सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
💐💐💐श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता। / सुंदर कहानी 💐💐💐
🙏 *स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जा सकता* ✍️
*एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता*❓
शास्त्र की आज्ञा है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिये।
पुष्कर खंड में भगवान शंकर ने पार्वती जी को स्पष्ट रूप से कहा है, जो एकादशी के दिन श्राद्ध करते हैं तो श्राद्ध को खाने वाला और श्राद्ध को खिलाने वाला और जिस के निमित्त वह श्राद्ध हो रहा है वह पितर, तीनों नर्क गामी होते हैं।
उसके लिए ठीक तो यही होगा कि वह उस दिन के निमित्त द्वादशी को श्राद्ध करें।
तो हमारे महापुरुषों का कहना है कि अगर द्वादशी को श्राद्ध नहीं करें और एकादशी को करना चाहें तो पितरों का पूजन कर निर्धन ब्राह्मण को केवल फलाहार करावें ।
भले ही वह ब्राह्मण एकादशी करता हो या ना करता हो।
लेकिन हमें उस दिन उसे फलाहार ही करवाना चाहिए।
*श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता।*
आज कल एक प्रचलन है पिताजी का श्राद्ध है तो पंडित जी को खिलाया और माता जी का श्राद्ध है तो ब्राह्मणी को खिलाया; यह शास्त्र विरुद्ध है।
स्त्री को श्राद्ध का भोजन करने की आज्ञा नहीं है ।
क्योंकि वह जनेऊ धारण नहीं कर सकती, उनको अशुद्ध अवस्था आती है, वह संकल्प नहीं करा सकती, तो ब्राह्मण को ही श्राद्ध का भोजन कराना चाहिए ।
ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणी आ जाए उनकी पत्नी आ जाए साथ में बच्चे आ जाएं कोई हर्ज नहीं पर अकेली ब्राह्मणी को भोजन कराना शास्त्र विरुद्ध है।
*पितरों को पहले थाली नहीं देवें,*
पित्तृ पूजन में पितरों को कभी सीधे थाली नहीं देनी चाहिए।
वैष्णवों में पहले भोजन बना कर पृथम ठाकुर जी को भोग लगाना चाहिए, और फिर वह प्रसाद पितरों को देना चाहिए, कारण क्या है वैष्णव कभी भी अमनिया वस्तु किसी को नहीं देगा।
भगवान का प्रसाद ही अर्पण करेगा और भगवान का प्रसाद पितरों को देने से उनको संतुष्टि होगी।
इस लिए पितरों को प्रसाद अर्पण करना चाहिए ।
पित्तृ लोक का एक दिन मृत्यु लोक के 1 वर्ष के बराबर होता है ।
यहां 1 वर्ष बीतता है पितृ लोक में 1 दिन बीतता है ।
केवल श्राद्ध ही नहीं अपने पितरों के निमित्त श्री गीता पाठ, श्री विष्णु सहस्त्रनाम, श्री महा मंत्र का जप और नाम स्मरण अवश्य करना चाहिए।
पितृ कर्म करना यह हमारा दायित्व है ।
जब तक यह पंच भौतिक देह है तब तक इस संबंध में जो शास्त्र आज्ञा और उपक्रम है उनका भी निर्वाह करना पड़ेगा |
जय श्री कृष्णा....!!! ! 🚩
💐💐💐 सुंदर कहानी 💐💐💐
*दूसरों पर टीका टिप्पणी करने से पहले, यदि आप अपने दोष देखें, और उन्हें दूर करें, तो आप अधिक सुखी रहेंगे।*
आपने मनुष्यों की यह मनोवृत्ति व्यवहार में देखी होगी, कि लोग दूसरों की जितनी चर्चा करते हैं, उन पर जितनी टीका टिप्पणी करते हैं, उतना अपने विषय में विचार नहीं करते, कि "हम कौन हैं? कहाँ से आए हैं, कहाँ जाएंगे? हमें क्या करना चाहिए, इत्यादि।"
*बहुत से लोग वर्षों तक इसी बहस में पड़े रहते हैं, कि "ईश्वर है या नहीं?
