सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रर्वचन ।।
श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित क्रोध का संपूर्ण खानदान , गुरु केसा हो केसा नही होना चाहिए और नाम जप का महिमा के सुंदर प्रर्वचन...!
क्या आपको पता है?
क्रोध का भी पूरा ही खांनदान होता है......!
क्रोध का दादा है....
उनका नाम द्वेष....!
क्रोध का बाप जिससे वह डरता है.....
उनका नाम भय...!
क्रोध की मां है ......
उनका नाम उपेक्षा...!
क्रोध की एक लाडली बहन है...
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उनका नाम जिद...!
क्रोध की पत्नी है.....
उनका नाम हिंसा...!
क्रोध का बडा भाई है...
उनका नाम अंहकार...!
क्रोध की दो बेटिया हैं....
उनका नाम निंदा और चुगली....!
क्रोध का बेटा है..
उनका नाम बैर....!
इस खानदान की नकचडी बहू है.....
उनका नाम ईर्ष्या...!
क्रोध की पोती है......
उनका नाम घृणा....!
तो मेरा आपसे निवेदन है कि इस खानदान से हमेशा ज्यादा हो उतना ज्यादा दूर से दूर रहें और सदा खुश रहो।
जो लोग सतगुरु से नाम लेकर कमाई नहीं करते , उनको मौत से पहले सतगुरु दर्शन नहीं देते ।
मगर सम्भाल उनकी भी होती है ।
कैसे
जब आत्मा शरीर से बाहर निकलती है तो आगे तीन रास्ते हैं ।
दांया , बांया और दरमियाना ( बीच का ) ।
दरम्यान के रास्ते को शाहरग या सुषमना भी कहते हैं ।
बांई तरफ काल , भगवान के एजेंट ,यमदूत या फरिश्ते , मौजूद होते हैं और दांई तरफ सतगुरु खड़े होते हैं ।
बांई तरफ जमदूत मरने वाले को आवाज देते हैं , इधर आ जाओ ।
इधर रास्ता है ।
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उस वक्त सतगुरु उस रूह , आत्मा को पकड़ लेते हैं और बांए रास्ते नहीं जाने देते ।
जिसको गुरु नहीं मिला वह यमदूतों के साथ जाता है और उसका बुरा हाल होता है ।
यमदूत उसके किसी मरे हुए रिश्तेदार का रूप धारण करके आवाज देते हैं कि ऐ , फलाना , यार , बेटा , ऐ भाई आदि बोलकर आवाज देते हैं कि इस तरफ आ जा , इधर रास्ता है ।
उस बेचारे को क्या खबर कि यह धोखा है ।
वह उधर जाता है और मारा जाता है ।
आगे काल मूंह खोले बैठा है , जीव उसमें जाता है , काल दाढों से चबाता है ।
काल का रूप देखकर कईयों का टट्टी, पेशाब निकल जाता है डर के मारे , रोता चिल्लाता है ।
विष्णु पुराण में नारद मुनि ने कहा है कि जगत चबीना काल का , कुछ मुख में , कुछ गोद ।
सतगुरु अपने जीवों को काल से छुड़ा लेता है और अपने साथ ऊपर के रूहानी मंडलों में ले जाता है ।
किसी को सहंसदल कमल , किसी को त्रिकुटी लोक , किसी को पार ब्रह्म लोक में ठहरा कर भजन सिमरन करवा कर , काल का लेखा जोखा खत्म करवा कर आगे सतलोक पहूंचाते हैं ।
सूक्ष्म व कारण मंडलों में , उन देशों में , हजारों सालों तक भजन सिमरन करना पड़ता है ।
जो कोई इस दुनियां की आस , अधूरी इच्छा होगी तो उसको धर्मराज से सजा दिलाकर फिर से मनुष्य शरीर में भेज देते हैं।
