|| भाद्रपद ( भादो ) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण / भगवान की दुआ मतलब आशीर्वाद / पोशाक को स्वयं धारण करना / उड़ीसा में बैंगन बेचने वाले ||
भाद्रपद ( भादो ) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण :
भगवान शिव को समर्पित सावन माह बीतने के बाद हिन्दु पंचांग का छठा भाद्रपद मास जिसे भादौं भी कहते हैं, प्रारम्भ हो चुका है।
सावन की तरह ही भादौं का महीना धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भाद्रपद मास में हिन्दु धर्म के अनेक बड़े व्रत, पर्व, त्यौहार पड़ते हैं जिनमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेशोत्सव, ऋषि पंचमी प्रमुख हैं।
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भादौं मास में पड़ने वाले इन विशिष्ट उत्सवों ने सदियों से भारतीय धर्म परम्पराओं और लोक संस्कृति को समृद्ध किया है।
हिन्दु धर्म परम्पराओं में इस माह में जहां कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम पूज्य देवता श्रीगणेश का जन्मोत्सव होता है।
इस प्रकार भादौं मास कर्म और बुद्धि के समन्वय और साधना से जीवन में सफलता पाने का मार्ग दिखलाता है।
भाद्रपद मास, चातुर्मास के चार पवित्र माहों का दूसरा माह है जो धार्मिक तथा व्यावहारिक नजरिए से जीवनशैली में संयम और अनुशासन को अपनाना दर्शाता है।
इस माह में अनेक लोक व्यवहार के कार्य निषेध होने के कारण यह माह शून्य मास भी कहलाता है, इसमें नए घर का निर्माण, विवाह, सगार्इ आदि मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते, इसलिए यह माह भकित, स्नान - दान के लिए उत्तम समय माना गया है।
उत्तम स्वास्थ्य की दृषिट से भादौं मास में दही का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जाते हैं।
व्यक्तित्त्व निखारना सीखें भादौं के महीने से हिन्दु पंचांग में जितनी भी तिथि और माह बताए गए हैं, वे सब कोई संदेश जरूर देते हैं।
भाद्रपद शब्द संस्कृत के भद्र शब्द से बना है, जिसका अर्थ है सभ्य।
दरअसल यह महीना व्यकितत्व निखारने का महीना है।
भाद्रपद मास से पहले पड़ने वाला माह सावन शिव भकित का महीना होता है...!
जिस तरह सावन रिमझिम बरसता है और इसका पानी धरती के भीतर तक उतरता है...!
ऐसे ही भकित हमारे भीतर तक बस जाती है।
जब इंसान के भीतर तक भकित उतर जाती है तो उसके व्यकितत्व में अपने - आप ही विनम्रता, अपनत्व और समत्व जैसे भाव आ जाते हैं....!
सभ्यता हमारे व्यकितत्व में उतर जाती है।
भादौं का महीना तेज बौछारों वाली बारिश का होता है...!
यह सिखाता है कि जब भी कोई काम करो, जम कर करो।
भादौं समय की कीमत बताता है...!
जैसे तेज पानी तत्काल बह जाता है...!
ऐसे ही वक्त भी लगातार गुजर रहा है।
भाद्रपद मास महात्म्य कथा :
एक समय नारदजी तीनों लोकों में भ्रमण करते - करते एक तेजस्वी ऋषि के यहां पहुंचे, ऋषि के आग्रह करने पर नारदजी ने भादौं मास का महत्व सुनाया।
भादौं मास का महत्व ब्रहमा जी के प्रार्थना करने पर स्वयं भगवान विष्णु ने सुनाया था...!
इस लिए उत्तम, मध्यम अथवा अधम किसी भी प्रकार का मनुष्य क्यों न हो....!
इस उत्तम भादौं माह में व्रत कर महात्म्य सुनने से अतिपवित्र होकर बैकण्ठ में निवास करता है।
प्राचीन काल की बात है, एक दम्पति, शम्बल और सुमति, को देवयोग से कोई संतान नहीं थी।
एक समय भाद्रपद मास आने पर नगर के बहुत से स्त्री - पुरूष भादौं स्नान के लिए तैयार हुए...!
