https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: देवी शाकंभरी की कथा / भगवान शिवजी के घर :

देवी शाकंभरी की कथा / भगवान शिवजी के घर :

देवी शाकंभरी की कथा / भगवान शिवजी के घर 

|| मां देवी शाकंभरी जंयती ||
      
   
पौष पूर्णिमा का पर्व सोमवार 13 जनवरी को मनाया जाएगा। 

इस दिन देवी शाकंभरी जयंती भी मनाई जाएगी। 

इसे शक्ति और प्रकृति की देवी शाकंभरी के अवतरण दिवस के रूप में जाना जाता है। 

देवी शाकंभरी को शाकाहार एवं हरित ऊर्जा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

इसे शक्ति और प्रकृति की देवी शाकंभरी के अवतरण दिवस के रूप में जाना जाता है। 

देवी शाकंभरी को शाकाहार और हरित ऊर्जा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। 

भक्त इस दिन देवी की पूजा - अर्चना कर सुख - समृद्धि और शांति की कामना करेंगे। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार....! 

देवी शाकंभरी का अवतार तब हुआ था....! 

जब धरती पर अकाल पड़ा और जीव - जंतु भूख से व्याकुल हो गए। 






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देवी ने अपनी शक्ति से पूरे जगत को अन्न, फल और सब्जियां प्रदान की और जीवन को पुन: सजीव किया उनका नाम शाकंभरी इस लिए पड़ा।

क्योंकि उन्होंने शाक यानि सब्जी और अंभरी यानि भरने वाली के रूप में संसार का भरण - पोषण किया।

|| देवी शाकंभरी मात की जय हो ||

|| कैसा है भगवान शिव का घर ||
           
वामन पुराण में है वर्णन -

भगवान शिव का रहन - सहन हमेशा से ही लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। 

वे कहां रहते हैं, कैसे रहते हैं हर किसी को इन बातों की जिज्ञासा रहती है। 

वामन पुराण में भगवान शिव के घर का वर्णन मिलता है। 

किसने बना था उनका घर....! 

कहां पर बनाया गया था और वह कैसा था....! 

इसका भी पूरा वर्णन वामन पुराण में मिलता है।

किसने बनाया था भगवान शिव का घर...!
         
श्लोक:

ततो गिरौ वसन् रुद्रः स्वेच्छया विचरन् मुने।
विश्र्वकर्माणमाहूय प्रोवाच कुरु मे गृहम।।

अर्थ – 

एक बार मंदरगिरि पर्वत पर घुमते हुए भगवान शिव ने भगवान विश्वकर्मा से कहा कि आप मेरे लिए एक सुंदर घर का निर्माण करें।

कितना बड़ा है भगवान शिव का घर....!
        
श्लोक :

ततश्र्वकार शर्वस्य गृहमं स्वतिकलक्षणम।
योजनानि चतुः षट्टिःप्रमाणेन हिरण्मयम।।

अर्थ – 

शिवजी के कहने पर भगवान विश्वकर्मा ने चौंसठ योजन में फैला हुआ सोने का घर बनाया और पूरे घर को स्वास्तिक के चिन्हों से सजाया।

कैसी है भगवान शिव के घर की सजावट...!
        
श्लोक :

दन्ततोरणनिर्वयहं मुक्ताजालान्तरम शुभम।
शुद्धस्फटिकसोपनं वैडूर्यकृतरूपकम।।

अर्थ –

उसे हाथी के दांतों से बनी तोरण और मोतियों से बनी झालरों से सजाया। 

साथ ही वैडूर्यमणि से जड़ी स्फटिक की सीढ़ियां बनाई।

कितने कमरों का है...!

भगवान शिव का घर..!
         
श्लोक :

सप्तकक्षं सुविस्तीर्ण सवैः समुदितं गुणैः।
ततो देवपतिक्ष्य यज्ञं गार्हस्थ्यलक्ष्णम ।।

अर्थ – 

सात कमरों वाला वह घर सभी गुणों से भरा - पूरा था। 

घर बन जाने के बाद भगवान शिव ने यज्ञ आदि करने के बाद उस घर में निवास किया।

प्रश्न : जैसे पुराने कपड़े हैं और खाना खिलाना है गरीब को...! 