परंतु अपने बारे में यह नहीं सोचते कि हम भी मनुष्य हैं या नहीं?"*
हम यह नहीं कहते, कि ईश्वर आदि विषयों पर सोचना नहीं चाहिए, या विचार विमर्श नहीं करना चाहिए। हम तो यह कहते हैं, कि ऐसे विषयों पर भी सोचना चाहिए, खूब सोचना चाहिए।
परंतु उस से पहले स्वयं अपने विषय में यह अवश्य सोचना चाहिए, कि *" हम कौन हैं, कहां से आए हैं, हम संसार में क्यों आए हैं? यहाँ हमारा अधिकार कितना है, हमारा कर्तव्य क्या है?
क्या हम अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं या नहीं?
क्या यही हमारा पहला और अंतिम जन्म है, या इसके बाद कोई और भी जन्म होगा? "*
कहने को तो आप और हम मनुष्य हैं।
" पर मनुष्य कहते किसे हैं," शायद इतना भी ठीक से नहीं जानते।
*सिर्फ मनुष्य का शरीर धारण कर लेने मात्र से कोई व्यक्ति मनुष्य नहीं कहलाता।
जैसे खिलौने के रूप में लकड़ी की गाय बना देने से वह वास्तविक गाय नहीं कहलाती।
वह लकड़ी की गाय न तो चारा खाती है, न ही दूध देती है।
सिर्फ नाम मात्र की गाय होती है।*
इसी प्रकार से केवल शरीर धारण कर लेने से कोई मनुष्य नहीं कहलाता।
*वेदों के अनुसार, वास्तव में मनुष्य तो वही कहलाता है, जो मनन करके, विचार करके काम करे।
अपने कर्तव्य का गंभीरतापूर्वक चिंतन करे।
फिर उस कर्तव्य का पूरी शक्ति से पालन करे।
बिना विचार किए, कोई काम न करे।*
वास्तविक मनुष्य तो वही है, जो पहले अपने संबंध में ऊपर लिखे प्रश्नों पर विचार करे।
उन विचारों पर ठीक से आचरण करे।
उसके बाद ईश्वर के संबंध में भी विचार करे।
जैसा ईश्वर का सच्चा स्वरूप हो, उसको जानकर उसके आदेश निर्देश का पालन करे, तथा अपने जीवन को सफल बनाए।
अब हम विचार करते हैं कि मनुष्य का कर्तव्य क्या है?
*वेदों और ऋषियों के अनुसार मनुष्य वही है, जो अपनी आत्मा के समान सबकी आत्मा को समझे।
जैसे मुझे सुख अच्छा लगता है, ऐसे ही सबको सुख अच्छा लगता है।
जैसे मैं अपने सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता हूं, ऐसे ही मैं दूसरों को भी सुख प्राप्त कराने के लिए प्रयत्न करूँ।
जैसे मैं अपने दुख दूर करने का पूरा प्रयास करता हूं, ऐसे ही मैं दूसरों के दुखों को भी दूर करने का पूरा प्रयास करूँ।
ऐसा सोचने और करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में मनुष्य है।
अन्यथा तो वह नाम मात्र का ही मनुष्य है, जैसे लकड़ी की गाय।*
तो वास्तविक मनुष्य, दूसरे दीन हीन कमजोर रोगी मनुष्यों की सहायता करे।
जो मुसीबत में हैं, उन्हें मुसीबत से बाहर निकाले।
उनकी मदद करे।
यह मनुष्य का पहला कर्तव्य है।
और यह सब कर्तव्य पालन करते हुए, फिर उसका दूसरा कर्तव्य यह भी है कि, वह ईश्वर का भी चिंतन करे, कि *ईश्वर है अथवा नहीं? हमारा ईश्वर के प्रति क्या कर्तव्य है?
हम उसका पालन कर रहे हैं या नहीं?
ईश्वर से हमें क्या क्या लाभ हो सकते हैं?
क्या क्या हानियाँ हो सकती हैं।?
उसके लिए हमें क्या करना होगा?
इत्यादि.* सब विचार विमर्श करके फिर ईश्वर के प्रति कर्तव्य पालन करे।
और उससे पूरा पूरा लाभ उठाए।
संसार के जड़ पदार्थों रोटी कपड़ा मकान धन सम्पत्ति इत्यादि से भी पूरा लाभ उठाए।
और जीवन के लक्ष्य मोक्ष को समझते हुए उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करे।
ऐसा करने से तो आप लोग सुखी रहेंगे।
जीवन को सार्थक बनाएंगे।
और सब दुखों से छूटकर ईश्वर के उत्तम आनंद ( मोक्ष ) को भी प्राप्त कर सकेंगे।
-।।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