सुमति ने भी भाद्रपद स्नान करने का निश्चय किया परन्तु उसका पति शम्बल बहुत समझाने के बाद ही तैयार हुआ।
पहले दिन तो उसने स्नान किया परन्तु दूसरे दिन शम्बल को तीव्र ज्वर हो गया जिसके फलस्वरूप पूरे भाद्रपद माास वह स्नान न कर पाया और अंतत: उसकी मृत्यु हो गई।
मृत्यु के बाद नरक की यातनाऐं भोगकर उसने कुत्ते की योनि में जन्म लिया।
इस योनि में भूख और प्यास से वह अति दुर्बल हो गया, कुछ काल व्यतीत होने पर वह वृद्ध हो गया जिससे उसके सभी अंग शिथिल हो गए। एक दिन उसे कहीं से मांस का एक टुकड़ा मिला, अचानक वह टुकड़ा उसके मुंह से छूटकर जल में गिर गया।
देवयोग से उस समय भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष चल रहा था।
उस टुकड़े को पाने के चक्कर में वह भी जल में कूद गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ।
उसी समय भागवान के पार्षद दिव्य विमान लेकर आए और उसे बैकुण्ड ले गए।
तब उसने कहा, ''मैंने तो किसी भी जन्म में कोर्इ पुण्य कर्म नहीं किया, फिर बैकुण्ठ कैसा?
पार्षदों ने कहा, ''तुमने अन्जाने में भी भाद्रपद मास में स्नान करके अपने प्राण गंवाऐ हैं, इसी पुण्य के प्रताप से तुम्हें बैकुण्ठ प्राप्त हुआ है।
तब नारद जी बोले, ''जब अज्ञात स्नान करने का फल उसे इस प्रकार प्राप्त हुआ, तब भाद्रपद मास में श्रद्धा से स्नान तथा दान आदि किया तो जाए तो पुण्य फल अत्यधिक प्राप्त होता है।
भाद्रपद मास महात्म्य अन्य प्रचलित कथा :
प्राचीनकाल में एक बड़े प्रतापी राजा थे।
उनका नाम नल था।
उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी थी।
उसका नाम था दम्यन्ती।
राजा प्रजा का पालन मन लगाकर करते थे।
अतः वे स्वंय सुखी थे और प्रजा भी पूर्ण सुखी थी।
किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं था....!
पर किसी शापवश राजा नल विपत्तियों की बाढ़ में बह गये।
उन पर इतनी विपत्तियाँ पड़ी, जिनकी कोई गणना नहीं।
उनके हाथीखाने में अनेक मदमस्त हाथी थे, जिन्हें चोर चुराकर ले गये।
धुडसाल के सभी घोड़ो को भी चोर चुरा ले गये। डाकुओं ने उनके महल पर घावा बोला और सब कुछ लुटकर आग लगा दी।
बचा - खुचा सब स्वाहा हो गया।
ज्यों - त्यों कुछ संभले, तो जुआ खेलकर सब नष्ट हो गया।
विपत्ति की सीमा ही लंघ गयी।
राजा - रानी नगर छोड़कर राज्य से बाहर हो गये।
जंगल - जंगल घूमने लगे।
पति - पत्नी एक तेली के यहाँ पहुँचे।
तेली ने दोनों को आश्रय दिया।
उसे ज्ञात नहीं था कि ये नल और दमयन्ती हैं।
नल को कोल्हू के बैल हाँकने का काम सौंपा और दमयन्ती को सरसों साफ करने का।
राजा - रानी ने ये काम कभी किये नहीं थे, अतः उन्हें थकान हो जाती और तेली - तेलिन के कड़वे बोलों का शिकार होना पड़ता।
राजा अपनी अनेक जान-पहचान की जगहों पर भी गया, पर शाप के कारण हर स्थान पर उनका अपमान हुआ।
जंगल घूमते - घूमते राजा रानी से बिछुड़ गया।
जहाँ - तहाँ भटकने लगा।
दमयन्ती जंगल में अकेली रह गयी।
बेचारी असहाय महिला क्या करे, क्या ना करे?