इस तरह का भी दान कर सकते हैं संसार में ?

उत्तर :

श्री महाराज जी द्वारा : - 

गरीब को खाना खिलाओ या कपड़ा दो या रुपया दो, बात एक है। 

लेकिन वह गरीब का अंतःकरण कैसा है? 

वह जैसा भीतर है उसका वैसा फल मिलेगा। 

नरक भी मिल सकता है....! 

स्वर्ग भी मिल सकता है....! 

अगर वह महापुरुष है तो भगवत्कृपा भी मिल सकती है। 

उस पात्र के अनुसार फल मिलेगा। 

कपड़ा हो, खाना हो....! 

दवा हो...! 

कोई भी हैल्प हो...! 

सवाल ये है कि वह आदमी क्या करता है।

उसका अंतःकरण कितना गन्दा है...! 

कितना अच्छा है? 

जैसे मान लो कोई एक डकैत आपके घर पर आया और कहा - 

मैं बहुत भूखा हूँ। 

सचमुच भूखा था। 

तुमने खाना खिला दिया। 

अब ताकत आ गई एक मर्डर कर दिया उसने। 

अब तुमने तो खाना खिलाया इस लिए कि वह दुःखी है...! 

भूखा है लेकिन उसका परिणाम उसने ग़लत कर डाला तो तुम भी पाप के हक़दार बनोगे। 

इस लिए पात्र के अनुसार ही दान करना चाहिए।

कुपात्र में दान करने से खराब फल मिलेगा। 

अब तुम कहो कि मैं क्या जानूँ ? 

तो तुमको जानना चाहिए। 

ऐसे कहने से छुट्टी नहीं मिलेगी। 

अब देखो! 

हमारी दुनियावी गवर्नमेन्ट के कानून कितने आदमी जानते हैं एक अरब में। 

एक आदमी भी नहीं जानता। 

एक अरब आदमी की आबादी है भारत में...! 

लेकिन भारत के हर महकमे के हर कानून को एक आदमी कोई याद किया हो।

इम्पॉसिबिल एक ही सब्जैक्ट में...! 

कोई क्रिमिनल का वकील है।

वह भी किताब पढ़ता है। 

लेकिन वह कहता है कि मैं सिविल तो जानता ही नहीं बिल्कुल। 

मैं पोस्ट ऑफिस के कानून तो बिल्कुल नहीं जानता। 

यानी एक आदमी भी ऐसा नहीं है एक अरब आदमी में जो अपने देश के हर विभाग के हर कानून को जानता हो। 

और फिर यहाँ तो करोड़ों अँगूठा छाप हैं हमारे देश में लेकिन अपराध हो जाने पर गवर्नमेन्ट सब को दण्ड देती है बराबर। 

जज नहीं छोड़ता किसी को कि साहब हम बेपढ़े लिखे हैं....! 

हम कायदा - कानून क्या जानें...! 

हमको माफ़ किया जाये। 

न। 

सबको दण्ड मिलेगा...! 

एडवोकेट होगा उसको भी...! 

अँगूठा छाप होगा उसको भी। 

तो भगवान् कहते हैं तुमको शास्त्र - वेद की बात जाननी चाहिए। 

सन्तों के पास क्यों नहीं गये....! 

उनसे क्यों नहीं समझा...! 

लापरवाही क्यों की ? 

छुट्टी नहीं मिलेगी इससे...! 

दण्ड मिलेगा। 

तुम्हारी ड्यूटी है। 

तुमको मनुष्य शरीर मिला। 

जब पेट के लिए तुम हजार जगह गये और सबसे नॉलेज इकट्ठा की...! 

तो आत्मा के लिए क्यों नहीं किया ? 

उसके लिए समय नहीं था। 

इससे नहीं तुम बच सकते।

तुमको हर कानून समझना चाहिए। 

ट्रेन में सफर कर रहे हो। 

उसके लॉ पहले समझो। 

क्या लॉ है ? 

यही...! 

जिस टाइम ट्रेन आवे उसके पहले पहुँचो....! 

टिकट पहले ले लो। 

सब बातें अच्छी प्रकार समझ के तब बैठो गाड़ी में अजी हम रुपया तो लिए हैं....! 

टिकट लें या न लें....! 

