रामचरितमानस मानस में "महाबीर विक्रम बजरंगी" भी प्रयोग हुआ है।


शास्त्रानुसार इंद्र के "एरावत" में 10,000 हाथियों के बराबर बल होता है। 

"दिग्पाल" में 10,000 एरावत जितना बल होता है। 

इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। 

परंतु शास्त्रों में हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10,000 इंद्र का बल होता है। 

शास्त्रों में वर्णित इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाथ हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। 

हनुमान जी को देखते ही मेघनाथ भाग खड़ा होता था। 

जब रावण ने हनुमान के मुक्के कि प्रशंसा सुनि तो उसने हनुमान जी का सामना कर हनुमानजी से बोला,  "आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।"


 फिर हनुमानजी ने कहा "ठीक है! 

पहले आप मारो।" 


रावण ने कहा "मै क्यों मारूँ ? 

पहले आप मारो"। 


हनुमान बोले "आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे"। 

अब रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। 

इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई कर्ट है "देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। 

आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर"। 


रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। 

रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे - अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। 

फिर हनुमानजी ने रावण को एक घुसा मारा। 

रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो। 

रावण मूर्च्छा भंग होने पर फिर वह जागा और हनुमानजी के बड़े भारी बल को सराहने लगा, गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि "अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर मजबूरन हनुमान जी की प्रशसा कर रहा है।


प्रशंसा सुनकर हनुमान जो को प्रसन्न होना चाहिए पर वे तो रो रहे हैं स्वयं को धिक्कार रहे हैं" गोस्वामी जी के अनुसार हनुमानजी ने रोते हुए कहा कि "मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, ''जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया'' 


अर्थात हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रामद्रोही रावण जीवित है।

मोह की ताकत देखो, मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम उनके अलावा कोई नहीं मार सकता। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है


"मुरुछा गै बहोरि सो जागा। 

कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। 

जौं तैं जिअत रहेसिसुरद्रोही"।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . ‪+ 91- 7010668409‬ / ‪+ 91- 7598240825‬ ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85 website :https://sarswatijyotish.com/ 
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....

जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


।। सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

 ।। सुंदर कहानी ।।

शब्द शब्द का निर्भय और निर्णय का ही सारा खेल है।

कभी आपने खुद से पूछा है क्या सच में मेरी बातें ब्रह्मांड तक पहुंचती हैं ? 

क्या आपकी कही गई बातें, अंदर से उठी हुई इच्छाएं, वो मासूम दुआएं कहीं गुम तो नहीं हो जाती या फिर ब्रह्मांड उन्हें सुनता है। 

हर बार हर शब्द, हर भाव, हर तरंग बिल्कुल सुनता है। 

लेकिन एक शर्त है आप कैसे बोलते हैं ? 

यही सारा खेल है। 

दोस्तों, स्वागत है आपका ध्यान चेतना में। 

जहां हम सिर्फ ज्ञान नहीं बांटते। 

हम आपको आपकी आत्मा की आवाज सुनाते हैं जो कहीं अंदर बहुत धीरे - धीरे फुसफुसा रही होती है। 




Dattatreya Polyresin Bonded Bronze Maa Saraswati Idol Statue Murti for Puja (6-inch)

Visit the Dattatreya Store https://amzn.to/4ow7TvC


मैं तैयार हूं। 

बस मुझे सही शब्द दो। 

यह जो शब्द है ना, यह सिर्फ बोलने का माध्यम नहीं। 

यह चेतना के दरवाजे खोलते हैं। 

यह ब्रह्मांड की गहराइयों में उतरते हैं और वहीं से जवाब लाते हैं। 

इस लिए आज की यह यात्रा बहुत खास है क्योंकि आज हम सिर्फ बातें नहीं करेंगे। 

हम वो तीन गुप्त तकनीक जानेंगे जिनसे आपकी हर इच्छा सीधी ब्रह्मांड तक पहुंचेगी। 

लेकिन उससे पहले आपसे एक आग्रह है अगर आपने कभी दिल से कुछ मांगा है....! 

अगर आपने कभी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) को पुकारा है तो क्योंकि शायद आज आपकी पुकार का जवाब मिल जाए। 

अब आइए शुरुआत करें उस यात्रा की जो शब्दों से चलकर ब्रह्मांड के केंद्र तक जाती है। 

सब से पहली बात समझिए। 

आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) शब्द नहीं सुनता। 

वह भाव सुनता है। 

लेकिन शब्दों के जरिए ही भाव प्रकट होते हैं। 

जब आप कहते हैं काश मेरे पास पैसा होता तो ब्रह्मांड क्या सुनता है? 

मेरे पास अभी पैसा नहीं है। 

जब आप कहते हैं काश मेरी नौकरी लग जाए तो ब्रह्मांड क्या सुनता है? 

मुझे यकीन नहीं कि मेरी नौकरी लग सकती है। 

देखा आपने ? 