अन्य मुसीबतें झेल भी ले, पर पति - वियोग की अग्नि से कैसे बचे।
एक दिन रानी की भेंट अचानक ही शरभंग ऋषि से हो गयी।
ऋषि द्वारा पूछने पर दमयन्ती ने अपनी विपत्ति-कथा कह सुनायी।
शरभंगजी ने दमयन्ती से कहा - पुत्री!
तुम गणेशजी की पूजा - अर्चना करो और गणेश चैथ का व्रत करो।
रानी तो साधनहीन थी।
ज्यों - त्यों करके उसने गणेश व्रत किया।
उस व्रत के प्रभाव से रानी को उसका पति मिल गया और पति को खोया हुआ राज्य मिल गया।
राजा - रानी गणेशजी के भक्त हो गये।
भाद्रपद महीने में कई तीज और त्योहार पड़ते हैं, इसलिए हिन्दू कैलेंडर का ये छठा महीना कई तरह से खास है।
ये महीना 10 अगस्त से शुरू होके 07 सितंबर तक रहेगा।
इस दिन भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि है, जो कि इस महीने का आखिरी दिन होता है।
इस महीने की पूर्णिमा पर आकाश में पूर्वा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का योग बनने से इस माह का नाम भाद्रपद है।
ये चातुर्मास के चार पवित्र महीनों का दूसरा महीना भी है।
पवित्र चातुर्मास के अंतर्गत आने से ग्रंथों के अनुसार इस महीने में कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी है।
इस महीने क्या करें और क्या नहीं :
1 . शारीरिक शुद्धि या सुंदरता के लिए संतुलित मात्रा में पंचगव्य ( दूध, दही, घी गोमूत्र, गोबर ) का सेवन करें।
2 . वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध पीएं।
3. पापों के नाश व पुण्य प्राप्ति के लिए एकभुक्त ( एक समय ), अयाचित ( बिना मांगा ) भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत लें।
इनका त्याग करें :
1. मधुर स्वर के लिए गुड़ का त्याग करें।
2. लंबी उम्र के लिए व पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का।
3. सौभाग्य के लिए मीठे तेल का।
4. स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का।
5. पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, हरी सब्जी, मूली एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।
क्या सीखना चाहिए इस महीने से :
भाद्रपद चातुर्मास के चार पवित्र महीनों का दूसरा महीना है।
चातुर्मास धार्मिक और व्यावहारिक नजरिए से जीवनशैली में संयम और अनुशासन अपनाने का काल है।
भाद्रपद मास में हिन्दू धर्म के अनेक बड़े व्रत, पर्व, उत्सव भी मनाए जाते हैं जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेशोत्सव, ऋषि पंचमी, डोल ग्यारस और अनंत चतुर्दशी आदि।
इन पर्व, उत्सवों ने सदियों से भारतीय धर्म परंपराओं और लोक संस्कृति को समृद्ध किया है।
हिंदू धर्म परंपराओं में इस माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम पूज्य देवता श्रीगणेश का जन्मोत्सव होता है।
इस प्रकार यह मास कर्म और बुद्धि के संतुलन और साधना से जीवन में सफलता पाने का संदेश लेकर भी आता है।
