सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित सुंदर प्रवचन ।।
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित सुंदर प्रवचन
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्र मानस आधारित सुंदर प्रवचन श्रीतुलसी श्रीराम किंकर उवाच.........!
रावण और कुंभकर्ण को भगवान राम और मेघनाथ को लक्ष्मणजी मारते हैं लेकिन मारने के क्रम में भिन्नता है।
मेघनाथ की मृत्यु हृदय पर बाण के प्रहार से और कुंभकर्ण की सिर काटने से हुई।
मेघनाथ के हृदय पर लक्ष्मणजी ने बाण का प्रहार किया और उसकी मृत्यु हो गई।
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कुंभकर्ण की मृत्यु हृदय पर प्रहार करने से नहीं हुई बल्कि भगवान राम ने पहले उसकी दोनों भुजाओं को काट दिया, और जब वह गर्जना करता हुआ उनकी ओर दौड़ा तो उसके मुंह को बाणों से भर दिया।
इसके पश्चात जब वह मौन होकर उनके सम्मुख आया तो श्रीराघवेंद्र ने उसका सिर काटकर रावण के सामने फेंक दिया और इस तरह कुंभकर्ण की मृत्यु हुई।
पर रावण की मृत्यु न तो हृदय पर प्रहार करने से, न सिर पर प्रहार करने से और न भुजा पर प्रहार करने से हुई।
अब तनिक प्रहार के इन केंद्रों पर विचार कीजिए।
इन्हें मारने में जो अंतर किया गया है क्या उसका कोई अर्थ है ?
दुशरा सुंदर प्रर्वचन अद्भुत ज्ञान...!
सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर ध्यान रुक गया ।
तुलसीदास ने सुन्दर कांड में, जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।
अर्थात : -
जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो --
भगवान की प्रेरणा से " उनचासों पवन " चलने लगे।
हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।
मैंने सोचा कि इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ?
यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा।
फिर मैंने सुंदरकांड पूरा करने के बाद समय निकाल कर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ।
तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ...!
जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि " वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। "
अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है।
लेकिन उसका रूप बदलता रहता है।
जैसे कि ठंडी वायु , गर्म वायु और समान वायु , लेकिन ऐसा नहीं है।
दरअसल , जल के भीतर जो वायु है उसका वेद - पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है।
अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है।
नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है।
इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।
ये सात प्रकार हैं : -
1.प्रवह...!
2.आवह...!
3.उद्वह...!
4. संवह...!
5.विवह...!
6.परिवह...!
और
7.परावह...!
1. प्रवह : -
पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है।
इस प्रवह के भी प्रकार हैं।
यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर - उधर उड़ाकर ले जाती है।
धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है।
जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।
2. आवह : -
आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है।
उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।
3. उद्वह : -
वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है।
इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है।
4. संवह : -
वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है।
उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
5. विवह : -
पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है।
उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है।
6. परिवह : -
वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है।
इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
7. परावह : -
वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है।
इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
इन सातो वायु के सात सात गण हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं....!
ब्रह्मलोक...!
इंद्रलोक...!
अंतरिक्ष...!
भूलोक की पूर्व दिशा...!
भूलोक की पश्चिम दिशा...!
भूलोक की उत्तर दिशा...!
और
भूलोक कि दक्षिण दिशा...!
इस तरह 7 x 7 = 49।
कुल 49 मरुत हो जाते हैं ।
जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं....!
हम अक्सर वेद पुराण और रामायण, भगवद् गीता में पढ़ तो लेते हैं।
परंतु उनमें लिखी छोटी - छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं ...!
( राम का दण्डकवन में प्रवेश ))...!
और यदि वाण से मारकर ला दो तो मैं उसके चमड़े की चोली बनाऊँगी।
सीता के वचन सुन तथा कुछ सोच - समझकर रघूत्तम राम सीता की रक्षा के लिये भाई लक्ष्मण को नियुक्त करके शीघ्र मृगके पोछे चल दिये।
हरिण भी रामके आगे दौड़ता हुआ उन्हें बहुत दूर जंगलमें दौड़ा ले गया ॥ ९० ॥ ६१ ॥
वहां बाण से घायल होकर वह जोर से राम के स्वर में चिल्लाने लगा 'हा लक्ष्मण !
मै बनम मारा गया, शीघ्र आओ' ।। १२ ।।
इतना कहकर मारीच रक्त वमन करता हुआ मर गया।
उस शब्द को सुनकर जानकी ने लक्ष्मण को जाने के लिये कहा ॥ ६३ ॥
लक्ष्मण बोले - हे सीते!
यह राम का वाक्य नहीं है, मत डरो।
सीता फिर कहने लगीं कि में अव तुम्हारे अभिप्राय को जान गयी ॥ ६४ ॥
तुम भरत के कहने के अनुसार राम का मरण अथवा राम के मर जाने पर मुझे भोगना चाहते हो।
परन्तु याद रखो, मैं तुम्हारी अभिलाषा पूरी नहीं होने दूंगी और अभी मर जाऊँगी ।। ६५ ।।
सीता के इस वचनको सुनकर सुमित्रापुत्र लक्ष्मण जानकी से बोले- हे माता ! मेरी बात सुनो ॥ ६६ ॥
राम की आज्ञा से तुम्हारी रक्षा में तत्पर मुझको तुमने जो वाणीस्थ्यी बाणों से ताडित किया है, उसका फल तुम शीघ्र पाओगी ॥ ६७ ॥
तो भी मेरे कहे हुए इस हितकारी वचन को सुन लो।
मैं धनुष से तुम्हारे चारों ओर यह रेखा खींचे देता हूँ ॥ ६८ ॥
यह तुम्हारी रक्षा के लिए और दुष्टों के लिये दुर्लघनीय तथा महान् भय उत्पन्न करने वाली होगी।
प्राणों के कण्ठ में आ जाने पर भी तुम इस रेखा का उल्लंघन नहीं करना ।। १६ ।।
ऐसा कहकर धनुष की कोर से लक्ष्मण ने पञ्चवटी के बाहर खाई की भाँति सीता की चारों ओर रेखा खींच दी ।। १०० ।।
तदनन्तर सीता को प्रणाम करके चुपचाप शीघ्र राम की ओर चल दिये।
इसी समय रावण भिक्षुक का रूप धारण करके पंचवटी के द्वार पर जाकर रेखा के बाहर खड़ा हो गया और "नारायणहरि" कहकर चुप हो रहा ॥ १०१ ॥ १०२ ॥
तब छायामयी सीता उसको भिक्षा देनेके लिये बाहर आयी और हाथ बढ़ाकर भिक्षु से 'भिक्षा लो' ऐसा कहा ॥ १०३ ॥
तब कमल के समान नेत्रों वाली सीता से भिक्षु ने कहा कि मैं रेखा के भीतर से फ़ेंकी हुई भीख नहीं लेता ॥ १०४ ॥
यदि तुम राम के गृहस्थाश्रम की रक्षा करना चाहती होओ तो रेखा के बाहर आकर भिक्षा दो ॥ १०५ ॥
भिक्षु के इस वचन को सुनकर 'कहीं पाप न लगे' इस शंका से बायें पाव को रेखा से बाहर रख और लम्बा हाथ करके ।। १०६ ॥
जय श्री राम.....!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanath Swami Car Parking Areiya , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


जय श्री राम
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