आपके शब्द ही आपकी ऊर्जा को दिशा दे रहे हैं। 

शब्द एक बीज हैं। 

अगर बीज में संदेह होगा तो वृक्ष कभी नहीं उगेगा। 

अगर बीज में आशंका होगी तो फल कैसे मिलेगा ? 

इस लिए आपको तीन गहरी तकनीकें अपनानी होंगी ताकि आप जो कहें वह सीधे ब्रह्मांड के हृदय में समा जाए। 

पहली तकनीक आदेश मत दीजिए। संवाद कीजिए। 

ब्रह्मांड कोई मशीन नहीं है जहां आप सेंड का बटन दबा दें और ऑर्डर पहुंच जाए। 

ब्रह्मांड एक सजीव चेतना है जो आपके भीतर है जो आपके आसपास है जो हर क्षण आपकी भावना ओं से संवाद कर रही है। 

इस लिए जब आप उससे बात करें तो आदेश देने की मुद्रा छोड़िए। 

संवाद कीजिए। 

आभार के साथ बात कीजिए। 

उदाहरण के लिए हे ब्रह्मांड मैं आभारी हूं कि आपने मुझे आज इतना सिखाया। 

मैं तैयार हूं अगली सीख के लिए। 

मेरे रास्ते में जो भी आए मैं उसे स्वीकार करूंगा क्योंकि मैं जानता हूं हर अनुभव मुझे निखारने आया है। 

देखिए इसमें आग्रह है, आदेश नहीं, इसमें आभार है, शिकायत नहीं, इसमें समर्पण है, डर नहीं। 

यही भाषा ब्रह्मांड को प्रिय है। 

दूसरी तकनीक ऑलरेडी रिसीव्ड की भाषा में बात कीजिए। 

आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) को फ्यूचर की भाषा समझ नहीं आती क्योंकि ब्रह्मांड के लिए अभी सब कुछ है। 

वो पास्ट और फ्यूचर नहीं जानता। 

वो सिर्फ आपकी वर्तमान ऊर्जा को पकड़ता है। 

अगर आप कहते हैं मुझे पैसा चाहिए तो आपकी ऊर्जा कह रही है मेरे पास नहीं है। 

और ब्रह्मांड उस ऊर्जा को ही लौट आता है। 

हां, तुम्हारे पास नहीं है। 

लेकिन अगर आप कहते हैं मैं आभारी हूं इस समृद्धि के लिए जो मेरे जीवन में है तो ब्रह्मांड सुनता है। 

इस आत्मा को समृद्धि का अनुभव है और देना जारी रखा जाए। यह कोई चमत्कार नहीं। 

यह ऊर्जा का नियम है। 

यह फिजिक्स है। 

जहां समान ऊर्जा समान ऊर्जा को आकर्षित करती है। 

आपका शब्द आपका वाइब्रेशन है। 

जैसे ही आप उस वाइब्रेशन को समृद्धि, प्रेम और आभार से भरते हैं, वैसे ही आपकी तरंगे ब्रह्मांड तक पहुंचती हैं। 

और जवाब में ब्रह्मांड आपके पास वापस वही ऊर्जा भेजता है। 

हजार गुना बढ़ाकर। 

तीसरी तकनीक विजुअलाइजेशन के साथ शब्दों का मेल। 

कभी आपने देखा है ? 

आप जो सोचते हैं वही बार - बार सामने आता है। 

अगर आप किसी डर को सोचते हैं तो डर ही आपको घेर लेता है। 

अगर आप किसी इच्छा को सोचते हैं लेकिन उसे काश ऐसा हो जाए के साथ कहते हैं तो वह इच्छा एक सपने की तरह रह जाती है। 

लेकिन अगर आप आंखें बंद करते हैं और उसी इच्छा को एक वर्तमान अनुभव की तरह महसूस करते हैं तो आपकी चेतना एक नया स्वरूप ले लेती है। 

मान लीजिए आप एक घर चाहते हैं तो हर रात आंखें बंद कीजिए और उस घर के दरवाजे पर खुद को खड़ा महसूस कीजिए। 

दीवारों की महक लीजिए। घर की खिड़कियों से आती रोशनी को देखिए। 

रसोई से आती खुशबू को महसूस कीजिए और कहिए धन्यवाद ब्रह्मांड यह मेरा है। 

जब शब्द और चित्र साथ मिलते हैं। 

तब चेतना का संदेश ब्रह्मांड को पूरी ताकत से जाता है। 

अब जरा ठहरिए। 

गहराई से सोचिए। 

क्या आपने अब तक ऐसे ही बात की थी आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) से या आप सिर्फ शिकायतें करते रहे। 

संशय में डूबे रहे या फिर डर के शब्दों में अपनी इच्छाएं बांधते रहे। 

यहां बदलाव की शुरुआत होती है। 

आपके शब्द आपके भाग्य की कुंजी हैं। 

यह सिर्फ जुबान से निकली ध्वनि नहीं। 

यह वह बीज हैं जो आपका भविष्य बनाते हैं। 

और जब आप इन तकनीकों के साथ बोलते हैं तो आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) आपको नजरअंदाज नहीं कर सकता क्योंकि उस क्षण आप और आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) एक तरंग पर आ जाते हैं और जहां तरंगे मिलती हैं वहीं चमत्कार होता है। 