भाद्रपद मास के पर्व त्यौहार :
10 अगस्त भाद्रपद कृष्ण पक्ष आरम्भ, अशून्यशयन व्रत पूर्ण, मेला गोगामेडी (राज.) आरम्भ, गायत्री पुरश्चरण आरम्भ।
11 अगस्त बृहद गौरी व्रत, विशालाक्षी यात्रा काशी।
12 अगस्त कज्जली ( सातुडी ), तीज, बहुला चतुर्थी।
13 अगस्त रक्षा पंचमी, पंचमी तिथि क्षय।
14 अगस्त हल चन्दन षष्ठी, बलदेव जन्मोत्सव।
15 अगस्त श्री कृष्ण जन्माष्टमी ( स्मात ) निशिथ काल 24:21 से, 79 वाँ स्वतन्त्रता दिवस, शीतला सप्तमी।
16 अगस्त श्री कृष्ण जन्माष्टमी ( वैष्णव ), कालाष्टमी, दूर्वाष्टमी, संक्रान्ति सूर्य सिंह में 25:51 से, मेला गोगामेडी ( राज. ) समाप्त।
17 अगस्त गोगा ( गुग्गा ) नवमी, नंद महोत्सव, संक्रान्ति पुण्य काल सूर्योदय से दिन 21:40 तक।
19 अगस्त अजा एकादशी व्रत ( सब का )।
20 अगस्त प्रदोष व्रत, बछ बांरस ( गौवत्स पूजा ), पर्युषण पर्व आरम्भ ( जैन )।
21 अगस्त मासिक शिवरात्रि, अघोरा चतुर्दशी व्रत।
22 अगस्त पिठौरी अमावस्या, पितृ कार्य हेतु भाद्रपद अमावस्या, शरद ऋतु आरम्भ।
23 अगस्त देव कार्य हेतु शनैश्चरी भादपद ( कुशोत्पाटिनी ) कुशाग्रहणी अमावस्या, लोहागर्ल यात्रा।
24 अगस्त चन्द्र दर्शन, मौन व्रतारम्भ, नक्त व्रत पूर्ण, भाद्रपद शुक्ल पक्ष आरम्भ।
25 अगस्त श्री वराह अवतार जन्मोत्सव, बाबा रादेव दूज।
26 अगस्त हरितालिका ( केवडा ) तीज, गौरी तृतीया, सामवेदीय उपाकर्म, गुरू रामदास पुण्य दिवस ( चन्द्र दर्शन निषेध )।
27 अगस्त श्री गणेश ( कलंक ) चतुर्थी, श्री गणेश जन्मोत्पव ( चन्द्र दर्शन निषेध )।
28 अगस्त ऋषि पंचमी, गर्ग - अंगिरा, ऋषि जन्मोत्सव, रक्षा पंचमी बंगाल।
29 अगस्त चम्पा - सूर्य षष्ठी, बलदेव छठ ( जयन्ती ) मतान्तर, ललिता घष्ठी व्रत।
30 अगस्त मुक्ता भरण सन्तान सप्तमी।
31 अगस्त ऋषि दधिची जयन्ती, राधाष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, मेला भर्तहरी आरम्भ ( अलवर राज० )।
01 सितम्बर अदुःख नवमी, ( उदासीन )।
02 सितम्बर दशावतार ( व्रत ) जयन्ती, तेजा दशमी, बाबा रामदेव की 400 वीं जयन्ती, धूप दशमी ( जैन ), मेला सांवलिया सेठ ( 3 ) दिन, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण।
03 सितम्बर पद्या ( जल झूलनी ) परिवर्तिनी एकादशी ( स्मति - वैष्णव ), डोल ग्यारस, मेला चारभुजानाथ।
04 सितम्बर वामन अवतार जन्मोत्सव, भुवनेश्वरी जयन्ती, कल्की द्वादशी, जलझूलनी एकादशी ( निम्बार्क ), श्रवण द्वादशी।
05 सितम्बर प्रदोष व्रत, शिक्षक दिवस।
06 सितम्बर पंचक आरम्भ 11:21 से, अनन्त चतुर्दशी व्रत, श्री गणेश विसर्जन।
07 सितम्बर श्री सत्यनारायण ( पूर्णिमा ) व्रत, गुरू अमरदास जयन्ती, चन्द्रग्रहण ( सूतक आरम्भ दोहपर 12:55 से ), सन्यासियों का चातुर्मास पूर्ण, महालय श्राद्ध पक्ष आरम्भ।
*!!( दुआ) आशीर्वाद का असर !!*
एक हॉटेल में अधिक भीड़ रहती थी जिसे बहुत उठाकर एक आदमी रोजाना खाकर बिना पैसे ही चला जाता था.
