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जय द्वारकाधीश
।। वेद पुराण शास्त्रों के अनुसार पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है....? ।।
वेद पुराण शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है।
बाएं अंग का अधिकारी।
इस लिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।
इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है।
जिसका प्रतीक है।
शिव का अर्धनारीश्वर शरीर।
यही कारण है...!
कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।
वेद पुराण और शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है।
इस लिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए।
इस से शुभ फल की प्राप्ति होती।
वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है।
वेद पुराण और शास्त्रों में बताया गया है।
कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।
पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है।
कि जो कर्म संसारिक होते हैं।
उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है।
क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।
यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं।
और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है।
इस लिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।
क्या आप जानते हैं?
सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है।
यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा...!
इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है।
जिसका अर्थ है।
पत्नी...!
पति के शरीर का आधा अंग होती है।
दोनों शब्दों का सार एक ही है।
जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।
पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है।
उसे खुशहाली प्रदान करती है।
उसके परिवार का ख्याल रखती है।
और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है।
पति - पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है।
चाहे सोसाइटी कैसी भी हो।
लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें।
लेकिन पति - पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है।
प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।
हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति - पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है।
भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये।
क्योंकि..!
उसी से वंश की वृद्धि होती है।
वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी।
इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है।
उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे।
गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है।
उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों।
उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये।
कहते हैं..!
पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे।
इस लिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।
सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा।
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।
गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है।
यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है।
जो प्रियवादिनी है।
जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है...!
वास्तव में वही पत्नी है..!
गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है।
वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो,..!
घर के सदस्यों का आदर - सम्मान करती हो।
बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो।
जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे..!
भोजन बनाना..!
साफ - सफाई करना..!
घर को सजाना, कपड़े - बर्तन आदि साफ करना..!
यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है।
इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना..!
घर आये अतिथियों का मान - सम्मान करना..!
कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है।
ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।
प्रियवादिनी से तात्पर्य है।
मीठा बोलने वाली पत्नी..!
आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज - तरार बोलने वाली पत्नियां भी है।
जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें।
इस लिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली।
धीरे - धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है।
पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है।
व उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है।
परंतु केवल पति ही नहीं।
घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है।
ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कभी नहीं आता।
पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी भी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है।
जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो।
उसे देवता के समान मानती हो तथा कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो वह पत्नी गुणी है।
विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है।
वरन् वह उस नये घर की बहु भी कहलाती है।
उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है।
इस लिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति - रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है।
इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है।
कि वह अपने पति व परिवार के हित में सोचे...!
व ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो।
गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती - संवरती है।
कम बोलती है..!
तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है।
जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है।
तथा अपने पति का ही हीत सोचती है।
उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहियें...!
जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों..!
उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहियें।
किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गयी !
वह बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकला!
सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा।
पता नहीं...!
समझती क्या है खुद को?
जब देखो झगड़ा..!
सुकून से रहने नहीं देती!
नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर...!
चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया!
तभी पीछे से एक आवाज सुनाई दी इतनी सर्दी में घर से बाहर चाय पी रहे हो?
गर्दन घुमा कर देखा तो पीछे के स्टूल पर बैठे एक बुजुर्ग थे।
आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं बाबा...!
बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा :-
मैं निपट अकेला..!
न कोई गृहस्थी..!
न साथी...!
तुम तो शादीशुदा लगते हो बेटा"।
पत्नी घर में जीने नहीं देती बाबा !!
हर समय चिकचिक...!
बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ।
जिंदगी नरक बना कर रख दी है।
बुजुर्ग : पत्नी जीने नहीं देती?
बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है।
आठ बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए।
जब ज़िंदा थी...!
कभी कद्र नहीं की...!
आज कम्बख़्त चली गयी तो भुलाई नहीं जाती...!
घर काटने को दौडता है।
बच्चे अपने अपने काम में मस्त , आलीशान घर , धन - दौलत सब है..!
पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं।
यूँ ही कभी कहीं,कभी कहीं,भटकता रहता हूँ!
कुछ अच्छा नहीं लगता..!
उसके जाने के बाद पता चला...!
वह धड़कन थी!
मेरे जीवन की ही नहीं।
मेरे घर की भी।
सब बेजान हो गया है...!
लेकिन तुम तो समझदार हो बेटा...!
जाओ !!
अपनी जिंदगी खुशी से जी लो।
वरना बाद में पछताते रहोगे...!
मेरी तरह।
बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर भी।
चाय वाले को पैसे दिए।
नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा..!
एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया...!
उसे दूर से ही देख लिया था।
डबडबाई आँखो से निहार रही पत्नी,चिंतित दरवाजे पर ही ख़डी थी...!
कहाँ चले गए थे?
जैकेट भी नहीं पहना...!
ठण्ड लग जाएगी तो ?,
तुम भी तो...!
"बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो!"
कुछ यूँ...!
दोनों ने आँखों से,एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया था!