जब इंसान अपने शब्दों को आत्मा से जोड़ लेता है तब वो शब्द सिर्फ बोल नहीं रहते। 

वो संकल्प बन जाते हैं। 

और संकल्प की एक खास बात होती है। 

वो कभी अकेले नहीं रहते। 

संकल्प के साथ जुड़ती है भावना। 

भावना के साथ जुड़ता है विश्वास और विश्वास के साथ आता है ब्रह्मांड की शक्ति। 

तो सोचिए जब आप अपनी हर इच्छा को इस श्रद्धा के साथ ब्रह्मांड तक भेजते हैं तो क्या वह इच्छा आपको वापस नहीं मिलेगी? 

मिलेगी? 

जरूर मिलेगी। 

लेकिन उसके लिए आपको अपनी भाषा बदलनी होगी। 

क्योंकि ब्रह्मांड आपकी भाषा नहीं सुनता। 

वो आपकी ऊर्जा की भाषा सुनता है और ऊर्जा बदलती है शब्दों से। 

अब आइए थोड़ा तार्किक होकर भी समझते हैं। 

मान लीजिए आप आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) को एक विशाल रेडियो टावर की तरह समझें जो हर पल आपकी चेतना से आ रही तरंगों को पकड़ रहा है। 

आपका मन, आपकी भावना और आपके शब्द यह सब मिलकर एक सिग्नल बनाते हैं और ब्रह्मांड उसी सिग्नल के अनुसार जवाब भेजता है। 

अब अगर आपने सिग्नल भेजा मुझे डर है कि मैं असफल हो जाऊंगा तो ब्रह्मांड उस डर को पकड़ लेगा और आपके रास्ते में और असफलताओं के अवसर भेजेगा लेकिन अगर आप सिग्नल भेजें मैं हर हाल में आगे बढूंगा क्योंकि मैं ईश्वर की संतान हूं और मेरे भीतर असीम शक्ति है। 

तो ब्रह्मांड कहेगा हां चलो इसे राह दिखाते हैं। 

शब्द बदलिए ऊर्जा बदल जाएगी। 

ऊर्जा बदलिए, दिशा बदल जाएगी। 

दिशा बदलिए, जीवन बदल जाएगा। 

यहां एक और रहस्य छिपा है। 

कभी आपने देखा है कि कुछ लोग बिना ज्यादा मेहनत के भी इच्छाएं पूरी कर लेते हैं और कुछ लोग दिन रात मेहनत करते हैं। 

फिर भी जीवन वहीं का वहीं क्यों ? 

क्योंकि पहले वाले अपने शब्दों को ऊर्जा में ढालना जानते हैं। 

वो आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) से वैसे ही बात करते हैं जैसे कोई आत्मीय मित्र से करता है। 

सच्चाई से, सम्मान से, प्रेम से जब आप ब्रह्मांड से बात करते हैं तो सिर्फ मुंह से नहीं हृदय से बात कीजिए। 

जैसे एक बच्चा अपनी मां से कुछ मांगता है। 

उसे पता होता है कि मां मना नहीं करेगी क्योंकि मां को उसकी सच्ची जरूरत समझ में आती है। 

ठीक वैसा ही रिश्ता आपका यूनिवर्स से भी है। वो आपकी जरूरत समझता है। 

लेकिन जब आप उलझी हुई भाषा में मांगते हैं तो यूनिवर्स भी उलझ जाता है। अब जानिए एक छुपी हुई शक्ति के बारे में। 

शब्दों का कंपन, वाइब्रेशन प्रत्येक शब्द की एक फ्रीक्वेंसी होती है। 

जैसे धन्यवाद शब्द की एक बहुत ऊंची फ्रीक्वेंसी होती है। 

जब आप दिल से धन्यवाद कहते हैं तो वह ऊर्जा आपके चारों ओर प्रकाश की एक परत बना देती है। 

वहीं जब आप कहते हैं मेरे साथ तो हमेशा बुरा ही होता है। 

तो यह शब्द एक नीची ऊर्जा का बुलावा भेजते हैं और ब्रह्मांड उन्हें स्वीकार करके वापस वही परिस्थितियां लाता है। 

इस लिए हर दिन अपने शब्दों की समीक्षा कीजिए। 

क्या आप जागते ही शिकायत करते हैं या आभार व्यक्त करते हैं ? 

क्या आप रात को सोते समय डर के साथ सोचते हैं या ईश्वर में विश्वास के साथ ? 