હું રોજ उस आदमी को देखता हूँ लेकिन होटल के मालिक को कभी कभी नहीं.
એક દિવસ સોચા ચલો હોટેલના માલિકને પણ જણાવો, જેમ કે હું આ હોટેલના માલિકને તેના માણસ વિશે કહું છું કે તમે પહેલા ગ્રાહકને આ વાત કહી નથી; અને પણ ઘણા ગ્રાહકો અમને આ વાત કહે છે.
તમે મારી વાત સાંભળો છો કે તમે તેને રોકતા કેમ નથી તે મને જવાબ આપે છે કે એક વાર મેં તે વ્યક્તિનું પીછું કર્યું તો અમને ખબર પડી કે તે એક ભીખારી છે અને કચૌરી ખાવાના પછી સીધા ભગવાનના મંદિરમાં જાય છે.
जब हम चुपके से भगवान के मंदिर में जाकर देखा तो वह व्यक्ति ( दुआ ) प्रार्थना करके आशीर्वाद मांग रहा था कि हे भगवान! कल उस होटल में आज से भी ज्यादा भीड़ना भेजना भीड़ में मैं कचौरी खाके निकल सकूं.
फिर हमें एहसास ( हुआ ) प्रार्थना की होटल हमारी मेहनत से नहीं उसकी ( दुआओं ) आशीर्वाद की बदौलत बताती है।
*શિક્ષા:-*
મિત્રો, જીવનમાં ક્યારેક-કભી અમે તમારી સફળતા પર ઘમંડ લગતા હોઈએ છીએ, પરંતુ અમને ખબર નથી કે તે સફળતા અમારી કેવી ( દુઆઓ ) પ્રાર્થના અને આશીર્વાદની બદૌલત मिली है..!!
*🙏🏽🙏🏾🙏🏼જય શ્રી કૃષ્ણ*🙏🏻🙏🏿🙏
*|| पोशाक को स्वयं सामान्य करना ||*
*वृंदावन में एक कथा प्रचलित है कि एक ठाकुर भूपेंद्र सिंह नामक व्यक्ति थे जिनकी भरतपुर के पास एक रियासत थी।
ઇન્હોને તમારો પૂરો જીવન ભોગવિલાસમાં બિતાયા.
धर्म के नाम पर ये कभी रामायण की कथा करवाते, तो कभी भागवत की कथा करवाते थे, बस इसी को यह धर्म समझते थे।*
*झूठी शान और शौकत का दिखावा करते थे.
ઠાકુર ભૂપેંદર સિંહની પત્ની ભગવાન પર વિશ્વાસ રાખતી હતી.
वह साल में नियमानुसार वृंदावन जा कर श्री बांके बिहारी की पूजा करती।
ક્યારે भूपेंदर सिंह भगवान में कभी आस्था विश्ववास नहीं प्रधान था।
उल्टा वह अपन बीबी को इस बात का भी मारता था, लेकिन उनकी पत्नी ने कभी भी इस बात का बुरा नहीं माना।*
*एक दिन भूपेंद्र सिंह शिकार से देख रहे हैं अपने महल को फूलों से सजा हुआ है।
घर में विशेष प्रसाद बनाया गया था, लेकिन ये आते ही उखड़ गए और नौकरों पर चिल्लाने लगे।
તબ તેમની બીવી ને કેવડી આજે બાઈકે બિહારીનો દિવસ છે તેના વિશે વે ઉનહેં પહેલા જણાવું છું, લેકીન ભૂપેન્દ્ર સિંહને યાદ કર્યા પછી, કારણ કે તે તેના પર ચિલ્લાને લાગશે, તે પછી उन् लज्जा અનુભવી અને તેની બીવી સામે શાંત હો ગયા.*
*ધીરે ધીરે ઠાકુર ભૂપેન્દ્ર સિંહના સુખ ભોગવિલાસમાં આગળ વધવું અને તેણીની પત્નીથી દૂર જતા હતા.