उसको नए सिरे से गुरु की खोज करके भक्ति करनी पडे़गी ।
सतगुरु उसको 1 - 2 - 3 - 4 जन्म तक बार बार मनुष्य शरीर में भेजते हैं ।
संत दो से ज्यादा जन्म देना पसंद नहीं करते ।
भजन सिमरन करके ही कर्मों का लेखा जोखा खत्म होगा ।
नाशवान दुनियां के प्रति इच्छाएं ही जन्म का कारण बनती हैं ।
जो जीते जी शब्द अभ्यास, कमाई करेगा वो पहले सतलोक पहूंचेगा ।
श्री सामवेद में नारद मुनि कहते हैं कि ---
एक जन्म गुरु भक्ति कर , जन्म दूसरे नाम । तीसरे जन्म मुक्ति पद , चौथे में निज धाम । ।
लेकिन अब परम संत ज्यादा पावर लेकर ही आये हैं ।
एक जन्म में ही मुक्ति पद को प्राप्त किया जा सकता है ।
धनी धर्म दास जी ने आठ जन्मों तक कबीर जी का संग किया था , तब मुक्ति पाई ।
परमार्थी पत्र भाग 2 में सावन शाह महाराज जी का वचन लिखा है ।
संत ही एक जन्म में पांचों मंडलों की रसाई ( पहूंच ) करता है ।
एक जन्म की भक्ति वाले को संत की देह के दर्शन होते हैं ।
तीन जन्म की भक्ति वाले को नाम दान ( नाम का भेद , रास्ता ) मिलता है ।
चार जन्म की भक्ति वाले को दरबार की सेवा मिलती है ।
पांच जन्म की भक्ति वाले को संत की देही की सेवा मिलती है ।
छः जन्म की भक्ति वाला संत बनता है ।
भक्ति कई जन्मों का कोर्स ( पढाई ) होता है ।
जिस देह में शब्द नाम का ताकत प्रकट होती है ।
जिससे गुरुवाई की सेवा लेनी है सतगुरु ने वहीं एक जन्म में भक्ति सिमरन का कोर्स पूरा कर लेता है ।
नतीजा --
हमने तो सतगुरु के बताये हुए रास्ते पर चलना है।
सतगुरु जानें कब भव सागर रूपी दरिया से पार करें ।
आज का शब्द-:
ऐसा जग देखिया जुआरी…!
अर्थ - : गुरु नानक साहब द्वारा उच्चारण किया हुआ यह शब्द जिसमें गुरुजी साफ समझा रहे हैं।
इस संसार में ऐसे जुआरी ही भरे हैं।
जो बिना पैसा लगाए जीतना चाहते हैं।
अर्थ यह है कि नाम जपे बिना सुखी होना चाहते है।
हम सुख ढूंढते हैं।
पैसा , बंगला , गाड़ी , संसारी साधनों में पर गुरुजी समझा रहे हैं ।
चाहे जितना मर्जी पैसा कमा लो आप सुखी नहीं हो सकते आपके मन को शांति नहीं मिल सकती।
असल सुख चाहते हो तो अमृतवेले में ही उठकर नाम जपना होगा संगत की सेवा करनी होगी ।
दुनियावी सुख पैसा गाड़ी घोड़ा तो आएगा जाएगा पर नाम यह एक मात्र ऐसा सुख है।
जिसको जपने से मन शांत एवं प्रमेनेट ही आनंद की प्राप्ति होगी।
नाम जपने से संसार के सभी सुख प्राप्त होते और अंत में सचखंड दरबार में हाजिरी लगेगी मुक्ति प्राप्त होगी।
इस लिए असल सुख चाहते हो तो अमृतवेले उठो मन की तृष्णा को शांति मिलेगी नाम जपो सिमरन करो संगत की सेवा….!
💐💐जय जय श्री राधे💐💐
🌳 चोरी का दंड 🌳
एक समय कांचीपुर नामक गांव में वज्र नाम का एक चोर रहता था।
चोर नाम के भांति ही वज्र ह्रदय का था।
उसे जिसका जो मिलता चुरा लेता। उसे तनिक भी दया नहीं आती थी कि उस सामान के स्वामी को कितना कष्ट होगा !