यह छोटे - छोटे शब्द ही आपकी किस्मत की स्क्रिप्ट लिखते हैं। 

अब एक शक्तिशाली अभ्यास बताता हूं जिसे आप हर सुबह या रात को इस्तेमाल कर सकते हैं। 

इसे कहते हैं वाक्य संकल्प ध्यान यानी अफरमेटिव वर्ड मेडिटेशन। 

आंखें बंद कीजिए। 

शांत सांस लीजिए और धीरे - धीरे कहिए। 

मैं ब्रह्मांड से जुड़ा हूं। 

मेरी हर बात सुनी जाती है। 

मेरी हर भावना सम्मान पाती है। 

मैं जो चाहता हूं वही मुझे मिलता है। 

मैं आभारी हूं क्योंकि ब्रह्मांड मेरा साथी है। 

हर बार जब आप यह वाक्य दिल से कहते हैं तो आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) के भीतर एक हलचल होती है। 

वो सुनता है। 

वो रिसोंड करता है कभी लोगों के जरिए, कभी घटनाओं के जरिए, कभी अचानक आने वाले अवसरों के जरिए। 

लेकिन जवाब जरूर आता है। 

अब आपसे एक गहरी बात साझा करना चाहता हूं। 

ब्रह्मांड कोई बाहर की चीज नहीं है। 

आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) कोई तारामंडल नहीं, कोई सुदूर आकाशगंगा नहीं बल्कि आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) आपका खुद का ही हैं। 

आपका ही चेतन मन, अवचेतन मन और अतिचेतन मन तीनों मिलकर एक ब्रह्मांड बनाते हैं। 

जब आप आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) से बात करते हैं तो असल में आप अपने ही आपकी भगवान या कुलदेवी ( ईश्वर ) स्वरूप से बात कर रहे होते हैं। 

इस लिए जो भी कहिए पूर्ण श्रद्धा और सम्मान के साथ कहिए। 

मत कहिए मेरे पास कुछ नहीं है। कहिए मैं वह हूं जिससे सब कुछ आता है। 

मत कहिए मेरी किस्मत खराब है। 

कहिए मैं अपने भाग्य का निर्माता हूं। 

मत कहिए मुझे डर लग रहा है। 

कहिए मेरे साथ आपकी भगवान या कुलदेवी ( ईश्वर ) है और मैं अजय हूं। 

यही है वह ब्रह्म वाक्य जो आपकी आत्मा को ब्रह्मांड से जोड़ते हैं। 

अब थोड़ा और गहराई में चलते हैं। 

आपके बोले गए शब्द, आपके विचार और आपके अंदर के भाव यह तीनों मिलकर एक आंतरिक खाका बनाते हैं। 

यही ब्लूप्रिंट आपकी जीवन वास्तविकता बन जाती है। 

अगर आपने अपने अंदर बार - बार बोला, मेरे लिए सफलता मुश्किल है तो ब्रह्मांड उसी नक्शे को फॉलो करता है। 





लेकिन अगर आपने अपने ही शब्दों से कहा मेरे लिए सफलता स्वाभाविक है क्योंकि मैं योग्य हूं तो ब्रह्मांड उस नए ब्लूप्रिंट को स्वीकार करके आपके लिए नए रास्ते खोल देता है। 

आप इस पल जहां बैठे हैं वहां तक आप अपने ही बोले गए शब्दों से पहुंचे हैं। 

अब आगे जाना है तो नए शब्दों का चयन कीजिए। उच्च ऊर्जा वाले, प्रेम और आभार से भरे हुए, सत्य और श्रद्धा से जुड़े हुए क्योंकि ब्रह्मांड कोई तर्क नहीं मांगता। 

वो बस आपकी ऊर्जा सुनता है और आपकी ऊर्जा आपके शब्दों से निकलती है। 

अब बात करते हैं उन तीन अद्भुत तकनीकों की जो आपके शब्दों को ब्रह्मांड तक सीधा और स्पष्ट पहुंचा सकती हैं। 

पहली तकनीक है भावना संरेख तकनीक इमोशनल अलाइनमेंट मेथड। 

आप जो भी आपकी भगवान या कुलदेवी कहना चाहते हैं ब्रह्मांड से उसे तब तक मत कहिए जब तक उसमें भावनाओं की अग्नि ना हो। 

कोई भी अफमेशन या प्रार्थना तब तक निष्क्रिय रहती है जब तक उसमें भावना का संचार नहीं होता। 

उदाहरण के लिए अगर आप कहें मैं समृद्ध हूं। 

लेकिन अंदर से सोचें कहां हूं ? 