જેમ કે તેમની પત્ની बाँके बिहारी जी के और पास चली गईं।
ઠાકુરની પત્નીને બાંકે બિહારી માટે પોષક તૈયાર કરવું હતું, જેના વિશે ઠાકુરને ખબર પડી અને તે તેને ગાયબ કરવા ઈચ્છે છે.
उन्होंने पोषाक गायब करवा दी, जिसके बारे में ठाकुर की पत्नी को पता ही नहीं चला और वह वृंदावन में पहुंच कर उस पोषक के आने का इंतजार करने लगी।*
*ठाकुर ने पोशाक चोरी होने की खबर वृन्दावन आने पर अपनी पत्नी को देने की सोची।
जब वह वृंदावन पहुंचे तो देखते हैं, कि वहां पर सभी भक्त बांके बिहारी लाल की जय !
जय जय श्री राधे !
करते हुए भीड़ लगाए हुए थे।
लेकिन ठाकुर के मन में अपनी पत्नी को नीचा दिखाने का विचार था।*
*वह जैसे ही अपनी पत्नी को ढूंढते हुए मंदिर पहुंचे, वह देखते हैं कि उनकी पत्नी उन्हें देख कर खुश हो रही होती है और कहती है कि भगवान ने मेरी सुन ली कि तुम आज यहां आए हो।
वह ठाकुर का हाथ थाम कर बांके बिहारी के सामने ले जाती है।*
*बांके बिहारी ने वही पोशाक पहन रखी थी, ठाकुर जैसे ही विग्रह के सामने पहुंचते हैं।
वह देखते हैं कि बांके बिहारी ने वही पोषाक पहन रखी थी, जिसे उन्होंने चोरी करवाई थी।
इसे देख ठाकुर हैरान परेशान हो गया और जब उसने बांके बिहारी से आंखें मिलाई तब उसकी नजरें खुद शर्म से झुक गईं।
उनकी पत्नी ने बताया कि इस पोषाक को बीती रात उनके बेटे ने लाई थी।
यह सुन कर ठाकुर का दिमाग खराब हो गया और यह सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।*
*ठाकुर विश्राम करने को गया तो बांके बिहारी सपने में आए और ठाकुर से कहते हैं।
क्यों हैरान हो गए कि पोशाक मुझ तक कैसे पहुंची।
वे बोले कि इस दुनिया में जिसे मुझ तक आना है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।
पोषाक तो क्या तू खुद को देख, तू भी वृंदावन आ गया।
यह बात सुन ठाकुर साहब की नींद खुल जाती है और उनका दिमाग सुन्न पड़ जाता है।
वह भी बाँके बिहारी जी का भक्त बन जाता है।
बाँके बिहारी ऐसी अनेक लीला भक्तो के साथ करते है।*
*|| श्री बाँकेबिहारी की जय हो ||*
*उड़ीसा में बैंगन बेचने वाले*
*की एक बालिका थी |*
*दुनिया की दृष्टि से उसमें कोई अच्छाई नहीं थी |
न धन था, न रूप |
किन्तु दुनिया की दृष्टि से नगण्य उस बालिका को संत जयदेव गोस्वामी जी का पद गीत गोविंदम बहुत ही भाता था |
वह दिन-रात उसको गुनगुनाती रहती थी और भगवानके प्रेम में डूबती - उतराती रहती थी|
वह घर का सारा काम करती, पिता-माता की सेवा करती और दिन भर जयदेव जी का पद गुनगुनाया करती और भगवान की याद में मस्त रहती |*
*पूर्णिमा की रात थी,पिताजी ने प्यारी बच्ची को जगाया और आज्ञा दी कि बेटी !