इससे क्या मतलब ? 

ये अटकलपच्चू काम न करो। 

मजिस्ट्रेट की जब चैकिंग हो जायगी तो दस गुना वो जुर्माना कर देगा। 

तो साहब जल्दी में थे हम तो जल्दी में थे तो तुमको ऐसा करना चाहिए था कि गार्ड से सर्टिफिकेट ले लेते कि हम यहाँ से बैठ रहे हैं। 

तो फिर रुपया तुम्हारा काम कर जाता। 

ऐसा कानून है ? 

हाँ। 

तो किसी भी एरिया में जाओ....! 

पहले कानून समझो फिर उसका पालन करो....! 

नहीं तो उसका दण्ड मिलेगा। 

ये कहने से नहीं छूट होगी कि हम क्या जानें साहब...! 

हम तो पढ़े - लिखे नहीं हैं। 

जानने से कोई मतलब नहीं। 

जानना चाहिए था...! 

शास्त्र - वेद का ज्ञान तुमको करना चाहिए था। 

गुरु के पास जाते...! 

महापुरुष के पास जाकर सब समझते तो लापरवाही न करते। 

आशीर्वाद में बहुत बड़ा बल है ;

सच्चे ह्रदय से निकला आशीर्वाद हमारे दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदल सकता है !

एक महिला हुई है सावित्री ;

राम नाम के रंग में रंगी परम अनुरक्ता !

घर के समीप ही एक आश्रम है जहा एक परम संत निवास किया करते है नित्य - प्रति वहा जा कर के तो झाडू पोंच्चा लगाया करती है !

संत महात्मा के चरण छू कर के उनका सम्मान किया करती है !

आज भाग्य का कुठाराघात हुआ है ;

पति की मृत्यु हो गयी है !

शव - यात्रा शमशान की ओर प्रस्थान कर रही है ; 

आगे - २ पुरुष अर्थी उठाये जा रहे है पीछे - २ विलाप करती महिलाये चल रही है !

अचानक ही सावित्री को वही संत - महात्मा सड़क की दूसरी ओर से आते हुए दिखाई दिये है ;

महिलाओ की भीड़ से हट कर के तो आदत के अनुरूप सावित्री ने संत - महात्मा के श्री चरणों को छुआ है !

- सौभाग्यवती भव !यह आशीर्वाद संत - महात्मा ने सावित्री के सिर पर हाथ रख कर के तो दिया है ;

यह सुनकर तो सावित्री की आँखों से आंसू बह निकले है !-

क्या हुआ है बेटी ?-

महाराज आप ने सौभाग्यवती होने का जो आशीर्वाद दिया है वह व्यर्थ ही है ;

मेरे सौभाग्य को तो शमशान में जलाने के लिए ले जाया जा रहा है !

संत - महात्मा मुस्कराते हुए कहते है -

बेटी जब से परमात्मा ने मुझे अपनाया है तब से इस मुख से कभी असत्य वचन नहीं निकला !

आज भी इस मुख से तुम्हारे लिये जो आशीर्वाद निकला है उसमे भी प्रभु ही की कोई लीला रही होगी !

साधकजनों सत्य मानियेगा ;

सावित्री के पति को जब जलाने के लिए अर्थी पर लिटाया गया है तो वह जीवित उठ खड़ा हुआ है !

संत - महात्मा के आशीर्वाद का प्रताप कहियेगा 

इसे साधकजनों या सावित्री की विनम्रता का जो मरा हुआ व्यक्ति उठ खड़ा हुआ है !

सावित्री की विनम्रता ने ही मानो संत - महात्मा को आशीर्वाद देने के लिए विवश किया है !

अतः

अपने माता - पिता बड़े - बजुर्गो एवं गुरुजनों के आगे झुकना सीखियेगा !

इन का ह्रदय से दिया हुआ आशीर्वाद हमारे जीवन की दशा और दिशा दोनों को बदल कर रख सकता है !

बहुत-बहुत मंगलकामनाये शुभकामनाये !
धन्यवाद सह पंडारामा प्रभु राज्यगुरु ( द्रविण ब्राह्मण) 
राम राम
      जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज...!
                    राधे राधे 🙏
      *|| ॐ नमः शिवाय ||*


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