वह चुराए हुए धन को सिपाहियों के भय से जंगल में जमीन के अंदर छुपा देता था !
एक रात विरदत्त नाम के लकड़हारे ने ये घटना देख ली।
और चोर के जाने के पश्चात जमीन खोद कर उसके चुराए हुए धन का दसवां हिस्सा निकाल लिया और गड्ढे को पहले की भांति ढक दिया।
लकड़हारा इतनी चालाकी से सामान निकलता की चोर को इस चोरी का पता ही नहीं चल पता था।
एक दिन लकड़हारा अपनी पत्नी को धन देते हुए बोला, कि तुम रोज धन माँगा करती थी, लो आज पर्याप्त धन इक्कठा हो गया है।
उसकी पत्नी ने कहा, जो धन अपने परिश्रम से उपार्जित न किया गया हो वह स्थाई नहीं होता है।
इस लिए इस धन को जनता की भलाई में लगा दीजिये।
विरदत्त को भी ये बात जच गयी !
इस लिए उसने इस धन से एक बहुत बड़ा तालाब खुदवाया जिसका पानी कभी भी नहीं सूखता था।
लेकिन इसमें सीढ़िया लगनी रह गयी थी और सारे पैसे समाप्त हो गये थे।
तो वह फिर से छिपकर चोर का अनुसरण करने लगा की वह धन कहा छुपाता है।
इस के बाद फिर उससे दसवां हिस्सा निकाल कर तालाब का काम पूरा करवाया !
तथा उसने भगवान शंकर और भगवान विष्णु के भव्य मंदिर बनवाए।
बंजर जमीन पर खेत बनवाये और गरीबों में वितरित कर दिया।
गरीबों ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसका नाम द्विजवर्मा रखा ।
जब द्विजवर्मा की मृत्यु हुई तब एक ओर से यमदूत आये और एक ओर से भगवान शंकर के गण आये।
उनमे आपस में विवाद होने लगा इसी बीच वहां नारद जी पधारे।
नारद जी ने उनको समझाया, आप विवाद न करें इस लकड़हारे ने चोरी के धन से परोपकार के कामों को कराया है...!
इस लिए जब तक यह कुमार्ग से अर्जित धन का प्रायश्चित नहीं कर लेता तब तक वायु रूप में अंतरिक्ष में विचरण करता रहेगा।
नारद जी की बात सुनकर सभी दूत वापस लौट गए तथा द्विजवर्मा बारह वर्षों तक प्रेत बनकर घूमता रहा।
नारद जी ने लकड़हारे की पत्नी से कहा...!
तुम ने अपने पति को सदमार्ग दिखाया
इस लिए तुम ब्रम्ह्लोक जाओगी।
लेकिन लकड़हारे की पत्नी अपने पति के दुःख से दुखी थी।
वह देवर्षि से बोली, जब तक मेरे पति को देह नहीं मिलती तब तक मैं यही रहूंगी।
जो गति मेरे पति की हुई वही गति मैं भी चाहती हूँ !
ये बातें सुनकर देवर्षि बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने बताया की तुम अपने पति की मुक्ति के लिए शिव की आराधना करो।
उसने अपने पति की मुक्ति के लिए अथक मेहनत से भगवान शिव की आराधना की।
इससे उसके पति के चोरी का सारा पाप धूल गया।
फिर दोनों पति पत्नी को उत्तम लोक मिला।
इस पौराणिक सत्य कथा का निष्कर्ष यही है की कोई भला काम करने का अच्छा फल जरूर मिलता है....!
लेकिन कोई भला काम करने के लिए कभी किसी गलत काम का सहारा नही लेना चाहिए...!
अन्यथा उस गलत काम का भी दंड जिंदा रहते या मरने के बाद जरूर भुगतना पड़ता है !
जय श्री कृष्ण....!!!
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏



बहुत सुंदर
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