दोस्तो !!
कई बार हम लोग भी अपने जीवन में इसी तरह की गलतियां कर बैठते है।
सिर्फ पत्नी ही नही,माँ - बाप, चाचा - ताऊ, भाई - बहिन या अज़ीज़ दोस्तोँ के साथ ऐसा क्रोध कर देते है।
जो सिर्फ हम को ही नही।
उनको भी कष्ट देता है।
छोटा सा जीवन है दोस्तो!!
जिंदगी के सफर मे गुजर जाते है।
जो मकाम,वो फिर नही आते।
राधे_राधे_क्यों_बोला_जाता_है?
कृष्ण : -
अच्छा तुम बताओ...!
अगर मैं कृष्ण ना होकर कोई वृक्ष होता तो???
तब तुम क्या करती???
श्री राधे ने अपने गुस्से को ठंडा करते हुए कहा : -
तब मैं लता बनकर तुम्हारे चारों ओर लिपटी रहती…!
कृष्णा ने राधे को मनाने वाली बच्चों की मुस्कान देकर कहा…!
और अगर मैं यमुना नदी होता तो???
श्री राधे ने उत्तर दिया...!
“हम्म्म्म….!
तब मैं लहर बनकर तुम्हारे
साथ साथ बहती रहती….!
श्यामसुंदर !!!”
( श्री राधे का गुलाबी रंग वापिस लौट आया…!
वे ठुड्डी के नीचे अपना हाथ रखकर अगले प्रश्न की प्रतीक्षा करने लगीं )।
कृष्ण निकट घास चरती एक गौ की ओर संकेत करके बोले...!
“अच्छा!!!!!
यदि मैं उसकी तरह गौ होता तो???
तो तुम क्या करती??
श्री राधा, कान्हा जी के गाल खींचती हुई बोलीं……!
तो मैं घंटी बनकर आपके गले में झूमती रहती प्राणनाथ…..!
परन्तु आपका पीछा नहीं छोड़ती….!
फिर अगले कुछ पलों तक वहां शान्ति छाई रही…!
केवल यमुना की लहरें और मोर की आवाज़ ही सुनाई दे रही...!
श्री राधे ने चुप्पी तोड़ते हुए कान्हा जी से पूछा…??
“आप मुझसे कितना प्रेम करते हो मेरे प्राणनाथ???
मेरा तात्पर्य यदि …!
हमारे प्रेम को अमर करने के लिए कोई वचन देना हो…!
तो आप क्या वचन देंगे…???”
कृष्णा ने राधे के कर कमलों को स्पर्श करते हुए कहा…!
“मैं तुम्हे इतना प्रेम करता हूँ राधे…!
कि जो भी भक्त तुम्हें स्मरण करके ‘रा…’ शब्द बोलेगा… उसी पल मैं उसे अपनी अविरल भक्ति प्रदान कर दूंगा।
और पूरा ‘राधे’ बोलते ही मै स्वयं उसके पीछे पीछे चल दूंगा…..।
श्री राधे ने अपने नैनो में प्रेम के अश्रु भरकर कहा:-
और मैं आज वचन देती हूँ मेरे कान्हा!!!….
मेरे भक्त को कुछ बोलने की भी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी…!
जहाँ भी जिस किसी के हृदय में आ गया है ।
प्राप्य देहं सुदुष्प्रापं न स्मरेत्त्वां नराधम:
मनसा कर्मणा वाचा ब्रूम: सत्यं पुन: पुनः।
सुखे वाप्यथवा दु:खे त्वं न: शरणमद्भुतम्।।
पाहि न: सततं देवि सर्वैस्तव वरायुधे:।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वत्पादाम्बुजरेणुत:।!
है देवी...!
हम मन,वाणी और कर्म से बार - बार यह सत्य कह रहे हैं।
कि सुख अथवा दु:ख,प्रत्येक परिस्थिति में एकमात्र आप ही हमारे लिए अद्भुत शरण हैं।
हे देवि...!
आप अपने समस्त श्रेष्ठ आयुधों द्वारा हमारी निरन्तर रक्षा करें।
आपके चरण - कमलों की धूलि को छोड़कर हमारे लिए कोई दूसरा शरण नहीं है।
धर्म केवल रास्ता दिखाता है।
लेकिन मंजिल तक तो कर्म ही पहुंचाता है।
अपनी किस्मत को कभी दोष मत दीजिए।
इंसान के रूप में जन्म मिला है।
ये किस्मत नहीं तो और क्या है।
कहते हैं - :
रेत में गिरी हुई चीनी चींटी तो उठा सकती है पर हाथी नहीं...!
इस लिए छोटे आदमी को छोटा न समझे...!
कभी कभी वो भी बड़ा काम कर जाता है।
"बुराई" करना रोमिंग की तरह है।
करो तो भी चार्ज लगता है और सुनो तो भी चार्ज लगता है।
और "नेकी" करना जीवन बीमा की तरह है..!
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी।
इस लिए "धर्म" की प्रीमियम भरते रहिये और अच्छे कर्म का "बोनस" पाते रहिये….!
★★
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