अभी चाँदनी टिकी है, ईसी प्रकाश में बैंगन तोड़ लो जिससे प्रातः मैं बेच आऊँ |
वह गुनगुनाती हुई सोयी थी और गुनगुनाती हुई जाग गयी |
जागने पर इस गुनगनाने में उसे बहुत रस मिल रहा था |वह गुनगुनाती हुई बैंगन तोड़ने लगी, कभी इधर जाती, कभी उधर; क्योंकि चुन - चुनकर बैंगन तोड़ना था |*
*उस समय एक ओर तो उसके रोम - रोमसे अनुराग झर रहा था और दूसरी ओर कण्ठ से गीत गोविन्द के सरस गीत प्रस्फुटित हो रहे थे |
प्रेमरूप भगवान् इसके पीछे कभी इधर आते, कभी उधर जाते |
इस चक्कर में उनका पीताम्बर बैंगन के काँटों में उलझकर चिथड़ा हो रहा था, किन्तु इसका ज्ञान न तो बाला को हो रहा था और न उसके पीछे - पीछे दौड़ने वाले प्रेमी भगवान को ही |
विश्व को इस रहस्य का पता तब चला जब सबेरे भगवान् जगन्नाथ जी का पट खुला और उस देश के राजा पट खुलते ही भगवान की झाँकी का दर्शन करने गये |
उन्हें यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि पुजारी ने नये पीताम्बर को भगवानको नहीं पहनाया था, जिसे वे शाम को दे गये थे |
वे समझ गये कि नया पीताम्बर पुजारी ने रख लिया है और पुराना पीताम्बर भगवान को पहना दिया है |*
*उन्होंने इस विषय में पुजारी से पूछा |
વેચારા પુજારી આ દ્રશ્ય જુઓ અવકથા |
उसने तो भगवान को राजा का दिया नया पीताम्बर ही पहनाया था, किन्तु राजा को पुजारी की योग्यता पर हुआ और उन्होंने उसे जेल में डाल दिया |
નિર્દોષ પુજારી જેલમાં ભગવાનનું નામ પર ફૂટ - ફૂટકર રોને લાગ્યો |*
*આ વચ્ચે રાજા આરામ કરવા અને તેની નીંદ આશ |
સ્વપ્નમાં ભગવાન જગન્નાથ જીના દર્શન અને સુનાયીપદ કી પૂજારી નિર્દોષ છે, ઉસે સન્માનના સાથ છોડો |
રહી વાત ન કરવી જોઈએ પીતામ્બરકી તો આ હકીકત બેંગનના ખેતરમાં જાકર સ્વયં જુઓ લો, પીતામ્બરના ફટેઅંશ બેંગન કે કાંટોમાં ઉલજે મળશે |
હું તો પ્રેમ के अधीन हूं, તમારા प्रेमीजनों के पीछे - पीछे लगाया करता हूँ |
બૈંગન તોड़ने वाली बाला के अनुराग भरे गीतों को मेरे लिए मेरे पीछे - પાછળ દોડ હું અને એક જ માં મારા પીતામ્બર काँटों में उल्झकर फट |
જગન્નાથ-મંદિરની દેખરેખ, ભોગ-આરતી વગેરે તમામ રીતે વ્યવસ્થાવાળા રાજાના જીવનની આ અદ્ભુત ઘટનાએ રસ ભર્યો અને ભગવાનના અનુરાગમાં પણ મસ્ત રહેશે |
बैंगन तोड़ने वाली एक बाला के पीछे-पीछे भगवान के प्रेम में घूमते हैं |*
* આ વાર્તા ફૂસની આગની જેમ ફેલાવો |
જગત કે સ્વાર્થી લોકોની પણ નજીક આવવા લાગી |
कोई पुत्र माँगता तो कोई धन |
આ રીતે ભગવાનના પ્રેમમાં બાધા પડતે જુઓ રાજા ને જગન્નાથ મંદિરમાં નિત્ય મંગળ આરતીના સમયના ગીત ગોવિંદ ગીતો માટે તેને બાલિકા મંદિરમાં રક્ષા અને તેની સુરક્ષા- વ્યવસ્થા |
तब से नित्य मंगला आरती में गीत गोविंद का गान श्री जगन्नाथ मंदिर में आ रहा था।*
*|| જય જગન્નાથ સ્વામી જી ||*
પંડારામા પ્રભુ રાજ્યગુરુ
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