मेरे पास तो कुछ भी नहीं। 

तो यह शब्द ब्रह्मांड तक पहुंचते ही छिन्न - भिन्न हो जाते हैं क्योंकि उनकी भावनात्मक ऊर्जा नकारात्मक थी। 

इस लिए जब भी आप कोई वाक्य बोले उसके पहले अपने भीतर उस भाव को जीवंत कीजिए जैसे वह पहले से सच हो चुका हो। 

अपने शरीर में उसकी ऊष्मा महसूस कीजिए। 

अपने हृदय में उसकी सच्चाई को अनुभूत कीजिए। 

फिर कहिए मैं पूर्ण हूं। 

मैं ईश्वर की कृपा से समृद्ध जीवन जी रहा हूं। 

तब यूनिवर्स उसे एक आदेश की तरह लेगा ना कि एक संदेह की तरह। दूसरी तकनीक है शब्द संयम अभ्यास। दिन भर में हम हजारों शब्द बोलते हैं। 

लेकिन उनमें से अधिकांश शब्द या तो डर से उपजते हैं या आदतों से। 

आपका पहला काम है हर शब्द को जागरूकता से चुनना। मत कहिए। 

अब तो कोई उम्मीद नहीं। 

कहिए हर क्षण नया अवसर लेकर आता है। 

मत कहिए मेरे भाग्य में यही लिखा है। 

कहिए मैं अपने भाग्य को पुनर्लेखित कर रहा हूं। 

मत कहिए मैं नहीं कर पाऊंगा। 

कहिए मैं सीख रहा हूं और आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) मेरी राह सरल कर रहा है। 

जब आप हर बात को सकारात्मक ढंग से कहने की कला सीख जाते हैं तो आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) भी आपके हर शब्द में प्रकाश भर देता है। 

आपका एक - एक शब्द मंत्र बन जाता है। 

आपका मौन भी ऊर्जा बन जाता है और तब जीवन में चमत्कार होने लगते हैं। 

तीसरी और सबसे शक्तिशाली तकनीक है श्रद्धा संवाद विधि। 

यह विधि आप दिन में कभी भी खासकर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में या रात सोने से पहले करें। 

अपनी आंखें बंद करें और आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) को एक जीवंत दयालु सुनने वाले चेतन अस्तित्व के रूप में देखें। 

फिर अपनी बात कहिए जैसे आप अपने पिता से कह रहे हो या एक आत्मीय मित्र से कहिए हे ब्रह्मांड तू मेरी हर भावना को जानता है। 

मैं आज संकल्प लेता हूं कि अपने शब्दों से तुझसे गहरा संवाद करूंगा। 

मैं जो भी बोलूंगा सच्चे प्रेम और आस्था से बोलूंगा। 

मेरी हर इच्छा तेरे पास भेज रहा हूं। 

आभार के साथ विश्वास के साथ और तेरे उत्तर की प्रतीक्षा में नहीं उसके आगमन के स्वागत में बैठा हूं। 

जब आप आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) से इस श्रद्धा और नम्रता से बात करते हैं तो ब्रह्मांड आपकी हर बात को पकड़ता है। 

जैसे कोई पिता अपने बच्चे की पुकार सुनता है। 

यह संवाद आपको भीतर से शुद्ध करता है। 

आपके शब्दों में दिव्यता आ जाती है। 

आपके संकल्प में सामर्थ्य उतर आती है। 

अब सोचिए अगर आपने अपने जीवन के हर दिन हर सुबह और हर रात सिर्फ 10 मिनट इस तरह आपकी भगवान या कुलदेवी (  यूनिवर्स ) से बात की तो कैसा बदलेगा आपका जीवन ? 

आपका आत्मबल बढ़ेगा। 

आपका मार्ग स्पष्ट होगा। 

अवसर स्वयं आपके द्वार खटखटाएंगे। 

क्योंकि अब आप मांगने वाले नहीं आज्ञा देने वाले बन गए हैं। 

आप अब प्रार्थना में गिड़गिड़ाने वाले नहीं। संपूर्ण विश्वास के साथ कहने वाले बन गए हैं। 

और यही है सच्ची साधना। 

अब एक अंतिम बात कहूं। 

ध्यान से सुनिए। 

ब्रह्मांड आपकी भाषा समझता है। 

लेकिन और भी ज्यादा समझता है आपका दृष्टिकोण। 

अगर आप कहें मुझे नौकरी चाहिए लेकिन भीतर से सोें कहीं मिलेगा भी या नहीं तो यह विरोधाभास ब्रह्मांड तक भी ऐसे ही पहुंचता है। 

आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) सोचता है यह इंसान खुद ही निश्चित नहीं है कि क्या चाहता है तो हम क्या भेजें ? 

लेकिन जब आप अपने शब्दों में स्पष्टता, श्रद्धा और प्रेम भर देते हैं तो आपकी भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) के पास कोई विकल्प नहीं रहता। 

वह आपके आदेश को स्वीकार करता है। 

तो आइए अब इस पूरी साधना का सार याद कर लें। 

भावनाओं से जुड़कर बोलें। 

हर शब्द को चेतन होकर बोलें। 

ब्रह्मांड से श्रद्धा के साथ सीधी बातचीत करें। 

आपके शब्द अब केवल शब्द नहीं आपकी आत्मा की शक्ति हैं। 

जिन्हें आपने ब्रह्मांडीय ऊर्जा में रूपांतरित करना सीख लिया तो अब कुछ भी असंभव नहीं रहेगा। 

