सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्रीमद्भागवत गीता आधारित प्रर्वचन ।।
श्रीमद्भागवत गीता आधारित प्रर्वचन
श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्रीमदभागवत
गीता अध्याय: 18 श्लोक 33
श्लोक:
धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी॥
भावार्थ:
हे पार्थ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति
( भगवद्विषय के सिवाय अन्य सांसारिक विषयों को धारण करना ही व्यभिचार दोष है, उस दोष से जो रहित है वह 'अव्यभिचारिणी धारणा' है )।
जब से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इंद्रियों की क्रियाओं...!
( मन, प्राण और इंद्रियों को भगवत्प्राप्ति के लिए भजन, ध्यान और निष्काम कर्मों में लगाने का नाम 'उनकी क्रियाओं को धारण करना' है )।
को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है।
भगवान श्रीकृष्ण जब अपने प्रेमीभक्त पर कृपा करते हैं तो भक्त का द्वैतपन नष्ट कर देते हैं ।
तब भक्त अपने - आप को कृष्णरूप मे ही देखता है।
समस्त प्राणियों जैसे चीटी, मच्छर, पक्षी, सभी प्राणी, वृक्ष, पत्थर, पहाड़, नदियां, दीवारें आदि सभी मे एक भगवान श्रीकृष्ण ही दिखाई देते हैं।
ऐसी स्थिति मे भक्त कभी पत्थर को भगवान समझकर प्रणाम करता है।
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कभी कुत्ता, विल्ली आदि को भगवान समझकर प्रणाम करता है।
चीटी व मच्छरों मे भगवान श्रीकृष्ण को देखने पर वह कीड़े - मकोड़ों को कभी नही मारता, पैरों के नीचे कोई चीटी आदि प्राणी कुचलकर मर न जाय इसमे वह बहुत सावधान रहता है।
भले ही लोग ऐसे भक्त को पागल समझते हैं लेकिन वह उच्चकोटि का भक्त होता है।
सभी वस्तुओं मे व सभी प्राणियों मे भगवान के दर्शन करना ही भागवत धर्म कहलाता है।
यह भागवतधर्म इतना शुध्द होता है कि इसमे मनुष्यों की वह विषमबुध्दि नही होती कि ' यह मैं हूं ' , ' यह मेरा है ' , ' यह तू है ' , ' यह तेरा है।'
किसी भी वस्तु मे अहंता, ममता न रखनेवाले व मोक्ष को प्राप्त करने की इच्छावाले इसी भागवत धर्म का आश्रय लेते हैं।
भागवतधर्मी व्यक्ति कभी भी परमार्थ से विचलित नही होता।
वास्तविक स्वरूप...!
पानी को कितना भी गर्म कर लें पर वह थोड़ी देर बाद अपने मूल स्वभाव में आकर शीतल हो जायेगा।
इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में अशांति में रह लें पर थोड़ी देर बाद बोध में, निर्भयता में और प्रसन्नता में हमें आना ही होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।
इतना ऊर्जा सम्पन्न जीवन परमात्मा ने हमें दिया है स्वयं का तो क्या लाखों - लाखों लोगों का कल्याण करने के निमित्त भी हम बन सकते हैं।
जरुरत है, स्वयं की शक्ति और स्वभाव को समझने की।
यदि जीवन पथ में सबसे बड़ी कोई बाधा है तो वह है, निराशा।
हम थोड़ी देर में ही परिस्थिति के आगे घुटने टेक कर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं।
किसी संग दोष के कारण, किन्हीं बातों के प्रभाव में आकर निराश हो जाना, यह संयोग जन्य स्थिति है।
आनंद , प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास और सात्विकता यही हमारा मूल स्वभाव है।
यही हमारा वास्तविक स्वरूप है।
जय श्री कृष्ण
राधाष्टमी पर्व :
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है।
इस वर्ष यह 31 अगस्त को मनाया जाएगा।
राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं।
इस दिन रात - दिन बरसाना में बहुत रौनक रहती है.....!
विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.....!
धार्मिक गीतों तथा कीर्तन के साथ उत्सव का आरम्भ होता है।
राधाष्टमी की कथा :
राधाष्टमी कथा, राधा जी के जन्म से संबंधित है....!
राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी.....!
राधाजी की माता का नाम कीर्ति था.....!
पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है.....!
इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी.....!
राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन - पालन किया।
इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था....!
तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी.....!
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी.....!
लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था.....!
ऎसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी.....!
राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।
राधाष्टमी पूजन :
राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत का पालन किया जाता है।
राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं स्नान कराने के पश्चात उनका श्रृंगार किया जाता है.....!
राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित करते हैं....!
मध्यान्ह के समय श्रद्धा तथा भक्ति से राधाजी की आराधना कि जाती है।
धूप - दीप आदि से आरती करने के बाद अंत में भोग लगाया जाता है....!
कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा - कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात कही गई है।
इसके अनुसार सबसे पहले राधाजी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और उनका विधिवत रुप से श्रृंगार करना चाहिए....!
इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए....!
सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शांति करानी चाहिए.....!
अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मम्त्रों के साथ "श्यामाश्याम" का अभिषेक किया जाता है....!
नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है....!
जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
राधाष्टमी महत्व :
वेद तथा पुराणादि में राशाजी का ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है....!
वही कृष्णप्रिया हैं....!
राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी.....!
धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है.....!
भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है.....!
श्रीमद देवी भागवत श्री राधा जी कि पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता.....!
श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं।
ब्रज और बरसाना में राधाष्टमी उत्सव :
ब्रज और बरसाना में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाई जाती है.....!
वृंदावन में भी यह उत्सव बडे़ ही उत्साह के साथ मनाया जाता है....!
मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों इस दिन को उत्सव के रुप में मनाया जाता है....!
वृन्दावन के 'राधा बल्लभ मंदिर' में राधा जन्म की खुशी में गोस्वामी समाज के लोग भक्ति में झूम उठते हैं.....!
मंदिर का परिसर "राधा प्यारी ने जन्म लिया है.....!
कुंवर किशोरी ने जन्म लिया है" के सामूहिक स्वरों से गूंज उठता है।
मंदिर में बनी हौदियों में हल्दी मिश्रित दही को इकठ्ठा किया जाता है और इस हल्दी मिली दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है.....!
इस पर वह और अधिक झूमने लगते हैं और नृत्य करने लगते हैं.....!
राधाजी के भोग के लिए मंदिर के पट बन्द होने के बाद, बधाई गायन के होता है.....!
इस के बाद दर्शन खुलते ही दधिकाना शुरु हो जाता है....!
इस का समापन आरती के बाद होता है।
॥ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्रोत ॥ ( हिंदी भावार्थ सहित )
श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का गायन वृन्दावन के विभिन्न मन्दिरों में नित्य किया जाता है।
इस स्तोत्र के पाठ से साधक नित्यनिकुंजेश्वरि श्रीराधा और उनके प्राणवल्लभ नित्यनिकुंजेश्वर ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण की सुर - मुनि दुर्लभ कृपाप्रसाद अनायास ही प्राप्त कर लेता है।
स्तोत्र :
“राधा साध्यम साधनं यस्य राधा, मंत्रो राधा मन्त्र दात्री च राधाl
सर्वं राधा जीवनम् यस्य राधा, राधा राधा वाचि किम तस्य शेषम ll”
“भावार्थ”: “राधा” साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है।
मन्त्र भी राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है सब कुछ राधा नाम में ही समाया हुआ है और सबका जीवन प्राण भी राधा ही है राधा नाम के अतिरिक्त ब्रम्हांड में शेष बचता क्या है ?
मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१)
भावार्थ : समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा पर निकुंज में विलास करने वाली हैं।
आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण की चिरसंगिनी है, हे जगज्जननी श्रीराधे माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (१)
अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (२)
भावार्थ : आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की प्रचंड अग्नि की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं, आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं।
आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी हैं, हे सर्वेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (२)
अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (३)
भावार्थ : रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा करती रहती हैं।
आप श्री नन्दकिशोर को निरंतर अपने बस में किये रहती हैं, हे जगज्जननी वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (३)
तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (४)
भावार्थ : आप बिजली के सदृश, स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने मुखारविंद की चाँदनी से शरद पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं।
आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर शिशु के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (४)
मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (५)
भावार्थ : आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से पूरित मन ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई विलासपूर्ण कला पारंगत हैं।
आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा की विधा में भी प्रवीण हैं, हे निकुँजेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (५)
अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (६)
भावार्थ : आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली है, आपके पयोंधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं।
आपकी मंद-मंद मधुर मुस्कान सागर के समान आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णप्रिया माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (६)
मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (७)
भावार्थ : जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं।
सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर आपके मिलन के लिये आतुर रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (७)
सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (८)
भावार्थ : आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को प्रकाशमान कर रहा है।
आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों से अलंकृत हैं, हे कीरतिनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (८)
नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (९)
भावार्थ : आपका उर भाग में फूलों की मालाओं से शोभायमान हैं, आपका मध्य भाग रत्नों से जड़ित स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित है।
आपकी जंघायें हाथी की सूंड़ के समान अत्यन्त सुन्दर हैं, हे ब्रजनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (९)
अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग।
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१०)
भावार्थ : आपके चरणों में स्वर्ण मण्डित नूपुर की सुमधुर ध्वनि अनेकों वेद मंत्रो के समान गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है।
आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वर्णलता लहरा रही है, हे जगदीश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (१०)
अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिदिवृदिदिग्ध -सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम्॥ (११)
भावार्थ : अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्रीपार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है।
आपके चरण - कमलों की एक उंगली के नख का ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि की प्राप्ति होती है, हे करूणामयी माँ!
आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (११)
मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ (१२)
भावार्थ : आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप सब देवताओं की स्वामिनी हैं, आप तीनों वेदों की स्वामिनी है, आप संपूर्ण जगत पर शासन करने वाली हैं।
आप रमा देवी की स्वामिनी हैं, आप क्षमा देवी की स्वामिनी हैं, आप आमोद-प्रमोद की स्वामिनी हैं, हे ब्रजेश्वरी!
हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार नमन है। (१२)
इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥ (१३)
भावार्थ : हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो।
केवल आपकी दया से ही मेरे प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा, आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा। (१३)
स्तोत्र पाठ करने की विधि व फलश्रुति :
राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धया,
एकादश्यां त्रयोदश्यां य: पठेत्साधक: सुधी।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति साधक:,
राधाकृपाकटाक्षेण भक्ति: स्यात् प्रेमलक्षणा।।१४।।
भावार्थ– पूर्णिमा के दिन, शुक्लपक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों पक्षों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होगा, अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्रीराधाजी की दयादृष्टि से पराभक्ति प्राप्त होगी।
उरुमात्रे नाभिमात्रे हृन्मात्रे कंठमात्रके,
राधाकुण्ड-जले स्थित्वा य: पठेत्साधक:शतम्।।
तस्य सर्वार्थसिद्धि:स्यात् वांछितार्थ फलंलभेत्,
ऐश्वर्यं च लभेत्साक्षात्दृशा पश्यतिराधिकाम्।।१५।।
भावार्थ– इस स्तोत्र के विधिपूर्वक व श्रद्धा से पाठ करने पर श्रीराधा-कृष्ण का साक्षात्कार होता है। इसकी विधि इस प्रकार है–
गोवर्धन में श्रीराधाकुण्ड के जल में जंघाओं तक या नाभिपर्यन्त या छाती तक या कण्ठ तक जल में खड़े होकर इस स्तोत्र का १०० बार पाठ करे।
इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं।
ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
भक्तों को इन्हीं से साक्षात् श्रीराधाजी का दर्शन होता है।
तेन सा तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम्।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत्प्रियं श्यामसुन्दरम्।।
नित्य लीला प्रवेशं च ददाति श्रीब्रजाधिप:।
अत: परतरं प्राप्यं वैष्णवानां न विद्यते।।१६।।
भावार्थ– श्रीराधाजी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर ( जावक ) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं।
वरदान में केवल ‘अपनी प्रिय वस्तु दो’ यही मांगना चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते है और प्रसन्न होकर श्रीव्रजराजकुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं।
इस से बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।
किसी - किसी को राधाकुण्ड के जल में १०० पाठ करने पर एक ही दिन में दर्शन हो जाता है।
किसी - को कुछ समय लग जाता है इस लिए जब तक दर्शन न हों, पाठ करते रहें।
किसी को घर में ही नित्य १०० पाठ करने से कुछ ही दिनों में इष्ट प्राप्ति हो जाती है।
श्रीराधा जी की आरती :
आरती श्री वृषभानुसुता की |
मंजु मूर्ति मोहन ममताकी || टेक ||
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,
विमल विवेकविराग विकासिनि |
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ||
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरती सोहनि |
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिताकी ||
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,
आकर अमित दिव्यगुन गनकी,
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,
अति अमूल्य सम्पति समता की ||
कृष्णात्मिका, कृषण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि |
जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि,
आदि अनादिशक्ति विभुताकी ||
जय श्री कृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Car Parking Ariya , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V. O. C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


बहुत सुंदर
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