अब अगर यह बात आपके हृदय को छू गई हो। 

अगर आपने इस मेरे ब्लॉग पोस्ट में वह जाना जो जीवन की दिशा बदल सकता है तो एक विनम्र अनुरोध है अगर आपने अभी तक आध्यात्मिकता का नशा की संगत को सब्सक्राइब नहीं किया है तो अभी कर लीजिए क्योंकि हम यहां सिर्फ बातें नहीं करते हम आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने की साधना करते हैं। 

हर ब्लॉग पोस्ट हर वाक्य हर भावना आपके जागरण के लिए समर्पित है। 

ब्लॉग पोस्ट को लाइक कीजिए और नीचे कमेंट में अपना संकल्प जरूर लिखिए क्योंकि जब आप कोई बात लिखते हैं तो भगवान या कुलदेवी ( यूनिवर्स ) उसे और गंभीरता से सुनता है। धन्यवाद दोस्तों।

*जय श्री कृष्ण*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

सुख - दुख तो सबके साथी हैं/लज्जा/एक गिलास पानी की कीमत...!

सुख - दुख तो सबके साथी हैं/लज्जा/एक गिलास पानी की कीमत...!


सुख-दुख तो सबके साथी हैं....!

न तो सुख सदा रहता है,और न ही दुख। 

दोनों बारी - बारी से आते जाते रहते हैं।

किसी के जीवन में सुख अधिक होता है, तो किसी के जीवन में दुख अधिक होता है। 

इस के अनेक कारण हो सकते हैं। 

उनमें से एक कारण यह है कि जो व्यक्ति अपने मन में भौतिक सुख प्राप्ति की इच्छाएं बहुत अधिक रखता है....! 

वह अधिक दुखी होता है। 

क्योंकि सारी इच्छाएं किसी भी व्यक्ति की पूरी हो नहीं सकती।

बल्कि ऐसा देखा जाता है कि जितनी जितनी इच्छाएं पूरी होती जाती हैं...! 

उतनी उतनी वे बढ़ती जाती हैं। 

जब सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती...! 

तब कुछ इच्छाएं जो पूरी नहीं हो पाई, वे दुख देती हैं। 

इस लिए विद्वानों ने कहा है कि इच्छा दुख की माता है। 

इच्छाएं ही दुखों को जन्म देती हैं।

इस प्रकार से जो व्यक्ति अपने मन में इच्छाएं अधिक रखता है...! 

वह दुखी अधिक होता है। 

और जो व्यक्ति ऊपर बताए गए इच्छाओं के विज्ञान को समझकर अपने मन में इच्छाएं कम रखता है...! 







Bhimonee Decor | Pure Brass Udupi Nanda Bowl Long Table Diya | 4.25 Inches Big | Brass | Pack of 2 Pieces | Traditional Lighting for Home Decor

https://amzn.to/42nT7i1


वह अधिक सुखी होता है।

अब दोनों रास्ते आपके सामने हैं...! 

आपको जो रास्ता अच्छा लगे....! 

उस पर चलें। 

"यदि मन में इच्छाएं अधिक रखेंगे....! 

तो आप दुखी अधिक रहेंगे। 

यदि मन में इच्छाएं कम रखेंगे....! 

तो आप सुखी अधिक रहेंगे।

नाभिप्रजातकमलस्थचतुर्मुखाय 
  क्षीरोदकार्णवनिकेतयशोधराय।
नानाविचित्रमुकुटाङ्गदभूषणाय 
 सर्वेश्वराय वरदाय  नमो वराय।।
भक्तिप्रियाय वरदीप्तिसुदर्शनाय 
  फुल्लारविन्दविपुलायतलोचनाय।
देवेन्द्रविघ्नशमनोद्यतपौरुषाय 
 योगेश्वराय विरजाय नमो वराय।।

नाभि से उत्पन्न हुए कमलपर  स्थित  ब्रह्मा से युक्त, क्षीरसमुद्र को अपना निवास बनाने वाले यशस्वी, अनेक प्रकार के विचित्र मुकुट एवं अङ्गद आदि आभूषणों से युक्त, वरदानी तथा वरस्वरुप सर्वेश्वर को नमस्कार है।

भक्ति के प्रेमी, श्रेष्ठ दीप्ति से सर्वथा पूर्ण एवं सुन्दर दिखलाई देने वाले, खिले हुए कमल के समान विशाल आंखों वाले, देवेन्द्र के विघ्नों का विनाश करने के लिए पुरुषार्थ करने को उद्यत वरस्वरुप, विरज योगेश्वर को नमस्कार है।
       
          || लक्ष्मी नारायण की जय हो ||

जहां लक्ष्मी होती है वहां सरस्वती नाचती है 
और जहां सरस्वती होती है लक्ष्मी नाचती है।

जहाँ सरस्वती, वहाँ लक्ष्मी का अर्थ है कि जहाँ ज्ञान और विद्या है, वहीं धन और समृद्धि  अपने आप आ जाती है। 

यह कहावत बताती है कि ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा का सही उपयोग करने से व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है और आर्थिक रूप से संपन्न होता है...! 

क्योंकि विद्या से प्राप्त बुद्धि ही धन कमाने और उसे बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त करती है।

ज्ञान ( सरस्वती ) और धन ( लक्ष्मी ) एक - दूसरे के पूरक हैं, जहाँ ज्ञान से धन को सही ढंग से उपयोग करने की कला आती है और धन के सही उपयोग से ही ज्ञान को सार्थक किया जा सकता है...! 

इस लिए जहाँ बुद्धिमत्ता और ज्ञान है....! 

वहाँ धन अपने आप आता है और जहाँ धन का सही प्रबंधन है...! 

वहाँ ज्ञान भी फल - फूलता है। 

      || लक्ष्मी सरस्वती मात की जय हो || 







लज्जा....!

लज्जा का अर्थ है 'शर्म', 'लाज' या 'विनम्रता'। 

यह एक संस्कृत मूल का स्त्रीलिंग नाम है...! 

जिसे हिंदू धर्म में एक सकारात्मक गुण माना जाता है...! 

और यह स्वाभिमान, विनम्रता और अच्छे चरित्र से जुड़ा है।

लज्जा शब्द को समझने की कोशिश करें। 

क्योंकि शब्द बहुत गहरा है और बहुत पूर्वीय है...! 

पश्चिम की भाषाओं में ऐसा कोई शब्द नहीं है। 

क्योंकि लज्जा एक पूरब की अपनी अनूठी खोज है।

लज्जा की अवस्था का अर्थ है....! 

जैसी प्रेयसी अपने प्रेमी के लिए करती है।

और जब प्रेमी पास आता है तो प्रेयसी घूंघट डाल लेती है। 

छिपती है। 

प्रेमी के सामने अपने को प्रगट नहीं करती...! 

क्योंकि प्रगट करना तो निर्लज्ज अवस्था है। 

छिपाती है...!

अवगुंठित होती है। 

प्रेमी के लिए प्रतीक्षा करती है।

प्रेमी को निमंत्रण भेजती है...!

जब प्रेमी पास आता है तो अपने को छिपाती है।

क्योंकि प्रेमी के सामने प्रकट करना तो अहंकार होगा। 

सब प्रकट करने की इच्छा प्रदर्शित करना अहंकार है।

परमात्मा के सामने क्या तुम अपने को प्रगट करना चाहोगे? 

तुम परमात्मा के सामने तो छिप जाओगे,जमीन में गड़ जाओगे। 

तुम तो परमात्मा के सामने घूंघटों में छिप जाओगे। 

परमात्मा के सामने अपने को प्रकट करने का भाव तो अहंकार है।

वहां तो तुम प्रेयसी की भांति जाओगे,पंडित की भांति नहीं। 

वहां तो तुम ऐसे जाओगे कि पदचाप भी पता न चले। 

वहां तो तुम छुपे - छुपे जाओगे। 

क्योंकि तुम्हारे पास है क्या जो दिखाएं ? 

लज्जा का अर्थ है, है क्या हमारे पास जो दिखाएं ? 

कुछ भी तो नहीं है दिखाने को...! 

इस लिए छिपाते हैं।

इस लिए भारत में जो स्त्री का परम गुण हमने माना है...! 

वह लज्जा है।

इस लिए भारत की स्त्रियों में जो एक ग्रेस...!

एक प्रसाद मिल सकता है...!

वह पश्चिम की स्त्रियों में नहीं मिल सकता। 

क्योंकि पश्चिम की स्त्री को कभी लज्जा सिखायी नहीं गयी। 

लज्जा दुर्गुण मालूम होती है। 

उसे दिखाना है...! 

प्रदर्शन करना है...! 

उसे बताना है...! 

उसे आकर्षित करना है बता कर। 

जैसे बाजार में खड़ी है।

पूरब में हमने स्त्री को लज्जा सिखायी है। 

छिपाना है। 

इस से घूंघट विकसित हुआ। 

घूंघट लज्जा का हिस्सा था।

फिर घूंघट खो गया।

और जैसे ही घूंघट खोया...! 

लज्जा भी खोने लगी। 

क्योंकि घूंघट लज्जा का हिस्सा था। 

वह उसका बाह्य अंग था। 

अब हमारी स्त्री भी प्रकट कर के घूम रही है। 

वह चाहती है लोग देखें। 

सज - संवर कर घूम रही है।

और जब तुम सज - संवर कर घूम रहे हो...!

लोग देखें यह भीतर आकांक्षा है...! 

तो तुम बाजार में खड़े हो गए।

नानक कहते हैं-

परमात्मा के सामने हमारी लज्जा वैसी ही होगी...!

जैसी प्रेमी के सामने प्रेयसी की होती है।

वह अपने को छिपाएगी। 

दिखाने योग्य क्या है ? 

इस लिए लज्जा। 

बताने योग्य क्या है?

इस लिए लज्जा। 

इस लिए घूंघट है।

और ध्यान रखना...! 

जितनी स्त्री लज्जावान होगी...!

उतनी आकर्षक हो जाती है। 

जितनी प्रगट होगी,उतना आकर्षण खो जाता है। 

पश्चिम में स्त्री का आकर्षण खो गया है। 

खो ही जाएगा। 

क्योंकि जो चीज बाजार में खड़ी है,उसका आकर्षण समाप्त हो जाएगा।

और परमात्मा के सामने तो हम बेचने को नहीं गए हैं अपने को।

और परमात्मा के सामने तो हमारे पास क्या है दिखाने को? 

इस लिए परमात्मा के सामने तो हम प्रेयसी की तरह जाएंगे। 

कंपते पैरों से, कि पता नहीं स्वीकार होंगे या नहीं संकोच से, कि पता नहीं उसके योग्य हो पाएंगे कि नहीं! 

लज्जा से, क्योंकि दिखाने योग्य कुछ भी नहीं है।

लज्जा बड़ी विनम्र दशा है। 

और उतनी विनम्रता से कोई उसके पास जाएगा तो ही अंगीकार होगा। 

और जो भक्त जितना अपने को छिपाता है...! 

उतना आकर्षक हो जाता है परमात्मा के लिए। 

और जो भक्त अपने को जितना खोलता है और ढोल पीटता है कि देखो मैं पूजा कर रहा हूं...! 

देखो मैं प्रार्थना कर रहा हूं....!

कि देखो मैं मंदिर जा रहा हूं...! 

कि देखो मैंने कितने जपत्तप किए....! 

वह उतना ही दूर हो जाता है।

क्योंकि यह कोई अहंकार नहीं है....! 

परमात्मा से मिलन एक निरअहंकार चित्त की बात है।
               
एक गिलास पानी की कीमत :

सिकंदर जब भारत लौटा तो एक साधु से मिलने गया...! 

सिकंदर को आते देख साधु  हंसने लगा।

इस पर सिकंदर को लगा कि यह तो मेरा अपमान कर रहा है।

उस ने साधु  से कहा “या तो तुम मुझे जानते नहीं हो। 

या फिर तुम्हारी मौत आ गई है....! 

तुम जानते नही कि मैं कौन हूँ? 

मैं हूँ महान सिकंदर।

इस पर साधु  और भी जोर जोर से हंसने लगा। 

उस ने सिकंदर से कहा, मुझे तो तुम में कोई महानता नजर नहीं आती। 

मैं तो तुम्हे बड़ा दीन और दरिद्र देखता हूँ। 

तो सिकंदर ने उस से कहा, क्या तुम पागल हो गये हो। 

मैंने पूरी दुनिया को जीत लिया है, तो इस पर उस साधु  ने कहा ऐसा कुछ नहीं है।

तुम अभी भी एक साधारण मनुष्य ही हो मैं तुम से एक बात पूछता हूँ कि मान लो तुम किसी रेगिस्तान मे फंस गये हो...! 

और दूर दूर तक तुम्हारे आस पास कोई पानी का स्त्रोत नहीं है और कोई हरियाली भी नहीं है...! 

जहां तुम पानी खोज सको। 

तब तुम एक गिलास पानी के लिए तरस रहे हो। तब तुम एक गिलास पानी के लिए...! 

अपने इस राज्य में से क्या दे सकते हो। सिकंदर ने कुछ देर सोच विचार किया और उस के बाद वह बोला कि मैं उसे अपना आधा राज्य दे दूंगा। 

तो इस पर साधु  ने कहा अगर वह आधे राज्य के लिए ना माने तो तुम क्या करोगे।

सिकंदर ने कहा इतनी बुरी हालत में तो मैं, अपना पूरा राज्य ही उसे दे दूंगा। 

साधु  फिर हंसने लगा और बोला कि तेरे राज्य का कुल मूल्य, बस एक गिलास पानी ही है और तू ऐसे ही घमंड से चूर चूर हुआ जा रहा है।

वक़्त पड़ जाये तो एक गिलास पानी के लिए भी तेरा राज्य काफी नहीं होगा। 

फिर रेगिस्तान में खूब चिल्लाना - महान सिकंदर, महान सिकंदर, रेगिस्तान में कोई नहीं सुनेगा। 

सारी महानता बस तेरा एक भ्रम है।  

इस लिए हमें इस सिकंदर की कहानी से शिक्षा लेनी चाहिए...! 

हमें किसी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए। 

पैसा ही सब कुछ नहीं होता....! 

अगर आप अपने धन को सही मायने में इस्तेमाल करना चाहते हैं। 

तो दीन दुखियों की सेवा कीजिए...! 

किसी जरूरत मंद की अपने धन से उसकी जरूरत पूरी करें। 

ऐसा करने से भगवान आप पर जरूर खुश होगा।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85 website :https://sarswatijyotish.com/ 
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

aadhyatmikta ka nasha

भगवान शिव ने एक बाण से किया था :

भगवान शिव ने एक बाण से किया था : तारकासुर के तीन पुत्रों को कहा जाता है त्रिपुरासुर, भगवान शिव ने एक बाण से किया था तीनों का वध : तीनों असुर...

aadhyatmikta ka nasha 1